आनंद कादंबिनी के संपादक थे

  1. भारतेन्दु युग के प्रमुख रचनाकार जीवन परिचय साहित्यिक विशेषताएं । भारतेन्दु युगीन रचनाकार
  2. हिंदी साहित्य का इतिहास/आधुनिक काल प्रकरण २ आधुनिक गद्य साहित्य का प्रवर्तन प्रथम उत्थान
  3. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  4. नंदन और कादंबिनी बंद, बड़ी संख्या में पत्रकारों की छंटनी


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भारतेन्दु युग के प्रमुख रचनाकार जीवन परिचय साहित्यिक विशेषताएं । भारतेन्दु युगीन रचनाकार

भारतेंदु मंडल के प्रमुख साहित्यकार के नाम ➽ भारतेंदु मंडल के प्रमुख साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चन्द्र प्रतापनारायण मिश्र , बालकृष्ण भट्ट तथा बदरीनारायण चौधरी थे। ➽ अन्य साहित्यकारों में लाला श्री निवास दास , राजकुमार ठाकुर जगमोहन सिंह , बाबू तोता राम , केशवराम भट्ट , राधाचरण गोस्वामी , अंबिका दत्त व्यास , मोहन लाल विष्णु लाल पंड्या , भीम सेन शर्मा , कार्तिक प्रसाद खत्री , दुर्गा प्रसाद मिश्र , सदानंद मिश्र , छोटे लाल मिश्र , जगन्नाथ खन्ना , गोपी नाथ , राम पाले सिंह , राम कृष्ण वर्मा , श्रीनिवास दास , राधा कृष्ण दास , गदाधर सिंह , राधाकृष्ण दास , प्रतापनारायण मिश्र , राधाचरण गोस्वामी , विश्वनाथ सिंह , गोपाल चंद , लक्ष्मी शंकर मिश्र , रामदीन सिंह , रविदत्त शुक्ल , गौरी दत्त आदि रचनाकारों ने आधुनिक हिंदी साहित्य के भारतेंदु युग का सहयोग करके हिंदी साहित्य के विकास में योगदान किया। इसी युग में काशी में नागरी प्रचारिनी सभा की स्थापना हुई जिसने पुस्तक प्रकाशन एवं पत्रिका प्रकाशन का कार्य किया। ➽ भारतेंदु मंडल के भारतेंदु हरिश्चन्द्र , पंडित प्रतापनारायण मिश्र , पंडित बालकृष्ण भट्ट एवं उपाध्याय पंडित बदरीनारायण चौधरी ' प्रेमधन ' प्रमुख साहित्यकार हैं।इनके अतिरिक्त अन्य अनेक रचनाकारों तथा संस्थाओं ने भारतेंदु युग के विभिन्न क्रियाकलापों में योगदान किया। उ पाध्याय पंडित बदरीनारायण चौधरी प्रेमधन बदरीनारायण चौधरी व्यक्तित्व ➽ बदरीनारायण चौधरी का उपनाम प्रेमधन था। नाम से पूर्व उपाध्याय भी लगाते थे। पंडित शब्द का प्रयोग नाम से पूर्व प्रायः सभी हिंदी रचनाकार करते थे। ➽ इनका जन्म सन् 1855 ई. में हुआ था। 68 वर्ष की अवस्था में इनकी सन् 1823 ई. में मृत्यु हो गई। गद्य और पद्य दोनों विधाओं में ...

हिंदी साहित्य का इतिहास/आधुनिक काल प्रकरण २ आधुनिक गद्य साहित्य का प्रवर्तन प्रथम उत्थान

सामान्य परिचय भारतेंदु हरिश्चंद्र का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत ही चलता मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिंदी-साहित्य को भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया। उनके भाषा-संस्कार की महत्ता को सब लोगों ने मुक्त कंठ से स्वीकार किया और वे वर्तमान हिंदी गद्य के प्रवर्त्तक माने गए। मुंशी सदासुख की भाषा साधु होते हुए भी पंडिताऊपन लिए थी, लल्लूलाल में ब्रजभाषापन और सदल मिश्र में पूरबीपन था। राजा शिवप्रसाद का उर्दूपन शब्दों तक ही परिमित न था, वाक्यविन्यास तक में घुसा था। राजा लक्ष्मणसिंह की भाषा विशुद्ध और मधुर तो अवश्य थी, पर आगरे की बोल-चाल का पुट उसमे कम न था। भाषा का निखरा हुआ शिष्ट-सामान्य रूप भारतेंदु की कला के साथ ही प्रकट हुआ। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पद्य की ब्रज-भाषा का भी बहुत कुछ संस्कार किया। पुराने पड़े हुए शब्दों को हटाकर काव्य-भाषा में भी वे बहुत कुछ चलतापन और सफाई लाए। इससे भी बड़ा काम उन्होंने यह किया कि साहित्य को नवीन मार्ग दिखाया और उसे वे शिक्षित जनता के साहचर्य में लाए। नई शिक्षा के प्रभाव से [ उर्दू के कारण अब तक हिंदी-गद्य की भाषा का स्वरूप ही झंझट में पड़ा था। राजा शिवप्रसाद और राजा लक्ष्मणसिंह ने जो कुछ गद्य लिखा था वह एक प्रकार से प्रस्ताव के रूप में था। जब भारतेंदु अपनी मँजी हुई परिष्कृत भाषा सामने लाए तब हिंदी बोलनेवाली जनता को गद्य के लिये खड़ी बोली का प्रकृत साहित्यक रूप मिल गया और भाषा के स्वरूप का प्रश्न न रह गया। प्रस्ताव-काल समाप्त हुआ और भाषा का स्वरूप स्थिर हुआ। भाषा का स्वरूप स्थिर हो जाने पर साहित्य की रचना कुछ परिमाण में हो लेती है तभी शैलियों का भेद, लेखकों की व्...

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

Advertisement ⚫️ कविवर ‘अज्ञेय’ किस काव्यधारा के कवि हैं? उत्तर – प्रयोगवादी काव्यधारा 🔹‘अज्ञेय’ का पूरा नाम क्या है? उत्तर – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ 🔹 अज्ञेय का जन्म कब और कहां हुआ? उत्तर – अज्ञेय का जन्म 7 मार्च,1911 में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में हुआ | 🔹 अज्ञेय की मृत्यु कब हुई? उत्तर – 4 अप्रैल, 1987 को ▪️ कविवर अज्ञेय को ‘वात्स्यायन’ उपनाम किस साहित्यकार ने दिया था? उत्तर – जैनेंद्र कुमार ने 🔹 अज्ञेय ने किन दो पत्रिकाओं का संपादन किया? उत्तर – प्रतीक , दिनमान 🔹अज्ञेय ने किस दैनिक समाचार पत्र का संपादन किया? उत्तर – नवभारत टाइम्स 🔹 अमेरिका के किस विश्वविद्यालय में अज्ञेय भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्यापक रहे? उत्तर – कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय 🔹 किस रचना के लिए अज्ञेय को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ? उत्तर – अज्ञेय को ‘आंगन के पार द्वार’ के लिये 1964 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ | 🔹 किस रचना के लिए अज्ञेय को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ? उत्तर –‘कितनी नावों में कितनी बार’ को 1978 में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ | 🔹 तार-सप्तक का प्रकाशन किस वर्ष हुआ? उत्तर – 1943 में 🔹अज्ञेय के दो काव्य-संग्रहों के नाम बताइए | उत्तर – आंगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार 🔹 अज्ञेय के तीन उपन्यासों के नाम बताइए | उत्तर – शेखर एक जीवनी ( दो भाग ), नदी के द्वीप,अपने अपने अजनबी 🔹 अज्ञेय के दो कहानी-संग्रहों के नाम लिखिए | उत्तर – विपथगा, कोठरी की बात | 🔹 अज्ञेय के दो यात्रा वृतांतों के नाम लिखिए | उत्तर – अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली | 🔹 अज्ञेय हिंदी साहित्य में किस वाद के जनक माने जाते हैं? उत्तर – प्रयोगवाद | 🔹‘हमारा देश’ कविता के ...

नंदन और कादंबिनी बंद, बड़ी संख्या में पत्रकारों की छंटनी

कोरोना वायरस का असर दिन पर दिन अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों पर बढ़ रहा है. जीडीपी करीब माइनस 24% तक सिकुड़ गई है लेकिन इससे जुड़ी खबरें अखबारों और टीवी के प्राइम टाइम से गायब हैं. इनके लिए अब कोरोना महत्वपूर्ण नहीं रहा लेकिन इसी कोरोना वायरस का बहाना बनाकर कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का दौर जारी है. अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बिहार भागलपुर के एक पत्रकार कहते है, “एचआर और एडिटर ने हमें अचानक से बुलाया और बताया कि ऊपर से आर्डर आया है इसलिए आप लोग दो महीने की सैलरी लेकर अपना इस्तीफा दे दीजिए. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो कंपनी आप को बर्खास्त कर देगी.” लगभग यही बात दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान अखबार के डिजाइन टीम में काम करने वाले एक कर्मचारी ने भी कबूल की. उसने कहा, “मुझे और मेरे करीब 20 अन्य साथियों को एचआर ने बीते हफ्ते दफ्तर आने के लिए बोला. हम लोग लॉकडाउन के बाद से वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे. दफ्तर बुलाकर उन्होंने कहा कि आप लोग दो महीने की सैलरी लेकर अपना इस्तीफा सौंप दीजिए. वरना आपको कंपनी बर्खास्त कर देगी.” कर्मचारियों के पास कोई और विकल्प नहीं थी, सो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया. भागलपुर यूनिट के करीब नौ पत्रकारों ने भी हमसे इस बात की पुष्टि की. ये सभी पत्रकार रिपोर्टिंग और डेस्क पर काम कर रहे थे. इनमें से कुछ लोग कंपनी में 2 साल, कोई पांच तो कोई 10 साल से काम कर रहा था. 10-15 साल के पत्रकारिता अनुभव वाले सभी पत्रकारों ने एचआर की बात मानते हुए इस्तीफा दे दिया और अपनी दो महीने की सैलरी का इंतजार कर रहे है. हिंदुस्तान ने धनबाद और लखनऊ में भी कई पत्रकारों को ऐसे ही अचानक से बाहर का रास्ता दिखा दिया. लखनऊ ऑफिस से निकाले गए पत्रकार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बत...