रामचरितमानस उत्तरकांड चौपाई अर्थ सहित

  1. रामायण चौपाई
  2. रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई
  3. श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Uttarkand
  4. सम्पूर्ण रामायण कथा, कहानी और इसके प्रमुख कांड
  5. Uttar Kand Saar in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या
  6. रामचरितमानस


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रामायण चौपाई

अर्थ-जिनकी माया के वशीभूत संपूर्ण विश्व, ब्रह्मदि देवता और असुर हैं, जिनकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भांति यह सारा दृश्य-जगत् सत्य ही प्रतीत होता है और जिनके केवल चरण ही भवसागर से तरने की इच्छावालों के लिये एकमात्रा नौका हैं, उन समस्त कारणों से पर (सब कारणों के कारण और सबसे श्रेष्ठ) राम कहने वाले भगवान् हरि की मैं वंदना करता हूं। अर्थ-संतों का चरित्र कपास के चरित्र के समान शुभ है। जिसका फल नीरस, विशद और गुणमय होता है। कपास का धागा सुई के किये हुए छेद को अपना तन देकर ढक देता है, अथवा कपास जैसे लोढ़े जाने वाले, काते जाने और बुने जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढकता है उसी प्रकार संत स्वयं को दुखकर सहकर दूसरों के दोषों का ढकता है, जिसके कारण उसने जगत में वंदनीय यश प्राप्त किया है। अर्थ-दुःख-सुख, पाप-पुण्य, दिन-रात, साधु-असाधु, सुजाति-कुजाति, दानव-देवता, ऊंच-नीच, अमृत-विष, सुजीवन (सुंदर जीवन)-मृत्यु, माया-ब्रह्म, जीव-ईश्वर, संपत्ति-दरिद्रता, रंक-राजा, काशी-मगध, गंगा-कर्मनाशा, मारवाड़-मालवा, ब्राह्मण-कसाई, स्वर्ग-नरक, अनुराग-वैराग्य, ये सभी पदार्थ ब्रह्मा की सृष्टि में हैं। वेद-शास्त्रों में उनके गुण-दोषों का विभाग कर दिया है।

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई

29 रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | रामायण की चौपाई | रामायण चौपाई रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | रामायण की चौपाई | रामायण चौपाई रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | रामायण की चौपाई | रामायण चौपाई– निचे रामायण की चौपाइयां दी गई है इसका वीडियो भी निचे दिया गया है रामायण की चौपाई | रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | रामायण की चौपाई | रामायण चौपाई | Ramayan Chaupai| सम्पूर्ण रामायण हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥ जा पर कृपा राम की होई। ता पर कृपा करहिं सब कोई॥ जिनके कपट, दम्भ नहिं माया। तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥ होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥ रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | रामायण की चौपाई | रामायण चौपाई रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई | रामायण की चौपाई | रामायण चौपाई रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई अर्थ सहित बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥ सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुघात सुहाई॥ अर्थ :सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं मिलता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है। रामायण चौपाई अर्थ सहित जा पर कृपा राम की होई। ता पर कृपा करहिं सब कोई॥ जिनके कपट, दम्भ नहिं माया। तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥ अर्थ :जिन पर राम की कृपा होती है, उन्हें कोई सांसारिक दुःख छू तक नहीं सकता। परमात्मा जिस पर कृपा करते है उस पर तो सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । और जिनके अंदर कपट, दम्भ (पाखंड) और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में रघुपति बसते हैं अर्थात उन्हीं पर प्र...

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Uttarkand

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Uttarkand – भाग 17 श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Shri Ramcharitmanas UttarKand Arth Vyakhya in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के दोहों और चौपाईयों की श्रृंखला में आज हम इसके 24-25वें दोहों और चौपाईयों की व्याख्या समझने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है : आप गोस्वामी तुलसीदास कृत “श्री रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड” का विस्तृत अध्ययन करने के लिए नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये : UttarKand श्रीरामचरितमानस उत्तरकांड के दोहों और चौपाईयों की व्याख्या Tulsidas Krit ShriRamcharitmanas UttarKand Part 17 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं चौपाइयों की अर्थ सहित व्याख्या इसप्रकार है : रामराज्य का वर्णन दोहा : श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Ram Rajya Varnan in Hindi जासु कृपा कटाच्छु सुर चाहत चितव न सोइ। राम पदारबिंद रति करति सुभावहि खोइ।।24।। व्याख्या : देवता जिस लक्ष्मी के कृपा कटाक्ष की चाहना करते हैं, पर वह उनकी ओर देखती भी नहीं, वही लक्ष्मी अपने स्वभाव अर्थात् अपनी चंचलता को छोड़कर श्रीराम जी के चरणों से प्रीति करती है। चौपाई : श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या UttarKand Chaupai Path in Hindi सेवहिं सानकूल सब भाई। राम चरन रति अति अधिकाई।। प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं। कबहुँ कृपाल हमहि कछु कहहीं।।1।। व्याख्या : सब भाई श्रीराम जी के अनुकूल रहकर उनकी सेवा करते हैं। श्रीराम जी के चरणों में उनकी अत्यंत प्रीति है। वे श्रीराम जी के मुखारविंद को देखते ही र...

सम्पूर्ण रामायण कथा, कहानी और इसके प्रमुख कांड

सम्पूर्ण रामायण कथा – Ramayan Katha in Hindi हिंदू धर्म में रामायण को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है जिसमें हम सबको रिश्तों के कर्तव्यों के बारे में समझाया गया है. रामायण महाकाव्य में एक आदर्श पिता, आदर्श पुत्र, आदर्श पत्नी, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श सेवक और आदर्श राजा को दिखाया गया है. रामायण महाकाव्य में 24 हजार छंद और 500 सर्ग हैं जो कि 7 खंड है| इस लेख में मै आपको उन सात खंड से रूबरू कराते हुए पूरी रामायण कथा की कहानी संचिप्त में बताऊँगा| तो चलिये शुरू करते हैं. रामायण की कहानी को पढ़ने से पहले आइये एक प्रश्न का उत्तर जानते हैं, जिसका उत्तर कई लोगो को मालूम नहीं है. Ramayan GK Questions in Hindi – रामायण सामान्य ज्ञान प्रश्न : रामायण ग्रंथ है या किताब? यदि आपको उत्तर मालूम है तो बहुत ही अच्छी बात है लेकिन अगर नहीं मालूम है तो आपको निराष होने की आवश्यकता नहीं है. इस लेख को लिखने का मेरा उद्देश्य आप तक सही जानकारी को पहुचाना ही है, तो आइये जानते हैं इस सवाल का सही जवाब. देश में विदेशियों की सत्ता हो जाने के बाद संस्कृत का ह्रास हो गया और भारतीय लोग उचित ज्ञान के अभाव तथा विदेशी सत्ता के प्रभाव के कारण अपनी ही संस्कृति को भूलने लग गये. ऐसी स्थिति को अत्यन्त विकट जानकर रामचरितमानस रखा. सामान्य रूप से रामचरितमानस को तुलसी रामायण के नाम से जाना जाता है. तो दोस्तो शायद अब आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा कि रामायण एक ग्रंथ है. जैसा की आप जानते हैं कि रामायण को कई लोगो ने कई बार लिखा है, वही रामायण मंजरी भी लिखा गया है, आइये जानते हैं कि इसके लेखक कौन है. प्रश्न : रामायण मंजरी के लेखक कौन है ? उत्तर : आशापूर्णा देवी| वैसे तो मै इस कहानी को रामायण के सात कांड में विभाजित...

Uttar Kand Saar in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Uttar Kand Saar in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या – भाग 12 Ramcharitmanas Uttar Kand Dohe Chaupai Saar in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के आगामी दोहों एवं चौपाइयों की व्याख्या को ध्यान से समझने की कोशिश करेंगे। तो चलिए, बिना देरी किये शुरू करते है : आप गोस्वामी तुलसीदास कृत “श्री रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड” का विस्तृत अध्ययन करने के लिए नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये : Uttar Kand Saar in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या Ramcharitmanas Uttar Kand Saar Part 12 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं चौपाइयों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत है : राम राज्याभिषेक, वेदस्तुति, शिवस्तुति दोहा : Tulsidas Ke Uttar Kand Ke Doho Ka Saar in Hindi बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग। पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग।।14 क।। बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास। तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास।।14 ख।। व्याख्या : मैं बार-बार यही वरदान मांगता हूं कि मुझे आपके चरणकमलों में भक्ति और आपके भक्तों का सत्संग सदा प्राप्त हो। हे लक्ष्मीपति ! हर्षित होकर मुझे यही वरदान दीजिये। तुलसीदास जी कहते हैं कि उमापति महादेव जी श्रीराम जी का गुण वर्णन करके और हर्षित होकर कैलाश को चले गये। तब प्रभु जी ने वानरों को सब प्रकार से सुख देने वाले डेरे दिलवाये। चौपाई : Uttar Kand Ki Chaupaiyon Ka Saar in Hindi सुनु खगपति यह कथा पावनी। त्रिबिध ताप भव भय दावनी।। महाराज कर सुभ अभिषेका। सुनत लहहिं नर बिरति बिबेका...

रामचरितमानस

अनुक्रम • 1 परिचय • 2 संक्षिप्त मानस कथा • 3 अध्याय • 4 भाषा-शैली • 5 नीति एवं सदाचार • 6 सन्दर्भ • 7 इन्हें भी देखें • 8 अन्य परियोजनाओं पर • 9 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] रामचरितमानस १५वीं शताब्दी के कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने रामचरितमानस को गोस्वामी जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं - संक्षिप्त मानस कथा [ ] यह बात उस समय की है जब प्रभु सर्वग्य दास निज जानी, गति अनन्य तापस नृप रानी। माँगु माँगु बरु भइ नभ बानी, परम गँभीर कृपामृत सानी॥ इस आकाशवाणी को जब मनु सतरूपा सुनते हैं तो उनका ह्रदय प्रफुल्लित हो उठता है और जब स्वयं परमब्रह्म राम प्रकट होते हैं तो उनकी स्तुति करते हुए मनु और सतरूपा कहते हैं- "सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू, बिधि हरि हर बंदित पद रेनू। सेवत सुलभ सकल सुखदायक, प्रणतपाल सचराचर नायक॥" अर्थात् जिनके चरणों की वन्दना विधि, हरि और हर यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही करते है, तथा जिनके स्वरूप की प्रशंसा सगुण और निर्गुण दोनों करते हैं: उनसे वे क्या वर माँगें? इस बात का उल्लेख करके तुलसीदास ने उन लोगों को भी राम की ही आराधना करने की सलाह दी है जो केवल निराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं। अध्याय [ ] रामचरितमानस में सात काण्ड (अध्याय) हैं- • • • • • • • भाषा-शैली [ ] रामचरितमानस की भाषा के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं। कोई इसे गोस्वामी जी ने भाषा को नया स्वरूप दिया। यह अवधी नहीं अपितु वही भाषा थी जो तुलसीदास 'ग्राम्य गिरा' के पक्षधर थे परन्तु वे नीति एवं सदाचार [ ] रामचरितमानस में भले रामकथा हो, किन्तु कवि का मूल उद्देश्य राम के चरित्र के माध्यम से नैतिकता एवं सदाचार की शिक्षा देना रहा है। रामचरितमान...