Aatmatran class 10 bhavarth

  1. NCERT Book Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण
  2. तोप
  3. कर चले हम फ़िदा
  4. उत्साह और अट नहीं रही है का भावार्थ व व्याख्या, प्रश्नोत्तर,अन्य प्रश्न कक्षा 10
  5. NCERT Solutions Class 10 Hindi Sparsh II Chapter 9 आत्मत्राण
  6. पद
  7. आत्मकथ्य के अर्थ या भावार्थ को पढ़िए क्लास 10 हिंदी क्षितिज
  8. आत्मकथ्य


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NCERT Book Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

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तोप

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तरऔर व्याख्या- तोपस्पर्शभाग- 2 व्याख्या कम्पनी बाग़ के मुहाने पर धर रखी गई है यह 1857 की तोप इसकी होती है बड़ी सम्हाल विरासत में मिले कम्पनी बाग की तरह साल में चमकायी जाती है दो बार प्रस्तुत कविता में कवि वीरेन डंगवाल ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम केयुद्ध में अंग्रेज़ों द्वारा इस्तेमाल की हुई तोप का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि यह तोप आज कम्पनी बाग़ के प्रवेश द्वार रखी हुई है। जिस तरह कम्पनी बाग़ हमें अंग्रेज़ों द्वारा विरासत में मिली थी उसी तरह यह तोप भी हमें अंग्रेज़ो से ही प्राप्त हुआ जिसेआजकल बहुत देखभाल से रखा जाता है। कम्पनी बाग़ की तरह इसे भी साल में दो बार चमकाया जाता है। सुबह-शाम कम्पनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी उन्हें बताती है यह तोप कि मैं बड़ी जबर उड़ा दिये थे मैंने अच्छे-अच्छे सूरमाओं के छज्जे अपने ज़माने में सुबह-शाम को बहुत सारेयात्री कम्पनी बाग़ में घूमने आते हैं तब यह तोप अपने बारे में बताती है की मैं बड़ी ताकतवर थी। उस समय मैंने बहुत सारे वीरों के मारा था। बहुत अत्याचार किये थे। अब तो बहरहाल छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो तो उसके ऊपर बैठकर चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं ख़ासकर गौरैयें वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द ! परन्तु अब तोप की स्थिति बहुत बुरी है छोटे बच्चे इसपर बैठकर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। जब तोप बच्चों से मुक्त हो जाती है तब चिड़ियाँ इसपर बैठकर आपस में गप्प करती हैं। कभी-कभीचिड़ियाँ ख़ास तौर पर गौरेयेतोप के भीतर घुस जाती हैं। इस दृश्य से कवि कोऐसा महसूस होता है मानो वह कह रही हों कोई कितना भी अत्याच...

कर चले हम फ़िदा

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तरऔर व्याख्या- कर चले हम फ़िदास्पर्शभाग- 2 व्याख्या कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं सर हिमालय का हमने न झुकने दिया मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो प्रस्तुत गीत कैफ़ी आजमी द्वारा भारत-चीन युद्ध कीपृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म 'हकीकत' से लिया गया है। इस गीत में कवि ने खुद को भारत माता के सैनिक के रूप में अंकित किया है। कवि कहते हैं कि युद्धभूमि में सैनिक शहीद होते हुए अपने दूसरे साथियों से कहते हैं कि हमने अपने जान और तन को देश सेवा में समर्पित कर दिया, हमजा रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है। हमारी साँस थम रही थीं, ठंड से नसें जम रही थीं,हम मृत्यु की गोदमें जा रहे थे फिर भी हमनेपीछे हटकर उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीदिया। हमारे कटे सिरों यानी शहीद हुए जवानोंका हमें ग़म नहीं है, हमारेलिये ये प्रसन्नता की बात है की हमने अपने जीते जी हिमालय का सिर झुकने नहीं दिया यानी दुश्मनों को देश में प्रवेश नही करने दिया। मरते दमतक हमारे अंदर बलिदान और संघर्ष का जोश बना रहा। हम बलिदानी देकर जाकर रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है। ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर जान देने के रुत रोज़ आती नहीं हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं आज धरती बनी है दुलहन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो कवि एक सैनिक के रूप में कहते हैं कि व्यक्ति को जिन्दा रहने के लिए बहुत समय मिलते हैं परन्तु देश के लिए जान देने के मौके कभी-कभी ही मिलते हैं। जो जवानी खून में सराबोर न...

उत्साह और अट नहीं रही है का भावार्थ व व्याख्या, प्रश्नोत्तर,अन्य प्रश्न कक्षा 10

उत्साह और अट नहीं रही है का भावार्थ, प्रश्न और उत्तर,अन्य प्रश्न कक्षा 10 इस पोस्ट में हम उत्साह और अट नहीं रही है पाठ संबंधी निम्नलिखित विंदुओं पर चर्चा करेंगे। उत्साह कविता का सारांश, उत्साह कविता का भावार्थ व व्याख्या, उत्साह कविता के प्रश्न उत्तर, उत्साह कविता के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न, अट नहीं रही है कविता का सारांश, अट नहीं रही है कविता का भावार्थ व व्याख्या, अट नहीं रही है का प्रश्न उत्तर, अट नहीं रही है कविता के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न, उत्साह कविता का सार या सारांश उत्साह एक आवाह्नपरक कविता है। उत्साह कविता के कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हैं। कवि ने बादल को उत्साह का प्रतीक मानते हुए इस कविता की सर्जना की है। कवि ने यह कविता युवावर्ग को समर्पित किया है क्योंकि युवा ही देश का भविष्य होता है।जिस प्रकार से बादल में पूरे मौसम को परिवर्तित कर देने की शक्ति होती है उसी प्रकार से युवावर्ग में देश की दशा और दिशा बदल देने की शक्ति विद्यमान होती है। कवि कहता है कि हे युवावर्ग बादल के समान गर्जना करते हुए तुम समाज में क्रांति की लहर व्याप्त करा दो जिससे पुरानी रूढ़ियाँ और परम्पराएँ दूर हो जाएँ। युवावर्ग को कवि ने क्रांति और परिवर्तन का प्रतीक माना है। उत्साह कविता का भावार्थ व व्याख्या बादल, गरजो! घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ! ललित ललित, काले घुँघराले, बाल कल्पना। के-से पाले, विद्युत छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले वज्र छिपा नूतन कविता फिर भर दो- बादल गरजो! उत्साह कविता का संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्य पुस्तक क्षितिज भाग दो के उत्साह नामक कविता से लिया गया है। जिसके कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हैं। उत्साह का भावार्थ व व्याख्या– उत्साह कविता में कवि कहता है की हे ब...

NCERT Solutions Class 10 Hindi Sparsh II Chapter 9 आत्मत्राण

उत्तर : कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर चाहे ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके। दुखों में भी ईश्वर को न भूले,उसका विश्वास अटल रहे। प्रश्न : 2. ‘विपदाओं से मुझे बचाओं, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ – कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है? उत्तर : कवि का कहना है कि हे ईश्वर मैं यह नहीं कहता कि मुझ पर कोई विपदा न आए, मेरे जीवन में कोई दुख न आए बल्कि मैं यह चाहता हूँ कि मैं मुसीबत तथा दुखों से घबराऊँ नहीं,बल्कि आत्म-विश्वास के साथ निर्भीक होकर हर परिस्थितियों का सामना करने का साहस मुझ में आ जाए। प्रश्न : 3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है? उत्तर : विपरीत परिस्थितियों के समय सहायक के न मिलने पर कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह धैर्य से सह ले। प्रश्न : 4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है? उत्तर : इस पूरी कविता में कवि ने ईश्वर से साहस और आत्मबल माँगा है अंत में कवि अनुनय करता है कि चाहे सब लोग उसे धोखा दे, सब दुख उसे घेर ले पर ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कम न हो, उसका विश्वास बना रहे। उसका ईश्वर के प्रति विश्वास कभी न डगमगाए। सुखों के आने पर भी ईश्वर को हर क्षण याद करता रहें। प्रश्न : 5. आत्मत्राण शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। उत्तर : आत्मत्राण का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात् आत्मा या मन के भय का निवारण, उससे मुक्ति। त्राण शब्द का प्रयोग इस कविता के संदर्भ में बचाव, आश्रय और भय निवारण के अर्थ में किया जा सकता है। कवि चाहता है कि जीवन में आने वाले दुखों को वह निर्भय होकर सहन करे। दुख न मिले ऐसी प्रार्थना वह नहीं करता बल्कि मिले हुए...

पद

भावार्थ - इस पद में मीराबाई अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण से विनती करते हुए कहतीं हैं किहे प्रभु अब आप ही अपने भक्तों की पीड़ा हरें। जिस तरह आपने अपमानित द्रोपदी की लाज उसे चीर प्रदान करके बचाई थी जब दु:शासन ने उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया था। अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह रूप धारण किया था। आपने ही डुबते हुए हाथी की रक्षा की थी और उसे मगरमच्छ के मुँह से बचाया था। इस प्रकार आपने उस हाथी की पीड़ा दूर की थी। इन उदाहरणों को देकर दासी मीरा कहतीं हैं की हे गिरिधर लाल!आप मेरी पीडा भी दूर कर मुझे छुटकारा दीजिये। भावार्थ - इन पदों में मीराभगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहतीं हैं किहे श्याम! आपमुझे अपनी दासी बना लीजिये। आपकी दासी बनकर में आपके लिए बाग–बगीचे लगाऊँगी , जिसमें आपविहार कर सकें। इसी बहाने मैं रोजआपके दर्शन कर सकूँगी। मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीला के गान करुँगी। इससे उन्हें कृष्ण के नाम स्मरण का अवसर प्राप्त हो जाएगा तथा भावपूर्ण भक्ति की जागीरभीप्राप्त होगी। इस प्रकार दर्शन, स्मरण और भाव–भक्ति नामक तीनों बातें मेरे जीवन में रच–बस जाएँगी। अगली पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं किमेरे प्रभु कृष्ण के शीशपर मोरपंखों का बना हुआ मुकुट सुशोभित है। तन पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं। गले में वनफूलों की माला शोभायमान है। वे वृन्दावन में गायें चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं। वृन्दावन में मेरे प्रभु का बहुत ऊँचे-ऊँचेमहल हैं। वेउस महल के आँगन के बीच–बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं। वे कुसुम्बी साड़ी पहनकरअपने साँवले प्रभु के दर्शन पाना चाहती हैं। मीरा भगवान कृष्ण से निवेदन करते हुए...

आत्मकथ्य के अर्थ या भावार्थ को पढ़िए क्लास 10 हिंदी क्षितिज

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। इस गंभीर अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य मलिन उपहास तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती। भँवरे गुनगुनाकर पता नहीं अपनी कौन सी कहानी कहने की कोशिश करते हैं। शायद उन्हें नहीं पता है कि जीवन तो नश्वर है जो आज है और कल समाप्त हो जाएगा। पेड़ों से मुरझाकर गिर रही पत्तियाँ शायद जीवन की नश्वरता का प्रतीक हैं। मनुष्य जीवन भी ऐसा ही है; क्षणिक। इसलिए इस जीवन की कहानी सुनाने से क्या लाभ। यह संसार अनंत है जिसमे कितने ही जीवन के इतिहास भरे पड़े हैं। इनमें से अधिकतर एक दूसरे पर घोर कटाक्ष करते ही रहते हैं। इसके बावजूद पता नहीं तुम मेरी कमजोरियों के बारे में क्यों सुनना चाहते हो। मेरा जीवन तो एक खाली गागर की तरह है जिसके बारे में सुनकर तुम्हें शायद ही आनंद आयेगा। किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले। यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं। भूलें अपनी या प्रवंचना औरों को दिखलाऊँ मैं। मेरे जीवन की कमियों को सुनकर ऐसा न हो कि तुम ये समझने लगो कि तुम्हारे जीवन में सबकुछ अच्छा ही हुआ और मेरा जीवन हमेशा एक कोरे कागज की तरह था। कवि का कहना है कि वे इस दुविधा में भी हैं कि दूसरे की कमियों को दिखाकर उनकी हँसी उड़ाएँ या फिर अपनी कमियों को जगजाहिर कर दें। उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। अरे खिल-खिलाकर हँसते होने वाली उन बातों की। मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया। कवि का कहना है कि उन्होंने कितने स्वप्न देखे ...

आत्मकथ्य

मुंशी प्रेमचंद के संपादन में निकलने वाली तत्कालीन पत्रिका हंस के आत्मकथा विशेषांक हेतु सुप्रसिद्ध छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद से भी आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया। लोगों के कहने पर भी वे आत्मकथा लिखना नहीं चाहते थे, क्योंकि उन्हें अपने जीवन में ऐसा कुछ विशेष नज़र नहीं आता था, जिसे वे दूसरों के सामने रख सकें। इसी असहमति के तर्क (विचार) से पैदा हुई कविता है ‘आत्मकथ्य’। यह कविता पहली बार वर्ष 1932 में ‘हंस’ के आत्मकथा विशेषांक में प्रकाशित हुई थी। कवि ने इस कविता को छायावादी शैली में लिखा है। कवि ने अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए खड़ी बोली तथा ललित, सुंदर एवं नवीन शब्दों का प्रयोग किया है। कवि ने इसमें स्वयं को एक साधारण व्यक्ति माना है, जिसमें ऐसा कुछ भी महान्‌ एवं रोचक नहीं है, जिससे लोग प्रेरित हों और सुख प्राप्त कर सकें । यह दृष्टिकोण महान्‌ कवि की विनम्रता को प्रदर्शित करता है। हिंदी साहित्य के छायावाद के आधार स्तंभ कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई. में वाराणसी में हुआ। इनकी शिक्षा आठवीं कक्षा से आगे नहीं हो पाई थी, जिसके कारण इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी, फ़ारसी आदि भाषाओं का अध्ययन किया। आठ वर्ष की आयु में उनकी आँखों के समक्ष उनके माता-पिता व बड़े भाई का निधन हो गया। इन सभी कष्टों को झेलते हुए वे काव्य-रचना करने लगे। जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं हैं :- चित्राधार, कानन-कुसुम, झरना, आँसू, लहर, कामायनी (काव्य); चंद्रग॒प्त, स्कंदगुप्त, अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री (नाटक); कंकाल, तितली, इरावती (उपन्यास) ; छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इंद्रजाल (कहानी-संग्रह)। छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद ने हिंदी को एक नई दिशा प्रदान की। उनकी भाषा सरल, सहज है, जो छोटे-छोटे वा...