Chol vansh ka itihaas

  1. चोल वंश
  2. सिसोदिया वंश का इतिहास ( गुहिल )
  3. चोल वंश का इतिहास
  4. चोल वंश के बारे में बताएं? » Chol Vansh Ke Bare Mein Batayen
  5. चौहान वंश का इतिहास : Chauhan Vansh History in Hindi
  6. कदंब राजवंश का इतिहास


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चोल वंश

चोल वंश | Chola Dynasty in Hindi : चोल पल्लव के सामंत थे। पल्लव वंश के ध्वंसावसेसो पर चोल वंश की नींव रखी गयी थी। चोल वंश के संस्थापक विजयालय ( 850 - 871 ई०) थे इन्होंने 9वी शताब्दी में चोल वंश की स्थापना किया। इसकी राजधानी तंजौर या तांजाय या तंजावूर थी। तंजावूर का वास्तुकार कुंजरमल्लन राजराज पेरुथच्चन था। विजयालय ने नरकेसरी की उपाधि धारण किया था। निशुम्भसूदिनी का मंदिर विजयालय ने बनवाया। आदित्य प्रथम (871-907 ई०) स्वतंत्र शक्तिशाली शासकआदित्य प्रथम थे इन्होंने पल्लव शासक अपराजित को परास्त कर पल्लव पर आधिपत्य कायम कर लिया। कावेरी नदी के मुहाने पर शिव मंदिर का निर्माण आदित्य प्रथम ने करवाया। परांतक प्रथम (907-950ई०) आदित्य प्रथम के बादपरांतक प्रथम शासक बना इन्होंने पांड शासक नरसिंह को परास्त कर मदुरैकोंडा (मदुरै को जीतने वाला) की उपाधि धारण किया। परांतक प्रथम ने पल्लवों पर जीत हासिल किया और इस उपलक्ष में कोदंडराम की उपाधि धारण किया। राजराज प्रथम (985 - 1014ई०) आदित्य प्रथम के बाद परांतक द्वितीय का पुत्रराजराज प्रथम शासक बना। ये शैव धर्म के अनुयायी थे। ये एक महान शाषक थे। इन्होंने चोल की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः वापस किया वापस किया। सम्राज्य विस्तार के क्रम में मैसूर के गंगों, मदुरै के पांड्यो तथा बेंगी के चालुक्यों को परास्त किया। इन्होंने लंका के उत्तरी भाग पर भी आक्रमण किया और वहां के शासक राजा माहिम पंचम को परास्त कर लंका पर आधिपत्य कायम किया। माहिम पंचम को भागकर श्रीलंका के दक्षिण जिला रोहण में शरण लेनी पड़ी थी। राजराज प्रथम ने श्रीलंका में जीते गए क्षेत्र का नाम मुम्ड़ीचोलमंडलम रखा और इसकी राजधानी अनुराधापुर के स्थान पर पोलन्नरूवा को बनाया साथ ही वहां एक शिव मंदिर का न...

सिसोदिया वंश का इतिहास ( गुहिल )

सिसोसिया वंश का इतिहास । सनातन भारत मे क्षत्रियों का वास प्राचीन वैदिक काल से रहा है । सबसे अधिक राजपूत क्षत्रियों का वर्चस्व राजस्थान में रहा है । यहाँ सैकड़ो राजपूत क्षत्रिय जातियों का शासन रहा है । इनमें से ही एक है सिसोदिया वंश कालान्तर में गुहिल वंश के नाम से जाना जाता था, जो वर्तमान में सिसोसिया नाम से प्रसिद्ध हुवा । भारत में प्राचीन राजवंशो में माना जाता है, मेवाड़ का सिसोदिया राजपूत वंश। मेवाड़ के विश्व प्रसिद्ध राजवंश का परिचय आज हम आपको देने जा रहे है । आशा है जानकारी पसन्द आएगी :- Page Contents • • • • • • • • • • • • • • सिसोदिया वंश का इतिहास – Sisodiya Vansh History in Hindi मेवाड़ के इस राजवंश की नींव तो करीब 556 ई. में ही रख दी गई थी । जो इतिहास में पहले इसे गुहिल वंश के नाम से प्रसिद्ध हुवा था, और वही कालान्तर में आगे जाकर सिसोसिया वंश के रूप में जाना गया । गुहिल वंश में कई शूरमा महारथी योद्धा हुवे है, जैसे बप्पा रावल , सिसोदिया वंश सिसोदिया वंश का परिचय – Sisodiya Rajput Vansh जैसा कि हमने ऊपर बताया था कि 556 ई. में की नींव डाली जा चुकी थी । इसके लगभग 150 वर्षों बाद 712 ई. में भारत पर अरबी लुटेरों के आक्रमण में तेजी आज चुकी थी । उस समय भारत में कोई भी शशक्त शासक का केंद्रीय शासन नही था । सभी छोटी-छोटी रियासतों में बटे हुवे थे, इस कारण अरबों ने सन. 725 ई. में उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों पर अधिकार जमा लिया था । उस वक्त भारत मे दो बड़ी शक्तिशाली ताकतों का उदय हुवा । जहाँ एक तरफ नागभट्ट ने जैसलमेर और मांडलगढ़ से अरबों को खदेड़ कर करके जालौर में प्रतिहार क्षत्रिय वंश के शक्तिशाली राज्य की नींव डाली, तो दूसरी तरफ सन. 734 ई. में मेवाड़ के शासक मान मोरी को परास्त करके ...

चोल वंश का इतिहास

चोल वंश का परिचय चोल वंश की स्थापना बहुत प्राचीन समय में हो गई थी क्योंकि सम्राट अशोक के अभिलेखों में इस वंश का उल्लेख किया गया है | ' चोल वंश का प्राचीन इतिहास' उपलब्ध न होने के कारण इतिहासकारों ने 9वी शताब्दी से चोल वंश के इतिहास को प्रारम्भ किया है| ' चोल वंश की स्थापना' 9वी शताब्दी में विजयालय के द्वारा की गई थी परन्तु विजयालय से पहले भी चोल वंश में कई राजा हुए जिसमें कारिकाल का नाम उल्लेखनीय है| ' चोल वंश की प्रारम्भिक राजधानी' पुहर में थी जिसे आज पुम्पुहर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के मयीलाडूतुरै जिले में है| पुहर के बाद उरैयुर को राजधानी बनाया गया जिसे आज वौरेयुर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले के पास है | उरैयुर के बाद तंजौर को राजधानी बनाया गया जिसे आज तंजाबुर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के पूर्वी तट पर स्थित है| तंजौर के बाद गंगेकोण्डचोलपुरम को राजधानी बनाया गया जो तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले में है| ' चोल वंश का राजकीय चिन्ह बाघ' है जो उनके ध्वज पर आज भी देखा जा सकता है| ' चोल वंश की राजकीय भाषा' तमिल और संस्कृत थी परन्तु' चोल राजाओं के अभिलेख' तमिल, तेलगु और संस्कृत भाषा में प्राप्त हुए हैं| चोल वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत अभिलेख 1. सम्राट अशोक का दूसरा और सातवा अभिलेख - 2. तंजौर मंदिर लेख – यह लेख राजराज प्रथम का है और इसमें उनके शासनकाल की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया गया है| 3. तिरुवेंदिपुरम अभिलेख – यह अभिलेख राजराज तृतीय का है और इसमें चोल वंश के उत्कर्ष का उल्लेख किया गया है| 4. मणिमंगलम् अभिलेख – यह अभिलेख राजाधिराज प्रथम का है और इसमें श्रीलंका पर विजय पाने का उल्लेख किया गया है| साहित्य 1. पेरियपुराणम्– इस ग्रन्थ की ...

चोल वंश के बारे में बताएं? » Chol Vansh Ke Bare Mein Batayen

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। चोल प्राचीन भारत का एक राज्य वंश था और दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में चुरा तमिल चोल शासकों ने नौवीं शताब्दी से तेरी शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य का निर्माण किया था और की राजधानी थी अली 1423 ओरिया ओरिया और और भाषा की तमिल धर्म हिंदी सोंग्स शासन था मनोज और क्षेत्रफल जो था वह 3600000 किलोमीटर पर इसमें आदिल देता है वह भारत श्रीलंका बांग्लादेश म्यानमार थाईलैंड मलेशिया कंबोडिया इंडोनेशिया वियतनाम सिंगापुर माली chol prachin bharat ka ek rajya vansh tha aur dakshin bharat mein aur paas ke anya deshon mein chura tamil chol shaasakon ne nauveen shatabdi se teri shatabdi ke beech ek atyant shaktishali hindu samrajya ka nirmaan kiya tha aur ki rajdhani thi ali 1423 oriya oriya aur aur bhasha ki tamil dharm hindi songs shasan tha manoj aur kshetrafal jo tha vaah 3600000 kilometre par isme adil deta hai vaah bharat sri lanka bangladesh myanmar thailand malaysia cambodia indonesia vietnam singapore maali चोल प्राचीन भारत का एक राज्य वंश था और दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में चुरा तमिल

चौहान वंश का इतिहास : Chauhan Vansh History in Hindi

Chauhan vansh history notes in hindi : चौहान या चाहमान वंश के संस्थापक वासुदेव था। चौहान वंश राजपूतों के प्रसिद्ध वंशों में से एक है। चौहान वंश ( chauhan dynasty) के शासकों ने वर्तमान राजस्थान, गुजरात एवं इसके समीपवर्ती क्षेत्रों पर 7वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक शासन किया। इस वंश के प्रमुख शासक थे – वासुदेव, अजयराज द्वितीय, अर्णोराज, विग्रहराज चतुर्थ वीसलदेव, पृथ्वीराज तृतीय इत्यादि। इस पोस्ट में चौहान वंश के इतिहास ( chauhan vansh ka itihas) एवं इसके महत्त्वपूर्ण question answer के बारे में जानेंगे। शाकम्भरी और अजमेर के चौहान या चाहमान शासकों की सूची : Chauhan Emperor • वासुदेव (लगभग छटी शताब्दी) • सामन्तराज (लगभग 684-709 ई०) • नारा-देव (लगभग 709–721 ई० ) • अजयराज प्रथम (लगभग 721–734 ई०) • विग्रहराज प्रथम (लगभग 734–759 ई०) • चंद्रराज प्रथम (लगभग 759–771 ई०) • गोपेंद्रराज (लगभग 771–784 ई०) • दुर्लभराज प्रथम (लगभग 784–809 ई०) • गोविंदराज प्रथम (लगभग 809–836 ई०) • चंद्रराज द्वितीय (लगभग 836-863 ई०) • गोविंदराजा द्वितीय (लगभग 863–890 ई०) • चंदनराज (लगभग 890–917 ई०) • वाक्पतिराज प्रथम (लगभग 917–944 ई०) • सिम्हराज (लगभग 944–971 ई०) • विग्रहराज द्वितीय (लगभग 971–998 ई०) • दुर्लभराज द्वितीय (लगभग 998–1012 ई०) • गोविंदराज तृतीय (लगभग 1012-1026 ई०) • वाक्पतिराज द्वितीय (लगभग 1026-1040 ई०) • विर्याराम (लगभग 1040 ई०) • चामुंडराज चौहान (लगभग 1040-1065 ई०) • दुर्लभराज तृतीय (लगभग 1065-1070 ई०) • विग्रहराज तृतीय (लगभग 1070-1090 ई०) • पृथ्वीराज प्रथम (ल. 1090–1110 ई०) • अजयराज द्वितीय (लगभग 1110-1135 ई०) • अर्णोराज चौहान (लगभग 1135–1150 ई०) • जगददेव चौहान (लगभग 1150 ई०) • विग्रहर...

कदंब राजवंश का इतिहास

मयूरशर्मन ने पल्लवों के सीमांत अधिकारियों को परास्त कर श्रीपर्वत के आस-पास के घने वनों पर अधिकार कर लिया। कालांतर में पल्लव राजाओं ने उससे मैत्री – संबंध स्थापित किया तथा उसे स्वतंत्र शासक स्वीकार कर लिया तथा पश्चिमी समुद्र एवं प्रेहरा (तुंगभद्रा अथवा मलप्रभ नदी) के बीच के भूभाग पर उसका प्रभुत्व मान लिया। बाद की कथाओं में मयूरशर्मन को अठारह अश्वमेघ यज्ञों का अनुष्ठान करने वाला कहा गया है। बनवासी (वैजयंती) उसकी मुख्य राजधानी तथा पालासिका उप राजधानी थी। मयूरशर्मन ने लगभग 345 ई. से 360 ई. तक शासन किया। कदंबवंशी शासकों की वंशावली हमें एकमात्र तालगुंड स्तंभलेख से पता चलती है। मयूरशर्मन के बाद काकुत्सवर्मन इस कुल का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा हुआ। उसके पूर्व तीन राजाओं के नाम हमें पता चलते हैं – कंगवर्मन, भगीरथ तथा रघु। उन्होंने 425 ई. तक शासन किया। परंतु उनके शासनकाल की प्रमुख घटनाओं के विषय में हमें बहुत कम जानकारी मिलती है। कंगवर्मन के विषय में यह बताया गया है, किउसने कुंतल राज्य पर आक्रमण का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया था। भगीरथ (385-410ई.) के काल में ही गुप्तशासक अनेक शत्रुओं का विजेता कहा गया है। उसके शासन के अंत में उसका छोटा भाई काकुत्सवर्मन 425 ई. में राजा बना। तालगुण्ड प्रशस्ति में काकुत्सवर्मन की शक्ति की बङी प्रशंसा की गयी है। उसका शासन काल अत्यन्त समृद्धिशाली था तथा उसने अपनी कन्याओं का विवाह तालगुण्ड में एक विशाल तालाब खुदवाया था। काकुत्सवर्मन ने 450 ई. तक शासन किया था। काकुत्सवर्मन का उत्तराधिकारी उसका पुत्र शांतिवर्मन (450-475ई.) उसे अत्यन्त यशस्वी शासक बताया गया है, जो तीन ताज (पट्टत्रय)धारण करता था। उसके पुत्र मृगेश के एक लेख से पता चलता है, कि उसने अपने शत्रुओं की ...