आर्यभट्ट का जीवन परिचय और गणित में योगदान pdf

  1. महान गणितज्ञ आर्यभट्ट About Aryabhatta In Hindi
  2. आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi
  3. गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय
  4. आर्यभट्ट की उपलब्धियाँ एवं जीवन परिचय
  5. आर्यभट्ट का जीवन परिचय और विचार
  6. आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi
  7. महान गणितज्ञ आर्यभट्ट About Aryabhatta In Hindi
  8. गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय
  9. आर्यभट्ट की उपलब्धियाँ एवं जीवन परिचय
  10. आर्यभट्ट का जीवन परिचय और विचार


Download: आर्यभट्ट का जीवन परिचय और गणित में योगदान pdf
Size: 44.12 MB

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट About Aryabhatta In Hindi

भारत के इतिहास में जिसे ‘गुप्त काल’ या ‘सुवर्ण युग’ के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। प्राचीन काल में भारतीय गणित और ज्योतिष शास्त्र अत्यंत उन्नत था। गुप्त काल में ही महान गणितज्ञ आर्यभट्ट का जन्म माना जाता है। भारत को विश्व में चमकाने वाले अनमोल नक्षत्र आर्यभट्ट ने वैज्ञानिक उन्नति में योगदान ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में चार चाँद लगाया। ‘ आर्यभट्टीय’ नामक ग्रंथ की रचना करके, उन्होंने भारत को विश्व में गौरवान्वित किया। आर्यभट्ट द्वारा की गई जीरो की खोज ने समस्त विश्व को नई दिशा दी। माना जाता है कि आर्यभट्ट बिहार राज्य की राजधानी पटना जो उस समय पाटलीपुत्र के नाम से मशहूर थी, के निकट कुसुमपुर के रहने वाले थे। माता-पिता का नाम तथा वंश परिचय के बारे में प्रमाणित जानकारी नहीं मिलती। अनुमानो के आधार पर उनकी जन्म तिथि 13 अप्रैल 476 और मृत्यु 550 में मानी जाती है। इसी के आधार पर प्रसिद्ध अर्न्तराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को ने आर्यभट्ट की 1500वीं जयंती मनाई थी। उस समय मगध विश्वविद्यालय विद्या का केन्द्र था। यहाँ पर खगोल शास्त्र के अध्ययन के लिये एक अलग विभाग था और बौद्ध धर्म विख्यात था। उस दौरान जैन धर्म भी अपने चरम पर था। लेकिन आर्यभट्ट के श्लोकों से लगता है कि वे इन धर्मो का अनुसरण नहीं करते थे । प्राचीन कृतियों के रचनाकारों की तरह वे अपने श्लोकों के प्रारंभ में इष्ट देव की स्तुति करते और माना जाता है कि ब्रह्मा के वरदान से ही उन्होंने सम्पूर्ण ज्ञान आदि प्राप्त किया था। हालांकि भारत में खगोल शास्त्र का जन्म आर्यभट्ट से पहले सदियों पूर्व हो चुका था। यहाँ पर पंचांग के नियम नक्षत्र विभाजन आदि ईसा के जन्म से 13-14 शताब्दी प...

आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi

आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi : नमस्कार दोस्तों आज हम प्राचीन भारत के एक महान गणित के विद्वान् आर्यभट्ट पर निबंध पढ़ेगे. इस निबंध में हम आर्यभट्ट के जीवन, गणित और खगोलशास्त्र में इनके योगदान एवं इनकी रचनाओं के बारे में सरल तरीके से समझने का प्रयास करेगें. Essay On Aryabhatta in Hindi आर्यभट्ट पर निबंध (400 शब्द) आर्यभट्ट पर निबंध (Short Essay On Aryabhatta In Hindi) पश्चिमी दुनिया भारत को सांप सपेरों के देश के रूप में मानती हैं, यह उनके अज्ञान और पूर्वाग्रह से ग्रसित सोच का प्रदर्शित ही करता हैं. सच्चाई यह है जब शेष मानव सभ्यताएं पाषाण युगीन जीवन जी रही थी. उस समय भारत में चिकित्सा, योग, खगोल, गणित आदि पर कई ग्रंथ लिखे जा चुके थे. इन क्षेत्रों की कई खोजे और परिकल्पनाओं पर कार्य चल रहा था. करीब 1700 वर्ष पूर्व जन्में आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार कर दुनियां को काउंटिंग सिखाई थी. भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री के रूप में इन्होने कई अवधारणाओं को पहली बार परिभाषित कर उनका सही मान हमें दिया था, जिनमें त्रिकोणमिति का फलन, स्थानीय मान, सर्वसमिका, पाई आदि. आर्यभट्ट जी का जन्म 474 ईसवीं के आसपास हुआ ऐसा माना जाता हैं, इनका जन्म स्थान वर्तमान बिहार के पटना के पास स्थित कुसुम्पुरा में बताया जाता हैं. Telegram Group इन्होने संख्या पद्धति में स्थानीय मान की अवधारणा और शून्य की व्यवस्था देकर आज के गणित में बड़ा योगदान दिया था. अगर खगोल में उनके योगदान की बात करें तो आज से हजारों वर्ष पूर्व न तो यंत्र थे न उपग्रह ऐसे समय में अपनी मानसिक शक्ति का उपयोग करते हुए गणितीय बुद्धि के दम पर ग्रहों की स्थिति, गति, आकार और उनके परिक्रमण की सम्पूर्ण सटीक अवधारणा अपने ग्रंथ में दी. आर...

गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय

जन्म:476 ई. कुसुमपुर पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार) मृत्यु: 550 ई. कार्य: गणितज्ञ, खगोलशास्त्री आर्यभट्ट (Aryabhata) का जन्म 476 ई. में बिहार के मगध, (आधुनिक पटना) के पाटलिपुत्र में हुआ था। वह भारतीय गणितज्ञ और भारतीय खगोल विज्ञान के शास्त्रीय युग के महान गणितज्ञ-खगोलशास्त्री थे। उन्होंने हिंदू और बौद्ध परंपरा दोनों का अध्ययन किया। आर्यभट्ट अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में आए थे। उस समय नालंदा शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था। जब उनकी पुस्तक 'आर्यभटीय' (गणित की पुस्तक) को एक उत्कृष्ट रचना मान लिया गया तो तत्कालीन गुप्त शासक बुद्धगुप्त ने उन्हें विश्वविद्यालय का प्रधान बना दिया। आर्यभट्ट ने बिहार के तारेगना में सूर्य मंदिर में एक वेधशाला भी स्थापित की। आर्यभट्ट के कार्यों की जानकारी उनके द्वारा रचित ग्रंथों से मिलती है। जिसके अनुसार आर्यभट्ट प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि पृथ्वी गोल है और वह अपनी धुरी पर घूमती है जिससे दिन और रात उत्पन्न होते हैं। उन्होंने घोषणा की कि चाँद पर अंधेरा है और वह सूर्य के प्रकाश के कारण चमकता है। सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के बारे में उनका विश्वास था कि यह राहु के सूर्य या चंद्र को हड़पने से नहीं होता जैसा कि हिंदू पौराणिक कथाओं में आता है, बल्कि पृथ्वी और चाँद की छायाओं के कारण होता है। वह ब्रह्मांड की भूकेंद्रीय अवधारणा में विश्वास करते थे कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है। ग्रहों की अनिश्चित या अनियमित गति को समझाने के लिए उन्होंने यूनानी राजा टॉलमी की तरह अधिचक्र (ऐपी साइकल) का उपयोग किया। लेकिन इनका तरीका टॉलमी से अधिक अच्छा था। गणित में भी आर्यभट्ट का योगदान समान महत्व रखता है। उन्होंने गणित के क्षेत्र में महान आर्...

आर्यभट्ट की उपलब्धियाँ एवं जीवन परिचय

By: RF competition Copy Share (221) आर्यभट्ट की उपलब्धियाँ एवं जीवन परिचय | Aryabhatta's Achievements and Biography Dec 03, 2021 01:12PM 6940 आर्यभट्ट का जीवन परिचय (Biography Of Aryabhatta) आर्यभट्ट भारत के महान गणितज्ञों में से एक थे। उनका जन्म 476 ईस्वी में पाटलिपुत्र के कुसुमपुर में हुआ था। पाटलिपुत्र आधुनिक पटना (बिहार की राजधानी) का प्राचीन नाम है। एक अन्य मान्यता के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। आर्यभट्ट की प्रारंभिक शिक्षा नालंदा विश्वविद्यालय में हुई थी। आर्यभट्ट के समय भारतवर्ष में गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त 'विक्रमादित्य' का शासन था। उनके शासनकाल के दौरान भारत ने गणित, खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, साहित्य, कला आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। आर्यभट्ट को गणित और खगोलशास्त्र के अध्ययन में बचपन से ही गहरी रुचि थी। आगे चलकर उन्होंने गणित और खगोलशास्त्र से संबंधित बहुत से ग्रंथों की रचनाएँ की। आर्यभट्ट के गणित और खगोलशास्त्र में योगदान को देखकर गुप्त शासक बुधगुप्त ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति बना दिया। नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। यहाँ पर गणित, खगोलशास्त्र, ज्योतिष विज्ञान, साहित्य, कला, भौतिक शास्त्र आदि विषयों को पढ़ाया जाता था। यहाँ पर विदेशों से भी विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे। Aryabhata was one of the great mathematicians of India. He was born in 476 AD at Kusumpur in Pataliputra. Pataliputra is the ancient name of modern Patna (the capital of Bihar). According to another belief, Aryabhatta was born in Maharashtra. Aryabhatta had his early education at Nalanda University. At the time of A...

आर्यभट्ट का जीवन परिचय और विचार

आर्यभट ( जन्म 476 - मृत्यु 550) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। आर्यभट ने अपनी खगोलीय खोजों के बाद सार्वजनिक घोषणा की कि पृथ्वी 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनट और 30 सेकंड में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। उनकी इस खोज की देश भर में सराहना हुई और उन्हें प्रोत्साहन मिला। तेईस(23) वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘ आर्यभटीय’ ग्रंथ की रचना की। यह एक विलक्षण ग्रंथ है और संस्कृत में पद्यबद्ध है। इसमें 118 श्लोक हैं, जो तत्कालीन गणित का संक्षिप्त विवरण देते हैं। आर्यभट के अनुसार पृथ्वी एक महायुग में 1,58,22,37,500 बार घूमती है। आर्यभट ने गणित के नए-नए नियम खोजे। ऐसा प्रतीत होता है कि वे शून्य का चिहृ जानते थे। पाई ( π ) का मान उन्होंने 3.1622 निकाला, जो आधुनिक मान के बराबर है। उन्होंने बड़ी संख्याओं को संक्षेप में लिखने केलिए ‘अक्षरांक’ विधि की खोज की। जैसे 1 के लिए अ, 100 के लिए इ, 10,000 के लिए उ तथा 10 अरब के लिए ए इत्यादि। आर्यभट्ट की तुलना ‘भारतीय गणित के सूर्य’ के रूप में की गई है। यह तुलना कोई अकारण नहीं है। वास्तव में भारतीय गणित व खगोल-शास...

आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi

आर्यभट्ट पर निबंध Essay On Aryabhatta in Hindi : नमस्कार दोस्तों आज हम प्राचीन भारत के एक महान गणित के विद्वान् आर्यभट्ट पर निबंध पढ़ेगे. इस निबंध में हम आर्यभट्ट के जीवन, गणित और खगोलशास्त्र में इनके योगदान एवं इनकी रचनाओं के बारे में सरल तरीके से समझने का प्रयास करेगें. Essay On Aryabhatta in Hindi आर्यभट्ट पर निबंध (400 शब्द) आर्यभट्ट पर निबंध (Short Essay On Aryabhatta In Hindi) पश्चिमी दुनिया भारत को सांप सपेरों के देश के रूप में मानती हैं, यह उनके अज्ञान और पूर्वाग्रह से ग्रसित सोच का प्रदर्शित ही करता हैं. सच्चाई यह है जब शेष मानव सभ्यताएं पाषाण युगीन जीवन जी रही थी. उस समय भारत में चिकित्सा, योग, खगोल, गणित आदि पर कई ग्रंथ लिखे जा चुके थे. इन क्षेत्रों की कई खोजे और परिकल्पनाओं पर कार्य चल रहा था. करीब 1700 वर्ष पूर्व जन्में आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार कर दुनियां को काउंटिंग सिखाई थी. भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री के रूप में इन्होने कई अवधारणाओं को पहली बार परिभाषित कर उनका सही मान हमें दिया था, जिनमें त्रिकोणमिति का फलन, स्थानीय मान, सर्वसमिका, पाई आदि. आर्यभट्ट जी का जन्म 474 ईसवीं के आसपास हुआ ऐसा माना जाता हैं, इनका जन्म स्थान वर्तमान बिहार के पटना के पास स्थित कुसुम्पुरा में बताया जाता हैं. Telegram Group इन्होने संख्या पद्धति में स्थानीय मान की अवधारणा और शून्य की व्यवस्था देकर आज के गणित में बड़ा योगदान दिया था. अगर खगोल में उनके योगदान की बात करें तो आज से हजारों वर्ष पूर्व न तो यंत्र थे न उपग्रह ऐसे समय में अपनी मानसिक शक्ति का उपयोग करते हुए गणितीय बुद्धि के दम पर ग्रहों की स्थिति, गति, आकार और उनके परिक्रमण की सम्पूर्ण सटीक अवधारणा अपने ग्रंथ में दी. आर...

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट About Aryabhatta In Hindi

भारत के इतिहास में जिसे ‘गुप्त काल’ या ‘सुवर्ण युग’ के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। प्राचीन काल में भारतीय गणित और ज्योतिष शास्त्र अत्यंत उन्नत था। गुप्त काल में ही महान गणितज्ञ आर्यभट्ट का जन्म माना जाता है। भारत को विश्व में चमकाने वाले अनमोल नक्षत्र आर्यभट्ट ने वैज्ञानिक उन्नति में योगदान ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में चार चाँद लगाया। ‘ आर्यभट्टीय’ नामक ग्रंथ की रचना करके, उन्होंने भारत को विश्व में गौरवान्वित किया। आर्यभट्ट द्वारा की गई जीरो की खोज ने समस्त विश्व को नई दिशा दी। माना जाता है कि आर्यभट्ट बिहार राज्य की राजधानी पटना जो उस समय पाटलीपुत्र के नाम से मशहूर थी, के निकट कुसुमपुर के रहने वाले थे। माता-पिता का नाम तथा वंश परिचय के बारे में प्रमाणित जानकारी नहीं मिलती। अनुमानो के आधार पर उनकी जन्म तिथि 13 अप्रैल 476 और मृत्यु 550 में मानी जाती है। इसी के आधार पर प्रसिद्ध अर्न्तराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को ने आर्यभट्ट की 1500वीं जयंती मनाई थी। उस समय मगध विश्वविद्यालय विद्या का केन्द्र था। यहाँ पर खगोल शास्त्र के अध्ययन के लिये एक अलग विभाग था और बौद्ध धर्म विख्यात था। उस दौरान जैन धर्म भी अपने चरम पर था। लेकिन आर्यभट्ट के श्लोकों से लगता है कि वे इन धर्मो का अनुसरण नहीं करते थे । प्राचीन कृतियों के रचनाकारों की तरह वे अपने श्लोकों के प्रारंभ में इष्ट देव की स्तुति करते और माना जाता है कि ब्रह्मा के वरदान से ही उन्होंने सम्पूर्ण ज्ञान आदि प्राप्त किया था। हालांकि भारत में खगोल शास्त्र का जन्म आर्यभट्ट से पहले सदियों पूर्व हो चुका था। यहाँ पर पंचांग के नियम नक्षत्र विभाजन आदि ईसा के जन्म से 13-14 शताब्दी प...

गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय

जन्म:476 ई. कुसुमपुर पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार) मृत्यु: 550 ई. कार्य: गणितज्ञ, खगोलशास्त्री आर्यभट्ट (Aryabhata) का जन्म 476 ई. में बिहार के मगध, (आधुनिक पटना) के पाटलिपुत्र में हुआ था। वह भारतीय गणितज्ञ और भारतीय खगोल विज्ञान के शास्त्रीय युग के महान गणितज्ञ-खगोलशास्त्री थे। उन्होंने हिंदू और बौद्ध परंपरा दोनों का अध्ययन किया। आर्यभट्ट अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में आए थे। उस समय नालंदा शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था। जब उनकी पुस्तक 'आर्यभटीय' (गणित की पुस्तक) को एक उत्कृष्ट रचना मान लिया गया तो तत्कालीन गुप्त शासक बुद्धगुप्त ने उन्हें विश्वविद्यालय का प्रधान बना दिया। आर्यभट्ट ने बिहार के तारेगना में सूर्य मंदिर में एक वेधशाला भी स्थापित की। आर्यभट्ट के कार्यों की जानकारी उनके द्वारा रचित ग्रंथों से मिलती है। जिसके अनुसार आर्यभट्ट प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि पृथ्वी गोल है और वह अपनी धुरी पर घूमती है जिससे दिन और रात उत्पन्न होते हैं। उन्होंने घोषणा की कि चाँद पर अंधेरा है और वह सूर्य के प्रकाश के कारण चमकता है। सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के बारे में उनका विश्वास था कि यह राहु के सूर्य या चंद्र को हड़पने से नहीं होता जैसा कि हिंदू पौराणिक कथाओं में आता है, बल्कि पृथ्वी और चाँद की छायाओं के कारण होता है। वह ब्रह्मांड की भूकेंद्रीय अवधारणा में विश्वास करते थे कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है। ग्रहों की अनिश्चित या अनियमित गति को समझाने के लिए उन्होंने यूनानी राजा टॉलमी की तरह अधिचक्र (ऐपी साइकल) का उपयोग किया। लेकिन इनका तरीका टॉलमी से अधिक अच्छा था। गणित में भी आर्यभट्ट का योगदान समान महत्व रखता है। उन्होंने गणित के क्षेत्र में महान आर्...

आर्यभट्ट की उपलब्धियाँ एवं जीवन परिचय

By: RF competition Copy Share (221) आर्यभट्ट की उपलब्धियाँ एवं जीवन परिचय | Aryabhatta's Achievements and Biography Dec 03, 2021 01:12PM 6944 आर्यभट्ट का जीवन परिचय (Biography Of Aryabhatta) आर्यभट्ट भारत के महान गणितज्ञों में से एक थे। उनका जन्म 476 ईस्वी में पाटलिपुत्र के कुसुमपुर में हुआ था। पाटलिपुत्र आधुनिक पटना (बिहार की राजधानी) का प्राचीन नाम है। एक अन्य मान्यता के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। आर्यभट्ट की प्रारंभिक शिक्षा नालंदा विश्वविद्यालय में हुई थी। आर्यभट्ट के समय भारतवर्ष में गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त 'विक्रमादित्य' का शासन था। उनके शासनकाल के दौरान भारत ने गणित, खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, साहित्य, कला आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। आर्यभट्ट को गणित और खगोलशास्त्र के अध्ययन में बचपन से ही गहरी रुचि थी। आगे चलकर उन्होंने गणित और खगोलशास्त्र से संबंधित बहुत से ग्रंथों की रचनाएँ की। आर्यभट्ट के गणित और खगोलशास्त्र में योगदान को देखकर गुप्त शासक बुधगुप्त ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति बना दिया। नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। यहाँ पर गणित, खगोलशास्त्र, ज्योतिष विज्ञान, साहित्य, कला, भौतिक शास्त्र आदि विषयों को पढ़ाया जाता था। यहाँ पर विदेशों से भी विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे। Aryabhata was one of the great mathematicians of India. He was born in 476 AD at Kusumpur in Pataliputra. Pataliputra is the ancient name of modern Patna (the capital of Bihar). According to another belief, Aryabhatta was born in Maharashtra. Aryabhatta had his early education at Nalanda University. At the time of A...

आर्यभट्ट का जीवन परिचय और विचार

आर्यभट ( जन्म 476 - मृत्यु 550) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। आर्यभट ने अपनी खगोलीय खोजों के बाद सार्वजनिक घोषणा की कि पृथ्वी 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनट और 30 सेकंड में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। उनकी इस खोज की देश भर में सराहना हुई और उन्हें प्रोत्साहन मिला। तेईस(23) वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘ आर्यभटीय’ ग्रंथ की रचना की। यह एक विलक्षण ग्रंथ है और संस्कृत में पद्यबद्ध है। इसमें 118 श्लोक हैं, जो तत्कालीन गणित का संक्षिप्त विवरण देते हैं। आर्यभट के अनुसार पृथ्वी एक महायुग में 1,58,22,37,500 बार घूमती है। आर्यभट ने गणित के नए-नए नियम खोजे। ऐसा प्रतीत होता है कि वे शून्य का चिहृ जानते थे। पाई ( π ) का मान उन्होंने 3.1622 निकाला, जो आधुनिक मान के बराबर है। उन्होंने बड़ी संख्याओं को संक्षेप में लिखने केलिए ‘अक्षरांक’ विधि की खोज की। जैसे 1 के लिए अ, 100 के लिए इ, 10,000 के लिए उ तथा 10 अरब के लिए ए इत्यादि। आर्यभट्ट की तुलना ‘भारतीय गणित के सूर्य’ के रूप में की गई है। यह तुलना कोई अकारण नहीं है। वास्तव में भारतीय गणित व खगोल-शास...