वर्षों तक वन में घूम घूम

  1. Krishna ki Chetawani (कृष्ण की चेतावनी)
  2. Krishna ki Chetavani (Rashmirathi)
  3. वर्षों तक वन में घूम
  4. कृष्ण की चेतावनी ~ रामधारी सिंह "दिनकर"
  5. रश्मिरथी तृतीय सर्ग
  6. कृष्ण की चेतावनी कविता का सारांश
  7. रश्मिरथी, रामधारी सिंह दिनकर की कविता रश्मिरथी, रश्मिरथी हिंदी में, रश्मिरथी कविता, Rashmirathi Kavita, Rashmirathi Poem By Ramdhari Singh Dinkar, Ramdhari Singh Dinkar Rashmirathi In Hindi, Rashmirathi Full Poem In Hindi, Rashmirathi Poem Lyrics In Hindi


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Krishna ki Chetawani (कृष्ण की चेतावनी)

On the occasion of World Poetry Day here is another poem by the famous Ramdhari Singh ‘Dinkar’. After returning from their exile the Pandavas demand their Kingdom back. However when Duryodhan refuses to give them their rightful share a war becomes inevitable. To prevent the war which would lead to countless deaths of the innocents Shri Krishna offers to go to Hastinapur to try & reason with the King & his son Duryodhan. The scene that unfolds in the court room of King Dhritarashtra on that day is what is described here by the poet. वर्षों तक वन में घूम घूम बाधा विघ्नों को चूम चूम सह धूप घाम पानी पत्थर पांडव आये कुछ और निखर (After wandering in the forests & suffering multiple hardships the Pandavas have come back home with new vigour) सौभाग्य न सब दिन होता है देखें आगे क्या होता है (Good luck doesn’t always continue, let us see what happens next) मैत्री की राह दिखाने को सब को सुमार्ग पर लाने को दुर्योधन को समझाने को भीषण विध्वंस बचाने को भगवान हस्तिनापुर आए पांडव का संदेशा लाये (To show the path of friendship & righteousness, to knock some sense into Duryodhan to stop the destruction which war would bring The Lord (Krishna) came to Hastinapur, bringing with him the message of the Pandavas.) हो न्याय अगर तो आधा दो पर इसमें भी यदि बाधा हो तो दे दो केवल पाँच ग्राम रखो अपनी धरती तमाम (If you are just, give us half the Kingdom if not then at least give us five villages and keep the rest of it to yourself) हम वहीँ खुशी से खायेंगे परिजन पे असी ना उठाएंगे (We will live there happil...

Krishna ki Chetavani (Rashmirathi)

Following is excerpt from poem Rashmirathi written by Ram dhari singh dinkar. Karna reply to Krishna when he told story of his birth and ask him to join pandava side. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, क्षण एक तनिक गंभीर हुआ, फिर कहा"बड़ी यह माया है, जो कुछ आपने बताया है दिनमणि से सुनकर वही कथा मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथामैं ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ, कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है? सेवती मास दस तक जिसको, पालती उदर में रख जिसको, जीवन का अंश खिलाती है, अन्तर का रुधिर पिलाती है आती फिर उसको फ़ेंक कहीं, नागिन होगी वह नारि नहींहे कृष्ण आप चुप ही रहिये, इस पर न अधिक कुछ भी कहिये सुनना न चाहते तनिक श्रवण, जिस माँ ने मेरा किया जनन वह नहीं नारि कुल्पाली थी, सर्पिणी परम विकराली थीपत्थर समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था गोदी में आग लगा कर के, मेरा कुल-वंश छिपा कर के दुश्मन का उसने काम किया, माताओं को बदनाम कियामाँ का पय भी न पीया मैंने, उलटे अभिशाप लिया मैंने वह तो यशस्विनी बनी रह The Union Cabinet recently approved a scheme for creation of a National Optical Fiber Network (NOFN) for providing Broadband connectivity to Panchayats. The objective of the scheme is to extend the existing optical fiber network which is available up to district / block HQ’s level to the Gram Panchayat level initially by utilizing the Universal Service Obligation Fund (USOF). The cost of this initial phase of the NOFN scheme is likely to be about Rs.20,000 crore. A similar amount of investment is likely to be made by th...

वर्षों तक वन में घूम

प्रिय दोस्तों! हमारा उद्देश्य आपके लिए किसी भी पाठ्य को सरलतम रूप देकर प्रस्तुत करना है, हम इसको बेहतर बनाने पर कार्य कर रहे है, हम आपके धैर्य की प्रशंसा करते है| मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है | धन्यवाद!

कृष्ण की चेतावनी ~ रामधारी सिंह "दिनकर"

​,3,अंकेश धीमान,3,अकबर-बीरबल,15,अजीत कुमार सिंह,1,अजीत झा,1,अटल बिहारी वाजपेयी,5,अनमोल वचन,44,अनमोल विचार,2,अबुल फजल,1,अब्राहम लिँकन,1,अभियांत्रिकी,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक चतुर्वेदी,1,अभिषेक चौधरी,1,अभिषेक पंडियार,1,अमर सिंह,2,अमित शर्मा,13,अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’,2,अरस्तु,1,अर्नेस्ट हैमिग्व,1,अर्पित गुप्ता,1,अलबर्ट आईन्सटाईन,1,अलिफ लैला,64,अल्बर्ट आइंस्टाईन,1,अशफाकुल्ला खान,1,अश्वपति,1,आचार्य चाणक्य,22,आचार्य विनोबा भावे,1,इंजीनियरिंग,1,इंदिरा गांधी,1,उद्धरण,42,उद्योगपति,2,उपन्यास,2,ओशो,10,ओशो कथा-सागर,11,कबीर के दोहे,2,कवीश कुमार,1,कहावतें तथा लोकोक्तियाँ,11,कुमार मुकुल,1,कृष्ण मलिक,1,केशव किशोर जैन,1,क्रोध,1,ख़लील जिब्रान,1,खेल,1,गणतंत्र दिवस,1,गणित,1,गोपाल प्रसाद व्यास,1,गोस्वामी तुलसीदास,1,गौतम कुमार,1,गौतम कुमार मंडल,2,गौतम बुद्ध,1,चाणक्य नीति,25,चाणक्य सूत्र,24,चार्ल्स ब्लॉन्डिन,1,चीफ सियाटल,1,चैतन्य महाप्रभु,1,जातक कथाएँ,42,जार्ज वाशिंगटन,1,जावेद अख्तर,1,जीन फ्राँकाईस ग्रेवलेट,1,जैक मा,1,टी.वी.श्रीनिवास,1,टेक्नोलोजी,1,डाॅ बी.के.शर्मा,1,डॉ मुकेश बागडी़'सहज',1,डॉ मुकेश बागड़ी"सहज",1,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन,1,डॉ. बी.आर. अम्बेडकर,1,तकनिकी,2,तानसेन,1,तीन बातें,1,त्रिशनित अरोङा,1,दशहरा,1,दसवंत,1,दार्शनिक गुर्जिएफ़,1,दिनेश गुप्ता'दिन',1,दीनबन्धु एंड्रयूज,1,दीपा करमाकर,1,दुष्यंत कुमार,3,देशभक्ति,1,द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी,8,नारी,1,निदा फ़ाज़ली,5,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,1,पं. विष्णु शर्मा,66,पंचतंत्र,66,पंडित मदन मोहन मालवीय,1,परमवीर चक्र,4,पीयूष गोयल,1,पुस्तक समीक्षा,1,पुस्तक-समीक्षा,1,पौराणिक कथाएं,1,प्रिंस कपूर,1,प्रेमचंद,12,प्रेरक प्रसंग,52,प्रेरणादायक कहानी,...

रश्मिरथी तृतीय सर्ग

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। • इन तेरह वर्षों में से बारह वर्षों तक पाण्डव वनों में खुलकर रह सकते थे, किंतु तेरहवें वर्ष उन्हें हो गया पूर्ण अज्ञात वास, पाडंव लौटे वन से सहास, पावक में कनक-सदृश तप कर, वीरत्व लिए कुछ और प्रखर, नस-नस में तेज-प्रवाह लिये, कुछ और नया उत्साह लिये। • जब अज्ञातवास भी पूरा हो गया, तब पाण्डव 'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! • लेकिन संधि की कौन कहे, दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। • उस पर भगवान को क्रोध आ गया और भरी सभा में उन्होंने अपना विराट रूप प्रकट किया। कहते हैं, उनका विराट क्रुद्ध रूप देखते ही लोग मूर्छित हो गये। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- 'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। • केवल थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े। केवल दो नर ना अघाते थे, धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे। कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय, दोनों पुकारते थे 'जय-जय'! • विराट रूप समेट कर जब भगवान कृष्ण कौरवों की सभा छोड़कर चले, तब उन्हें आदरपूर्वक नगर से कुछ दूर पहुँचाने के लिए उनके साथ कर्ण गया था। भगवान को गिरफ़्तार करने की दुराभिसंधि में कर्ण का भी हाथ था। अतएव वह लज्जित होकर ही भगवान के सामने आया था। भगवान सभा को छोड़ चले, करके रण गर्ज...

कृष्ण की चेतावनी कविता का सारांश

विषयसूची Show • • • • After returning from their exile the Pandavas demand their Kingdom back. However when Duryodhan refuses to give them their rightful share a war becomes inevitable. To prevent the war which would lead to countless deaths of the innocents Shri Krishna offers to go to Hastinapur to try & reason with the King & his son Duryodhan. The scene that unfolds in the court room of King Dhritarashtra on that day is what is described here by the poet. वर्षों तक वन में घूम घूम बाधा विघ्नों को चूम चूम सह धूप घाम पानी पत्थर पांडव आये कुछ और निखर (After wandering in the forests & suffering multiple hardships the Pandavas have come back home with new vigour) सौभाग्य न सब दिन होता है देखें आगे क्या होता है (Good luck doesn’t always continue, let us see what happens next) मैत्री की राह दिखाने को सब को सुमार्ग पर लाने को दुर्योधन को समझाने को भीषण विध्वंस बचाने को भगवान हस्तिनापुर आए पांडव का संदेशा लाये (To show the path of friendship & righteousness, to knock some sense into Duryodhan to stop the destruction which war would bring The Lord (Krishna) came to Hastinapur, bringing with him the message of the Pandavas.) होन्याय अगर तो आधा दो पर इसमें भी यदि बाधा हो तो दे दो केवल पाँच ग्राम रखो अपनी धरती तमाम (If you are just, give us half the Kingdom if not then at least give us five villages and keep the rest of it to yourself) हम वहीँ खुशी से खायेंगे परिजन पे असी ना उठाएंगे (We will live there happily and will never raise weapons against our relatives) दुर्योधन वह भी दे ना ...

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रश्मिरथी 1 हो गया पूर्ण अज्ञात वास, पाडंव लौटे वन से सहास, पावक में कनक-सदृश तप कर, वीरत्व लिए कुछ और प्रखर, नस-नस में तेज-प्रवाह लिये, कुछ और नया उत्साह लिये. सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं. मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को. है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़. मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है. गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो. बत्ती जो नहीं जलाता है रोशनी नहीं वह पाता है. पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड, मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार. जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं. वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ? जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर नाम किया. जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हमें जगाते हैं, मन को मरोड़ते हैं पल-पल, तन को झँझोरते हैं पल-पल. सत्पथ की ओर लगाकर ही, जाते हैं हमें जगाकर ही. वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं. वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड. वन में प्रसून तो खिलते हैं, बागों में शाल न मिलते हैं. कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर, विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं. जो लाक्षा-गृह में जलते हैं, वे ही शूरमा निकलते हैं. बढ़कर विपत्तियों ...