Universe ka god kon hai

  1. भूत क्या सच में होते हैं? वैज्ञानिकों ने दिया ये जवाब
  2. सूर्य
  3. ब्राह्मणों के 8 प्रकार जानिए कौन से...
  4. About GURUJI
  5. सात चिरंजीवी कौन
  6. ब्रह्माण्ड


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भूत क्या सच में होते हैं? वैज्ञानिकों ने दिया ये जवाब

अगर आप भूतों में विश्वास रखते हैं तो यकीन मानिए ऐसा करने वाले आप इकलौते नहीं है. दुनिया की कई संस्कृतियों में लोग आत्माओं और मृत्यु के बाद दूसरी दुनिया में रहने वाले लोगों पर भरोसा करते हैं. असल में भूतों पर विश्वास दुनिया में सबसे ज्यादा मानी जाने वाली पैरानॉर्मल एक्टिविटी है. हर दिन हजारों लोग भूतों की कहानियां पढ़ते हैं. फिल्में बनती हैं, उन्हें देखते हैं. यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, उसके ऊपर का मामला है. आइए जानते हैं कि भूतों के भूत, वर्तमान और भविष्य को लेकर विज्ञान का तार्किक जवाब क्या है? (फोटोः गेटी) साल 2019 में Ipsos Poll में ये बात सामने आई थी कि 46 फीसदी अमेरिकी लोगों भूतों में भरोसा करते हैं. इस सर्वे में 7 फीसदी लोगों ने यह भी माना था कि वो वैंपायर्स में भी विश्वास करते हैं. भूतों की कहानियां हर धर्म में होती हैं. साहित्य में भी दिखाई देती हैं. बहुत से लोग पैरानॉर्मल बातों पर भरोसा करते हैं. मृत्यु के नजदीक जाकर वापस आने के अनुभवों को शेयर करते हैं. मौत के बाद की जिंदगी को मानते हैं. आत्माओं से बातचीत करते हैं. कई लोग सदियों से भूतों और आत्माओं से बातें करने का दावा करते आ रहे हैं. कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसी प्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज में घोस्ट क्लब बने हैं. (फोटोः गेटी) भूतों और आत्माओं पर अध्ययन करने के लिए 1882 में सोसाइटी फॉर फिजिकल रिसर्च बनाई गई थी. इस सोसाइटी की प्रेसीडेंट और इन्वेस्टिगेटर इलेनॉर सिडविक नाम की महिला थीं. इन्हें असली फीमेल घोस्टबस्टर कहा जाता था. अमेरिका में 1800 के अंत में भूतों पर काफी रिसर्च आर काम किया गया. लेकिन बाद में पता चला कि इसका मुख्य जांचकर्ता हैरी होडिनी एक फ्रॉड है. (फोटोः गेटी) वैज्ञानिक तौर पर भूतों पर रिसर्च इसलिए मुश्किल हो जा...

सूर्य

नासा की सौर गतिविधि वेधशाला द्वारा लिया गया २०१० में लिया गया सूर्य का एक चित्र अवलोकन आंकड़े औसत दूरी 1.496 ×१० 8कि.मी ८.३१७ मि. (४९९ से.) प्रत्यक्ष चमक ( V) −26.74 4.85 G2V Z = 0.0177 31.6′ – 32.7′ सौर से औसत दूरी ~ 2.5 ×१० 17कि.मी 26,000 (2.25–2.50)×10 8 ~ 220km/s (आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा) ~ 20km/s (तारकीय पड़ोस में अन्य सितारों की औसत गति के सापेक्ष) भौतिक गुण औसत व्यास 1.392 ×१० 6कि.मी १०९ × पृथ्वी भूमध्यीय 6.955 ×१० 5कि.मी १०९ × पृथ्वी भूमध्यीय 4.379 ×१० 6कि.मी १०९ × पृथ्वी 9 ×१० −6 6.0877 ×१० 12km2 11,990 × पृथ्वी 1.412 ×१० 18km3 13,00,000 × पृथ्वी 1.9891 ×१० 30kg 3,32,900 × Earth 1.408 ×१० 3kg/m3 विभिन्न घनत्व केन्द्र: 1.5 ×१० 5kg/m3 lower Photosphere: 2 ×१० −4kg/m3 lower Chromosphere: 5 ×१० −6kg/m3 Avg. Corona: 1 ×१० −12kg/m3 भूमध्यीय सतही गुरुत्व 274m/s 2 27.94 g २८ × पृथ्वी (सतह से) 617.7km/s ५५ × पृथ्वी सतह का प्रभावी तापमान 5,778 कोरोना का तापमान ~ 5 ×१० 6K केन्द्र का तापमान ~ 15.7 ×१० 6K sol) 3.846 ×१० 26W ~ 3.75 ×१० 28 ~ 98lm/W औसत चमक(I sol) 2.9 ×१० 7W•m −2•sr −1 7.25° (to the 67.23° (to the of North pole 286.13° 19h 4min 30s of North pole +63.87° 63°52' North Sidereal (at 16° latitude) 25.38 days 25d 9h 7min 13s (भूमध्य रेखा पर) 25.05 days (ध्रुवों पर) 34.3 days घूर्णन वेग (भूमध्य रेखा पर) 7.189 ×१० 3km/h 73.46% 24.85% 0.77% 0.29% 0.16% 0.12% 0.12% 0.09% 0.07% 0.05% यह सन्दूक: • दर्शन • वार्ता • संपादन सूर्य अथवा सूरज ( ) सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का...

ब्राह्मणों के 8 प्रकार जानिए कौन से...

प्राचीन काल में हर जाति, समाज आदि का व्यक्ति ब्राह्मण बनने के लिए उत्सक रहता था। ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को आज भी है। चाहे वह किसी भी जाति, प्रांत या संप्रदाय से हो वह गायत्री दीक्षा लेकर ब्रह्माण बन सकता है, लेकिन ब्राह्मण होने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है। हम उस ब्राह्मण समाज की बात नहीं कर रहे हैं जिनमें से अधिकतर ने अपने ब्राह्मण कर्म छोड़कर अन्य कर्मों को अपना लिया है। हालांकि अब वे ब्राह्मण नहीं रहे लेकिन कहलाते अभी भी ब्राह्मण ही है। स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है:- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है। उपनाम में छुपा है पूरा इतिहास 1. मात्र : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं। वे बस शूद्र हैं। वे तरह तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और रा‍त्रि के क्रियाकांड में लिप्त रहते हैं। वे सभी राक्षस धर्मी भी हो सकते हैं। 3. श्रोत्रिय : स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है। 4. अनुचान : कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार...

About GURUJI

Guruji is the "light divine" that came on earth to bless and enlighten humanity. On 7th July 1954, the sun rose in Dugri village at Malerkotla, Punjab (India), to herald the birth of Guruji in a hamlet. Guruji spent the early stages of his life around Dugri, went to school and college and finally graduated with a Masters degree each in economics and political science. He had a spark of spirituality in him right from childhood--say those who knew him then. It did not take long for the spark to get fully lit; the shower of Guruji's blessings began to fall on the earth to lessen the sufferings of hundreds of thousands of people. Guruji sat at various places including Jalandhar, Chandigarh, Panchkula and New Delhi--and satsangs 1 began happening. It was here that people came from all over India and other parts of the world to seek his blessings. The tea and langar prasad (blessed food) served at Guruji's satsang had his special divine blessings. The devotees experienced his grace in various forms: incurable diseases were healed and the entire matrix of problems ranging from legal to financial to emotional were solved. Some members of the sangat also had divine darshans (visions) of deities. There was nothing impossible for Guruji, for he wrote fate, and could re-write it. Guruji's doors were open to the high and low, poor and rich, and people of all religious affiliations. From the most ordinary of men to the most powerful of politicians, businessmen, bureaucrats, armed servic...

सात चिरंजीवी कौन

प्राचीन हिंदू इतिहास और पुराणों के अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है। हिंदू धर्म अनुसार इन्हें सात जीवित महामानव कहा जाता है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इनका प्रात: स्मरण करने से मनुष्य दीर्घायु और निरोग रहता है। अर्थात इन लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है। वेद व्यासजी को भी चिरंजीवी माना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है तो उसकी उम्र लंबी होती है। 1. बलि : राजा बलि के दान के चर्चे दूर-दूर तक थे। देवताओं पर चढ़ाई करने राजा बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। बलि सतयुग में भगवान वामन अवतार के समय हुए थे। राजा बलि के घमंड को चूर करने के लिए भगवान ने ब्राह्मण का भेष धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में माँगी थी। राजा बलि ने कहा कि जहाँ आपकी इच्छा हो तीन पैर रख दो। तब भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर दो पगों में तीनों लोक नाप दिए और तीसरा पग बलि के सर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया। 2. परशुराम : परशुराम राम के काल के पूर्व महान ऋषि रहे हैं। उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका है। पति परायणा माता रेणुका ने पाँच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए। राम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें फरसा दिया था इसी...

ब्रह्माण्ड

ब्रह्माण्ड सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शब्द लैटिन शब्द "यूनिवर्सम"से लिया गया है, जिसका उपयोग रोमन राजनेता सिसेरो और बाद के रोमन लेखकों ने दुनिया और ब्रह्माण्ड को सन्दर्भित करने के लिए किया था जैसा कि वे जानते थे। इसमें पृथ्वी और उसमें रहने वाले सभी जीवित प्राणी, साथ ही चन्द्रमा, सूर्य, तत्कालीन ज्ञात ग्रह (बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि) और तारे शामिल थे। सरल भाषा मैं कहे तो यह करोड़ो तारे आकाशगंगा गैस ग्रह नछत्र मिलकर ब्रह्माण्ड का निर्माण करते है, जिसका निर्माण काल १३.७८७ अरब वर्ष पहले शुरू हुआ, और ये प्रकाश के गति से बढ़ ही रहा है। बिग बैंग सिद्धान्त ब्रह्माण्ड के विकास का प्रचलित ब्रह्माण्ड सम्बन्धी विवरण है। इस सिद्धान्त के अनुसार, अन्तरिक्ष और समय १३.७८७ ± ०.०२० अरब वर्ष पहले एक साथ उभरा, सदियों से, अधिक सटीक खगोलीय अवलोकनों ने निकोलस कोपरनिकस को सौर मण्डल के केन्द्र में सूर्य के साथ सूर्य केन्द्रित मॉडल विकसित करने के लिए प्रेरित किया। सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण के नियम को विकसित करने में, आइजैक न्यूटन ने कोपरनिकस के काम के साथ-साथ जोहान्स केपलर के ग्रहों की गति के नियमों और टाइको ब्राहे द्वारा टिप्पणियों पर बनाया। आगे अवलोकन सम्बन्धी सुधारों ने यह महसूस किया कि सूर्य आकाशगंगा में कुछ सौ अरब सितारों में से एक है, जो ब्रह्माण्ड में कुछ सौ अरब आकाशगंगाओं में से एक है। आकाशगंगा के कई तारों में ग्रह होते हैं। सबसे बड़े पैमाने पर, आकाशगंगाओं को समान रूप से और सभी दिशाओं में समान रूप से वितरित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि ब्रह्माण्ड का न तो कोई किनारा है और न ही कोई केन्द्र है। छोटे पैमाने पर, आकाशगंगाओं को समूहों और सुपरक्लस्टरों में वितरित किया जाता है जो अन्तरिक्ष में विशाल ...