महाराणा प्रताप

  1. महाराणा प्रताप का इतिहास Maharana Pratap History in Hindi
  2. महाराणा प्रताप का जीवन परिचय
  3. महाराणा प्रताप जीवनी
  4. महाराणा प्रताप


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महाराणा प्रताप का इतिहास Maharana Pratap History in Hindi

Life History of Maharana Pratap in Hindi महाराणा प्रताप ने कभी मुगलों की पराधीनता स्वीकार नहीं की और अकबर जैसे शासक को नाकों चने चबवा दिए| महाराणा प्रताप का इतिहास इस बात का गवाह है कि भारतमाता ने ऐसे अनेक वीरों को जन्म दिया है जिन्होंने मरते दम तक अपने देश की रक्षा की है। महाराणा प्रताप का नाम भारत में जन्म लेने वाले शूरवीरों में सबसे ऊपर आता है। महाराणा प्रताप ने जीवनभर संघर्ष किया और सालों तक जंगलों में रहकर जीवन व्यतीत किया, घास की रोटियां खायीं और गुफा में सोये लेकिन मुगलों की पराधीनता कभी स्वीकार नहीं की। महाराणा को वीरता और स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति माना जाता है। उन्होंने आखिरी सांस तक मेवाड़ की रक्षा की। महाराणा की बहादुरी को देखकर उनका सबसे बड़ा दुश्मन अकबर भी उनका कायल हो गया था। महाराणा का जन्म 9 मई सन 1540 को मेवाड़ के कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा की माता का नाम जैवन्ताबाई और पिता का नाम उदय सिंह था। महाराणा के बचपन का नाम “कीका” था। आगे चलकर महाराणा को मेवाड़ का साम्राज्य सौंप दिया गया। महाराणा का सबसे बड़ा दुश्मन अकबर – उन दिनों अकबर मुगल साम्राज्य का शासक था। अकबर उस समय सबसे शक्तिशाली सम्राट भी था। अकबर के आगे कई राजपूत राजा पहले ही घुटने टेक चुके थे इसलिए अकबर अपनी मुग़ल सेना को अजेय मानता था। अकबर पूरे भारत पर राज करना चाहता था। इसलिए उसने कई राजपूत राजाओं को हराकर उनका राज्य हथिया लिया तो वहीं कई राजाओं ने मुग़ल सेना के डर से आत्मसमर्पण कर दिया। अकबर ने महाराणा प्रताप को भी 6 बार संधि वार्ता का प्रस्ताव भेजा था लेकिन महाराणा ने अकबर के आगे झुकने से मना कर दिया और महाराणा के पास अकबर की सेना की तुलना में आधे ही सिपाही थे लेकिन फिर भी उन्होंने अकबर के दांत ख...

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय

“माई ऐडा पूत जण जैडा राणा प्रताप” राजस्थान में प्रचलित इस कहावत में हर जननी से महाराणा प्रताप जैसे पुत्रों को जन्म देने का आह्वान किया गया हैं, इसके पीछे राणा की वीरता और साहसी जीवन ही प्रेरणा का मुख्य स्त्रोत हैं, और मेवाड़ी हो या राजस्थानी या कोई भारतीय, सबको प्रताप जैसे वीरों पर गर्व हैं. प्रताप का जीवन राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया वो अध्याय हैं जिसकी आभा सदियों तक आम-जन को प्रेरित करती रहेगी. क्र. म. (s.No.) परिचय बिंदु ( Introduction Points) परिचय ( Introduction) 1. पूरा नाम ((Full Name) महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया 2. जन्म दिन (Birth Date) 9 मई 1540 3. जन्म स्थान (Birth Place) कुम्भलगढ़ किला,राजस्थान 4. पेशा (Profession) उदयपुर और पुरे मेवाड़ के राजा 5. राष्ट्रीयता (Nationality) भारतीय 6. उम्र (Age) 56 वर्ष 7. गृहनगर (Hometown) मेवाड़ 8. धर्म (Religion) हिन्दू 9. जाति (Caste) राजपूत 10. वैवाहिक स्थिति (Marital Status) विवाहित 11. राशि (Zodiac Sign) वृषभ 12. मृत्यु (Death) 19 जनवरी 1597 प्रारम्भिक जीवन और बचपन (Early Life and Childhood) • प्रताप का जन्म भारतीय तिथि के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल की तृतीय को हुआ था , इस कारण आज भी प्रतिवर्ष इस दिन महाराणा प्रताप का जन्म दिन मनाया जाता हैं. राणा उदय सिंह द्वितीय के 33 बच्चे थे, जिनमें प्रताप सिंह सबसे बड़े पुत्र थे, प्रताप बचपन से ही स्वाभिमानी और देशभक्त थे, साथ ही वो बहादुर और संवेदनशील भी थे. उन्हें खेलों और हथियार के प्रशिक्षण में रूचि थी. • वास्तव में प्रताप को मेवाड़ के प्रति अपनी जिम्मेदारी की समझ बहुत जल्द आ गयी थी, इस कारण बहुत कम उम्र में ही उन्होंने हथियार, घुड़सवारी, युद्ध का प्रशिक्षण लेना...

महाराणा प्रताप जीवनी

नाम :महाराणा प्रताप जन्म : 9 मे, 1540 कुम्भलगढ़ दुर्ग पिता : राणा उदय सिंह माता : महाराणी जयवंता कँवर घोड़ा : चेतक महाराणा प्रताप सिंह ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदानुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलो को कही बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अशव दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंतीत हुई। २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ। आरंभिक जीवन : महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ। बचपन से ही महाराणा प्रताप साहसी, वीर, स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रताप्रिय थे। सन 1572 में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठते ही उन्हें अभूतपूर्व संकोटो का सामना करना पड़ा, मगर धैर्य...

महाराणा प्रताप

प्रताप सिंह पहिला, जो महाराणा प्रताप म्हणून प्रसिद्ध आहे (सी. ९ मे १५४० - १९ जानेवारी १५९७), हा सिसोदिया घराण्यातील महाराणा प्रतापसिंहजी महाराणा मेवाडची राजमुद्रा अधिकारकाळ इ.स.१५७२-इ.स.१५९७ राज्याभिषेक १ मार्च इ.स.१५७२ राज्यव्याप्ती मेवाड विभाग, राजस्थान राजधानी पूर्ण नाव महाराणा प्रतापसिंह सिसोदिया जन्म ९ में इ.स.१५४० मृत्यू १९ जानेवारी इ.स.१५९७ पूर्वाधिकारी उत्तराधिकारी वडील राणा उदयसिंह आई पत्नी राजघराणे जन्म आणि बालपण महाराणा प्रताप यांच्या जन्मस्थळाच्या प्रश्नावर दोन गृहीतके आहेत. पहिले गृहीतक हे, महाराणा प्रताप कुंभलगड किल्ल्यात जन्माला आले असे आहे. कारण महाराणा उदयसिंह आणि जयवंताबाई यांचे लग्न कुंभलगड राजवाड्यात पार पडले होते. दुसरा विश्वास असा आहे की, त्यांचा जन्म मारवाड मधील पालीच्या वाड्यांमध्ये झाला. महाराणा प्रताप यांना लहानपनापासूनच राजवाड्या पेक्षा, सामान्य जनतेबरोबर वेळ घालायला जास्त आवडत असे. त्यांच्या जनते मध्ये भिल्ल समुदाय जास्त प्रमाणात होता. त्यामुळे अर्थातच त्यांच्या सवंगड्यांमधेही भिल्ल मुले खुप होती. त्यांनी स्वतःबरोबरच आपल्या सवंगड्यांणाही सशत्र युद्धचे धडे दिल. भिल्ल आपल्या मुलाला किका असे संबोधतात. म्हणून ज्येष्ठ भिल्ल, महाराणाला किका नावाने हाक मारत असत. यावरून आपल्याला महाराणा बद्दल सामान्य लोकांच्या मनात किती आदर आणि प्रेम होता हे कळते. लेखक विजय नहार यांच्या 'हिंदुसूर्य महाराणा प्रताप' या पुस्तकानुसार, प्रतापचा जन्म झाला तेव्हा उदयसिंह आणि मेवाड राज्य युद्ध आणि असुरक्षिततेने घेरले होते. या कारणास्तव पाली आणि जीवन राज्याभिषेक उदयसिंह यांनी १५५९ मध्ये हळदीघाटीची लढाई मधल्या काळात चित्तोडगडच्या रक्तरंजित लढाईमुळे १ जून १५७६ रोजी हळदीघाटीची लढाई...