10 सूक्तियां संस्कृत में

  1. RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् अनुवाद
  2. Powerful Sannskrit Suktiyan : 40 सर्वश्रेष्ठ संस्कृत सूक्तियां सफलता की सीढी
  3. 100 संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित
  4. संस्कृत सूक्तियाँ (हिन्दी अर्थ सहित)
  5. संस्कृत की सूक्तियाँ
  6. संस्कृत: संधि परिभाषा,भेद और उदाहरण Sanskrit sandhi [Sanskrit Grammar]
  7. LikhoPadho.com
  8. संस्कृत की सूक्तियाँ जो पढ़ाती हैं हमें देनिक जीवन का पाठ


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RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् अनुवाद

The questions presented in the RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् अनुवाद-कार्यम् (हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद) हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने के लिए संस्कृत व्याकरण के नियमों, शब्द व धातु रूपों का ज्ञान अत्यावश्यक है। हमने यहाँ हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद बनाने के लिए प्रमुख नियमों को सरलता से सोदाहरण समझाया है। विद्यार्थी इन नियमों को हृदयंगम कर तथा अभ्यास-कार्य के द्वारा संस्कृत में अनुवाद करने में सक्षम हो सकेंगे। अनुवाद के लिए ध्यान देने योग्य निर्देश : हिन्दी वाक्य का संस्कृत में अनुवाद करने के लिए उस वाक्य में कर्ता, क्रिया, कर्म, काल तथा अन्य कारक-चिह्नों को समझ लेना चाहिए। सर्वप्रथम कर्ता को देखना चाहिए तथा उसके लिंग, वचन और पुरुष के विषय में निर्धारण करना चाहिए. यदि वह शब्द पल्लिंग है तो उस शब्द का संस्कत में पल्लिंग एकवचन है तो एकवचन का प्रयोग करना चाहिए तथा उसके पुरुष के बारे में समझना चाहिए कि वह प्रथम पुरुष है या मध्यम पुरुष है या उत्तम पुरुष है। उसी के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। तत्पश्चात् कर्ता के अनुसार उसी वचन व पुरुष की क्रिया का उपयोग किया जाना चाहिए। कारकों या विभक्ति के अनुसार उसी शब्द का प्रयोग होना चाहिए। जैसे कर्ता कारक में प्रथमा विभक्ति होती है, उस प्रथमा विभक्ति को कर्ता के वचन के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। इसी प्रकार कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति, करण कारक में तृतीया विभक्ति, सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति, अपादान कारक में पंचमी विभक्ति, सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति, अधिकरण में सप्तमी विभक्ति तथा सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। अत: अनुवाद करने के लिए शब्द-रूपों तथा धातु-रूपों का एवं व्याकरण का सामान्य ज्ञान होना आ...

Powerful Sannskrit Suktiyan : 40 सर्वश्रेष्ठ संस्कृत सूक्तियां सफलता की सीढी

Powerful Sannskrit Suktiyan : 40 सर्वश्रेष्ठ संस्कृत सूक्तियां सफलता की सीढी sanskrit shlok-sukti in hindi आइये आज हम ज्ञान के उस अथाह सागर में से कुछ अनमोल रत्नों को देखते हैं। This solution contains questions, answers, images, explanations of the complete सुभाषितानी-सूक्ति-श्लोक of Sanskrit taught in hindi If you are avri student of using NCERT Textbook to study Sanskrit, then you must come across chapter विद्यार्थी विशेष रूप से इन श्लोकों-सूक्तियों को कंठस्त कर सकते हैं और उन्हें अपने जीवन में उतार कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं, विना ज्ञान के मनुष्य पशु है लेकिन विना संस्कारवान शिक्षा के मनुष्य का जीवन शून्य है। sanskrit sukti- shlok in hindi ( मनुष्य की शोभा शील ही है।) 5- बुभुक्षितः किं न करोति पापम्? ( भूखा क्या पाप नहीं कर सकते?) 6- शेठे शाठ्यं समाचरेत्। ( दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए।) 7- शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्। ( ही शरीर धर्म का पहला साधन है।) 8- आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः। ( दुराचारी को वेंद भी पवित्र नहीं करते।) 9- अहिंसा परमो धर्मः। ( अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।) 10- सुलभा रम्यता लोके दुर्लभो हिर्ज गुणानम्। ( संसार में सुन्दरता तो सरलता से मिल जाती है, किन्तु गुण - ग्रहण करना कठिन है।) 11- महाजनो येन गतः स पन्थाः। ( महापुरुष जिस मार्ग से हटें, वही श्रेष्ठ मार्ग है।) 12- आत्मज्ञानं परमज्ञानं। ( अपने को पहचानना ही सबसे बड़ा ज्ञान है। ) 13- ज्ञानमेव परमो धर्मः। ( ज्ञान ही सबसे बड़ा धर्म है |) 14- स्वाध्यायन्मा प्रमदः। ( स्वाध्याय में अलस्य मत करो। ) 15- अति सर्वत्र वर्जयेत्। ( किसी भी प्रकार की अति का परित्याग कर देना चाहिए। ) 16- मा ब्रूहि दिनं वचः। ...

100 संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित

संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित (Sanskrit Proverbs with Hindi Meaning) : Top 100 संस्कृत भाषा की महत्वपूर्ण सूक्तियां हिंदी अनुवाद सहित यहां नीचे दी जा रही है। जो आपके लिए State TET, CTET, TGT, PGT, UGC-NET/JRF, DSSSB, GIC and Degree College Lecturer M.A., B.Ed and Ph.D Entrance Exam आदि सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में उपयोगी साबित होगी। इसमें Popular Sanskrit Proverbs with Hindi Meaning सहित पिछली परीक्षाओं में पूछी गई संस्कृत सूक्तियां का भी समावेश किया गया है। संस्कृत भाषा में सुविचार तथा सूक्तियाँ का सही अर्थ जानकर आप अच्छे नंबर पक्के कर सकते है। 1. अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ: (वा​ल्मीकि रामायण 6.16.21) अर्थ–अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने और सुनने वाले दुर्लभ होते हैं। 2. 'अतिथि देवो भव' (तैत्तिरीयोपनिषद् 1/11/12) अर्थ– अतिथि देव स्वरूप होता है। 3. 'अर्थो हि कन्या परकीय एव।' (अभि.शाकुन्तलम्) अर्थ–कन्या वस्तुत: पराई वस्तु है। 4. 'अहिंसा परमो धर्म:।' (महाभारत-अनुशासनपर्व) अर्थ–अहिंसा परम धर्म है। 5. 'अहो दुरंता बलवद्विरोधिता।' (किरातार्जुनीयम् 1/23) अर्थ–बलवान् के साथ किया गया वैर-विरोध होना अनिष्ट अंत है। 6. 'आचार परमो धर्मः।' (मनुस्मृति 01/108) अर्थ–आचार ही परम धर्म है। 7. असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय।(बृहदारण्यक-1.3.28) अर्थ–मुझे असत् से सत् की ओर ले जायें, अंधकार से प्रकार की ओर ले जायें। 8. ''ईशावास्यमिदं सर्वं'' (ईशावास्योपनिषद्-मंत्र 1) अर्थ–संपूर्ण जगत् के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है। 9. उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत (कठोपनिषद्) अर्थ–हे मनुष्य! उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों को पाकर उनके द्वारा परब्रह्म परमेश्वर को जान लो।...

संस्कृत सूक्तियाँ (हिन्दी अर्थ सहित)

•सूक्ति---- मम तू भुजौ एव प्रहर्णम् । अर्थ----मेरी तो भुजाएं ही प्रहार करने के लिए शास्त्र है/ • अंगारः शतधौतेन मलिंत्व न मुन्चति अर्थ: कोयला सैंकड़ों बार धोने पर भी मलिनता नहीं छोड़ता। • अंगीकृत सुकृतिनः परिपालयन्ति अर्थ: पुण्यात्मा जिस बात को स्वीकार करते है, उसे निभाते हैं। • अकारणपक्षपातिनं भवन्तं द्रष्ट्म् इच्छति में हृदयम्। अर्थ: केयूरक महाश्वेता का संदेश चंद्रापीड को देते हुए कहता है कि आपके प्रति मेरा स्नेह स्वार्थ रहित है फिर भी आपसे मिलने की उत्कण्ठा हो रही है। • अकुलीनोअपि शास्त्रज्ञो दैवतेरपि पूज्यते (हितोपदेश) अर्थ: नीच कुल वाला भी शास्त्र जानता हो तो देवताओं द्वारा भी पूजा जाता हैं। • अक्षरशून्यो हि अन्धो भवति (ज्ञान/विद्या पर सूक्ति) अर्थ: निरक्षर (मूर्ख) अँधा होता हैं। • अगाधजलसंचारी रोहितः नैव गर्वितः अर्थ: अगाध जल में तैरने वाली रोहू मछली घमंड नहीं करती • अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेशः । अर्थ: अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । • अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌। अर्थ: शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । • अजीर्ण हि अमृतं वारि, जीर्ण वारि बलप्रदम अर्थ: अजीर्ण में जल अमृत के समान होता हैं और भोजन के पचने पर बल देता हैं। • अजीर्णे भोजनं विषम् । अर्थ: अपाचन हुआ हो तब भोजन विष समान है । • अज्ञता कस्य नामेह नोपहासायजायते अर्थ: मुर्खता पर किसे हंसी नहीं आती • अज्ञातकुलशीलस्य वासो न देयः अर्थ: जिस का कुल और शील मालूम नहीं हो उसके घर नहीं टिकना चाहिए। • अति तृष्णा विनाशाय। अर्थ: अधिक लालच नाश कराती है । • अति सर्वत्र वर्जयेत् । अर्थ: अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । • ‘अतिथि देवो भव’ अर्थ: अतिथि देव स्वरूप होता है। • अतिभक्ति...

संस्कृत की सूक्तियाँ

सामग्री • १ गणितशास्त्रप्रशंसा • २ सुभाषितानि ०१ • २.१ शिखरिणी • २.२ मन्दाक्रान्ता • २.३ वसन्ततिलका • २.४ स्रग्धरा • २.५ हरिणी • ३ मालिनी • ४ सुभाषितानि ०२ • ५ वाक्य संग्रह • ६ ११५ सुभाषितानि (आंग्ल-अर्थ सहितम्) गणितशास्त्रप्रशंसा [ ] गणितसारसंग्रहः के 'संज्ञाधिकारः' में मंगलाचरण के पश्चात महावीराचार्य ने बड़े ही मार्मिक ढंग से लौकिके वैदिके वापि तथा सामयिकेऽपि यः । व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते ॥ कामतन्त्रेऽर्थशास्त्रे च गान्धर्वे नाटकेऽपि वा । सूपशास्त्रे तथा वैद्ये वास्तुविद्यादिवस्तुसु ॥ छन्दोऽलङ्कारकाव्येषु तर्कव्याकरणादिषु । कलागुणेषु सर्वेषु प्रस्तुतं गणितं परम् ॥ सूर्यादिग्रहचारेषु ग्रहणे ग्रहसंयुतौ । त्रिप्रश्ने चन्द्रवृत्तौ च सर्वत्राङ्गीकृतं हि तत् ॥ द्वीपसागरशैलानां संख्याव्यासपरिक्षिपः । भवनव्यन्तरज्योतिर्लोककल्पाधिवासिनाम् ॥ नारकाणां च सर्वेषां श्रेणीबन्धेन्द्रकोत्कराः । प्रकीर्णकप्रमाणाद्या बुध्यन्ते गणितेन् ते ॥ प्राणिनां तत्र संस्थानमायुरष्टगुणादयः । यात्राद्यास्संहिताद्याश्च सर्वे ते गणिताश्रयाः ॥ बहुभिर्प्रलापैः किं त्रैलोक्ये सचराचरे । यत्किञ्चिद्वस्तु तत् सर्वं गणितेन् बिना न् हि ॥ सुभाषितानि ०१ [ ] अगाधजलसंचारी न गर्वं याति रोहितः । अण्गुष्ठोदकमान्नेण शफरी फर्फरायते ॥ अकृतेष्वेव कार्येषु मृत्युर्वै संप्रकर्षति । युवैव धर्मशीलः स्यादनिमित्तं हि जीवितम ॥ आहारनिद्राभयमैथुनञ्च सामान्यमेते पशुभिर्नराणाम् । ज्ञानं हि तेषामदिको विशेषः ज्ञानेन हीनाः पशुभिः समानाः॥ [ अकृत्यं नैव कर्तव्यं प्राणत्यागेऽपि संस्थिते । न च कृत्यं परित्यज्यं धर्म एष सनातनः ॥ अकृत्वा परसंन्तापमगत्वाखलनम्रताम । अनुत्सृज्य सतां वर्त्म यत्स्वल्पमपि तद्बहु ॥ अकृत्वा पौरुषं या श्...

संस्कृत: संधि परिभाषा,भेद और उदाहरण Sanskrit sandhi [Sanskrit Grammar]

व्यंजन सन्धि जब व्यञ्जन के सामने कोई व्यंजन अथवा स्वर आता है तब 'हल्' (व्यंजन) सन्धि होती है। व्यंजन संधि (हल् सन्धि) भी कहा जाता है व्यंजन सन्धि के नियम नियम (1) शचुत्व संधि (श्तोश्चुनाश्चु) यदि स् अथवा त वर्ग (त, थ, द, ध, न) के बाद या पहले श् अथवाच वर्ग (च, छ, ज, झ, अ) हो तो स् को श् तथा त वर्ग के अक्षरों का क्रमशः च वर्गीय अक्षर हो जाता है। व्यंजन सन्धि के उदाहरण सत् + चरित्रः = सच्चरित्रः सत् + चित् = सच्चित् रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति उत् + चारणम् = उच्चारणम् महान् + जयः = महाजय यज् + नः = यज्ञ (ज ञ झ) निस् + शब्द = निश्शब्द नियम (2) ष्टुत्व सन्धि (ष्ट्र नाष्टुः)- यदि स् अथवा त वर्ग (त, थ, द, ध, न) के बाद या पहले ष् अथवा ट वर्ग (ट, ठ, ड, ण) के अक्षर आवे तो स् का ष् त वर्ग , ट वर्ग में बदल जाता है व्यंजन सन्धि के उदाहरण धनुष + टंकार – धनुष्टंकार उद् + डयनम् = उड्डयनम् तत् + टीका– तट्टीका सत् + टीका– सट्टीका षष् + थः = षष्ट पेष् + ता= पेष्टा नियम (3) जस्तव सन्धि- श्पादान्त (झलां जशझशि)--यदि किसी भी वर्ग के प्रथम, द्वितीय अथवा चतुर्थ अक्षर के पश्चात् किसी भी वर्ग का तृतीय अक्षर हो जाता है। प्रथम भाग-यदि वर्गों के पथम अक्षर (क, च, ट, त, प) के बाद घाव य, र, ल, व्, ह्) को छोड़कर कोई भी स्वर या व्यंजन वर्ण आता है तो वह प्रथम अका त. प) अपने वर्ग का तीसरा अक्षर (ग. ज. ड, द, ब) हो जाता हो दिक् + गजः = (क् का तीसरा अक्षर ग् होने पर) दिग्गजः वाक् + दानम् = (क् का तीसरा अक्षर ग् होने पर) वाग्दानम् वाक् + ईशः = (क् का तीसरा अक्षर 'ग्' होने पर) वागीशः अच् + अन्तः = (च का तीसरा अक्षर ज् होने पर) अजन्तः षट् + आननः = (ट् का तीसरा अक्षर ड् होने पर) षडाननः द्वितीय भाग-यदि पद के मध्य मे...

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भारतीयवर्षानुसारं मासानां नामानि 12 माह के नाम संस्कृत में क्रम संस्कृतमहीनों के नाम In English 1. चैत्रः April- May 2. वैशाखः May- June 3. ज्येष्ठः June-July 4. आषाढः July- August 5. श्रावणः August- Sep 6. भाद्रपदः Sep- Oct 7. अश्विनः Oct- Nov 8. कार्तिकः Nov- Dec 9. मार्गशीर्षः Dec- Jan 10. पौषः Jan- Feb 11. माघः Feb- March 12. फाल्गुनः March-April भारतीयवर्षानुसारंऋतूनांनामानि संस्कृत में ऋतुओं के नाम क्रम ऋतुके नाम महीनों के नाम 1. वसन्तः चैत्रः - वैशाखः 2. ग्रीष्मः ज्येष्ठः - आषाढः 3. वर्षा श्रावणः - भाद्रपदः 4. शरद् अश्विनः - कार्तिकः 5. हेमन्तः मार्गशीर्षः -पौषः 6. शिशिरः माघः -फाल्गुनः

संस्कृत की सूक्तियाँ जो पढ़ाती हैं हमें देनिक जीवन का पाठ

संस्कृत की सूक्तियाँ – संस्कृत भारत देश की प्राचीन भाषा है, और इसलिए हमारे प्राचीन ग्रन्थ, साहित्य भी संस्कृत में ही लिखे हुए हैं। ऐसे में संस्कृत का ज्ञान जरूरी ही नहीं बल्कि अतिआवश्यक भी हो जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि ही संस्कृत, हमारी संस्कृति को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है। संस्कृत के महान शब्दकोश और ज्ञान कोश की बात करें तो संस्कृत में ऐसे सैकड़ों शब्द है, जो अपने आप में यूनिक है। ये शब्द हमें जीवन का अर्थ समझाने के लिए पर्याप्त है। वैसे तो हमने स्कूल में बहुत सारे श्लोक पढ़े होंगे, जिनमें सुभाषितानि श्लोक, विदुर निति श्लोक और भगवत गीता श्लोक, चाणक्य नीति शामिल है। लेकिन आज हम बात करने वाले है सूक्तियों की। संस्कृत में सूक्तियों का उतना हीयोगदान है, जितना किसी साहित्य में उसके शब्दों का। यूँ तो संस्कृत के श्लोक भी जीवन के बिभिन्न पहलुओं को समझाते हैं लेकिन ये सूक्तियां हमें केवल यथार्थ बताती है, जीवन से जुडी हुई छोटी से छोटी बात समझाती है। इसलिए देखा जाए तो सूक्तियों का अधिक महत्व है। और आज हम आपको कुछ ऐसी ही सूक्तियों के बारे में बताने जा रहे हैं। जो दैनिक जीवन को महत्वपूर्ण बनाने में आपकी मदद करती है। और ये सूक्तियां है… संस्कृत की सूक्तियाँ – १ – अति सर्वत्र वर्जयेत – यह सूक्ति बहुत ही प्रसिद्द सूक्ति है, जो हमें दैनिक जीवन में अति का पाठ यानी अत्यधिक मात्रा का पाठ पढ़ाती है। किसी भी चीज की अत्यधिक मात्रा हमेशा नुकसानदायक होती है, फिर चाहे वो कोई भी चीज हो, यही इस सूक्ति का अर्थ है। 0 २ – विनाशकाले विपरीत बुद्धिः– यह सूक्ति, केवल सूक्ति ही नहीं बल्कि हमारे लिए संकेत है।जब जीवन में किसी मद में चूर होकर इंसान सिर्फ अपने अनुसार कार्य करने लगता है, तब उसे सही-गलत ...