वीर रस का उदाहरण झांसी की रानी

  1. वीर रस की परिभाषा, भेद और 30+ वीर रस के उदाहरण
  2. Jhansi Ki Rani Kavita झाँसी की रानी कविता की व्याख्या
  3. 15+ वीर रस की प्रसिद्ध कविताएं
  4. वीर रस
  5. वीर रस ( परिभाषा, उदाहरण, भेद ) की पूरी जानकरी


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वीर रस की परिभाषा, भेद और 30+ वीर रस के उदाहरण

Veer Rasin Hindi: हिंदी व्याकरण की शुरुआत विद्यार्थी जब पहली कक्षा में होता है तब हो जाती है। शुरुआत में हिंदी ग्रामर हिंदी ग्रामर की एक महत्वपूर्ण इकाई रस के बारे में आज हम आपको बताने वाले हैं। ग्रामर में रस 9 प्रकार के होते हैं। इन्हीं नौ रसों में वीर रस का मुख्य योगदान है। जिसके बारे में आज हम इस आर्टिकल में डिटेल में आप तक जानकारी पहुंचाएंगे। विषय सूची • • • • • • • • • • वीर रस की परिभाषा (Veer Ras Ki Paribhasha) काव्य को सुनने पर जब उत्साह के से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही वीर रस कहते हैं। अन्य शब्दों में वीर रस वह रस है, जिसमें उत्साह का भाव होता है अथवा जिसका स्थायी भाव उत्साह होता है। वीर रस परिचय वीर रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा यही अन्य रसों के उत्पत्तिकारक रस हैं। वीर रस की उपस्थिती ऐसे काव्य में होती है, जिस काव्य में या काव्य की विषय वस्तु में उत्साह का समावेश होता है। रोद्र रस चरित्र की उस मनःस्थिती को बताता है जब वह सकारात्मक या प्रतिरक्षात्मक रूप से ऊर्जावान होता है तो संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि काव्य के जिस भाग में उत्साह को प्रकट किया जाता है, वहां वीर रस होता है। वीर रस के अवयव • स्थायी भाव: उत्साह। • आलंबन (विभाव): अन्यायी या अनाचारी या अत्याचारी व्यक्ती। • उद्दीपन (विभाव): कीर्ती या मान की इच्छा, विपक्षी का पराक्रम या विपक्षी का अहंकार। • अनुभाव: शारीरक ऊर्जा का निराकरण, धर्म के अनुकूल आचरण करना तथा प्रहार करना आदि। • संचारी भाव: उत्सुकता, स्मृति, आवेग, उग्रता आदि। रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण के बारे में विस्तार से जानने के ल...

Jhansi Ki Rani Kavita झाँसी की रानी कविता की व्याख्या

Table of Contents • • • • • • • • • • • • Jhansi Ki Rani Kavita Ki Vyakhya झाँसी की रानी कविता की व्याख्या Jhansi Ki rani Kavita : हिंदी भाषा की महान कवियत्रियों में से एक सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गयी देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत अबतक की महानतम कविता है। कविता को सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका और बलिदान की गाथा के रूप में प्रस्तुत की गई है। सन सत्तावन के संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस और शौर्य को कवियत्री ने बड़ी सुंदरता से दर्शाया है। रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध कौशल के आगे बड़े बड़े सूरमाओं, योद्धाओं और अंग्रेज अफसरों की एक ना चली यह भी इस कविता के माध्यम से उल्लेख किया गया है। सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित झाँसी की रानी कविता, वीर रस की कविता है। जब यह कविता लिखी गयी, हिंदी साहित्य (Hindi Sahitya) का वो दौर वीर रस का नहीं बल्कि छायावाद का दौर था। उस दौर में लिखी गयी अधिकतर कविताओं पर छायावाद मुखर था। कवियत्री (kaviyatri) ने बुंदेली लोकगीत को आधार बना कर यह कविता लिखी थी जिसे रानी लक्ष्मी बाई के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में देख सकते हैं। झाँसी की रानी कविता का परिचय कवी– कविता का मूल शीर्षक – देश – कविता की भाषा – कविता का विषय – सुभद्रा कुमारी चौहान झाँसी की रानी भारत हिंदी रानी लक्ष्मीबाई कवी परिचय– सुभद्रा कुमारी चौहान : जब जब हिंदी भाषा के महान और सुप्रसिद्ध कवियों या कवियत्रियों की बात होगी उनमे सुभद्रा कुमारी चौहान सबसे अग्रणी होंगी। सुभद्रा कुमारी चौहान जी का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के निकट निहालपुर ग्राम में पिता रामनाथ सिंह जमींदार के घर हुआ था। सुभद्रा कुमारी चौहान जी की दो कविता...

15+ वीर रस की प्रसिद्ध कविताएं

विषय सूची • • • • • • • • • • • • • • • • Short Veer Ras ki Kavita in Hindi साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धरि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है भूषण भनत नाद बिहद नगारन के नदी-नद मद गैबरन के रलत है ऐल-फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल गजन की ठैल–पैल सैल उसलत है तारा सो तरनि धूरि-धारा में लगत जिमि थारा पर पारा पारावार यों हलत है। आज हिमालय की चोटी से आज हिमालय की चोटी से फिर हम ने ललकरा है दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है। जहाँ हमारा ताज-महल है और क़ुतब-मीनारा है जहाँ हमारे मन्दिर मस्जिद सिक्खों का गुरुद्वारा है इस धरती पर क़दम बढ़ाना अत्याचार तुम्हारा है। शुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिन्दुस्तानी तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी आज सभी के लिये हमारा यही क़ौमी नारा है दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है। -प्रदीप राणा प्रताप की तलवार Veer Ras ki Kavita चढ़ चेतक पर तलवार उठा, रखता था भूतल पानी को। राणा प्रताप सिर काट काट, करता था सफल जवानी को।। कलकल बहती थी रणगंगा, अरिदल को डूब नहाने को। तलवार वीर की नाव बनी, चटपट उस पार लगाने को।। वैरी दल को ललकार गिरी, वह नागिन सी फुफकार गिरी। था शोर मौत से बचो बचो, तलवार गिरी तलवार गिरी।। पैदल, हयदल, गजदल में, छप छप करती वह निकल गई। क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर, देखो चम-चम वह निकल गई।। क्षण इधर गई क्षण उधर गई, क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई। था प्रलय चमकती जिधर गई, क्षण शोर हो गया किधर गई।। लहराती थी सिर काट काट, बलखाती थी भू पाट पाट। बिखराती अवयव बाट बाट, तनती थी लोहू चाट चाट।। क्षण भीषण हलचल मचा मचा, राणा कर की तलवार बढ़ी। था शोर रक्त पीने को यह, रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी।। -श्यामनारायण पाण्डेय उठो धरा के अमर सपूतो Veer Ras ki Kav...

वीर रस

Veer Ras – Veer Ras Ki Paribhasha वीर रस: वीर रस का स्थाई भाव उत्साहहै। श्रृंगार के साथ स्पर्धा करने वाला वीर रस है। श्रृंगार, रौद्र तथा वीभत्स के साथ वीर को भी भरत मुनि ने मूल रसों में परिगणित किया है। वीर रस से ही अदभुत रस की उत्पत्ति बतलाई गई है। वीर रस का ‘वर्ण’‘स्वर्ण’ अथवा ‘गौर’ तथा देवता इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृति वालो से सम्बद्ध है तथा इसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ है – ‘अथ वीरो नाम उत्तमप्रकृतिरुत्साहत्मक:’। भानुदत्त के अनुसार, पूर्णतया परिस्फुट ‘उत्साह’ अथवा सम्पूर्ण इन्द्रियों का प्रहर्ष या उत्फुल्लता वीर रस है – ‘परिपूर्ण उत्साह: सर्वेन्द्रियाणां प्रहर्षो वा वीर:।’ “शत्रु के उत्कर्ष को मिटाने, दीनों की दुर्दशा देख उनका उद्धार करने और धर्म का उद्धार करने आदि में जो उत्साह मन में उमड़ता है वही वीर रस होता है वीर रस का स्थाई भाव उत्साह है। जिसकी पुष्टि होने पर वीर रस की सिद्धि होती है।” आचार्य सोमनाथ के अनुसार वीर रस की परिभाषा:- ‘जब कवित्त में सुनत ही व्यंग्य होय उत्साह। तहाँ वीर रस समझियो चौबिधि के कविनाह।’ वीर रस की पहिचान: सामान्यतय रौद्र एवं वीर रसों की पहचान में कठिनाई होती है। इसका कारण यह है कि दोनों के उपादान बहुधा एक – दूसरे से मिलते-जुलते हैं। दोनों के आलम्बन शत्रु तथा उद्दीपन उनकी चेष्टाएँ हैं। दोनों के व्यभिचारियों तथा अनुभावों में भी सादृश्य हैं। कभी-कभी रौद्रता में वीरत्व तथा वीरता में रौद्रवत का आभास मिलता है। इन कारणों से कुछ विद्वान रौद्र का अन्तर्भाव वीर में और कुछ वीर का अन्तर्भाव रौद्र में करने के अनुमोदक हैं, लेकिन रौद्र रस के स्थायी भाव क्रोध तथा वीर रस के स्थायी भाव उत्साह में अन्तर स्पष्ट है। वीर रस के अवयव : • वीर रस का स्थाई भाव: उत...

वीर रस ( परिभाषा, उदाहरण, भेद ) की पूरी जानकरी

Table of Contents • • • • • • • वीर रस की परिभाषा जहां विषय के वर्णन में उत्साह युक्त वीरता के भाव प्रदर्शित होते हैं वहां वीर रस होता है। काव्य के अनुसार उत्साह का संचार इसके अंतर्गत किया जाता है। किंतु इस रस के अंतर्गत रण-प्रक्रम का वर्णन सर्वमान्य है। रस का नाम वीर रस स्थाई भाव उत्साह करुण रस का भेद युद्धवीर , धर्मवीर ,दानवीर ,दयावीर आलम्बन शत्रु , तीर्थ स्थान , पर्व ,धार्मिक ग्रंथ , दयनीय व्यक्ति आदि उद्दीपन शत्रु का पराक्रम ,अन्न दाता का दान , धार्मिक इतिहास दयनीय व्यक्ति की दुर्दशा। संचारी भाव धृति , स्मृति ,गर्व ,हर्ष ,मति ,आदि वीरता का प्रदर्शन बिना उत्साह के संभव नहीं है। वीर रस का स्थाई भाव उत्साह को माना गया है। इसमें उत्साह का संचार ही वीरता को सामर्थ और शक्तिशाली बनाता है। अतः उत्साह को वीर रस का स्थाई भाव माना गया है। वीर रस के भेद वीर रस के प्रमुख चार भेद माने गए हैं जो निम्नलिखित है – १. युद्धवीरता इसके अंतर्गत रण कौशल , बहादुरी आदि का परिचय मिलता है। वीर रस में इस की प्रधानता है। २. दानवीरता दान देना भी एक प्रकार की वीरता है। आज दानवीर कर्ण को उसकी दानवीरता के कारण ही याद किया जाता है। दानवीरता ऐसा होना चाहिए कि एक हाथ से तो दूसरे हाथ को खबर नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार की वीरता को दानवीरता की श्रेणी में आता है। ३. दयावीरता किसी असहाय और निर्धन व्यक्ति को देखकर जो उसके लिए अपना निजी हित त्याग कर सेवा करता है वह दया वीरता की श्रेणी में माना जाता है। ४. धर्मवीरता धर्म के लिए सब कुछ लुटा देने को तत्पर रहने वाला व्यक्ति धर्मवीर होता है। चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति हो जो अपने धर्म का त्याग नहीं करता वह धर्मवीर होता है। रस पर आधारित अन्य लेख वीर रस के उदाहरण युद्...