आरुणि श्वेतकेतु संवाद

  1. उपनिषद क्या हैं
  2. श्वेतकेतु
  3. यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी सिलेबस 2023
  4. तत त्वं असि का अर्थ
  5. Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम् Hindi Translation – Rajasthan Board Passbook
  6. CLASS
  7. NCERT Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम्
  8. ऋषि उद्दालक और श्वेतकेतु का संवाद क्या है?/ Rishi Uddaalak aur Shevtaketu ka sanvaad kya hai?


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उपनिषद क्या हैं

विद्वानों ने उपनिषद(upanishad) शब्द की व्युत्पत्ति उप+ नि + षद के रूप में मानी है। इसका अर्थ है कि जो ज्ञान व्यवधान रहित होकर निकट आये , जो ज्ञान विशिष्ट तथा संपूर्ण हो तथा जो ज्ञान सच्चा हो वह निश्चित ही उपनिषद(upanishadकहलाता है। अर्थात् वह ज्ञान जो गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया गया हो। उपनिषदों की भाषा संस्कृतहै तथा ये गद्य – पद्य दोनों में हैं। इनकों वेदांत भी कहा गया है, क्योंकि ये वेदोंके अंतिम भाग हैं। उपनिषदों में आत्मा तथा अनात्मा के तत्वों का निरुपण किया गया है, जो वेद के मौलिक रहस्यों का प्रतिपादन करता है। इनमें ज्ञान से संबंधित समस्याओं पर विचार किया गया है। उपनिषद(upanishad) भारत के अनेक दार्शनिक , जिन्हें ऋषि कहा जाता है, के अनेक वर्षों के गंभीर चिंतन – मनन का परिणाम हैं। उपनिषदों(upanishad) से संबंधित महत्वपूर्ण बातें- • उपनिषद(upanishad) हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण श्रुति ग्रंथ हैं। • इनमें परमेश्वर, परमात्मा – ब्रह्मा तथा आत्मा के स्वभाव और संबंध का दार्शनिक तथा ज्ञानपूर्वक वर्णन काया गया है। • ब्रह्मा, जीव तथा जगत् का ज्ञान प्राप्त करना ही उपनिषदों (upanishad)की मूल शिक्षा है। • उपनिषद(upanishad) समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं, चाहे वो वेदांत हों या फिर सांख्य या • उपनिषदों(Upanishads) का दारा शिकोह ने • ईश्वर एवं आत्मा के संबंधों की बात उपनिषद में की गई है। परमज्ञान, पराविद्या, सर्वोच्च ज्ञान (इस लोक से बाहर की बात ) भी की गई है। • उपनिषद(upanishad) भारतीय दर्शन का मूल स्रोत हैं। • उपनिषद(upanishad) की रचना 1000ई. पू. – 300 ई.पू. के लगभग हुई। • शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है , उनको प्रमाणित माना गया है। • वेदांत का अर्थ है- वे...

श्वेतकेतु

श्वेतकेतु श्वेतकेतु इस नाम के कई व्यक्ति हुए हैं; ▪ महर्षि उद्दालक के पुत्र जो कहीं उत्तराखंड में रहते थे। इन्होंने एक बार ब्राह्मणों के साथ दुर्व्यवहार किया जिससे इनके पिता ने इसका परित्याग कर दिया। इन्होंने यह नियम प्रचारित किया कि पति को छोड़कर पर पुरुष के पास जानेवाली स्त्री तथा अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से संबंध कर लेनेवाला पुरुष दोनों ही भ्रूणहत्या के अपराधी माने जाएँ।...

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी सिलेबस 2023

यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी सिलेबस 2023 – Up Board Class 10th Hindi Syllabus 2023 | Up Board Class 10 Hindi Syllabus 2022-23 – इस पोस्ट में मैंने कक्षा 10 यूपी बोर्ड 2023 का सिलेबस (Up Board Class 10 Hindi Syllabus 2023) को बताया हैं | आप अपने यूपी बोर्ड कक्षा 10वीं सिलेबस 2022-23(Up Board Class 10 Hindi Syllabus 2022-23) को देख सकते हैं | UP board kaksha 10 Hindi syllabus 2023 | यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिंदी सिलेबस In this Post on UP Board Class 10th Hindi New Syllabus 2022-23. Class 10th 100% Syllabus based on UP Board New Pattern. In this you have been told about Up Board Class 10 Hindi new Syllabus 2023. You can check your UP Board Class 10th Hindi Syllabus. Based on the new pattern of UP Board 2023 Class 10 Hindi Syllabus, you can do your studies. UP Board class 10th Syllabus 2022-2023.UP Board When Releases Class 10th Hindi Syllabus 2023 You will be updated immediately. According New Education Policy 2022. Up board class 10th Hindi Syllabus 2022-23 pdf. Up Board Class 10th Hindi Syllabus 2023 – क्रम संख्या टॉपिक का नाम अंक 1. हिन्दी गद्य और पद्य का विकास 10 2. गद्य हेतु निर्धारित पाठ्य वस्तु से गद्यांश 6 3. काव्य हेतु निर्धारित पाठ्य वस्तु से पद्यांश 6 4. संस्कृत गद्यांश अथवा पद्यांश 4 5. लेखकों एवं कवियों के जीवन परिचय एवं रचनायें 6 6. संस्कृत का श्लोक 2 7. संस्कृत के निर्धारित पाठों पर आधारित दो अति लघुत्तरीय प्रश्न 2 8. काव्य सौन्दर्य के तत्व – रस, छंद, अलंकार 6 9. हिन्दी व्याकरण – उपसर्ग, प्रत्यय, तत्सम शब्द, पर्यायवाची 11 10. संस्कृत व्याकरण एवं अनुवाद 8 11. निबन्ध रच...

तत त्वं असि का अर्थ

छान्दोग्योपनिषद् की एक कथा है । बात उस समय की है जब धोम्य ऋषि के शिष्य आरुणी उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करके अपने घर आया । एक दिन पिता आरुणी उद्दालक ने श्वेतकेतु से पूछा – “ श्वेतकेतु ! अभी और वेदाभ्यास करने की इच्छा है या विवाह ?” पिता की यह बात सुनकर श्वेतकेतु बड़े दर्प से बोला – “ एक बार राजा जनक की सभा को जीत लूँ, उसके बाद जैसा आप उचित समझे ।” अपने पुत्र के मुंह से ऐसे अहंकार से युक्त वचन सुनकर ऋषि उद्दालक सहम से गये । वह बिना कुछ कहे वहाँ से उठकर चल दिए । श्वेतकेतु अपनी ही मस्ती में घर से निकल गया । तब श्वेतकेतु की माँ ने ऋषि उद्दालक का चेहरा पढ़ लिया और पूछा – “ आप ऐसे सहमे हुए से क्यों है ?” तब व्यथित होते हुए ऋषि उद्दालक बोले – “ श्वेतकेतु की राजा जनक की सभा को जीतने की लालसा ही बता रही है कि उसने वेदों के मर्म को नहीं समझा । वह केवल शाब्दिक शिक्षाओं का बोझा ढोकर आया है । वह जब घर आये तो उसे मेरे पास भेजना ।” इतना कहकर ऋषि उद्दालक अपने अध्ययन कक्ष की ओर चल दिए । जब श्वेतकेतु घर आया तो उसकी माँ ने उसे पिता के पास जाने के लिए कहा । पिता के पास जाकर श्वेतकेतु बोला – “ तात ! आपने मुझे बुलाया ?” ऋषि उद्दालक बोले – “ हाँ ! बेठो ! इतना कहकर वह अपना काम करने लगे ।” श्वेतकेतु से धैर्य नहीं रखा गया अतः वह बोला – “ तात ! आपने मुझे क्यों बुलाया ?” तब ऋषि उद्दालक बोले – “श्वेतकेतु ! मुझे नहीं लगता कि तुमने वेदों का मर्म समझा है ! क्या तुम उसे जानते हो, जिसे जानने से, जो सुना न गया हो, वो सुनाई देने लगता है । जिसका चिंतन नहीं किया गया हो, वो चिंतनीय बन जाता है । जो अज्ञात है, वो ज्ञात हो जाता है ।” तब श्वेतकेतु बोला – “ तात ! मेरे महान आचार्यों ने मुझे इस...

Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम् Hindi Translation – Rajasthan Board Passbook

Night Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम् पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ छान्दोग्योपनिषद् के छठे अध्याय के पञ्चम खण्ड पर आधारित है। इसमें मन, प्राण तथा वाक् (वाणी) के संदर्भ में रोचक विवरण प्रस्तुत किया गया है। उपनिषद् के गूढ़ प्रसंग को बोधगम्य बनाने के उद्देश्य से इसे आरुणि एवं श्वेतकेतु के संवादरूप में प्रस्तुत किया गया है। आर्ष-परम्परा में ज्ञान-प्राप्ति के तीन उपाय बताए गए हैं जिनमें परिप्रश्न भी एक है। यहाँ गुरुसेवापरायण शिष्य वाणी, मन तथा प्राण के विषय में प्रश्न पूछता है और आचार्य उन प्रश्नों के समुचित उत्तर प्रदान कर उसकी जिज्ञासा का समाधान करता है। पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या – • श्वेतकेतुः – भगवन्! श्वेतकेतुरहं वन्दे। आरुणिः – वत्स! चिरञ्जीव। श्वेतकेतुः – भगवन्! किञ्चित्प्रष्टुमिच्छामि। आरुणिः – वत्स! किमद्य त्वया प्रष्टव्यमस्ति? श्वेतकेतुः – भगवन्! प्रष्टुमिच्छामि किमिदं मनः? आरुणिः – वत्स! अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठः तन्मनः। श्वेतकेतुः – कश्च प्राणः? आरुणिः – पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः स प्राणः। श्वेतकेतुः – भगवन्! केयं वाक्? आरुणिः – वत्स! अशितस्य तेजसा योऽणिष्ठः सा वाक्। सौम्य! मनः अन्नमयं, प्राणः आपोमयः वाक् च तेजोमयी भवति इत्यप्यवधार्यम्। RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम् कठिन-शब्दार्थ : वन्दे = प्रणाम करता हूँ। प्रष्टुम् = पूछने के लिए। प्रष्टव्यम् = पूछने योग्य। अशितस्य = खाये हुए का। अणिष्ठः = अत्यन्त लघु। पीतानाम् = पीये हुए का। अपाम् = जल का। वाक् = वाणी। अन्नमयं = अन्न से निर्मित। आपोमयः = जल में परिणत। तेजोमयी = अग्नि का परिणामभूत। इत्यप्यवधार्यम् = ऐसा भी समझने योग्य। RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit...

CLASS

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • द्वादशः पाठः वाङ्मनःप्राणस्वरूपम् ( हिन्दी अनुवाद ) प्रस्तुतोऽयं पाठः “ छान्दोग्योपनिषदः” षष्ठाध्यायस्य पञ्चमखण्डात् समुद्धृतोऽस्ति। पाठ्यांशे मनोविषयकं प्राणविषयकं वाग्विषयकञ्च रोचकं तथ्यं प्रकाशितम् अस्ति। अत्र उपनिषदि वर्णितगुह्यतत्त्वानां सारल्येन अवबोधार्थम् आरुणि- श्वेतकेतोः संवादमाध्यमेन वाङ्मनः प्राणानां परिचर्चा कृतास्ति। ऋषिकुलपरम्परायां ज्ञानप्राप्तेः त्रीणि साधनानि सन्ति।तेषु परिप्रश्नोऽपि एकम् अन्यतमं साधनम् अस्ति। अत्र गुरुसेवनपटुः शिष्यः वाङ्मनः प्राणविषयकान् प्रश्नान् पृच्छति आचार्यश्च तेषां प्रश्नानां समाधानं करोति। हिन्दी अनुवाद – प्रस्तुत यह पाठ “छान्दोग्योपनिषदः” के छठे अध्याय के पञ्चमखण्ड पर आधारित हैं। पाठ के अंश में मन विषयक, प्राण विषयक और वाणी विषयक रोचक तथ्य प्रकाशित किये गए है। यहाँ उपनिषद में वर्णित गूढ़ रहस्य को बोधगम्य बनाने के लिए आरुणि श्वेतकेतु को संवाद के माध्यम से वाणी, मन और प्राण की परिचर्चा करते है। ऋषि कुल की परंपरा में ज्ञान प्राप्ति के तीन साधन बताये गये हैं। उनमे परिप्रश्न भी एक अन्य साधन हैं। यहाँ गुरु सेवा में परायण शिष्य वाणी, मन और प्राण विषयक प्रश्नों को पूछता है और आचार्य उसके प्रश्नों का समाधान करते है। 1. श्वेतकेतुः – भगवन्! श्वेतकेतुरहं वन्दे। आरुणिः – वत्स! चिरञ्जीव। श्वेतकेतुः – भगवन्! किञ्चित्प्रष्टुमिच्छामि। आरुणिः – वत्स! किमद्य त्वया प्रष्टव्यमस्ति ? श्वेतकेतुः – भगवन्! ज्ञातुम् इच्छामि यत् किमिदं मनः ? आरुणिः – वत्स! अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठः तन्मनः। हिन्दी अनुवाद – श्वेतकेतु – हे भगवन्! मैं श्वेतकेतु ( आपको ) प्रणाम करता हूँ। आरुणि – हे पुत्र! दीर्घायु हो। श्वेतकेत...

NCERT Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम्

We have given detailed Shemushi Sanskrit Class 9 Solutions Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम् अभ्यासः प्रश्न 1. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत – (क) श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं कस्य स्वरूपस्य विषये पृच्छति? उत्तर: श्वेतकेतु सर्वप्रथमं आरुणिं मनसः स्वरूपस्य विषये पृच्छति। (ख) आरुणिः प्राणस्वरूपं कथं निरूपयति? उत्तर: आरुणिः निरूपयतियत् “आपोमयो भवति प्राणाः।” (ग) मानवानां चेतांसि कीदृशानि भवन्ति? उत्तर: मानवानां चेतांसि अशितान्नामुरूपाणि भवन्ति। (घ) सर्पिः किं भवति? उत्तर: मथ्यमानस्य दनः योऽणुतमः यदुवं आयाति तत् सर्पिः भवति।। (ङ) आरुणे: मतानसारं मनः कीदशं भवति? उत्तर: आरुणे: मतानुसारं मनः अन्नमय भवति। प्रश्न 2. (क) ‘अ’ स्तम्भस्य पदानि ‘ब’ स्तम्भेन दत्तैः पदैः सह यथायोग्यं योजयत – उत्तर: प्रश्न 2. (ख) अधोलिखितानां पदानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत – • गरिष्ठः –…………….. • अधः –…………….. • एकवारम् –…………….. • अनवधीतम् –…………….. • किञ्चित् –…………….. उत्तर: • गरिष्ठः – अणिष्ठः • अधः – ऊर्ध्वः • एकवारम् – भूयोऽपि • अनवधीतम् – अधीतम् • किञ्चित् – भूयः प्रश्न 3. उदाहरणमनुसृत्य निम्नलिखितेषु क्रियापदेषु ‘तुमुन’ प्रत्ययं योजयित्वा पदनिर्माणं कुरुत – यथा – प्रच्छ् + तुमुन् – प्रष्टुम् (क) श्रु + तुमुन् –…………….. (ख) वन्द् + तुमुन् –…………….. (ग) पठ् + तुमुन् –…………….. (घ) कृ + तुमुन् –…………….. (ङ) वि + ज्ञा . तुमुन् –…………….. (च) वि + आ + ख्या + तुमुन् –…………….. उत्तर: (क) श्रु + तुमुन् – श्रोतुम् (ख) वन्द् + तुमुन् – वन्दितुम् (ग) पठ् + तुमुन् – पठितुम् (घ) कृ+तुमुन् – कर्तुम् (ङ) वि + ज्ञा + तुमुन् – विज्ञातुम् (च) वि + आ + ख्या + तुमुन् – व्याख्यातुम् प्रश्न 4. निर्देशानुसार रिक...

ऋषि उद्दालक और श्वेतकेतु का संवाद क्या है?/ Rishi Uddaalak aur Shevtaketu ka sanvaad kya hai?

जो विद्वान इस प्रकार इस उद्गीथरूप अक्षर की उपासना करता है, वह सम्पूर्ण कामनाओं की प्राप्ति कराने वाला होता है छान्दोग्योपनिषद् की एक कथा है। बात उस समय की है जब धोम्य ऋषि के शिष्य आरुणी उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करके अपने घर आया। एक दिन पिता आरुणी उद्दालक ने श्वेतकेतु से पूछा–“ श्वेतकेतु ! अभी और वेदाभ्यास करने की इच्छा है या विवाह ?” पिता की यह बात सुनकर श्वेतकेतु बड़े दर्प से बोला–“ एक बार राजा जनक की सभा को जीत लूँ, उसके बाद जैसा आप उचित समझे।” अपने पुत्र के मुंह से ऐसे अहंकार से युक्त वचन सुनकर ऋषि उद्दालक सहम से गये। वह बिना कुछ कहे वहाँ से उठकर चल दिए । श्वेतकेतु अपनी ही मस्ती में घर से निकल गया। तब श्वेतकेतु की माँ ने ऋषि उद्दालक का चेहरा पढ़ लिया और पूछा–“ आप ऐसे सहमे हुए से क्यों है ?” तब व्यथित होते हुए ऋषि उद्दालक बोले–“ श्वेतकेतु की राजा जनक की सभा को जीतने की लालसा ही बता रही है कि उसने वेदों के मर्म को नहीं समझा। वह केवल शाब्दिक शिक्षाओं का बोझा ढोकर आया है। वह जब घर आये तो उसे मेरे पास भेजना।” इतना कहकर ऋषि उद्दालक अपने अध्ययन कक्ष की ओर चल दिए । जब श्वेतकेतु घर आया तो उसकी माँ ने उसे पिता के पास जाने के लिए कहा। पिता के पास जाकर श्वेतकेतु बोला–“ तात ! आपने मुझे बुलाया ?” ऋषि उद्दालक बोले–“ हाँ ! बेठो ! इतना कहकर वह अपना काम करने लगे।” श्वेतकेतु से धैर्य नहीं रखा गया अतः वह बोला–“ तात ! आपने मुझे क्यों बुलाया ?” तब ऋषि उद्दालक बोले–“श्वेतकेतु ! मुझे नहीं लगता कि तुमने वेदों का मर्म समझा है ! क्या तुम उसे जानते हो, जिसे जानने से, जो सुना न गया हो, वो सुनाई देने लगता है। जिसका चिंतन नहीं किया गया हो, वो चिंतनीय बन जाता है। जो अज्ञात है...