समाजीकरण के संदर्भ में शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

  1. [Solved] शिक्षा के संदर्भ में, समाजीकरण का अर्थ है
  2. विद्यालयीन शिक्षा के संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को धरातल पर उतारने की चुनौती
  3. Shiksha Ka Mahatva
  4. [Solved] शिक्षा के संदर्भ में, समाजीकरण से क्या तात्�
  5. [Solved] प्रत्येक समाज में शिक्षा द्वारा क्या कार्य क�
  6. प्राथमिक शिक्षा का अर्थ और उद्देश्य
  7. शिक्षा का इतिहास
  8. राजनीतिक समाजीकरण क्या है? विशेषताएं, अभिकरण
  9. प्राथमिक शिक्षा का अर्थ


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[Solved] शिक्षा के संदर्भ में, समाजीकरण का अर्थ है

समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति बातचीत के एक तंत्र के माध्यम से समाज का सदस्य बन जाता है। इसका उद्देश्य व्यक्तियों को भविष्य की भूमिकाओं के लिए तैयार करना है। • समाजीकरण मूल्यों, विश्वासों और अपेक्षाओं को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है। • समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति सभी सामाजिक व्यवहारों को अपनाता है- • सामाजिक मूल्यों और सिद्धांतों का अनुकूलन। • सांस्कृतिक अनुष्ठानों का अनुकूलन • कौशल का अनुकूलन • समाजीकरण व्यक्तित्व विकास और सांस्कृतिक विकास का एक संयोजन है। • समाजीकरण एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है जो जीवन भर जन्म से वयस्कता तक जारी रहती है। शिक्षा में समाजीकरण का उद्देश्य: • सामाजिक परंपराओं, शिष्टाचार, रीति-रिवाज आदि से समाज के नए सदस्यों को परिचित कराना। • समाज के सदस्यों को लगातार बदलते परिवेश के अनुकूल बनाने के लिए तैयार करना । • किसी समाज की परंपराओं, मूल्यों और रीति-रिवाजों का संरक्षण करना। • विभिन्न प्रकार के सामाजिक संबंधों और व्यक्तिगत विकास पर उनके प्रभाव का अध्ययन करना। • प्रत्येक एकल बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्राप्त करने के लिए शिक्षण-शिक्षण प्रक्रिया को नियंत्रित करना। इसलिए, यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा के संदर्भ में, समाजीकरण का अर्थ है सामाजिक वातावरण का अनुकूलन और समायोजन।

विद्यालयीन शिक्षा के संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को धरातल पर उतारने की चुनौती

– पिंकेश लता रघुवंशी बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 की भारत सरकार द्वारा घोषणा व स्वीकृति पश्चात देश व समाज में इस विषय को लेकर विमर्श का वातावरण बनना स्वभाविक है। इसके साथ ही नीति के समर्थन व विरोध में अनेक स्वर भी सुनाई देने लगे हैं। इस शिक्षा नीति में वैश्विक शिक्षा पद्धतियों के समानांतर व राष्ट्रीय हितों को समाहित किये हुये परिवर्तन स्वागत योग्य हैं, विशेषकर विद्यालयीन शिक्षा के संदर्भ में। यह “राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 भारतवर्ष की तीसरी इस प्रकार की शिक्षा नीति है जो पुरानी शिक्षा नीतियों के गुण – दोषों की समीक्षा के साथ – साथ अपना दृष्टिकोण लेकर आई है। जहाँ अनेक संभावनाएं भी हैं और संशय के कारण भी। अतः पूर्व की योजनाओं और आयोगों के विषय में जानना भी आवश्यक है। भारत में पहला शिक्षा आयोग “विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग” नाम से डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सन् 1948 में गठित हुआ, इसके पश्चात 1952 में “मुदलियार आयोग” और 1964-66 में डॉ दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में विद्यालयीन शिक्षा में अनेक क्रांतिकारी कदमों की सिफारिशों के साथ “राष्ट्रीय शिक्षा आयोग” का गठन हुआ। वर्ष 1985 में “शिक्षा की चुनौती” नाम से एक रिपोर्ट तैयार की गयी जिसमें भारत के बौद्धिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, प्रशासनिक एवं व्यावसायिक वर्गों ने अपने सुझाव दिये थे, और तब 1986 में तत्कालीन भारत सरकार ने “ नयी शिक्षा नीति – 1986” का प्रारूप तैयार किया था। 1992 में फिर इस नीति में आंशिक बदलाव किये गये। वर्तमान सरकार ने अपने घोषणा पत्र के अनुरूप 2017 में सेवानिवृत्त इसरो वैज्ञानिक के . कस्तूरीरंगन जी की अध्यक्षता में नयी शिक्षा नीति या राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप बनाने समिति का ...

Shiksha Ka Mahatva

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • आधुनिक युग में शिक्षा का महत्व उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना एक पौधे को फलदार पेड़ बनाने के लिए मिट्टी और पानी का महत्व होता है। शिक्षा हमारे ज्ञान, कौशल के साथ हमारे व्यक्तित्व में भी सुधार करती है, तथा लोगों, समाज और देश के प्रति हमारा सकारात्मक दृष्टिकोण बनाती है। नीचे दिए गए आधुनिक शिक्षा का महत्व पर निबंध ( Importance of Education) के माध्यम से आप जीवन में शिक्षा के महत्व को विस्तार से जान पाएंगे। आज इस लेख के द्वारा आप Aadhunik Shiksha Ka Mahatva और भी अच्छे से जान पायेंगे। अगर कभी आपको किसी परीक्षा में आधुनिक शिक्षा पर निबंध लिखने को आ गया तो आप इस पोस्ट की मदद लेकर शिक्षा के महत्व पर निबंध, कविता, भाषण (Speech) या स्लोगन आसानी से बना पाएंगे। Shiksha Ka Mahatva का परिचय शिक्षा की शुरुआत हमारे जन्म के बाद से ही शुरू हो जाती है, जहाँ हमारे माता-पिता हमें व्यवहारिक शिक्षा देते है, यह शिक्षा की सबसे प्रथम सीढी होती है, इसके बाद शिक्षा का अगला स्तर जिसमें हम स्कूल, कॉलेज में पढना- लिखना सीखते हैं और बहुत सारा ज्ञान अर्जित करते हैं, जो हमें शिक्षित अथवा साक्षर बनाता है। शिक्षा हमें रोजगार के कई अवसर प्रदान करती है, जिससे कोई क्योंकि देखा जाए तो आज भी हमारे देश की एक संख्या गरीबी का स्तर जी रही रही है, इसका एक बड़ा कारण उन्हें शिक्षा नहीं मिल पाना है। पर सरकार द्वारा ऐसे कई सराहनीय कदम उठाए गए हैं और ऐसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो पूरे देश में सभी गाँव- शहर तक शिक्षा का पहुंचा रही हैं। ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर शिक्षा काम आती है। चाहे कोई छोटा सा काम अंजाम देना हो या कोई बड़ा और Complex कार्य को सफलतापूर्ववक पूरा करना हो, अगर आ...

[Solved] शिक्षा के संदर्भ में, समाजीकरण से क्या तात्�

समाजीकरणएक सामान्य प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चों को उनके माता-पिता, शिक्षकों और अन्य लोगों द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक जीवधारियों में बदल दिया जाता है। • समाजीकरण मूल्यों, विश्वासों और अपेक्षाओं को प्राप्त करने कीएक प्रक्रिया है। • समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति सभी सामाजिक व्यवहारों को अपनाता है जैसे- • सामाजिक मूल्यों और सिद्धांतों का अनुकूलन। • सांस्कृतिक अनुष्ठानों का अनुकूलन • कौशल का अनुकूलन • समाजीकरण व्यक्तित्व विकास और सांस्कृतिक विकास का एक संयोजन है। • समाजीकरण एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है जो जीवन भर जन्म से वयस्कता तक जारी रहती है। Important Points शिक्षा में समाजीकरण का उद्देश्य: • किसी समाज की परंपराओं, मूल्यों और रीति-रिवाजों का संरक्षण करना। • सामाजिक परंपराओं, शिष्टाचार, रीति-रिवाज आदि से समाज के नए सदस्यों को परिचित कराना। • समाज के सदस्यों को लगातार बदलते परिवेश के अनुकूल बनाने केलिए तैयार करना। • विभिन्न प्रकार के सामाजिक संबंधों और व्यक्तिगत विकास पर उनके प्रभाव का अध्ययन करना। • प्रत्येक एकल बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्राप्त करने के लिए शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को नियंत्रित करना। इसलिए, यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा के संदर्भ में, समाजीकरण का अर्थ है सामाजिक वातावरण का अनुकूलन और समायोजन।

[Solved] प्रत्येक समाज में शिक्षा द्वारा क्या कार्य क�

शिक्षा शब्द लैटिन शब्द "एडुकेयर" से लिया गयाहै जिसका अर्थढालना या प्रशिक्षित करना है। • एक बच्चे के पालन-पोषण से उसका संबंध ज्ञान, कौशल, नैतिकता, मूल्य, उसके व्यक्तित्व को समृद्ध करके और उसके समग्र विकास में मदद करना है। • शिक्षा एक आजीवन प्रक्रिया है जो व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व को संशोधित करती है। Key Points प्रत्येक​ समाज में शिक्षा के कार्य: • प्रत्येक देश में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ऐसी शिक्षा प्रणाली का विकास करना है जो अपने नागरिकों को जीवन भर आवश्यक प्रतिभा और कौशल विकसित करने के अवसर प्रदान करे। • शिक्षा का सर्वोच्च कार्य एक एकीकृत व्यक्ति का निर्माण करना है जो समग्र रूप से जीवन की समस्याओं को हल करनेमें सक्षम है। • इसकेअन्य कार्य पुराने नियमों में परिवर्तन करके नए नियम बनाना है जो समाज की रूढ़िवादी सोच को बढ़ावा दे रहे थे। • सही प्रकार की शिक्षा में बच्चे द्वारायह समझना शामिल है कि वह कैसा है, इसके बजाय कि हम उस पर एक आदर्श प्रभाव अधिरोपित करें किजैसाहम सोचते हैं,उसे वैसाहोना चाहिए। • एक संगठित इकाई में लोगों को एकजुट करें। • समाज के सदस्यों का सामाजिककरण करें और संस्कृति को अगली पीढ़ी तक पहुंचाएं। • गुणवत्ता व्यक्तित्व लक्षण प्राप्त करने में मदद करें। • व्यक्तियों के बीच एकजुटता की भावना पैदा करें। • व्यक्ति की जन्मजात क्षमताओं कोविकसित करें। • मानव संसाधन से संबंधित समाज की जरूरतों को पूरा करें। • विश्वास, मानदंड, संस्कृति को अगली पीढ़ी तक पहुंचाएं। इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि प्रत्येक समाज में शिक्षा द्वारा दोनों बिंदुओं का पालन किया जाता है।

प्राथमिक शिक्षा का अर्थ और उद्देश्य

शिक्षा हमारी समाज के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। शिक्षा हमें सोचने और समस्याओं का समाधान करने की क्षमता प्रदान करती है। इसलिए, शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य हमारी समाज में विकास और प्रगति को सुनिश्चित करना है। आम तौर पर, जो बच्चे 5 से 11 साल की उम्र के बीच के होते हैं, उनसे एक प्राथमिक शिक्षा संस्थान में भाग लेने की उम्मीद की जाती है, जहाँ वे ऐसे विषयों और कौशलों को सीखते हैं जो उनकी स्कूली शिक्षा के बाकी हिस्सों की नींव रखते हैं। प्राथमिक शिक्षा संस्थान बच्चों को विभिन्न धर्मों, नस्लों और सामाजिक, आर्थिक स्थितियों के साथ-साथ विकलांग लोगों से मिलने के अवसर प्रदान करते हैं। इसलिए, प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के पास बच्चों को सहिष्णुता और सम्मान के बारे में सिखाने का एक अनूठा मौका होता है। Contents • • • • • • • • • • • • प्राथमिक शिक्षा का अर्थ ( Prathmik shiksha kya hai ) प्राथमिक शिक्षा, जिसे प्रारम्भिक शिक्षा भी कहा जाता है, यह बालवाड़ी से छठी कक्षा तक के बच्चों के लिए है। प्राथमिक शिक्षा छात्रों को विभिन्न विषयों की एक बुनियादी समझ के साथ-साथ, कौशल भी प्रदान करती है, जिसे वह अपने जीवन भर उपयोग करेंगे। प्राथमिक शिक्षा आम तौर पर औपचारिक शिक्षा का पहला चरण है, जो पूर्व-विद्यालय के बाद और माध्यमिक शिक्षा से पहले आता है। प्राथमिक शिक्षा आमतौर पर एक प्राथमिक विद्यालय में होती है। शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य क्या है? (Shiksha ka prathmik uddeshy kya hai) 1. नैतिक मूल्यों का विकास: शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य हमें नैतिक मूल्यों का विकास करने में मदद करता है। शिक्षा के माध्यम से हम संस्कार और नैतिकता का विकास कर सकते हैं। यह हमारे जीवन में आदर्शों को स्थापित करने में मद...

शिक्षा का इतिहास

प्राथमिक शिक्षा ऐसा आधार है जिसपर देश तथा प्रत्येक नागरिक का विकास निर्भर करता है। हाल के वर्षों में भारत ने प्राथमिक शिक्षा में नामांकन, छात्रों की संख्या बरकरार रखने, उनकी नियमित उपस्थिति दर और साक्षरता के प्रसार के संदर्भ में काफी प्रगति की है। जहाँ भारत की उन्नत शिक्षा पद्धति को भारत देश के आर्थिक विकास का मुख्य योगदानकर्ता तत्व माना जाता है, वहीं भारत में आधारभूत शिक्षा की गुणवत्ता फिलहाल एक चिंता का विषय है। भारत में 14 साल की उम्र तक के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना संवैधानिक प्रतिबद्धता है। देश के संसद ने वर्ष 2009 में ‘ इन्हें भी देखें [ ] • • बाहरी कड़ियाँ [ ] • f यह

राजनीतिक समाजीकरण क्या है? विशेषताएं, अभिकरण

प्रश्न; राजनैतिक समाजीकरण पर एक निबंध लिखिए। अथवा" राजनीतिक समाजीकरण का अर्थ एवं संरचनाएँ समझाइये। अथवा" राजनीतिक समाजीकरण के स्वरूप का वर्णन कीजिए। राजनीतिक समाजीकरण के प्रमुख अभिकर्ता कौन-से हैं? समझाइये। अथवा" राजनीतिक समाजीकरण से आप क्या समझते है। संक्षेप में उन प्राथमिक एवं गौण संरचनाओं का वर्णन कीजिए, जो राजनीतिक समाजीकरण के साधनों के रूप में कार्य करती हैं? अथवा" राजनीतिक समाजीकरण क्या हैं? राजनीतिक समाजीकरण की प्रमुख संरचनाएँ कौन सी हैं? इनकी भूमिकाएँ समझाइये। अथवा" राजनीतिक समाजीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए। अथवा" राजनीतिक समाजीकरण से क्या तात्पर्य है? इसकी प्रक्रिया का वर्णन तथा इसके मुख्य अभिकरण बताइए। उत्तर-- raajnitik samajikaran ki avdharna arth paribhasha visheshta abhikaran;यद्यपि कभी-कभी यह देखने को मिलता है कि राजनीतिक व्यवस्था की संरचनाएँ अनेक देशों में एकसी हैं, किन्तु उनकी कार्य-प्रणालियाँ सदैव भिन्न होती हैं। यह इसलिए होता है कि विभिन्न राजनीतिक भूमिकाओं तथा भूमिका संरचनाओं के संबंध में व्यक्तियों की अभिवृत्तियाँ तथा मनोदिशाएँ भिन्न हुआ करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के राजनीति के संबंध में कुछ विश्वास एवं मूल्य होते है। प्रश्न है कि वह उन्हें कैसे सीखता है। उसी प्रकार वह राजनीतिक भूमिकाएँ कैसे सीखता है-- जैसे एक मतदाता के रूप में, किसी हित-समूह के सदस्य अथवा किसी विधायक के चुनाव प्रचारक के रूप में? वह किस प्रक्रिया के द्वारा राजनीतिक व्यवहार के तरीकों को सीखता हैं? यह सत्य है कि जीवन के अन्य क्षेत्रों की भाँति राजनीति मे भी परिवर्तन होते रहते हैं, किन्तु साथ ही साथ यह भी सत्य है कि राजनीति के अनेक क्षेत्रों में निरन्तरता अटूट रूप से विद्यमान रहती है।...

प्राथमिक शिक्षा का अर्थ

प्राथमिक शिक्षा, शिक्षा रूपी भवन की नींव है, जिस पर शिक्षा भवन चिरकाल तक सुदृढ़ रह सकता है। प्राथमिक शिक्षा वह प्रकाश है, जो जीवन के समस्त अंधकार को दूर कर बालक बालिकाओं में पवित्र संस्कारों, भावनाओं, नवीन दृष्टिकोणों व भावी विचारों को जन्म देता है, जिससे बालक का सम्पूर्ण जोवन प्रभावित होता है। शिक्षा का प्रथम स्तर प्राथमिक शिक्षा है, जो 06-11 वर्ष की आयु के बालक बालिकाओं को प्रदान की जाती है। इसमें पहली से पाँचवी तक की कक्षाओं को सम्मिलित किया जाता है। मध्यप्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की अवधि 05 वर्ष निर्धारित की गई है। प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य व उद्देश्य • विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करना जैसे– शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास करना। • विद्यार्थियों में देश प्रेम तथा संस्कृति के प्रति प्रेम भाव उत्पन्न करना। • विद्यार्थियों में अनुशासन की भावना का विकास करना। • विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति रूचि एवं एकाग्रता उत्पन्न करना। • विद्यार्थियों को मूलभूत आधारों पर व्यावहारिक ज्ञान का पाठ पढ़ाना। • विद्यार्थियों में भाईचारे की भावना का विकास करना। प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण का सर्वप्रथम प्रयास भारतीय शिक्षा आयोग (हण्टर कमीशन, 1882) ने किया। आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के मात्र दो उद्देश्य निर्धारित किये थे - जिसमें प्रथम उद्देश्य जन शिक्षा का प्रसार तथा द्वितीय उद्देश्य व्यवहारिक जीवन की शिक्षा था। कोठारी आयेाग (1964-66) ने अपने प्रतिवेदन में प्राथमिक शिक्षा के उद्देशें के सम्बन्ध में लिखा है‘‘आधुनिक प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य बालक को भावी जीवन की परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ बनाने के लिए शारीरिक एवं मानसिक प्रशिक्षण देकर उसका इस प्रकार से विकास करना है ...