यशोधरा की वेदना

  1. PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 5 मैथिलीशरण गुप्त – PSEB Solutions
  2. वेदना
  3. यशोधरा भाग (2) मैथिलीशरण गुप्त Yashodhara Part (2) Maithilisharan Gupt
  4. “यशोधरा’ के पठित काव्यांश के आधार पर यशोधरा की चारित्रिक विशेषताएँ प्रकट कीजिए।
  5. यशोधरा भाग (2) : मैथिलीशरण गुप्त
  6. RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 मैथिलीशरण गुप्त
  7. मैथिलीशरण गुप्त की नारी भावना
  8. यशोधरा भाग (2) : मैथिलीशरण गुप्त
  9. यशोधरा भाग (2) मैथिलीशरण गुप्त Yashodhara Part (2) Maithilisharan Gupt
  10. वेदना


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PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 5 मैथिलीशरण गुप्त – PSEB Solutions

Punjab State Board PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 5 मैथिलीशरण गुप्त Hindi Guide for Class 12 PSEB मैथिलीशरण गुप्त Textbook Questions and Answers (क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो: प्रश्न 1. ‘सखि वे मुझसे कह कर जाते’ कविता में यशोधरा को किस बात का दुःख है ? उत्तर: यशोधरा को इस बात का दुःख है कि उसके पति चुपचाप उसे छोड़कर चले गए। जाते समय वे उसे बताकर भी नहीं गए। यदि वे कहते कि मैं सिद्धि प्राप्त करने के लिए जाना चाहते हैं तो मैं क्या उन्हें रोकती। मेरे पति भले ही मुझे इतना सम्मान देते हैं पर वे मुझे पहचान नहीं पाएँ। प्रश्न 2. ‘सखि वे मुझ से कह कर जाते’ कविता का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर: प्रस्तुत कविता में कवि ने एक भारतीय नारी की मनोव्यथा और उसके आदर्श का एक साथ वर्णन किया है। भले ही पति उसका निरादर कर गए हैं, जो चुपचाप बिना बताये चले गए हैं फिर भी वह एक आदर्श नारी के समान पति के शुभ कार्य के लिए शुभकामना करती है। (ख) सप्रसंग व्याख्या करें: प्रश्न 3. नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते, पर इन से जो आँसू बहते, सदय हृदय वे कैसे सहते ? गए तरस ही खाते सखि वे मुझ से कहकर जाते। उत्तर: हे सखी ! मेरी आँखें पति को कठोर कहती हैं। इसका कारण यही है कि वे मुझे बिना बताए घर छोड़कर चले गए। लेकिन मेरे इन नेत्रों से जो आंसू बह रहे हैं उनको वे दयालु एवं कोमल हृदय वाले कैसे सहन कर पाते ? अर्थात् वे मुझे इस लिए सोता हुआं छोड़कर चले गए क्योंकि वे मेरी आँखों से निकलने वाले आँसुओं को सहन न कर पाते और शायद उनको अपना फैसला ही बदल लेना पड़ता। इसलिए वे मुझ पर तरस खाते हुए ही यहाँ से गए हैं। हे सखी ! फिर भी यही अच्छा होता कि वे मुझे कह कर जाते। PSEB 12th Class Hindi Guide मैथिलीशरण ...

वेदना

अनुक्रम • 1 उदाहरण • 2 मूल • 3 अन्य अर्थ • 4 संबंधित शब्द • 4.1 अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द उदाहरण [ ] • वेदना को • वेदना झलकती है। • अपमान सहने से अच्छा है वेदना सह लेना। • दुख, वेदना और शोक के तीव्र पलों में अनायास ही मुख से 'हे राम!' निकल जाता है। • व्यथा या वेदना ही कविता की जन्मदात्री है। मूल [ ] • वेदना मूलतः संस्कृत का शब्द है। अन्य अर्थ [ ] • दर्द • पीड़ा • वेदना • व्यथा • पीर • पीरा • पिराना संबंधित शब्द [ ] वेदना का अर्थ है दुख पर विशेष रूप से वेदना शब्द को प्रयोग उस समय किया जाता हे जब कोई प्रेमी अपने प्रियतम की चाहत में तरसता है और उस समय दुख का वर्णन के लिये वेदना शब्द का प्रयोग करते है। अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द [ ]

यशोधरा भाग (2) मैथिलीशरण गुप्त Yashodhara Part (2) Maithilisharan Gupt

Yashodhara Part (2) (Left Part) Maithili Sharan Gupt यशोधरा भाग (2) (शेष भाग) मैथिलीशरण गुप्त मैथिलीशरण गुप्त-यशोधरा| Maithili Sharan Gupt 1 निज बन्धन को सम्बन्ध सयत्न बनाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? जाना चाहे यदि जन्म भले ही जावे, आना चाहे तो स्वयं मृत्यु भी आवे, पाना चाहे तो मुझे मुक्ति ही पावे, मेरा तो सब कुछ वही, मुझे जो भावे। मैं मिलन-शून्य में विरह घटा-सी छाऊँ! कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? माना, ये खिलते फूल सभी झड़ते हैं; जाना, ये दाड़िम आम सभी सड़ते हैं। पर क्या यों ही ये कभी टूट पड़ते हैं? या काँटे ही चिरकाल हमें गड़ते हैं ? मैं विफल तभी, जब बीज-रहित हो जाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? यदि हममें अपना नियम ओर शम-दम है, तो लाख व्याधियाँ रहें स्वस्थता सम है। वह जरा एक विश्रान्ति, जहाँ संयम है; नवजीवन-दाता मरण कहाँ निर्मम है ? भव भावे मुझको और उसे मैं भाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? आकर पूछेंगे जरा-मरण यदि हमसे , शैशव-यौवन की बात व्यंग्य विभ्रम से, हे नाथ, बात भी मैं न करूंगी यम से, देखूँगी अपनी परम्परा को क्रम से। भावी पीढ़ी में आत्मरुप अपनाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? ये चन्द्र -सूर्य निर्वाण नहीं पाते हैं; ओझल हो होकर हमें दृष्टि आते हैं। झोंके समीर के झूम झूम जाते हैं; जा जा कर नीरद नया नीर लाते हैं। तो क्यों जा जा कर लौट न मैं भी आऊं? कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? रस एक मधुर ही नहीं, अनेक विदित हैं, कुछ स्वादु हेतु कुछ पथ्य हेतु समुचित हैं। भोगें इन्द्रिय, जो भोग विधान-विहित हैं; अपने को जीता जहां, वहीं सब जित हैं। निज कर्मों की ही कुशल सदैव मनाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? होता सुख क...

“यशोधरा’ के पठित काव्यांश के आधार पर यशोधरा की चारित्रिक विशेषताएँ प्रकट कीजिए।

‘यशोधरा’ के पठित काव्यांश में उसकी नायिका यशोधरा के चरित्र की विशेषताएँ व्यञ्जित हुई हैं। यशोधरा अपने पति से प्रेम करती हैं वह उनके प्रति पूरी तरह समर्पित है। उसने अपने जीवन में उसी काम को महत्वपूर्ण समझा है और वही किया जो उसके पति को मान्य रहा है। यशोधरा यह जानकर गौरव अनुभव करती हैं कि उसके पति सिद्धि पाने के लिए गए हैं। वह चाहती है कि वह सुखपूर्वक रहें और सिद्धि प्राप्त करें। वह यशोधरा के दुःख की चिन्ता करके दुःखी न हों। इससे उसका नि:स्वार्थ प्रेम प्रगट होता है। यशोधरा की आत्मग्लानि तथा वेदना भी इस अंश में व्यक्त हुई है। उसके पति बिना उससे कुछ भी कहे चोरी-चोरी घर से चले गए। हैं, यह बात उसके संताप को बढ़ाने वाली है। उसने तो पति की प्रत्येक बात को माना था फिर ऐसा कारण क्या रहा कि उन्होंने उसकी उपेक्षा की। यह सोचकर यशोधरा-ग्लानि से भर उठती है तथा दु:ख के सागर में डूब जाती है। यशोधरा आशावादी है। उसको अपने पति की लक्ष्य-सिद्धि में पूर्ण विश्वास है। वह जानती है कि उसके पति से उसका पुनर्मिलन अवश्य होगा। जब वह आयेंगे तो उनकी अनुपम उपलब्धियाँ भी उनके साथ होंगी। इस प्रकार इस अंश में यशोधरा का पति से प्रेम, पति- भक्ति, आशावाद, आत्मग्लानि, क्षोभ तथा विरह, संताप आदि व्यक्त हुए हैं। Categories • • (31.9k) • (8.8k) • (764k) • (248k) • (2.9k) • (5.2k) • (664) • (121k) • (72.1k) • (3.8k) • (19.6k) • (1.4k) • (14.2k) • (12.5k) • (9.3k) • (7.7k) • (3.9k) • (6.7k) • (63.8k) • (26.6k) • (23.7k) • (14.6k) • (25.7k) • (530) • (84) • (766) • (49.1k) • (17.1k) • (945) • (978) • (783) • (968) • (1.4k) • (897) • (1.9k) • (0) • (84) • (55) • (70) • (81) • (52) • (51) • (66) • (77) • (61) • (76) • (...

यशोधरा भाग (2) : मैथिलीशरण गुप्त

1 घुसा तिमिर अलकों में भाग, जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! जागा नूतन गन्ध पवन में, उठ तू अपने राज-भवन में, जाग उठे खग वन-उपवन में, और खगों में कलरव-राग। जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! तात! रात बीती वह काली, उजियाली ले आई लाली, लदी मोतियों से हरियाली, ले लीलाशाली, निज भाग। जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! किरणों ने कर दिया सवेरा, हिमकण-दर्पण में मुख हेरा, मेरा मुकुर मंजु मुख तेरा, उठ, पंकज पर पड़े पराग! जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! तेरे वैतालिक गाते हैं, स्वस्ति लिये ब्राह्मण आते हैं, गोप दुग्ध-भाजन लाते हैं, ऊपर झलक रहा है झाग। जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! मेरे बेटा, भैया, राजा, उठ, मेरी गोदी में आजा, भौंरा नचे, बजे हाँ, बाजा, सजे श्याम हय, या सित नाग? जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! जाग अरे, विस्मृत भव मेरे! आ तू, क्षम्य उपद्रव मेरे! उठ, उठ, सोये शैशव मेरे! जाग स्वप्न, उठ, तन्द्रा त्याग! जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! अम्ब, स्वप्न देखा है रात, लिये मेष-शावक गोदी में खिला रहे हैं तात । उसकी प्रसू चाटती है पद कर करके प्रणिपात, घेरे है कितने पशु-पक्षी, कितना यातायात! 'ले लो मुझको भी गोदी में सुन मेरी यह बात, हंस बोले-'असमर्थ हुई क्या तेरी जननी ? जात !" आँख खुल गई सहसा मेरी, माँ, हो गया प्रभात, सारी प्रकृति सजल है तुझ-सी भरे अश्रु अवदात! बस, मैं ऐसी ही निभ जाऊँ । राहुल, निज रानीपन देकर तेरी चिर परिचर्या पाऊँ । तेरी जननी कहलाऊँ तो इस परवश मन को बहलाऊँ । उबटन कर नहलाऊँ तुझको, खिला पिला कर पट पहनाऊँ । रीझ-खीझ कर, रूठ मना कर पीड़ा को क्रीड़ा कर लाऊँ । यह मुख देख देख दुख में भी सुख से दैव-दया-गुण गाऊँ। स्नेह-दीप उनकी पूजा का तुझमें यहां अखण्ड जगाऊँ । डीठ न लगे, डिठौना देकर, काजल लेकर तुझे लगाऊँ । कैसी डीठ? कहाँ का ...

RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 मैथिलीशरण गुप्त

प्रश्न 1. यशोधरा की मूल संवेदना अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर: यशोधरा अपने पति के प्रति समर्पित है। जो उसके पति को मान्य है, वही यशोधरा को भी स्वीकार है। सिद्धि हेतु उनके जाने में भी वह गौरव अनुभव करती है। किन्तु उनके चुपचाप चोरी-चोरी, उससे कुछ कहे बिना चले जाना उसको बहुत पीड़ा पहुँचाता है। इसमें उसको अपनी उपेक्षा का भाव प्रतीत होता है यह उपेक्षा उसके विरह दु:ख को दूना कर देती है। प्रश्न 2. “दुःखी न हों इस जन के दुःख से पंक्ति में यशोधरा ने ‘जन’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है ? उत्तर: “दुखी न हों इस जन के दुःख से’ पंक्ति में ‘जन’ शब्द का प्रयोग यशोधरा ने स्वयं अपने लिए किया है। यद्यपि उसे इस बात की पीड़ा है कि उसके पति ने उसकी उपेक्षा की है, वह उसको बिना बताए घर से चले गए हैं। परन्तु वह उनके सुख तथा सिद्धि पाने में बाधक बनना नहीं चाहती। वह चाहती है कि उसके पति सुखी रहें तथा अपने लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त करें। प्रश्न 3. “उपालम्भ हूँ मैं किस मुख से”-यशोधरा ने यह क्यों कहा है ? उत्तर: यद्यपि सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा से बिना कुछ कहे सुने चोरी-चोरी घर त्याग कर चले गए हैं और इससे यशोधरा बहुत आहत भी है, तथापि वह इसका उलाहना उनको देना नहीं चाहती है। उसके पति सिद्धि पाने गए हैं, यह जानकर वह स्वयं भी गौरव को अनुभव करती है। वह उनकी लक्ष्यप्राप्ति की इच्छुक है। महान् सिद्धि पाने में लगे उसके पति उसको अब पहले से भी अधिक अच्छे लगते हैं। प्रश्न 4. कवि ने भारतवर्ष को भू-लोक का गौरव क्यों बताया है ? अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर: भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। यहाँ पर्वतराज हिमालय तथा गंगानदी हैं। संसार के सभी देशों की अपेक्षा भारत महान् तथा समुन्नत है। भारत ऋषि-मुनियों की तपोभूमि...

मैथिलीशरण गुप्त की नारी भावना

मैथिलीशरण गुप्त की नारी भावना मैथिलीशरण गुप्त की नारी भावना पर प्रकाश डालिए gupt ji ki nari bhawna maithili sharan gupt मैथिलीशरण गुप्‍त yashodhara maithli sharan gupt - मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक हैं। उनके हृदय में नारी के प्रति सम्मान और श्रद्धा का भाव है। वह मानते हैं - 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।' इनकी सभी रचनाओं में यह भावना पल्लवित तथा पुष्पित हुई है। गुप्त जी का विचार है कि नारी ही किसी परिवार या समाज को सुधार सकती है। निर्माण तथा समाज सुधार की बात नारियो के सहयोग से ही सम्भव है। समाज में नारियों की अनेक समस्यायें हैं। समाज का प्रतिनिधि प्रबुद्ध साहित्यकार इन समस्याओं का प्रकाशन कर नारी जीवन का पथ प्रशस्त करता है। राष्ट्रकवि नारी का आदर्श रूप गुप्त जी की रचनाओं में नारी के जो भी रूप है, चाहे ये पत्नी के हो या माँ के आदर्श रूप में चित्रित हैं। इन्होंने प्राचीन नारी चरित्रों को नए परिवेश और नवीन ढंग से प्रस्तुत किया है। साकेत, यशोधरा, द्वापर, जयद्रथ वध, सिद्धराज सभी रचनाओं के स्त्री पात्र प्राचीन होकर भी नवीन है। यही कारण है कि कैकेयी, सीता, उर्मिला, माण्डवी, राधा, कुंती द्रोपदी, उत्तरा, यशोधरा आदि नारी पात्र अविस्मरणीय बन गये हैं। गुप्त जी के प्रायः सभी काव्य पात्र ऐतिहासिक अथवा पौराणिक हैं। परन्तु उनमें आधुनिक युग की सम्वेदना और मानवता है। ये सभी अलौकिक न होकर लौकिक जगत की साधारण नारियाँ हैं। इनमें भारतीयता तथा भारतीय संस्कृति का प्रबल आग्रह निहित है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अपनी नारी भावना को मूर्त करने की दृष्टि से कवि ने साकेत, यशोधरा तथा द्वापर जैसे काव्यों की रचना की है। इनकी नारी विषयक भावना यशोधरा में सर्वाधिक महत...

यशोधरा भाग (2) : मैथिलीशरण गुप्त

1 घुसा तिमिर अलकों में भाग, जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! जागा नूतन गन्ध पवन में, उठ तू अपने राज-भवन में, जाग उठे खग वन-उपवन में, और खगों में कलरव-राग। जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! तात! रात बीती वह काली, उजियाली ले आई लाली, लदी मोतियों से हरियाली, ले लीलाशाली, निज भाग। जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! किरणों ने कर दिया सवेरा, हिमकण-दर्पण में मुख हेरा, मेरा मुकुर मंजु मुख तेरा, उठ, पंकज पर पड़े पराग! जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! तेरे वैतालिक गाते हैं, स्वस्ति लिये ब्राह्मण आते हैं, गोप दुग्ध-भाजन लाते हैं, ऊपर झलक रहा है झाग। जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! मेरे बेटा, भैया, राजा, उठ, मेरी गोदी में आजा, भौंरा नचे, बजे हाँ, बाजा, सजे श्याम हय, या सित नाग? जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! जाग अरे, विस्मृत भव मेरे! आ तू, क्षम्य उपद्रव मेरे! उठ, उठ, सोये शैशव मेरे! जाग स्वप्न, उठ, तन्द्रा त्याग! जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! अम्ब, स्वप्न देखा है रात, लिये मेष-शावक गोदी में खिला रहे हैं तात । उसकी प्रसू चाटती है पद कर करके प्रणिपात, घेरे है कितने पशु-पक्षी, कितना यातायात! 'ले लो मुझको भी गोदी में सुन मेरी यह बात, हंस बोले-'असमर्थ हुई क्या तेरी जननी ? जात !" आँख खुल गई सहसा मेरी, माँ, हो गया प्रभात, सारी प्रकृति सजल है तुझ-सी भरे अश्रु अवदात! बस, मैं ऐसी ही निभ जाऊँ । राहुल, निज रानीपन देकर तेरी चिर परिचर्या पाऊँ । तेरी जननी कहलाऊँ तो इस परवश मन को बहलाऊँ । उबटन कर नहलाऊँ तुझको, खिला पिला कर पट पहनाऊँ । रीझ-खीझ कर, रूठ मना कर पीड़ा को क्रीड़ा कर लाऊँ । यह मुख देख देख दुख में भी सुख से दैव-दया-गुण गाऊँ। स्नेह-दीप उनकी पूजा का तुझमें यहां अखण्ड जगाऊँ । डीठ न लगे, डिठौना देकर, काजल लेकर तुझे लगाऊँ । कैसी डीठ? कहाँ का ...

यशोधरा भाग (2) मैथिलीशरण गुप्त Yashodhara Part (2) Maithilisharan Gupt

Yashodhara Part (2) (Left Part) Maithili Sharan Gupt यशोधरा भाग (2) (शेष भाग) मैथिलीशरण गुप्त मैथिलीशरण गुप्त-यशोधरा| Maithili Sharan Gupt 1 निज बन्धन को सम्बन्ध सयत्न बनाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? जाना चाहे यदि जन्म भले ही जावे, आना चाहे तो स्वयं मृत्यु भी आवे, पाना चाहे तो मुझे मुक्ति ही पावे, मेरा तो सब कुछ वही, मुझे जो भावे। मैं मिलन-शून्य में विरह घटा-सी छाऊँ! कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? माना, ये खिलते फूल सभी झड़ते हैं; जाना, ये दाड़िम आम सभी सड़ते हैं। पर क्या यों ही ये कभी टूट पड़ते हैं? या काँटे ही चिरकाल हमें गड़ते हैं ? मैं विफल तभी, जब बीज-रहित हो जाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? यदि हममें अपना नियम ओर शम-दम है, तो लाख व्याधियाँ रहें स्वस्थता सम है। वह जरा एक विश्रान्ति, जहाँ संयम है; नवजीवन-दाता मरण कहाँ निर्मम है ? भव भावे मुझको और उसे मैं भाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? आकर पूछेंगे जरा-मरण यदि हमसे , शैशव-यौवन की बात व्यंग्य विभ्रम से, हे नाथ, बात भी मैं न करूंगी यम से, देखूँगी अपनी परम्परा को क्रम से। भावी पीढ़ी में आत्मरुप अपनाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? ये चन्द्र -सूर्य निर्वाण नहीं पाते हैं; ओझल हो होकर हमें दृष्टि आते हैं। झोंके समीर के झूम झूम जाते हैं; जा जा कर नीरद नया नीर लाते हैं। तो क्यों जा जा कर लौट न मैं भी आऊं? कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? रस एक मधुर ही नहीं, अनेक विदित हैं, कुछ स्वादु हेतु कुछ पथ्य हेतु समुचित हैं। भोगें इन्द्रिय, जो भोग विधान-विहित हैं; अपने को जीता जहां, वहीं सब जित हैं। निज कर्मों की ही कुशल सदैव मनाऊँ। कह मुक्ति, भला, किस लिए तुझे मैं पाऊँ? होता सुख क...

वेदना

अनुक्रम • 1 उदाहरण • 2 मूल • 3 अन्य अर्थ • 4 संबंधित शब्द • 4.1 अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द उदाहरण [ ] • वेदना को • वेदना झलकती है। • अपमान सहने से अच्छा है वेदना सह लेना। • दुख, वेदना और शोक के तीव्र पलों में अनायास ही मुख से 'हे राम!' निकल जाता है। • व्यथा या वेदना ही कविता की जन्मदात्री है। मूल [ ] • वेदना मूलतः संस्कृत का शब्द है। अन्य अर्थ [ ] • दर्द • पीड़ा • वेदना • व्यथा • पीर • पीरा • पिराना संबंधित शब्द [ ] वेदना का अर्थ है दुख पर विशेष रूप से वेदना शब्द को प्रयोग उस समय किया जाता हे जब कोई प्रेमी अपने प्रियतम की चाहत में तरसता है और उस समय दुख का वर्णन के लिये वेदना शब्द का प्रयोग करते है। अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द [ ]