उर्दू के प्रसिद्ध शायर का नाम

  1. उर्दू के बड़े शायर और वकील पंडित बृजनारायण चकबस्त, जिन्होंने सत्ता को दी थी खुली चुनौती
  2. असरारुल हक़ मजाज़
  3. मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib shayari in Hindi
  4. शहरयार की परिचय
  5. हिन्दुस्तानी संस्कृति के अलम बरदार उर्दू शायर फ़िराक़ गोरखपुरी
  6. उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल
  7. जयंती विशेष:दाग़ देहलवी के 20 बड़े शेर....
  8. उर्दू शायर
  9. आग़ा हश्र कश्मीरी
  10. उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल


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उर्दू के बड़े शायर और वकील पंडित बृजनारायण चकबस्त, जिन्होंने सत्ता को दी थी खुली चुनौती

आज की तारीख में जो लोग भी जिस भी रूप में सत्ताओं के दमन या अत्याचार के शिकार हैं, उनके लिए यह याद करना खासा प्रेरणास्पद हो सकता है कि अपने वक्त के बेहद मशहूर व मकबूल शायर पं. बृजनारायण चकबस्त ने (जो उर्दू में आधुनिक कविता स्कूल के संस्थापकों में से एक थे और जिनकी आज जयंती है) देश के स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेते हुए दमनकारी गोरी सत्ता को यह लिखकर खुली चुनौती दी थी कि जुबां को बंद करें या मुझे असीर करें, मिरे खयाल को बेड़ी पिन्हा नहीं सकते. उनके बारे में बात करनी हो तो दो हस्तियों के शब्द उधार लिये जा सकते हैं. इनमें पहली हस्ती हैं चकबस्त की रचनाओं के संग्रह ‘सुबह-ए-वतन’ के संपादक शशिनारायण ‘स्वाधीन’, जिन्होंने लिखा है कि चकबस्त अल्लामा इकबाल के दोस्त तो थे ही, उनसे कम बड़े शायर भी नहीं थे. लेकिन जिंदगी उनके लिए छोटी पड़ गयी. स्वाधीन की मानें तो चकबस्त उर्दू शायरी के भविष्य थे, उनमें गजब की सांस्कृतिक निष्ठा थी और उर्दू फारसी पर उनका समान अधिकार था. दूसरी हस्ती हैं चकबस्त के एक और दोस्त तत्कालीन मशहूर वकील तेजबहादुर ‘सप्रू’, जिन्हें पूरे जीवन अफसोस रहा कि इकबाल और चकबस्त जैसे महानुभावों को अपना समय कानून व कविता के बीच बांटना पड़ा. कश्मीर की जमीन से था संबंध बहरहाल, इकबाल और चकबस्त में एक और चीज मिलती थी: दोनों का संबंध कश्मीर की जमीन से था. चकबस्त के कश्मीरी मूल के सारस्वत ब्राह्मण पुरखे 15वीं शताब्दी में उत्तर भारत में आ बसे थे. उनके पिता पं. उदितनारायण, जो स्वयं भी कवि थे, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे. गौरतलब है कि अंग्रेजी राज में डिप्टी कलेक्टर वह सर्वोच्च पद था, जो किसी भारतीय को मिल सकता था. फैजाबाद में ही 19 जनवरी, 1882 को अच्छी पत्रकारित...

असरारुल हक़ मजाज़

अनुक्रम • 1 जीवन-परिचय • 1.1 आरंभिक जीवन • 1.2 नौकरी एवं बीमारी • 2 विचार एवं लेखन-शैली • 3 प्रकाशित पुस्तकें • 4 इन्हें भी देखें • 5 सन्दर्भ • 6 बाहरी कड़ियाँ जीवन-परिचय [ ] आरंभिक जीवन [ ] मजाज़ का असली नाम असरारुल हक़ था। नौकरी एवं बीमारी [ ] असरारुल हक़ मजाज़ ने पहली नौकरी ऑल इंडिया रेडियो में की थी। १९३५ में एक साल तक ऑल इंडिया रेडियो की पत्रिका 'आवाज़' के सहायक संपादक भी रहे थे। परंतु, अधिक दिनों तक नौकरी नहीं रह सकी। विचार एवं लेखन-शैली [ ] 'मजाज़' प्रगतिशील आंदोलन के प्रमुख हस्ती रहे अली सरदार जाफ़री के निकट संपर्क में थे और इसलिए प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित भी थे। स्वभाव से रोमानी शायर होने के बावजूद उनके काव्य में प्रगतिशीलता के तत्त्व मौजूद रहे हैं। उपयुक्त शब्दों का चुनाव और भाषा की रवानगी ने उनकी शायरी को लोकप्रिय बनाने में प्रमुख कारक तत्त्व की भूमिका निभायी है। उन्होंने बहुत कम लिखा, लेकिन जो भी लिखा उससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली। सामान्यतः उर्दू शायरी का बखिया उधेड़ने वाले प्रसिद्ध आलोचक वस्तुतः मजाज़ की मूल चेतना रोमानी है। इनके काव्य में प्रेम की हसरतों और नाकामियों का बड़ा व्यथापूर्ण चित्रण हुआ है। आरंभ में मजाज़ की प्रगतिशील रचनाओं के पीछे भी एक रोमानी चेतना थी, मगर धीरे-धीरे इनकी विचारधारा का विकास हुआ और मजाज़ अपने युग की आशाओं, सपनों, आकांक्षाओं और व्यथाओं की वाणी बन गये। मजाज़ ने दरिद्रता, विषमता और पूँजीवाद के अभिशाप पर बड़ी सशक्त क्रांतिकारी रचनाएँ की हैं, मगर काव्य के प्रवाह और सरसता में कहीं कोई बाधा नहीं आने दी। सुप्रसिद्ध शायर "मजाज़ की क्रांतिवादिता आम शायरों से भिन्न है।.. मजाज़ क्रांति का प्रचारक नहीं, क्रांति का गायक है। उसके नग़मे म...

मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib shayari in Hindi

मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib Shayari in Hindi मिर्जा गालिब का पूरा नाम “मिर्जा असद उल्लाह बेग खां” था। वे ग़ालिब के नाम से भी मशहूर थे। वह उर्दू और फारसी भाषा के महान शायर थे। मिर्जा गालिब को भारत और पाकिस्तान में एक मशहूर कवि के रूप में जाना जाता है। मिर्जा गालिब द्वारा लिखे गए पत्र उर्दू भाषा की महत्वपूर्ण साहित्य सामग्री मानी जाती हैं। मिर्जा ग़ालिब आखरी मुगल शासक पढ़ें : मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib Shayari in Hindi शायरी 1 आह को चाहिये इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक शायरी 2 गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के शायरी 3 बाजीचा ए अतफाल है दुनिया मिरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे शायरी 4 हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले शायरी 5 चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत . बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला शायरी 6 बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना शायरी 7 उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक, वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’, कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे शायरी 8 फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल दिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया कोई वीरानी सी वीरानी है . दश्त को देख के घर याद आया शायरी 9 हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और पढ़ें : शायरी 10 यह...

शहरयार की परिचय

भारत के प्रमुख उर्दू कवियों और शिक्षाविदों में से एक "शहरयार" का असली नाम अख़लाक़ मोहम्मद खान था। उनका जन्म 16 जून 1936 को उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले के अमला में हुआ था। हरदोई में अपनी प्रार्थमिक शिक्षा पूरी करने के बाद , वे उच्च शिक्षा के लिए 1948 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय चले गए। 1961 में अलीगढ से ही उर्दू में एम ए किया और 1966 में उर्दू विभाग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय वाबस्ता हो गए। 1996 में यहीं से प्रोफेसर और उर्दू के अध्यक्ष के रूप में रिटायर हुए। ऐसे समय में जब उर्दू शायरी में उदासी और विडंबना जैसे विषयों पर बहुत ज़ोर था , शहरयार साहब ने अलग राह ली और उर्दू शायरी के भीतर आधुनिकता का एक नया अध्याय पेश किया। शहरयार ने अपनी शायरी में जिस सादगी के साथ आज के इंसान की तकलीफ़ और दुःख-दर्द का बयान किया है वो अपने आप में एक मिसाल है। उन्होंने उर्दू शायरी के क्लासिकी रंग को बरक़रार रखते हुए जिस तरह आधुनिक वक़्त की समस्याओं का चित्रण अपनी शायरी में किया है वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के अलावा , उन्हें गीतकार के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने ' उमराव जान ' और ' गमन ' जैसी मशहूर बॉलीवुड फिल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं। हाकी , बैडमिंटन और रमी जैसे खेलों में दिलचस्पी रखने वाले शहरयार उर्दू शायरी की तरफ़ मशहूर शायर खलील उर रहमान आज़मी से निकटता के बाद आए। शुरूआती दौर में उनके कुछ कलाम कुंवर अख़लाक़ मोहम्मद के नाम से भी प्रकाशित हुए। लेकिन बाद में शाज़ तमकनत के कहने पर उन्होंने अपना तख़ल्लुस ' शहरयार ' रख लियाथा और आखिर तक इसी नाम से जाने जाते रहे। शहरयार अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) अलीगढ़ में लिटरेरी सहायक भी रहे और अंजुमन की पत्रिकाओं 'उर्दू आदब' और 'हमारी ज़बान'...

हिन्दुस्तानी संस्कृति के अलम बरदार उर्दू शायर फ़िराक़ गोरखपुरी

आज प्रसिद्ध शायर फ़िराक़ गोरखपुरी की जयंती है। पेश है जाने माने सरोद वादक असित गोस्वामी का यह लेख।देश विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके सितार वादक और साहित्य प्रेमी डॉ असित गोस्वामी वर्तमान में बीकानेर के राजकीय कन्या महाविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं- ========================== अगर है हिन्द शनासी की आरज़ू तुझको मेरा कलाम इसी सिम्त इक इशारा है फ़िराक़ गोरखपुरी का यह शेर उनकी शायरी की एक बानगी पेश करता है. यह शेर इस बात की शहादत है कि उनका पूरा कलाम हिन्दुस्तान और हिंदुस्तानियत के रंग में रँगा है. हुस्न-ओ-इश्क, हिज्र-ओ-विसाल दिल-ओ-जिगर जैसे उर्दू के रिवायती मौज़ूआत तो फ़िराक़ साहब की शायरी में मिलते ही हैं पर उनकी शायरी में भारतीय साहित्य परम्परा का श्रृंगार रस भी इफ़रात से मिलता है. उनके पूरे कलाम में और ख़ास तौर से उनके संग्रह “रूप” की रुबाइयों में सुन्दरता के विशुद्ध भारतीय रूपक बड़ी मिकदार में मौजूद हैं. जैसे – कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो गाते क़दमों की गुनगुनाहट तो सुनो सावन लहरा है मद में डूबा हुआ रूप रस की बूँदों की झमझमाहट तो सुनो या वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए वो रस आवाज़ में कि अमृत ललचाए रफ़्तार में वो लचक पवन रस बल खाए गेसू में वो लटक कि बादल मँडलाये फ़िराक़ साहब का असली नाम रघुपति सहाय था. उनका जन्म 28 अगस्त 1896 को गोरखपुर में हुआ था. उनके पिता मुंशी गोरख प्रसाद ‘इबरत’ प्रसिद्ध वकील और शायर थे. उत्तर प्रदेश के कायस्थ घराने से ताल्लुक होने के कारण उनको बचपन से उर्दू फारसी की तरबियत मिलनी शुरू हो गयी थी. आगरा विश्व विद्यालय से उच्च स्थान से अंग्रेज़ी में एम० ए ० करने के बाद आई सी एस की नौकरी न करके कोंग्रेस के अंडर सेक्रेटरी बन आनंद भवन इलाहबाद आ गए. वहां 19...

उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल

उर्दू साहित्य आधुनिक काल • सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में परिवर्तन आया। अंग्रेजी शासन की सुदढ़ता तथा उनसे मुक्ति पाने के लिए भारतीयों की बेचैनी ने सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। महात्मा गांधी का आंदोलन चल पड़ा। सन् 1947 में भारत स्वतन्त्र हो गया। इन घटनाओं से उर्दू कविता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। एकांत प्रेम अब युगीन समस्याओं का चित्रण करने लगे। • मौलाना मुहम्मद हुसैन ' आजाद ' तथा अलताफ हुसैन हाली ' ने हालरायड की प्रेरणा से सन् 1874 ई. में ही लाहौर में एक नए मुशायरी की नींव डाली। हाली ' ने स्थानीय रंग , वास्तविकता से लगाव तथा जीवन के सच्चे चित्रण पर बल दिया। आजाद की प्रेरणा से उर्दू कविता में नवीन चेतना का उदय हुआ। उर्दू कविता का कायाकल्प हो गया। विषयवस्तु एवं क्षेत्र में विस्तार हुआ। आधुनिक काल की शायरी ने अपनी संकुचित भावभूमि का परित्याग कर जीवन के अहम् समस्याओं से जोड़ा तथा उसने अति संयम से युगीन चेतना का चित्रण किया। उर्दू साहित्य नवजागरण • उर्दू साहित्य के नवजागरण (सन् 1874 1935 ई.) ने राष्ट्र एवं सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की आधुनिक उर्दू का प्रारंभ 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से हुआ। अंग्रेजों ने ज्ञान-विज्ञान की नवीन उपलब्धियां प्रदान की जिससे देश भक्ति तथा स्वतन्त्रता की विचारधारा का उदय हुआ। राजनीतिक आंदोलन तथा सुधारवादी आंदोलनों से उर्दू कविता प्रभावित हुई। मौलाना हुसैन , आजाद , अलताफ हुसैन , हाली , दुर्गा सहाय सुरूर , पं. ब्रज नारायण चकबस्त तथा इकबाल जैसे शायरों ने उर्दू कविता में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की तथा देश प्रेम , राष्ट्रभक्ति एवं जातीय भावना का प्रसार किया। आजान...

जयंती विशेष:दाग़ देहलवी के 20 बड़े शेर....

उर्दू के प्रसिद्ध शायर दाग देहलवी का जन्म 1831 में हुआ था। दाग़ के हजारों लाखों मुरीद भी हैं। उनमें से कई ऐसे हैं जो ना तो शायर हैं, ना ही मशहूर हैं।उनको तमाम बड़े गज़ल गायकों ने गाया है। दाग़ का निधन 1905 में हुआ था। इनका जन्म स्थान दिल्ली के लाल किले को माना जाता था। दाग बहादुर शाह जफर के पोते थे। इनके पिता शम्सुद्दीन खां नवाब लोहारू के भाई थे। दाग के पिता का जब इंतकाल हुआ तब वह चार वर्ष के थे। बाद में दाग ने जौक को अपना गुरु बनाया। गुलजारे दाग, आफ्ताबे दाग, माहतादे दाग, यादगारे दाग इनके चार दीवान हैं। फरियादे दाग इनकी एक मसनबी है।

उर्दू शायर

शायर 1971 फ़ैसलाबाद, पंजाब, पाकिस्तान अंजलि बंगा 1999 पंजाब, भारत अंजुम अंसारी मुंबई, महाराष्ट्र, भारत अंजुम ख़लीक़ 1950 फ़ैसलाबाद, पंजाब, पाकिस्तान अंजुम रहबर 1962 गुना, मध्य प्रदेश, भारत अंजुम रूमानी 1920 2001 कपूरथला, पंजाब, भारत अंदलीब शादानी 1904 1969 संभल, उत्तर प्रदेश, भारत अंबरीन हसीब अंबर 1981 कराची, सिंध, पाकिस्तान अकबर इलाहाबादी 1846 1921 इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत अकबर हैदराबादी 1925 अक़ील फ़ारूक़ 1996 अख़लाक़ अहमद आहन 1974 बगहा, बिहार, भारत अख़्तर अंसारी 1909 1988 बदायूँ, उत्तर प्रदेश, भारत अख़्तर अंसारी अकबराबादी 1920 1958 आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत अख़्तर ओरेनवी 1911 1977 मुंगेर, बिहार, भारत अख़्तर रज़ा सलीमी 1974 इस्लामाबाद, पाकिस्तान अख्तर लख़नवी 1934 1995 लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत अख़्तर शीरानी 1905 1948 टोंक, राजस्थान, भारत अख़्तर सईद ख़ान 1923 2006 भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत अख्तर सईदी 1958 सिंध, पाकिस्तान अख़्तर होशियारपुरी 1918 2007 होशियारपुर, पंजाब, भारत अख़्तरुल ईमान 1915 1996 बिजनौर, उत्तर प्रदेश, भारत अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ 1922 हैदराबाद, सिंध, पाकिस्तान अजमल अजमली 1932 1993 इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत अजय सहाब 1969 रायगढ़, छत्तीसगढ़, भारत अज़रा अब्बास 1950 अज़वर शीराज़ी 1994 पंजाब, पाकिस्तान अज़हर इक़बाल 1978 मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत अज़हर इनायती 1946 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत अज़हर नवाज़ 1995 आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत अज़ीज़ अख़्तर 2000 दिल्ली, भारत अज़ीज़ अन्सारी अज़ीज़ क़ैसी 1931 1992 हैदराबाद, तिलंगाना, भारत अज़ीज़ तमन्नाई 1926 अज़ीज़ नबील 1976 मुंबई, महाराष्ट्र, भारत अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा 1926 2005 बदायूँ, उत्तर प्रदेश, भारत अज़ीज़ लखनवी 1882 1935 लखनऊ, उत्तर प्र...

आग़ा हश्र कश्मीरी

इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (नवम्बर 2020) स्रोत खोजें: · · · · आग़ा हश्र कश्मीरी उर्दू के प्रसिद्ध शायर एवं नाटककार हैं। इन्हें उर्दू भाषा का शेक्सपियर भी कहा जाता है। आगा हश्र कश्मीरी (जन्म/वास्तविक नाम: मुहम्मद शाह, 3 अप्रैल 1879—28 अप्रैल 1935) उर्दू के सुप्रसिद्ध कवि, नाटककार और साहित्यकार थे। उनके अनेक नाटक भारतीय शेक्सपियर के रूपांतरण थे। उन्होंने स्टेज ड्रामा में दिलचस्पी दिखाना शुरू कर दिया और 18 साल की उम्र में बॉम्बे चले गए और वहाँ एक नाटककार के रूप में अपना करियर शुरू किया। व्यवसाय (Career) [ ] आगा हश्र कश्मीरी का पहला नाटक 'आफताब-ए-मुहब्बत' (1897) में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने बॉम्बे में न्यू अल्फ्रेड थियेट्रिकल कंपनी के लिए एक नाटक लेखक के रूप में अपने पेशेवर करियर की शुरुआत केवल 15 रुपये के वेतन पर की थी। प्रति माह। मुरीद-ए-शेख़ (Mureed-e-Shak) कंपनी के लिए उनका पहला नाटक, शेक्सपियर के नाटक द विंटर की कहानी का एक रूपांतरण था। यह सफल साबित हुआ और उसके बाद उनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण उनकी मजदूरी 40 रु. प्रति माह कर दी गई। अपने कामों में, आगा को नाटकों में मुहावरों और काव्य गुणों के साथ छोटे गीतों और संवादों को पेश करने का अनुभव था। इसके बाद उन्होंने शेक्सपियर के नाटकों के कई और रूपांतरण लिखे, जिनमें शहीद-ए-नाज़ (या हिंदी में अच्युता दामन), माप के लिए उपाय, 1902) और शबेद-ए-हवास (किंग जॉन, 1907) शामिल हैं। यहूदी की लड़की (Jewish girl; द डॉटर ऑफ ए यहूदी), 1913 में प्रकाशित, उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक बन गया। आने वाले वर्षों में, यह पारसी-उर्दू थिएटर में एक क्लासिक बन गया। कई बार मूक फिल्म और शुरुआती टॉकीज यु...

उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल

उर्दू साहित्य आधुनिक काल • सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में परिवर्तन आया। अंग्रेजी शासन की सुदढ़ता तथा उनसे मुक्ति पाने के लिए भारतीयों की बेचैनी ने सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। महात्मा गांधी का आंदोलन चल पड़ा। सन् 1947 में भारत स्वतन्त्र हो गया। इन घटनाओं से उर्दू कविता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। एकांत प्रेम अब युगीन समस्याओं का चित्रण करने लगे। • मौलाना मुहम्मद हुसैन ' आजाद ' तथा अलताफ हुसैन हाली ' ने हालरायड की प्रेरणा से सन् 1874 ई. में ही लाहौर में एक नए मुशायरी की नींव डाली। हाली ' ने स्थानीय रंग , वास्तविकता से लगाव तथा जीवन के सच्चे चित्रण पर बल दिया। आजाद की प्रेरणा से उर्दू कविता में नवीन चेतना का उदय हुआ। उर्दू कविता का कायाकल्प हो गया। विषयवस्तु एवं क्षेत्र में विस्तार हुआ। आधुनिक काल की शायरी ने अपनी संकुचित भावभूमि का परित्याग कर जीवन के अहम् समस्याओं से जोड़ा तथा उसने अति संयम से युगीन चेतना का चित्रण किया। उर्दू साहित्य नवजागरण • उर्दू साहित्य के नवजागरण (सन् 1874 1935 ई.) ने राष्ट्र एवं सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की आधुनिक उर्दू का प्रारंभ 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से हुआ। अंग्रेजों ने ज्ञान-विज्ञान की नवीन उपलब्धियां प्रदान की जिससे देश भक्ति तथा स्वतन्त्रता की विचारधारा का उदय हुआ। राजनीतिक आंदोलन तथा सुधारवादी आंदोलनों से उर्दू कविता प्रभावित हुई। मौलाना हुसैन , आजाद , अलताफ हुसैन , हाली , दुर्गा सहाय सुरूर , पं. ब्रज नारायण चकबस्त तथा इकबाल जैसे शायरों ने उर्दू कविता में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की तथा देश प्रेम , राष्ट्रभक्ति एवं जातीय भावना का प्रसार किया। आजान...