उठो लाल अब आँखे खोलो कविता

  1. उठो लाल अब आँखे खोलो
  2. उठो लाल अब आंखें खोलो, पढ़ें अयोध्या सिंह हरिऔध की कविताएं
  3. Utho Lal Ab Aankhen Kholo Poem by Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh
  4. उठो लाल अब आँखें खोलो
  5. उठो लाल अब आँखें खोलो……
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उठो लाल अब आँखे खोलो

हिंदीकुंज.कॉम, वेबसाइट या एप्स में प्रकाशित रचनाएं कॉपीराइट के अधीन हैं। यदि कोई व्यक्ति या संस्था ,इसमें प्रकाशित किसी भी अंश ,लेख व चित्र का प्रयोग,नकल, पुनर्प्रकाशन, हिंदीकुंज.कॉम के संचालक के अनुमति के बिना करता है ,तो यह गैरकानूनी व कॉपीराइट का उलंघन है। ऐसा करने वाला व्यक्ति व संस्था स्वयं कानूनी हर्ज़े - खर्चे का उत्तरदायी होगा। All content on this website is copyrighted. Do not copy any data from this website without permission. Violations will attract legal penalties. अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,33,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",6,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,16,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,31,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,13,कमलेश्वर,6,कविता,1345,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,5,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,4,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,3,केशवदास,2,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,49,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,135,गजानन माधव "मुक्तिबोध",14,गीतांजलि,1,गोदान,6,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,2,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जो...

उठो लाल अब आंखें खोलो, पढ़ें अयोध्या सिंह हरिऔध की कविताएं

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (Ayodhya Singh Upadhyay 'Hari Oudh') हिंदी भाषा के जाने-माने कवि हैं. उन्हें हिंदी खड़ी बोली का पहला महाकवि माना जाता है. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की कविताएं कई लोगों ने बचपन में भी पढ़ी होगी -'उठो लाल अब आंखें खोलो'. ज़्यादातर लोगों को ये कविता शायद आज भी मुंह जुबानी याद हो. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की प्रमुख कृतियां हैं- प्रिय प्रवास, वैदेही वनवास, रस कलश, प्रेमाम्बु प्रवाह, चौखे चौपदे, चुभते चौपदे, बाल-विभव, बाल-विलास, फूल पत्ते, चंद्र खिलौना, खेल-तमाशा, उपदेश-कुसुम, बाल-गीतावली, चांद-सितारे, पद्य-प्रसून. आइए आज कविताओं के क्रम में हम आपको पढ़ाएंगे अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी की कुछ कविताएं जो जिंदगी के कई रंग समेटे हुए हैं. ये कविताएं हमने कविताकोश से सभार ली हैं... कर्मवीर देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले . आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं . जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं आज कल करते हुए जो दिन गंवाते हैं नहीं यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए . व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर ...

Utho Lal Ab Aankhen Kholo Poem by Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। 'प्रिय प्रवास' हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगला प्रसाद पारितोषित पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

उठो लाल अब आँखें खोलो

5/5 - (1 vote) उठो लाल अब आँखें खोलो – सोहनलाल द्विवेदी | Utho Lal Ab Aankhen Kholo Poem :- प्रातःकाल जब सुरज निकलता है तो प्रकृति की सुंदरता अनुपम होती है। उगता हुआ सुरज, चहचहाती चिड़ियाँ, गुनगुनाते भौंरे, कल-कल करता नदियों व झरनों का बहता हुआ जल, सभी हमें अपने संपूर्ण जीवन मैं निरंतर कार्य करते रहने की प्रेरणा देते हैं। बच्चों को प्रभात की सुंदरता का ज्ञान कराना व निरंतर कार्य करते रहने की सीख देना ही इस कविता का उद्देश्य है। उठो लाल अब आँखें खोलो Utho Lal Ab Aankhen Kholo उठो लाल अब आँखें खोलो, पानी लायी हूँ मुंह धो लो। बीती रात कमल दल फूले, उसके ऊपर भँवरे झूले। चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे, बहने लगी हवा अति सुंदर। न भ में न्यारी लाली छाई, धरती ने प्यारी छवि पाई। भोर हुई सूरज उग आया, जल में पड़ी सुनहरी छाया। नन्ही नन्ही किरणें आई, फूल खिले कलियाँ मुस्काई। इतना सुंदर समय मत खोओ, मेरे प्यारे अब मत सोओ। -सोहनलाल द्विवेदी Categories

उठो लाल अब आँखें खोलो……

आजकल की चकाचौंध में हम अपनी साधारण और सुन्दर सी चीज़ें क्यों खोते जा रहे हैं ? बरसों से इस कविता को ढूंढ रहा था ! बहुत बहुत धन्यवाद इस को प्रकाशित करने के लिए ! लगभग ४० साल के बाद, मैं अब भी अपनी कक्षा ४, ५ और ६ की किताबें पढ़ना चाहूँगा ! पता नहीं कैसे उन तक पहुंचू ..इतना दूर, बैंगलोर में .. ‘अपने’ उत्तर प्रदेश और कुमायूं से दूर ! कोई सुझाव ? • नमस्कार हिमेश सर, अगर में पहचानने में गलती नहीं कर रहा हूँ तो आप IBM बैंगलोर में हैं. में आपके साथ काम कर चुका हूँ सन 2008 में. बचपन हमेशा से ही असाधारण होता है.आप ही नहीं में भी तरसता हूँ उन सब चीजों के लिए.वो किताबें तो आज उपलब्ध नहीं हैं इसीलिए जो भी याद आता है उसे अपने चिट्ठे पर प्रकाशित करने की कोशिश करता हूँ. एक बात और कहना चाहूँगा. आप दूर नहीं हैं ‘अपने’ उत्तर प्रदेश और कुमायूं से. बैंगलोर में आपको बहुत सारे लोग मिल जायेंगे जो आप की ही तरह वापस जुडना चाहते हैं अपनी मिट्टी से.तलाश करने की जरूरत भर है. धन्यवाद. अमित तिवारी • utho lal meri bachpan ki kavita hai aur aaj bhi mujhe utne hi pyari hai isliye apni betion ko bhi roz sunati hoon. Main ak aur kavita share karna chahati hoon jo maine 2nd class mein padhi thi. ye kavita kaksha 2 ki hai uttaranchal state ke course ki jisne suraj chand banaya jisne taron ko chamkaya jisne chidiyon ko chahakaya jisne phoolon ko mahkaya jisne sara jagat banaya hum us ishwar ke gun gayen use prem se sheesh jhukayen. • HUE BAHUT DIN BUDIYA EK CHALTI THI LATHI KO TEK USKE PASS BAHUT THA MAAL JAANAA THA USKO SASURAL MAGAR RAAH MEIN CHEETE SHER LETE THE RAHI KO GHER BUDIYA NE SOCHI TARKIB JISSE CHAMA...

उठो लाल अब आंखें खोलो, पढ़ें अयोध्या सिंह हरिऔध की कविताएं

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (Ayodhya Singh Upadhyay 'Hari Oudh') हिंदी भाषा के जाने-माने कवि हैं. उन्हें हिंदी खड़ी बोली का पहला महाकवि माना जाता है. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की कविताएं कई लोगों ने बचपन में भी पढ़ी होगी -'उठो लाल अब आंखें खोलो'. ज़्यादातर लोगों को ये कविता शायद आज भी मुंह जुबानी याद हो. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की प्रमुख कृतियां हैं- प्रिय प्रवास, वैदेही वनवास, रस कलश, प्रेमाम्बु प्रवाह, चौखे चौपदे, चुभते चौपदे, बाल-विभव, बाल-विलास, फूल पत्ते, चंद्र खिलौना, खेल-तमाशा, उपदेश-कुसुम, बाल-गीतावली, चांद-सितारे, पद्य-प्रसून. आइए आज कविताओं के क्रम में हम आपको पढ़ाएंगे अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी की कुछ कविताएं जो जिंदगी के कई रंग समेटे हुए हैं. ये कविताएं हमने कविताकोश से सभार ली हैं... कर्मवीर देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले . आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं . जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं आज कल करते हुए जो दिन गंवाते हैं नहीं यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए . व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर ...

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5/5 - (1 vote) उठो लाल अब आँखें खोलो – सोहनलाल द्विवेदी | Utho Lal Ab Aankhen Kholo Poem :- प्रातःकाल जब सुरज निकलता है तो प्रकृति की सुंदरता अनुपम होती है। उगता हुआ सुरज, चहचहाती चिड़ियाँ, गुनगुनाते भौंरे, कल-कल करता नदियों व झरनों का बहता हुआ जल, सभी हमें अपने संपूर्ण जीवन मैं निरंतर कार्य करते रहने की प्रेरणा देते हैं। बच्चों को प्रभात की सुंदरता का ज्ञान कराना व निरंतर कार्य करते रहने की सीख देना ही इस कविता का उद्देश्य है। उठो लाल अब आँखें खोलो Utho Lal Ab Aankhen Kholo उठो लाल अब आँखें खोलो, पानी लायी हूँ मुंह धो लो। बीती रात कमल दल फूले, उसके ऊपर भँवरे झूले। चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे, बहने लगी हवा अति सुंदर। न भ में न्यारी लाली छाई, धरती ने प्यारी छवि पाई। भोर हुई सूरज उग आया, जल में पड़ी सुनहरी छाया। नन्ही नन्ही किरणें आई, फूल खिले कलियाँ मुस्काई। इतना सुंदर समय मत खोओ, मेरे प्यारे अब मत सोओ। -सोहनलाल द्विवेदी Categories

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Utho Lal Ab Aankhen Kholo Poem by Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। 'प्रिय प्रवास' हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगला प्रसाद पारितोषित पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

उठो लाल अब आँखें खोलो……

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