Chhayawad ki pramukh visheshta hai

  1. छायावादी युग
  2. छायावाद की विशेषताएं लिखिए
  3. Chhayavaad
  4. छायावाद की विशेषताएँ प्रवृत्तियां


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छायावादी युग

Chhayavadi Yug छायावादी युग (1918 ई०-1936 ई०) हिंदी साहित्य के इतिहास में छायावाद के वास्तविक अर्थ को लेकर विद्वानों में विभिन्न मतभेद है। छायावाद का अर्थ मुकुटधर पांडे ने “रहस्यवाद, सुशील कुमार ने “अस्पष्टता” महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “अन्योक्ति पद्धति” रामचंद्र शुक्ल ने “शैली बैचित्र्य “नंददुलारे बाजपेई ने “आध्यात्मिक छाया का भान” डॉ नगेंद्र ने “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह”बताया है। छायावाद–“द्विवेदी युग” के बाद के समय को छायावाद कहा जाता है। बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध छायावादी कवियों का उत्थान काल था। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” और सुमित्रानंदन पंत जैसे छायावादी प्रकृति उपासक-सौन्दर्य पूजक कवियों का युग कहा जाता है। “द्विवेदी युग” की प्रतिक्रिया का परिणाम ही “छायावादी युग” है। नामवर सिंह के शब्दों में, ‘छायावाद शब्द का अर्थ चाहे जो हो परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी की उन समस्त कविताओं का द्योतक है जो 1918 ई० से लेकर 1936 ई० (‘उच्छवास’ से ‘युगान्त’) तक लिखी गई। सामान्य तौर पर किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो वह ‘छायावादी कविता’ है। उदाहरण के तौर पर पंत की निम्न पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं जो कहा तो जा रहा है छाँह के बारे में लेकिन अर्थ निकल रहा है नारी स्वातंत्र्य संबंधी : कहो कौन तुम दमयंती सी इस तरु के नीचे सोयी, अहा तुम्हें भी त्याग गया क्या अलि नल-सा निष्ठुर कोई।। छायावादी युग में हिन्दी साहित्य में गद्य गीतों, भाव तरलता, रहस्यात्मक और मर्मस्पर्शी कल्पना, राष्ट्रीयता और स्वतंत्र चिन्तन आदि का समावेश होता चला गया। इस समय की हिन्दी कविता के अंतरंग और बहिरंग में एकदम परिवर...

छायावाद की विशेषताएं लिखिए

छायावादी युग - "स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह ही छायावाद है।" डॉ रामकुमार वर्मा के अनुसार "परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगी है और आत्मा की छाया परमात्मा में यही छायावाद है।" आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार "छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों से समझना चाहिए एक तो रहस्यवाद के अर्थ में, जहां उसका संबंध काव्य वस्तु से होता है, अर्थात जहां कभी उसे अनंत और अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है। छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में है।" जयशंकर प्रसाद के अनुसार "जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी तब हिंदी में उसे 'छायावाद' के नाम से अभिहित किया गया। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता सौंदर्यमय प्रतीक विधान तथा उपचार वक्रता के साथ स्वानुभूति की विवृत्ति छायावाद की विशेषताएं हैं।" छायावादी युग की विशेषताएं - प्रकृति का मानवीकरण - प्रकृति पर मानव व्यक्तित्व का आरोप छायावाद की मुख्य विशेषता है। छायावादी कवियों ने प्रकृति को चेतना मानते हुए प्रकृति का सजीव चित्रण किया है। कल्पना की प्रधानता - छायावादी काव्य में कल्पना को प्रधानता दी गई है। छायावादी कवियों ने यथार्थ की अपेक्षा कल्पना को काव्य में अधिक अपनाया है। व्यक्तिवाद की प्रधानता - छायावादी काव्य में व्यक्तिगत भावनाओं की प्रधानता है छायावाद में कवियों ने अपने सुख-दुख एवं हर्ष शोक को ही वाणी प्रदान करते हुए खुद को अभिव्यक्त किया है। श्रृंगार भावना - छायावादी काव्य मुख्यत: श्रृंगारी काव्य है। छायावाद का श्रृंगार उपभोग की वस्तु नहीं अपितु कौतूहल और विस्मय विषय है। नारी भावना - छायावादी कवियों ने नारी के प्रति उदार दृष्टिकोण अ...

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Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Chhayavaad | छायावाद और जय शंकर प्रसाद एवं उनकी रचनाएँ नमस्कार दोस्तों ! आज हम Chhayavaad | छायावाद और जय शंकर प्रसाद एवं उनकी रचनाएँ के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। आज हम मुख्यत: छायावाद के अर्थ, परिभाषा और उसकी प्रमुख विशेषताओं के बारे में चर्चा करने जा रहे है। साथ ही प्रमुख छायावादी कवि जय शंकर प्रसाद तथा उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में भी विस्तार से जानेंगे। तो चलिए समझते है : आधुनिक हिंदी काव्य में छायावाद को आधुनिक हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जा सकता है। यह युग साहित्य के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ है । इसमें कला पक्ष और भाव पक्ष दोनों दृष्टि से उत्कर्ष का चरम दिखाई देता है। सन् 1918 से 1938 तक के काव्य को छायावाद कहा जाता है। सर्वप्रथम छायावाद शब्द का प्रयोग मुकुटधर पाण्डेय ने किया था। मुकुटधर पाण्डेय ने 1920 ईस्वी में जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका “श्री शारदा” में “हिंदी में छायावाद” शीर्षक से चार निबंध एक श्रृंखला के रूप में छपवाएं थे। Chhayavaad | छायावाद का अर्थ और परिभाषा दोस्तों ! आपको बता दे कि छायावाद के अर्थ को लेकर विद्वानों में कई मतभेद है। यहाँ हम कुछ विद्वानों के नाम दे रहे है, जिन्होंने छायावाद को अलग-अलग तरीकों से परिभाषित किया है। आइए समझते है : • आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, — “छायावाद का संबंध रहस्यवाद और विशेष काव्य शैली से हैं।” • डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार, — “जब परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में तो यही छायावाद है।” ये भी छायावाद को रहस्यवाद से जोड़ते हैं। • छायावाद के सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत के अनुसार, — “छायावाद...

छायावाद की विशेषताएँ प्रवृत्तियां

छायावाद की विशेषताएँ प्रवृत्तियां chhayavad ki visheshta chhayavad ki pravritiyan - विदेशी शासन के अत्याचारों से उत्पन्न संघर्षमयी परिस्थितियों के विरोध में कवियों की पलायनवादी मनोवृति ने जिस काव्य शैली का सृजन किया उसे छायावाद की संज्ञा दी गयी .द्विवेदी युग की प्रतिक्रिया का परिणाम छायावाद है .द्विवेदी युग में राष्ट्रीयता के प्रबल स्वर में प्रेम और सौन्दर्य की कोमल भावनाएं दब सी गयी थी .इन सरस कोमल मनोवृतियों को व्यक्त करने के लिए कवि ह्रदय विद्रोह कर उठा .ह्रदय की अनुभूतियों तथा दार्शनिक विचारों की मार्मिक अभिव्यक्ति के परिणामस्वरूप ही छायावाद का जन्म हुआ .इस प्रकार छायावाद की प्रथम कविता का दर्शन हमें प्रसादजी के काव्य में मिलता है .उनका झरना छायावाद का प्रथम काव्य है .छायावाद का युग सन १९२० से १९४० तक माना गया है .छायावाद की विशेषताएँ निम्न है - १. व्यक्तिवाद की प्रधानता - हिंदी की छायावादी कविता की सबसे बड़ी विशेषता व्यक्तिवाद है .छायावादी कविता मूलतः व्यक्तिवाद की कविता है .विषयवस्तु की खोज में कवि बाहर नहीं अपने मन के भीतर झांकता है .इन कवियों में अपने व्यक्तित्व के प्रति अगाध विश्वास है .इस अतिशय विश्वास को बड़े उत्साह के साथ उसने भाव और काला में बाधकर अपने सुख - दुःख की अभिव्यक्ति की है .प्रसाद के आँसू तथा पन्त के उच्छ्वास में व्यक्तिवाद की ही अभिव्यक्ति हुई है . २. प्रकृति चित्रण - छायावादी कवियों के प्रेम चित्रण में कोई लुका छिपी नहीं है .क्योंकि इसमें स्थूल क्रिया व्यापारों का चित्रण नहीं मिलता है या न के बराबर मिलता है .यह चित्रण मानसिक स्टार तक सिमित है .अतः इसमें मिलन की अनुभुतीओं की अपेक्षा विरहानुभूति का व्यापक चित्रण है ,निराला की कविता स्नेह निर्भर बह गया ...