आर्यभट्ट

  1. अध्याय
  2. Aryabhata
  3. आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी
  4. आचार्य आर्यभट्ट: भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री
  5. आर्यभटः
  6. Aryabhatta Biography
  7. आर्यभट्ट की जीवनी
  8. 'गणितज्ञ' आर्यभट की जीवनी
  9. आर्यभट्ट की जीवनी
  10. आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी


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अध्याय

आर्यभट्ट (ई.476-550) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभट्टीय नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इस ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्म-स्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। आर्यभट्ट का जन्म-स्थल कुसुमपुर दक्षिण भारत में था। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का आदर तत्कालीन गुप्त सम्राट की राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने पाटलिपुत्र के समीप कुसुमपुर में रहकर अपनी रचनाएँ पूर्ण की। गुप्तकाल में मगध के नालन्दा विश्वविद्यालय में खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए अलग विभाग था। आर्यभट्ट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति थे। आर्यभट्ट का भारत और विश्व के ज्योतिष विज्ञान पर बहुत प्रभाव पड़ा। केरल की ज्योतिष परम्परा पर आर्यभट्ट का विशेष प्रभाव रहा। वे भारतीय गणितज्ञों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्होंने आर्यभट्टीय नामक ग्रंथ में 120 आर्याछंदों में ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांत और उससे सम्बन्धित गणित को सूत्ररूप में लिखा। उन्होंने एक ओर तो गणित में ‘पाई’ के मान को अपने पूर्ववर्ती आर्किमिडीज़ से भी अधिक सही निरूपित किया तो दूसरी ओर खगोलविज्ञान में पहली बार उदाहरण के साथ घोषित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। आर्यभट्ट ने ज्योतिषशास्त्र के उन्नत साधनों के बिना महत्वपूर्ण खोजें कीं। कोपरनिकस (ई.1473 से 1543) ने जिस सिद्धांत की खोज की थी उसकी खोज आर्यभट्ट एक हजार वर्ष पहले कर चुके थे। गोलपाद में आर्यभट्ट ने लिखा है नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है, तब वह समझता है कि अचर वृक्ष, पाषाण, पर्वत आदि पदार्थ उल्टी गति से जा रहे हैं। ...

Aryabhata

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आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी

आर्यभट्ट (Aryabhatta), को महान गणितज्ञ, ज्योतिष शास्त्री, खगोल शास्त्री के रूप में प्राचीन भारतीय इतिहास में जाना जाता है। यह भारतीय इतिहास में अपनी एक अलग पहचान एवं विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्होंने भारतीय गणित के साथ विश्व को ऐसा गणितीय सिद्धांत दिया, जिसकी परिकल्पना तत्कालीन समय में किसी अन्य देश के पास नहीं थी। आर्यभट्ट ने दशमी पद्धति के प्रयोग का सबसे प्राचीन भारतीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी इस अंकन पद्धति, दशामिक पद्धति और शुन्य का प्रयोग पूरे विश्व को इन्होंने ही सिखाया है। आज के हमारे इस लेख में हम आर्यभट्ट के जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे। Aryabhatta biography Hindi Table of Contents • • आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी – Aryabhatta biography in Hindi आर्यभट्ट (Aryabhatta) का जन्म 476 ईसवी पूर्व उनकी उनकी इस पुस्तक को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है। जिसमें अलग-अलग जानकारियां के आधार पर विभक्त किया गया है। इसमें गीतिकापद, गणितपद, कालक्रियापद और गोलपाद, इन चार भागों में बांटा गया है। आर्यभट्ट की इस पुस्तक में आपको ज्योतिषी और गणित संबंधी कई सारी जानकारियां मिलती है। इस पुस्तक में उनके द्वारा अपनाई गई अंकन पद्धति को लाखों लोगों ने अपनाया और पश्चिमी देशों तक इनका प्रचार किया गया। अंग्रेजी में भारतीय अंक माला को अरबी अंक (Arabic numerals) कहते हैं, लेकिन वही अरब लोग इसे हिंन्दसा कहते हैं। पश्चिम में अंक माला का प्रचार होने से सदियों पहले से भारत में इसका प्रयोग होता रहा है। दसमिक का पद्धति का प्रयोग आर्यभट्ट ने (376-500) ईसा पूर्व के आसपास किया था। जिसका प्रयोग बाद में अरबी लोगों ने भारत से सीखा। भारतीय लोगों ने शून्य का प्रयोग सर्वप्रथम किया था। अरब वासियों ...

आचार्य आर्यभट्ट: भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री

आचार्य आर्यभट्ट प्राचीन समय के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे, खगोलीय विज्ञान और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट आज भी वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा हैं. जब यूरोप यह मानता था कि पृथ्वी चपटी है और समुद्र के उस पार कुछ नहीं है तब आर्यभट ने बता दिया था कि पृथ्वी गोल है, और यही नहीं जब लोग मानते थे कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है तब आर्यभट्ट ने बता दिया था कि पृथ्वी एक निश्चित दूरी को बनाए रखते हुए सूर्य का चक्कर काटती है। आज इन्हीं के जैसे वैज्ञानिकों के कारण सम्पूर्ण विश्व विकास के पहिये पर दौड़ रहा है । इनकी उँगली एकमात्र विकास, शिक्षा और ब्रह्मत्व की ओर इंगित करती है । बस इन्हें कोई इसलिए नहीं याद करता क्योंकि इनसे “वोटबैंक” नहीं मिलता, और यह यूरोप से नहीं हैं। आचार्य आर्यभट्ट प्राचीन समय के महान गणितज्ञ व खगोलशास्त्री थे। बीजगणित जिसको अँग्रेजी में एलजेब्रा बोलते हैं उसका प्रथम बार उपयोग आचार्य आर्यभट्ट ने ही किया था और अपनी प्रसिद्ध रचना “ आचार्य आर्यभट्ट द्वारा पाई की खोज। पृथ्वी गोल है और अपने धुरी में घूमती है जिसके कारण दिन व रात होता है,ये सिद्धांत आचार्य आर्यभट्ट ने लगभग 1500 वर्ष पहले प्रतिपादित कर दिया था। आचार्य आर्यभट्ट ने ये भी बताया था कि पृथ्वी गोल है औऱ इसकी परिधि 24853 मिल है। आचार्य आर्यभट्ट ने ये भी बताया था कि चंद्रमा सूर्य की रोशनी से प्रकाशित होता है। आचार्य आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया था कि 1 वर्ष में 366 नही बल्कि 365.2951 दिन होते हैं। विदेशों में आचार्य आर्यभट्ट के प्रति सम्मान

आर्यभटः

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Aryabhatta Biography

भारत में खगोलशास्त्र के सूत्र हमें ऋग्वेद में देखने को मिलते हैं। वैदिककाल में भी कई खगोलशास्त्री हुए हैं जिनके ज्ञान को ही बाद के वैज्ञानिकों ने आगे बढ़ाया। आर्यभट्ट के अलावा, भास्कराचार्य (जन्म- 1114 ई., मृत्यु- 1179 ई.), बौद्धयन (800 ईसापूर्व), ब्रह्मगुप्त (ईस्वी सन् 598 में जन्म और 668 में मृत्यु) और भास्कराचार्य प्रथम (600–680 ईस्वीं) भी महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। आर्यभट्ट के नाम पर ही अंतरिक्ष में छोड़े गए एक भारतीय उपग्रह का नाम भी है। महान गणितज्ञ और खगोलविद आर्यभट्ट के बारे में जानिए सबकुछ। आर्यभट्ट का जन्म ईस्वी सन् 476 में कुसुमपुर (पटना) में हुआ था। यह सम्राट विक्रमादित्य द्वितीय के समय हुआ थे। इनके शिष्य प्रसिद्ध खगोलविद वराह मिहिर थे। आर्यभट्ट ने नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर मात्र 23 वर्ष की आयु में 'आर्यभट्टीय' नामक एक ग्रंथ लिखा था। उनके इस ग्रंथ की प्रसिद्ध और स्वीकृति के चलते राजा बुद्धगुप्त ने उनको नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया था। आर्यभट्ट के बाद लगभग 875 ईस्वी में आर्यभट द्वितीय हुए जिन्होंने ज्योतिष पर 'महासिद्धांत' नामक ग्रंथ लिखा था। आर्यभट्ट द्वितीय गणित और ज्योतिष दोनों विषयों के आचार्य थे। इन्हें 'लघु आर्यभट्ट' भी कहा जाता था। बीजगणित में भी सबसे पुराना ग्रंथ आर्यभट्ट का है। आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया। उन्होंने सबसे पहले 'पाई' (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले 'साइन' (SINE) के 'कोष्टक' दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्धति का आविष्कार ...

आर्यभट्ट की जीवनी

1.5 निधन आर्यभट्ट की जीवनी – Aryabhata Biography Hindi जन्म आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसवी में महाराष्ट्र के अशमक नामक स्थान पर हुआ था, लेकिन उनके जन्म स्थान पर कोई ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है. कुछ लोगों का मानना है कि बिहार के पटना जिसको की पुराने समय में पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था, वहां से समीप कुसुमपुर नामक स्थान पर उनका जन्म माना जाता है. शिक्षा आर्यभट्ट ने अपनी शिक्षा कुसुमपुर के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में कि जहां जैनों का निर्णायक प्रभाव था. रचनाये आर्यभट्ट के द्वारा कई रचनाएं की गई जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं. • अंकगणित • बीजगणित • त्रिकोणमिति • सतत भिन्न • द्विघात समीकरण • ज्याओं तालिका • घात श्रृंखलाओं का योग • गीतिका पद • गणित पद • काल क्रियापद • गोल पद योगदान • आर्यभट्ट द्वारा गणित में अनेक योगदान दिए गए जिनमें से पाई की खोज, शून्य की खोज और त्रिकोणमिति का विवेचन भी शामिल है. • खगोल शास्त्री के रूप में उन्होंने सौरमंडल की गतिशीलता, ग्रहण, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, कक्षाओं का वास्तविक समय, इत्यादि शामिल है. निधन भट्ट का निधन 74 वर्ष की आयु में लगभग 550 ईसवी में हुआ था.

'गणितज्ञ' आर्यभट की जीवनी

Aryabhatta / आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। विज्ञान और गणित के क्षेत्र में उनके कार्य आज भी वैज्ञानिकों को प्रेरणा देते हैं। आर्यभट्‍ट उन पहले व्यक्तियों में से थे जिन्होंने बीजगणित (एलजेबरा) का प्रयोग किया। • • • • आर्यभट का परिचय – Aryabhatta Biography in Hindi पूरा नाम आर्यभट (Aryabhatta) जन्म दिनांक 13 अप्रैल, सन 476 ई. जन्म भूमि केरल मृत्यु 550 ई. कर्म-क्षेत्र ज्योतिषविद् और गणितज्ञ कर्म भूमि भारत विद्यालय नालन्दा विश्वविद्यालय मुख्य रचनाएँ ‘आर्यभटीय’, ‘आर्यभट सिद्धांत’ विश्व गणित के इतिहास में भी आर्यभट का नाम सुप्रसिद्ध है। शून्य (0) की महान खोज ने आर्यभट का नाम इतिहास में अमर कर दिया। जिसके बिना गणित की कल्पना करना भी मुश्किल है। आर्यभट ने ही सबसे पहले स्थानीय मान पद्धति की व्याख्या की। खगोल और गणितशास्त्र, इन दोनों क्षेत्र में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के स्मरणार्थ भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट रखा गया था। प्रारंभिक जीवन – Early Life आर्यभट्ट के जन्मस्थान के बारे में विवाद है। मतानुसार आर्यभट्ट का जन्म 13 अप्रैल, सन 476 में केरल में हुआ था। कुछ स्रोतों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अश्मक प्रदेश में हुआ था और कुछ तो मानते हैं की आर्यभट्ट जन्मस्थान कुसुमपुर (आधुनिक पटना)। इसी के आधार पर प्रसिद्ध अर्न्तराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को ने आर्यभट्ट की 1500वीं जयंती मनाई थी। वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में आए थे। यह विश्वविद्यालय उस समय शिक्षा का एक बहुत बड़ा केंद्र था। पढ़ाई के दौरान ही 23 वर्ष की आयु में उन्होंने एक पु...

आर्यभट्ट की जीवनी

1.5 निधन आर्यभट्ट की जीवनी – Aryabhata Biography Hindi जन्म आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसवी में महाराष्ट्र के अशमक नामक स्थान पर हुआ था, लेकिन उनके जन्म स्थान पर कोई ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है. कुछ लोगों का मानना है कि बिहार के पटना जिसको की पुराने समय में पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था, वहां से समीप कुसुमपुर नामक स्थान पर उनका जन्म माना जाता है. शिक्षा आर्यभट्ट ने अपनी शिक्षा कुसुमपुर के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में कि जहां जैनों का निर्णायक प्रभाव था. रचनाये आर्यभट्ट के द्वारा कई रचनाएं की गई जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं. • अंकगणित • बीजगणित • त्रिकोणमिति • सतत भिन्न • द्विघात समीकरण • ज्याओं तालिका • घात श्रृंखलाओं का योग • गीतिका पद • गणित पद • काल क्रियापद • गोल पद योगदान • आर्यभट्ट द्वारा गणित में अनेक योगदान दिए गए जिनमें से पाई की खोज, शून्य की खोज और त्रिकोणमिति का विवेचन भी शामिल है. • खगोल शास्त्री के रूप में उन्होंने सौरमंडल की गतिशीलता, ग्रहण, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, कक्षाओं का वास्तविक समय, इत्यादि शामिल है. निधन भट्ट का निधन 74 वर्ष की आयु में लगभग 550 ईसवी में हुआ था.

आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी

आर्यभट्ट (Aryabhatta), को महान गणितज्ञ, ज्योतिष शास्त्री, खगोल शास्त्री के रूप में प्राचीन भारतीय इतिहास में जाना जाता है। यह भारतीय इतिहास में अपनी एक अलग पहचान एवं विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्होंने भारतीय गणित के साथ विश्व को ऐसा गणितीय सिद्धांत दिया, जिसकी परिकल्पना तत्कालीन समय में किसी अन्य देश के पास नहीं थी। आर्यभट्ट ने दशमी पद्धति के प्रयोग का सबसे प्राचीन भारतीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी इस अंकन पद्धति, दशामिक पद्धति और शुन्य का प्रयोग पूरे विश्व को इन्होंने ही सिखाया है। आज के हमारे इस लेख में हम आर्यभट्ट के जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे। Aryabhatta biography Hindi Table of Contents • • आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी – Aryabhatta biography in Hindi आर्यभट्ट (Aryabhatta) का जन्म 476 ईसवी पूर्व उनकी उनकी इस पुस्तक को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है। जिसमें अलग-अलग जानकारियां के आधार पर विभक्त किया गया है। इसमें गीतिकापद, गणितपद, कालक्रियापद और गोलपाद, इन चार भागों में बांटा गया है। आर्यभट्ट की इस पुस्तक में आपको ज्योतिषी और गणित संबंधी कई सारी जानकारियां मिलती है। इस पुस्तक में उनके द्वारा अपनाई गई अंकन पद्धति को लाखों लोगों ने अपनाया और पश्चिमी देशों तक इनका प्रचार किया गया। अंग्रेजी में भारतीय अंक माला को अरबी अंक (Arabic numerals) कहते हैं, लेकिन वही अरब लोग इसे हिंन्दसा कहते हैं। पश्चिम में अंक माला का प्रचार होने से सदियों पहले से भारत में इसका प्रयोग होता रहा है। दसमिक का पद्धति का प्रयोग आर्यभट्ट ने (376-500) ईसा पूर्व के आसपास किया था। जिसका प्रयोग बाद में अरबी लोगों ने भारत से सीखा। भारतीय लोगों ने शून्य का प्रयोग सर्वप्रथम किया था। अरब वासियों ...