सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को समझाइए

  1. सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत
  2. सामाजिक परिवर्तन की पर्याय द्रौपदी मुर्मू » कमल संदेश
  3. सामाजिक परिवर्तन
  4. सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त
  5. सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूप क्या है?


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सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत

सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या समाजशास्त्रियों ने कतिपय सिद्धांतों के संदर्भ में की है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को हम किस उपागम से देखते है। यह उपागम ही सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत है। उदाहरण के लिये इतिहासकार टोयनबी या समाशास्त्री सोरोकनी जब सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या करते है तो उन्हें लगता है कि परिवर्तन तो एक चक्र की तरह है। ठीक ऐसे ही जैसे बाल्यावस्था आती है, युवावस्था आती है और अन्त में वृद्धावस्था के बाद शरीर समाप्त हो जाता है। सामाजिक परिवर्तन को मार्क्सवादी इस संदर्श में नहीं देखते। वे मानते है कि परिवर्तन का बुनियादी आधार आर्थिक संगठन है। इस भांति देखें तो लगेगा कि सामाजिक परिवर्तन एक उपागम है जिसे विभिन्न सिद्धांतों में बांधा गया है। इस संबंध में दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सामाजिक परिवर्तन के विश्लेषण के कई सिद्धांत है। इन सिद्धांतों में सभी सिद्धांत पूर्ण हो, ऐसा कुछ नहीं है। देखा जाये तो कोई भी सिद्धांत अपने आप में पूर्ण नहीं हैं प्रत्येक में कुछ न कुछ अभाव, कमजोरी है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए एंथोनी गिडेन्स तो कहते है कि सामाजिक परिवर्तन के जितने भी सिद्धांत है उन्हें दो वृहद श्रेणियों में रखा जा सकता है : • उद्विकासवाद से जुडे सिद्धांत • ऐतिहासिक भौतिकवाद से जुडे सिद्धांत उद्विकास से जुड़े हुए सिद्धांत वस्तुत: प्राणिशास्त्रीय परिवर्तन् को सामाजिक परिवर्तन से जोड़ने वाले है और ऐतिहासिक भौतिकवाद से जुड़े हुए सिद्धांत मौलिक रूप से वे है जिन्हें कार्ल माक्र्स ने रखा है। मार्क्स के बाद भी मार्क्सवादी सिद्धांतवेत्ताओं ने ऐतिहासिक भौतिकवाद को उसके विभन्न स्वरूपों में रखा है। यहां हम सामाजिक परिवर्तन के इन दो श्रेणियों में बंटे ...

सामाजिक परिवर्तन की पर्याय द्रौपदी मुर्मू » कमल संदेश

आगामी कुछ दिनों में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान होना है। इससे पहले चुनाव अभियान के दौरान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मूजी को मिली प्रतिक्रिया अभिभूत करनेवाली है। इस वर्ष जब भारत ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है तब उनकी उम्मीदवारी ने प्रत्येक भारतीय को गौरवान्वित किया है। विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए इस मुकाम तक पहुंचने का उनका सफर प्रेरणा का असीम स्रोत है। उनका चुनाव महिला सशक्तीकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। मातृशक्ति उनसे अनन्य जुड़ाव महसूस करेगी। आजादी के बाद जन्म लेने वालीं वह पहली राष्ट्रपति होंगी। उनकी उम्मीदवारी कई अन्य कारणों से भी खास है। दशकों से वंशवाद के वशीभूत रही व्यवस्था में उनका अभ्युदय सार्वजनिक जीवन में एक ताजा हवा के झोंके जैसा है। यह जनतांत्रिक व्यवस्था में जन की आस्था को और प्रगाढ़ करनेवाला है। ओडिशा के सुदूरवर्ती आदिवासी क्षेत्र रायरंगपुर में उन्होंने शिक्षक के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की। फिर सिंचाई विभाग से जुड़ीं। उनका राजनीतिक सफर भी जमीनी स्तर से आरंभ हुआ। उन्होंने 1997 में निकाय चुनाव लड़ा और रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद बनीं। तीन साल बाद वह रायरंगपुर से विधायक बनीं। उन्हें 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा 147 विधायकों में से सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। यह विधायक के रूप में उनकी भूमिका और योगदान को दर्शाता है। मंत्री के रूप में उन्होंने वाणिज्य, परिवहन, मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों में अपनी छाप छोड़ी। उनका कार्यकाल विकासोन्मुखी, निष्कलंक और भ्रष्टाचार मुक्त रहा। 2015 में वह झारखंड की पहली महिला राज्यपा...

सामाजिक परिवर्तन

सामाजिक परिवर्तन, आधुनिक संसार में प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ है तथा विभिन्न समाजों ने अपने तरीके से इन विकासों को समाहित किया है, उनका उत्तर दिया है, जो कि सामाजिक परिवर्तनों में परिलक्षित होता है। इन परिवर्तनों की गति कभी तीव्र रही है कभी मन्द। कभी-कभी ये परिवर्तन अति महत्वपूर्ण रहे हैं तो कभी बिल्कुल महत्वहीन। कुछ परिवर्तन आकस्मिक होते हैं, हमारी कल्पना से परे और कुछ ऐसे होते हैं जिसकी भविष्यवाणी संभव थी। कुछ से तालमेल बिठाना सरल है जब कि कुछ को सहज ही स्वीकारना कठिन है। कुछ सामाजिक परिवर्तन स्पष्ट है एवं दृष्टिगत हैं जब कि कुछ देखे नहीं जा सकते, उनका केवल अनुभव किया जा सकता है। हम अधिकतर परिवर्तनों की प्रक्रिया और परिणामों को जाने समझे बिना अवचेतन रूप से इनमें शामिल रहे हैं। जब कि कई बार इन परिवर्तनों को हमारी इच्छा के विरुद्ध हम पर थोपा गया है। कई बार हम परिवर्तनों के मूक साक्षी भी बने हैं। व्यवस्था के प्रति लगाव के कारण मानव मस्तिष्क इन परिवर्तनों के प्रति प्रारंभ में शंकालु रहता है परन्तु शनैः उन्हें स्वीकार कर लेता है। वध दल अनुक्रम • 1 सामाजिक परिवर्तन का अर्थ • 2 सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ • 3 सामाजिक परिवर्तन के मुख्य स्रोत • 4 सामाजिक परिवर्तन से सम्बद्ध कुछ अवधारणाएँ • 4.1 प्रगति • 4.2 विकास • 4.3 सामाजिक आन्दोलन • 4.4 क्रांति • 5 सन्दर्भ • 6 इन्हें भी देखें सामाजिक परिवर्तन का अर्थ [ ] सामाजिक परिवर्तन के अन्तर्गत हम मुख्य रूप से तीन तथ्यों का अध्ययन करते हैं- • (क) सामाजिक संरचना में परिवर्तन, • (ख) संस्कृति में परिवर्तन एवं • (ग) परिवर्तन के कारक। सामाजिक परिवर्तन के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख परिभाषाओं पर विचार करेंगे। मकीवर एवं पेज (R.M....

सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त

सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त! Read this article in Hindi to learn about the five important theories of social change. The theories are:- 1. सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त (Cyclical Theories of Social Change) 2. सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त (Linear Theories of Social Change) and a Few Others. समाज में सामाजिक परिवर्तन किन कारणों से तथा किन नियमों के अन्तर्गत होता है, उनकी गति एवं दिशा क्या होती है, इन प्रश्नों को लेकर प्राचीन समय से आज तक विद्वान अपने-अपने मत व्यक्त करते रहे हैं । 16वीं सदी में जीन बोडिन ने विश्व की विभिन्न सभ्यताओं के ऐतिहासिक अध्ययन के आधार पर यह मत व्यक्त किया कि समाज में परिवर्तन चक्रीय रूप में घटित होते हैं । यद्यपि उनकी यह बात उस समय पूर्णतया स्वीकार नहीं की गयी किन्तु बाद में कुछ विद्वानों ने परितर्वन के चक्रीय सिद्धान्तों को स्वीकार किया । 16वीं सदी में फ्रांस में यह मत प्रचलित हुआ कि विचार और चिन्तन समाज में परिवर्तन उत्पन्न करते है । 19वीं सदी में कॉम्टे, हीगल एवं कार्ल मैनहीम ने सामाजिक परिवर्तन में विचारों की भूमिका को बहुत महत्व दिया । कॉम्टे, स्पेंसर एवं हॉबहाउस आदि विद्वानों ने कहा कि सामाजिक परिवर्तन एक सीधी रेखा में कुछ निश्चित स्तरों से होकर गुजरता है और प्रत्येक समाज को इन स्तरों से गुजरना होता है । ये स्तर कौन से होंगे, इस बारे में उनमें मतभेद है । ADVERTISEMENTS: बाद में आने वाले समाज वैज्ञानिकों जैसे मॉर्गन, टायलर, हेनरीमेन वेस्टरमार्क हेड्‌डन एवं लोविब्रुहल आदि ने भी यह मत स्वीकार किया और इस आधार पर परिवार, विवाह, धर्म, कला एवं संस्कृति में परिवर्तन की उद्‌विकासीय प्रवृति का उल्लेख किया । उस समय यह अवधारणा बनी कि परिवर्त...

सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूप क्या है?

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