Vishwa mein harit kranti ke janak kise kaha jata hai

  1. भारतीय हरित क्रांति के जनक कौन है?
  2. भारतीय पुरातत्व के पिता किसे कहा जाता है?
  3. भारत में हरित क्रान्ति
  4. हरित क्रांति क्या है?


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भारतीय हरित क्रांति के जनक कौन है?

1943 में ब्रिटिश शासित भारत में दुनिया की सबसे खराब दर्ज की गई खाद्य आपदा हुई। बंगाल अकाल के रूप में जाना जाता है, पूर्वी भारत में उस वर्ष अनुमानित 4 मिलियन लोग भूख से मर गए (जिसमें आज का बांग्लादेश भी शामिल है)। प्रारंभ में, इस तबाही को क्षेत्र में खाद्य उत्पादन में तीव्र कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। हालांकि, भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन (अर्थशास्त्र, 1998 के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले) ने यह स्थापित किया है कि खाद्य कमी समस्या के लिए एक योगदानकर्ता थी, एक अधिक शक्तिशाली कारक द्वितीय विश्व युद्ध से संबंधित उन्माद का परिणाम था, जिसने खाद्य आपूर्ति को एक बना दिया था। ब्रिटिश शासकों के लिए कम प्राथमिकता। 1947 में जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा, तो भारत को बंगाल अकाल की यादों का सबब बना रहा। इसलिए यह स्वाभाविक था कि खाद्य सुरक्षा मुक्त भारत के एजेंडे में मुख्य वस्तुओं में से एक थी। इस जागरूकता ने एक ओर, भारत में हरित क्रांति के लिए, और दूसरी ओर, यह सुनिश्चित करने के लिए विधायी उपाय किए कि व्यवसायी फिर से लाभ के कारणों के लिए भोजन नहीं बना पाएंगे। हरित क्रांति, ने 1967/68 से 1977/78 तक की अवधि में, भारत की स्थिति को एक खाद्य-अभाव वाले देश से दुनिया के अग्रणी कृषि देशों में से एक में बदल दिया। 1967 तक सरकार ने बड़े पैमाने पर खेती के क्षेत्रों का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन जनसंख्या खाद्य उत्पादन की तुलना में बहुत तेज दर से बढ़ रही थी। इसने उपज बढ़ाने के लिए तत्काल और कठोर कार्रवाई का आह्वान किया। यह कार्रवाई हरित क्रांति के रूप में सामने आई। शब्द ‘हरित क्रांति’ एक सामान्य बात है जो कई विकासशील देशों में सफल कृषि प्रयोगों पर लागू होती है। भारत उन द...

भारतीय पुरातत्व के पिता किसे कहा जाता है?

भारतीय पुरातत्व विभाग आज के समय विश्व के सभी पुरातत्व विभाग में सम्मिलित और सबसे सर्वोत्तम विभाग माना जाता है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने भारत में कई ऐसे महानतम खोज की है जैसे कि महाभारत, तथा रामायण से संबंधित तथ्यों की विभिन्न प्रकार की खोज करी है। इसके अलावा शिव पुराण तथा और भी अधिक प्राचीनतम ग्रंथों और पुरातात्विक सर्वेक्षणों से सम्बंधित तथ्यों की खोज के द्वारा भारतीय पुरातत्व विभाग एक विशेष विभाग में चुका है, जो कि आज के समय काफी चर्चा में भी रहता है। जैसा कि हम जानते हैं कि आज के समय खबरों में बनी हुई ज्ञानवापी मस्जिद का मामला भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भारतीय पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण के आधार पर सुलझाया जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी Bhartiya puratatva ka pita kise kaha jata hai? यदि नहीं जानते तो कोई बात नहीं, क्योंकि आज हम आपको बताने वाले हैं कि Bhartiya puratatva ka pita kise kaha jata hai और भारतीय पुरातत्व विभाग की शुरुआत कब हुई थी। तो चलिए आज का ये लेख शुरू करते हैं – यह मूल रूप से भारतीय ऐतिहासिक स्मारकों के प्रति अनुसंधान करने के लिए बनाई गई है, और भारत में पाए जाने वाली किसी भी पुरातात्विक तत्व की खोज करने के लिए इसका जन्म हुआ था। भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना कब हुई ? भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना1861 हुई थी और इसकी स्थापना सबसे पहले अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस विभाग के महानिदेशक के तौर पर काम किया, और इसके पहले महानिदेशक बने। सन 1861 में ही यह इतिहास का पहला ऐसा व्यवस्थित शोध करने वाला पुरातात्विक विभाग बना जिसे एशियाटिक सोसाइटी के द्वारा पहचान प्राप्त हुई। अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व विभाग का पिता कहा जात...

भारत में हरित क्रान्ति

bharat mean harit kraannti ka prarambh upalabdhiyaan harit kranti ke phalasvaroop desh ke krishi kshetr mean mahattvapoorn pragati huee. krishi agatoan mean hue gunatmak sudhar ke phalasvaroop desh mean krishi utpadan badha hai. khadyannoan me atmanirbharata aee hai. vyavasayik krishi ko badhava mila hai. krishakoan ke drishtikon mean parivartan hua hai. krishi adhiky mean vriddhi huee hai. harit kranti ke phalasvaroop (a) krishi mean takaniki evan sansthagat sudhar rasayanik urvarakoan ka prayog navin krishi niti ke parinamasvaroop rasayanik unnatashil bijoan ke prayog mean vriddhi desh mean adhik upaj dene vale unnatashil bijoan ka prayog badha hai tatha bijoan ki nee nee kismoan ki khoj ki gee hai. abhi tak adhik upaj dene vala karyakram gehooan, dhan, bajara, makka v sianchaee suvidhaoan ka vikas nee vikas vidhi ke antargat desh mean sianchaee suvidhaoan ka tezike sath vistar kiya gaya hai. paudh sanrakshan navin krishi vikas vidhi ke antargat paudh sanrakshan par bhi dhyan diya ja raha hai. isake antargat kharapatavar evan kitoan ka nash karane ke liye dava chhi dakane ka kary kiya jata hai tatha tiddi dal par niyantran karane ka prayas kiya jata hai. vartaman mean samekit krishi prabandh ke antargat paristhitiki anukool krimi niyantran karyakram lagoo kiya gaya hai. bahufasali karyakram bahufasali karyakram ka uddeshy ek hi bhoomi par varsh mean ek se adhik fasal ugakar utpadan ko badhana hai. any shabdoan mean bhoomi ki urvarata shakti ko nasht kiye bina, bhoomi ke ...

हरित क्रांति क्या है?

वैश्विक समुदाय में विकसित देश जहां औध्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप सफलता के सोपान चढ़ते रहे हैं, वहीं विकासशील देश इस काम के लिए कृषि पर निर्भर रहे हैं। पारंपरिक कृषि तकनीक में हरित क्रांति ने बड़े परिवर्तन कर दिये थे, जिनके कारण कृषि एक व्यवसाय से निकल कर उधयोग की श्रेणी में आ गई। भारत में शुरू हुई हरित क्रान्ति ने अन्य विभिन्न क्रांतियों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया था। लेकिन वास्तव में हरित क्रांति क्या है और इसका जन्म कहाँ हुआ, इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। Know Your Best Career – Take a Free Counselling Session आइये हरित क्रांति के बारे में थोड़ा और जानने का प्रयास करते हैं: इस लेख में आप जानेंगे: • हरित क्रांति का अर्थ और इतिहास • हरित क्रांति की पृष्ठभूमि • हरित क्रान्ति के ध्वजवाहक • हरित क्रांति के दौरान • हरित क्रान्ति के क्रांतिकारी परिणाम • भारत में हरित क्रांति हरित क्रांति का अर्थ और इतिहास: हरित क्रांति शब्द का प्रयोग 1940 और 1960 के समयकाल में विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र में किया गया था। इस समय कृषि के पारंपरिक तरीकों को आधुनिक तकनीक और उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया गया। परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के प्रयास किए गए जिसके चमत्कारिक प्रभाव दिखाई देने लगे। कृषि क्षेत्र में निरंतर शोध के माध्यम से पारंपरिक कृषि तकनीक में परिवर्तन करके आधारभूत परिवर्तन किए जाने लगे। मूलतः हरित क्रान्ति के जनक अमरीकी कृषि वैज्ञानिक नौरमन बोरलॉग माने जाते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उन्होनें विकास की ओर कदम बढ़ाते हुए जापान को कृषि तकनीक में परिवर्तन के माध्यम से ही उन्होनें पुनर्निर्माण की राह पर खड़ा कर दिया था। इसके लिए उन्होनें न केवल फसलों के लिए नए और वि...