वाल्मीकि किस जाती के थे

  1. Valmiki Jayanti 2017: जानिए कौन थे महर्षि वाल्मीकि और किस कारण से मनाई जाती है उनकी जयंती
  2. Valmiki Jayanti 2019: कौन थे महर्षि वाल्मीकि और किसके कहने पर उन्होंने लिखी थी रामायण, जानिए उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें
  3. [Solved] किस संत को रामायण के लेखक वाल्मीकि का अवतार मा
  4. समय को साहित्य में दर्ज करनेवाले सजग रचनाकार थे ओमप्रकाश वाल्मीकि
  5. परशुराम किस जाति के थे?
  6. ओम प्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा 'जूठन' से जानिए जाति का ताप


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Valmiki Jayanti 2017: जानिए कौन थे महर्षि वाल्मीकि और किस कारण से मनाई जाती है उनकी जयंती

अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिवस (वाल्मीकि जयंती) मनाया जाता है। इस साल वाल्मीकि जयंती अंग्रेजी महीनों के हिसाब से पांच अक्टूबर को होगी। वैदिक काल के प्रसिद्ध महर्षि वाल्मीकि‘रामायण’ महाकाव्य के रचयिता के रूप में विश्व विख्यात है। महर्षि वाल्मीकि को न केवल संस्कृत बल्कि समस्त भाषाओं के महानतम कवियों में शुमार किया जाता है। महर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार उनका जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ। माना जाता है कि महर्षि भृगु वाल्मीकि के भाई थे। महर्षि वाल्मीकि का नाम उनके कड़े तप के कारण पड़ा था। एक समय ध्यान में मग्न वाल्मीकि के शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूरी हुई तो वो दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता हैं इसलिए ही महर्षि भी वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए। महर्षि वाल्मीकि संस्कृत के महान आदि-कवि रहे हैं। पूरे भारतवर्ष में वाल्मीकि जयंती श्रद्धा-भक्ति एवं हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं। वाल्मीकि मंदिरों में श्रद्धालु आकर उनकी पूजा करते हैं। इस शुभावसर पर उनकी शोभा यात्रा भी निकली जाती हैं जिनमें झांकियों के साथ भक्तगण उनकी भक्ति में नाचते, गाते और झूमते हुए आगे बढ़ते हैं। इस अवसर पर ना केवल महर्षि वाल्मीकि बल्कि श्रीराम के भी भजन भी गाए जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य के सहारे प्रेम, तप, त्याग इत्यादि दर्शाते हुए हर मनुष्य को सदभावना के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। इसलिए उनका ये दिन एक पर्व के रुप में मनाया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार वाल्मीकि महर्षि बनने से प...

Valmiki Jayanti 2019: कौन थे महर्षि वाल्मीकि और किसके कहने पर उन्होंने लिखी थी रामायण, जानिए उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें

Valmiki Jayanti 2019: कौन थे महर्षि वाल्मीकि और किसके कहने पर उन्होंने लिखी थी रामायण, जानिए उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें हर साल आश्विन महीने की शरद पूर्णिमा को वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है. इस साल वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को पड़ रही है. क्या आप जानते हैं कि विश्व के पहले महाकाव्य रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि असल कौन थे, कैसे वो एक आम व्यक्ति से महर्षि वाल्मीकि कहलाए और किसके कहने पर उन्होंने रामायण की रचना की थी. Valmiki Jayanti 2019: वैदिक काल के महान ऋषि महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki) का जन्म शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) को हुआ था, इसलिए हर साल आश्विन महीने की शरद पूर्णिमा को वाल्मीकि जयंती (valmiki Jayanti) मनाई जाती है. इस साल वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को पड़ रही है. मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी का भी प्राकट्य हुआ था. कई भाषाओं के प्रकांड ज्ञानी कहे जाने वाले महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की थी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि विश्व के पहले महाकाव्य वाल्मीकि रामायण (Valmiki Ramayan) की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि असल कौन थे, कैसे वो एक आम व्यक्ति से महर्षि वाल्मीकि कहलाए और किसके कहने पर उन्होंने रामायण की रचना की थी. वाल्मीकि जयंती के अवसर पर चलिए जानते हैं महान ऋषि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें. कौन थे महर्षि वाल्मीकि? महर्षि वाल्मीकि के जन्म से जुड़ी ज्यादा जानकारी तो नहीं है, लेकिन प्रचलित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वे ब्रह्मा जी के मानस पुत्र प्रचेता के पुत्र थे. हालांकि बचपन में ही एक भीलनी ने उनका अपहरण कर लिया था और उनका पालन-पोषण भील परिवार में हुआ था. भील परिवार में परवरिश होने के का...

[Solved] किस संत को रामायण के लेखक वाल्मीकि का अवतार मा

सही उत्तर गोस्वामी तुलसीदास है। Key Points • गोस्वामी तुलसीदास संत को रामायण के लेखक वाल्मीकि का अवतार माना जाता है। • तुलसीदास का जन्म 1532 ई. में उत्तर प्रदेश के राजपुर या सोरों में हुआ था। • वह जन्म से सरयूपरिणा ब्राह्मण थे और उन्हें संस्कृत में लिखे महाकाव्य रामायण के लेखक वाल्मीकि का अवतार माना जाता है। • तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी और अयोध्या शहर में बिताया। वाराणसी में गंगा नदी पर तुलसी घाट का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। • उन्होंने वाराणसी में भगवान हनुमान को समर्पित संकटमोचन मंदिर की स्थापना की, माना जाता है कि यह वह उस स्थान है जहां उन्होंने देवता के दर्शन किए थे। • तुलसीदास की महत्वपूर्ण रचनाएं हैं: • रामचरितमानस • चौपाई • कवितावली • गीतावली • कृष्णावली Additional Information • वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य में अग्रदूत-कवि के रूप में मनाया जाता है। महाकाव्य रामायण, पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से विभिन्न रूप से दिनांकित है। • वह पहले कवि, रामायण के लेखक, पहली महाकाव्य कविता आदि कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। • मूल रूप से वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में 24,000 श्लोक और सात सर्ग हैं। • वाल्मीकि कवि के जीवन पर कई भारतीय फिल्में बन चुकी हैं: • जी. वी. साने की वाल्मीकि (1921) • सुरेंद्र नारायण रॉय की रत्नाकर (1921) • एलिस डुंगन की वाल्मीकि (1946) • भालजी पेंढारकर की वाल्मीकि (1946) • सुंदरराव नाडकर्णी की वाल्मीकि (1946) • सी.एस.आर. राव की वाल्मीकि (राजकुमार अभिनीत, 1963) • वाल्मीकि (एन. टी. रामा राव अभिनीत; 1963) • अरविंद भट्ट की संत वाल्मीकि (1991) Important Points व्यक्ति का नाम विवरण रामानंद स्वामी रामानंद स्वामी का जन्म विक्रम संवत 1795 में अयोध्या में ...

समय को साहित्य में दर्ज करनेवाले सजग रचनाकार थे ओमप्रकाश वाल्मीकि

समय को साहित्य में दर्ज करनेवाले सजग रचनाकार थे ओमप्रकाश वाल्मीकि ओमप्रकाश वाल्मीकि की पहचान एक दलित कवि, कहानीकार अथवा दलित रचनाकार के सीमित दायरे में समेट दी गई। ऐसा साहित्य के क्षेत्र में तेजी से वैश्विक स्तर पर पहचान पाते उनके साहित्य तथा दुनिया भर में फैली उनकी ख्याति पर अंकुश लगाने हेतु किया गया या फिर साहित्यिक हलकों में भीतर तक फैले जातीय पूर्वाग्रह के कारण हुआ, कह पाना मुश्किल है। स्मरण कर रही हैं पूनम तुषामड़ ओमप्रकाश वाल्मीकि (30 जून, 1950 – 17 नवंबर, 2013) पर विशेष दलित साहित्य के वरिष्ठ रचनाकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचनाओं पर विचार करते हुए एक बात बड़ी शिद्दत से महसूस हुई कि उनकी रचनाओं का मूल्यांकन आज तक केवल दलितवादी नजरिए से किया गया है। जबकि उनकी रचनाओं की विविधतापूर्ण शैली, आलोचनात्मक दृष्टि, एवं सामाजिक सजगता के आधार पर उनका साहित्यिक मूल्यांकन नही हो पाया। दलित साहित्य में उनकी छवि केवल स्वानुभूति प्रधान लेखक के रूप में निर्मित की गई। इतना ही नहीं, ओमप्रकाश वाल्मीकि की पहचान एक दलित कवि, कहानीकार अथवा दलित रचनाकार के सीमित दायरे में समेट दी गई। ऐसा साहित्य के क्षेत्र में तेजी से वैश्विक स्तर पर पहचान पाते उनके साहित्य तथा दुनिया भर में फैली उनकी ख्याति पर अंकुश लगाने हेतु किया गया या फिर साहित्यिक हलकों में भीतर तक फैले जातीय पूर्वाग्रह के कारण हुआ, कह पाना मुश्किल है। किंतु यह निर्विवादित रूप से सत्य है कि ओमप्रकाश वाल्मीकि एक सचेतन और संवेदनशील रचनाकार थे। इस बात की तस्दीक उनके द्वारा समय-समय पर रचित उनकी अनेक घटना प्रधान रचनाएं करतीं हैं। सामाजिक विषमता का बीज बोने वाली संस्कृति जातीय आधार पर किस प्रकार की घृणा और तिरस्कार का विष आज की पीढ़ी की धमनियो...

परशुराम किस जाति के थे?

Parshuram Kis Jati Ke The : परशुराम त्रेता युग के एक महर्षि थे। त्रेता युग में परशुराम का बहुत ही ज्यादा महत्व था। त्रेता युग में परशुराम का नाम यूं ही नहीं प्रसिद्ध था। बल्कि उन्होंने कई ऐसे कारनामे किए थे जिसकी वजह से उनका नाम प्रसिद्ध हुआ था। परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार थे ऐसा माना जाता है। तो अगर आप महर्षि परशुराम के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं कि वह कौन है? परशुराम किस जाति के थे? और महर्षि परशुराम को इतनी प्रसिद्धि क्यों मिली?, तो आप इस वक्त बिल्कुल सही जगह पर है क्योंकि आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको परशुराम के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं। विषय सूची • • • • • परशुराम किस जाति के थे? | Parshuram Kis Jati Ke The परशुराम जी कौन थे? अगर आप यह जानना चाहते हैं कि महर्षि परशुराम किस जाति के थे?, तो सबसे पहले आपको यह जानना होगा कि महर्षि परशुराम कौन थे? तो आइए नीचे वाले पैराग्राफ के माध्यम से अच्छे से जानने का प्रयास करते हैं कि महर्षि परशुराम कौन थे। महाभारत में या फिर कई हिंदुओं के ग्रंथ में यह बात बताई गई है कि परशुराम जी भगवान विष्णु के अवतार थे। परशुरामजी का वास्तविक नाम राम था लेकिन जब उन्होंने भगवान शिव की पूजा की और उन्हें शिव से जब परसु नामक अस्त्र प्रदान हुआ। तब से लोग उन्हें परशुराम के नाम से जानने लगे। वह बहुत तपस्या किया करते थे इसलिए ज्यादातर लोग उन्हें महर्षि परशुराम के नाम से जानते हैं। परशुराम जी का जन्म त्रेता युग में एक ब्राम्हण ऋषि के यहां हुआ था। वेदो और ग्रंथों के अनुसार महर्षि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। इनका जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में मानपुर नामक गांव में हुआ था। महर्षि परशुराम जी की प्रारंभिक ...

ओम प्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा 'जूठन' से जानिए जाति का ताप

‘जूठन’ का नायक किसी मिथकीय महाकाव्य का अवतारी पुरुष नहीं है. वह सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की राम की शक्तिपूजा का राम नहीं है, न ही मुक्तिबोध की अंधेरे में कविता का सर्वहारा नायक है. वह आधुनिक युग के प्रेमचंद रचित महाकाव्य गोदान का होरी भी नहीं है; अज्ञेय का शेखर होने का सवाल ही नहीं उठता, न ही वह हावर्ड फास्ट के उपन्यास आदिविद्रोही का स्पार्टकस है; न ही गोर्की के उपन्यास मां का पावेल है. इसमें से कुछ भी होने के लिए इंसान होने का औपचारिक दर्जा प्राप्त होना जरूरी है. इनमें से कोई भी किरदार ऐसा नहीं, जिसका स्पर्श भी वर्जित रहा हो, जिसे खुद ईश्वर ने शास्त्रों के जरिए मानव होने के सभी अधिकारों से वंचित किया हो. किसी ऐतिहासिक महानायक से यदि ‘जूठन’ का नायक मेल खाता है, तो वह डॉ. आंबेडकर हैं. जूठन के प्रकाशन के 22 साल बाद भी इसे ‘जूठन’ नाम हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने दिया था. पहले खंड की लोकप्रियता का आलम यह है कि अब तक इसके तेरह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और 2015 में पहली बार प्रकाशित होने वाले दूसरे खंड के भी चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं. ‘जूठन’ का देश और दुनिया की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ. कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया गया. इस पर बहुत सारे शोध-कार्य हुए. अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें. अभी सब्सक्राइब करें जाति के चक्रव्यूह में लहूलुहान जूठन का नायक इस आत्मकथा के नायक ने ऐसे समाज में जन्म लिया है, जिसमें इंसान होने का हक प्राप्त कर...