अकबर के बाद कौन राजा बना

  1. मेवाड़ की शासक वंशावली
  2. बच्चों के लिए 11 अकबर और बीरबल की शॉर्ट स्टोरी
  3. अकबर के पिता का नाम क्या था
  4. अकबर के पिता का नाम क्या था
  5. बच्चों के लिए 11 अकबर और बीरबल की शॉर्ट स्टोरी
  6. कौन थे अकबर के नवरत्न और दरबार में क्या थी उनकी उपाधि, जानें
  7. मेवाड़ की शासक वंशावली
  8. अकबर के पिता का नाम क्या था


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मेवाड़ की शासक वंशावली

अनुक्रम • 1 वंशावली • 2 इन्हेंभीदेखें • 3 सन्दर्भ • 4 बाहरीकड़ियाँ वंशावली [ ] 24 शाखाओं का वर्णन मिलता है, जिनमें क्रम मेवाड़ के शासकों के नाम शासन काल टिप्पणी 1 566 ई० गुहिल राजवंश की स्थापना गुहिल 2 734 ई० से 753 ई० तक "रावल राजवंश का संस्थापक।" नागादित्य के पुत्र कालभोज ने 727 ई० में गुहिल राजवंश की कमान संभाली। बप्पा रावल उसकी उपाधि थी । बप्पा रावल एक अत्यंत प्रतापी शासक थे। जिन पर देवीय शक्ति थी। बप्पा और उनके गुरु हारित ऋषि के बारे में कई लोक दन्त कथाएं और मान्यताएं प्रचलित है। माना जाता हकी बप्पा रावल ने अपनी किशोरावस्था में हारित ऋषि की काफी सेवा की थी उनकी सेवा से प्रसन्न होकर स्वर्ग लोग में प्रस्थान के समय हारित ऋषि ने बप्पा के मुंह मे पान थूकने का प्रयास किया , परन्तु बाप्पा ने घृणा स्वरूप मुहफेर लिया। को थूक बाप्पा के पैरों की जमीन पर पड़ा। ऋषि ने कहाँ अगर ये पान तेरे मुंह मे चला जाता तो तू अमर हो जाता , पर चूंकि अब यह तेरे पैरों की भूमि पर पड़ा है तो इस भूमि को तुझसे ओर तेरे वंशजो से कोई नही छीन सकेगा। इस वरदान के बाद बप्पा ने चित्तोड़ के शासक मानमोरी की और सब अरबी आक्रमणों का निष्फल कर दिया। और मानमोरी से चित्तौड़ का किला अधिकार में ले लिया। बप्पा परम् शिव(एकलिंगनाथ) भक्त थे तथा इस्लाम के कट्टर दुश्मन। इन्होंने अरबो को सिंध व अफ़ग़ानिस्तान से भी खदेड़ दिया। पाकिस्तान के रावल पिंडी शहर का नाम बाप्पा की शौर्यता व बोलबाले का दर्शता है।। धन्य है ये धरा जिसमे ऐसे वीरो ने जन्म लिया।। 3 सुमेर सिऺह 753 - 773 ई० 4 रतन सिऺह 773 – 793 ई० 5 चेतन सिऺह 793 – 813 ई० 6 रावल सिंह 813 – 828 ई० 7 खुमाण सिंह द्वितीय 828 – 853 ई० 8 महाभोज 853 – 878 ई० 9 खुमाण सिंह तृतीय 878 – 90...

बच्चों के लिए 11 अकबर और बीरबल की शॉर्ट स्टोरी

बच्चों को कहानियां सुनना बहुत पसंद होता है, खासकर वो कहानियां जो मजेदार होती हैं और कुछ सीख देती हैं! हम में से ज्यादातर लोग राजा अकबर और उनके खास नवरत्न, बीरबल की कई प्रसिद्ध कहानियों को सुनकर बड़े हुए हैं, जो अपनी बुद्धिमत्ता, चतुराई और हाजिर– जवाबी के लिए जाने जाते है। उनकी कहानियां न केवल सुनने में मजेदार है बल्कि हमें उनसे शिक्षा भी मिलती है। यदि आप अपने बच्चे को खेल– खेल में कहानी के माध्यम से उन्हें अच्छी बातें और अच्छे संस्कारों को सिखाना चाहती हैं, तो आप उन्हें अकबर– बीरबल की कुछ कहानियां सुना सकती हैं। कौवों की गिनती एक दिन अच्छी धूप में अकबर और बीरबल महल के बगीचे में आराम से टहल रहे थे। बीरबल की बुद्धिमानी का परीक्षा लेने के लिए अकबर ने सोचा क्यों न बीरबल से कोई मुश्किल सवाल पूछा जाए। बादशाह ने बीरबल से पूछा, “ हमारे राज्य में कुल कितने कौवे हैं?” बीरबल, राजा के सवाल के पीछे छिपे मजाक को समझ चुके थे और कुछ ही मिनटों में बीरबल ने जवाब देते हुए कहा, “ महाराज! हमारे यहाँ अस्सी हजार नौ सौ इकहत्तर कौवे हैं।” जवाब सुनकर राजा अकबर हैरान और आश्चर्यचकित रह गए, और फिर उन्होंने पूछा “अगर इससे ज्यादा हुए तो?” बीरबल ने जवाब दिया “तब हो सकता है वे दूसरे राज्यों से आए होंगे।” राजा अकबर ने पूछा “ अगर कम हुए तो?” बीरबल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया “वे दूसरे राज्यों में चले गए होंगे!” यह सुनकर अकबर, बीरबल की मजाकियापन, चतुराई और वाक् पटुता पर खुश हुए। बीरबल की खिचड़ी एक बार सर्दी के दिनों में, अकबर और बीरबल एक तालाब के किनारे टहल रहे थे। अकबर रुके और तालाब के ठंडे पानी में अपनी अंगुली डालकर तुरंत निकालते हुए कहें, “ मुझे नहीं लगता कि इस ठंडे पानी में कोई एक रात भी इसमें रह सकता है“ । ...

अकबर के पिता का नाम क्या था

अकबर (अबूल-फत जलाल उद-दीन मुहम्मद अकबर, 14 अक्टूबर 1542 – 1605) तीसरा मुगल सम्राट था। उनका जन्म उमरकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वह दूसरे मुगल सम्राट हुमायूं के पुत्र थे। अकबर 1556 में 13 वर्ष की आयु में विधि सम्मत राजा बना, जब उसके पिता की मृत्यु हो गई। उस समय बैरम खान को अकबर के रीजेंट और मुख्य सेना कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया था। सत्ता में आने के तुरंत बाद अकबर ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में अफगान सेना के जनरल हिमू को हरा दिया। कुछ वर्षों के बाद उसने बैरम खान की रीजेंसी को समाप्त कर दिया और राज्य की कमान संभाली। उसने शुरू में राजपूतों से मित्रता की पेशकश की। हालाँकि उन्हें कुछ राजपूतों के खिलाफ लड़ना पड़ा, जिन्होंने उनका विरोध किया। 1576 में उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के महाराणा प्रताप को हराया। अकबर के युद्धों ने मुगल साम्राज्य को पहले की तुलना में दोगुना बड़ा बना दिया था। उसने दक्षिण को छोड़कर अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप को कवर किया। अकबर के शासन की की प्रणाली उस प्रणाली पर आधारित थी जो दिल्ली सल्तनत के बाद से विकसित हुई थी। लेकिन विभिन्न विभागों के कार्यों को उनके कामकाज के लिए विस्तृत नियमों के साथ पुनर्गठित किया गया था। अकबर मुसलमान था। उन्होंने महसूस किया कि एक मजबूत साम्राज्य स्थापित करने के लिए, उन्हें अपने हिंदू लोगों का विश्वास हासिल करना होगा जो भारत में बहुसंख्यक थे। दीन-ए-इलाही अकबर द्वारा सुझाया गया धार्मिक मार्ग था। यह नैतिक आचरण का एक कोड था जो अकबर के धर्मनिरपेक्ष विचारों को दर्शाता था और वह अपने साम्राज्य में शांति, एकता, सहिष्णुता प्राप्त करने की इच्छा रखता था। एक ईश्वर में विश्वास, प्रकाश के स्रोत की पूजा, जानवरों की हत्या न करना, सभी...

आइन

आइन-ए-अकबरी (अर्थ:अकबर के संस्थान), एक اکبر نامه), के नाम से है। ये खंड स्वयं तीन प्रखंडों में है। परिचय [ ] आईन-ए-अकबरी (अकबर के विधान; समाप्तिकाल 1598 ई.) अबुलफ़ज्ल-ए-अल्लामी द्वारा यद्यपि अबुल फज़ल ने कई अन्य पुस्तकें भी लिखीं, किंतु उसे स्थायी और विश्वव्यापी कीर्ति 'आईन-ए-अकबरी' के लेखन से ही मिली । स्वयं अबुलफ़ज्ल के कथानानुसार उसका ध्येय 'महान सम्राट् की स्मृति को सुरक्षित रखना' तथा 'जिज्ञासु पाठक का पथप्रदर्शन करना' था। मुगल काल के इस्लामी जगत् में इसका यथेष्ट आदर हुआ; किंतु पाश्चात्य विद्धानों को और उन के माध्यम से भारतीयों को, इस अमूल्य इतिहास-ग्रन्थ की मूल्यवत्ता तब अधिक ज्ञात हुई जब सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स के शासन-काल में ग्रंथ पाँच भागों में विभाजित है तथा सात वर्षो में पूरा हुआ था। प्रथम भाग में प्रधान रूप से सम्राट् अकबर की प्रशस्ति तथा राजसी और दरबारी विवरण अंकित है। दूसरे भाग में राज्य-कर्मचारी, सैनिक तथा नागरिक (सिविल) पद, वैवाहिक तथा शिक्षा-संबंधी नियम, विविध-मनोविनोद तथा राजदरबार के आश्रित प्रमुख साहित्यकारों और संगीतज्ञों का विवरण है। तीसरे भाग में न्याय तथा प्रबंधक (एग्ज़ीक्यूटिव) विभागों के कानून, कृषि-शासन संबंधी विवरण तथा बारह सूबों की ज्ञातव्य सूचनाएँ और आँकड़े संकलित हैं। चौथे भाग में हिंदुओं की सामाजिक दशा और उनके धर्म, दर्शन, साहित्य और विज्ञान का (संस्कृत से अनभिज्ञ होने के कारण इनका संकलन अबुलफ़ज्ल ने प्रधानतः भारतीय संस्कृत पंडितों के मौखिक कथनों का अनुवाद करा कर किया था), इसी में विदेशी आक्रमणकारियों और प्रमुख यात्रियों का तथा प्रसिद्ध मुस्लिम संतों का भी वर्णन है और पाँचवें भाग में अकबर के समय समय पर कहे कथन / सुभाष्य संकलित हैं एवं लेखक...

अकबर के पिता का नाम क्या था

अकबर (अबूल-फत जलाल उद-दीन मुहम्मद अकबर, 14 अक्टूबर 1542 – 1605) तीसरा मुगल सम्राट था। उनका जन्म उमरकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वह दूसरे मुगल सम्राट हुमायूं के पुत्र थे। अकबर 1556 में 13 वर्ष की आयु में विधि सम्मत राजा बना, जब उसके पिता की मृत्यु हो गई। उस समय बैरम खान को अकबर के रीजेंट और मुख्य सेना कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया था। सत्ता में आने के तुरंत बाद अकबर ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में अफगान सेना के जनरल हिमू को हरा दिया। कुछ वर्षों के बाद उसने बैरम खान की रीजेंसी को समाप्त कर दिया और राज्य की कमान संभाली। उसने शुरू में राजपूतों से मित्रता की पेशकश की। हालाँकि उन्हें कुछ राजपूतों के खिलाफ लड़ना पड़ा, जिन्होंने उनका विरोध किया। 1576 में उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के महाराणा प्रताप को हराया। अकबर के युद्धों ने मुगल साम्राज्य को पहले की तुलना में दोगुना बड़ा बना दिया था। उसने दक्षिण को छोड़कर अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप को कवर किया। अकबर के शासन की की प्रणाली उस प्रणाली पर आधारित थी जो दिल्ली सल्तनत के बाद से विकसित हुई थी। लेकिन विभिन्न विभागों के कार्यों को उनके कामकाज के लिए विस्तृत नियमों के साथ पुनर्गठित किया गया था। अकबर मुसलमान था। उन्होंने महसूस किया कि एक मजबूत साम्राज्य स्थापित करने के लिए, उन्हें अपने हिंदू लोगों का विश्वास हासिल करना होगा जो भारत में बहुसंख्यक थे। दीन-ए-इलाही अकबर द्वारा सुझाया गया धार्मिक मार्ग था। यह नैतिक आचरण का एक कोड था जो अकबर के धर्मनिरपेक्ष विचारों को दर्शाता था और वह अपने साम्राज्य में शांति, एकता, सहिष्णुता प्राप्त करने की इच्छा रखता था। एक ईश्वर में विश्वास, प्रकाश के स्रोत की पूजा, जानवरों की हत्या न करना, सभी...

बच्चों के लिए 11 अकबर और बीरबल की शॉर्ट स्टोरी

बच्चों को कहानियां सुनना बहुत पसंद होता है, खासकर वो कहानियां जो मजेदार होती हैं और कुछ सीख देती हैं! हम में से ज्यादातर लोग राजा अकबर और उनके खास नवरत्न, बीरबल की कई प्रसिद्ध कहानियों को सुनकर बड़े हुए हैं, जो अपनी बुद्धिमत्ता, चतुराई और हाजिर– जवाबी के लिए जाने जाते है। उनकी कहानियां न केवल सुनने में मजेदार है बल्कि हमें उनसे शिक्षा भी मिलती है। यदि आप अपने बच्चे को खेल– खेल में कहानी के माध्यम से उन्हें अच्छी बातें और अच्छे संस्कारों को सिखाना चाहती हैं, तो आप उन्हें अकबर– बीरबल की कुछ कहानियां सुना सकती हैं। कौवों की गिनती एक दिन अच्छी धूप में अकबर और बीरबल महल के बगीचे में आराम से टहल रहे थे। बीरबल की बुद्धिमानी का परीक्षा लेने के लिए अकबर ने सोचा क्यों न बीरबल से कोई मुश्किल सवाल पूछा जाए। बादशाह ने बीरबल से पूछा, “ हमारे राज्य में कुल कितने कौवे हैं?” बीरबल, राजा के सवाल के पीछे छिपे मजाक को समझ चुके थे और कुछ ही मिनटों में बीरबल ने जवाब देते हुए कहा, “ महाराज! हमारे यहाँ अस्सी हजार नौ सौ इकहत्तर कौवे हैं।” जवाब सुनकर राजा अकबर हैरान और आश्चर्यचकित रह गए, और फिर उन्होंने पूछा “अगर इससे ज्यादा हुए तो?” बीरबल ने जवाब दिया “तब हो सकता है वे दूसरे राज्यों से आए होंगे।” राजा अकबर ने पूछा “ अगर कम हुए तो?” बीरबल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया “वे दूसरे राज्यों में चले गए होंगे!” यह सुनकर अकबर, बीरबल की मजाकियापन, चतुराई और वाक् पटुता पर खुश हुए। बीरबल की खिचड़ी एक बार सर्दी के दिनों में, अकबर और बीरबल एक तालाब के किनारे टहल रहे थे। अकबर रुके और तालाब के ठंडे पानी में अपनी अंगुली डालकर तुरंत निकालते हुए कहें, “ मुझे नहीं लगता कि इस ठंडे पानी में कोई एक रात भी इसमें रह सकता है“ । ...

कौन थे अकबर के नवरत्न और दरबार में क्या थी उनकी उपाधि, जानें

मुगल काल में अकबर सबसे प्रसिद्ध शासक रहा है, जिसने अपने शासन के समय कई बदलाव किए। साथ ही वह अपने साथ अपने नौ रत्नों को भी रखता था, जो उसे न्यायिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक मामलों में सलाह देने का काम करते थे। कुछ परीक्षाओं में अकबर के नवरत्नों के बारे में पूछ लिया जाता है। ऐसे में इस लेख में दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी हो सकती है। यदि अकबर के नवरत्नों के नाम का उल्लेख न किया जाए, तो अकबर की कहानी अधूरी रहेगी। अकबर के नवरत्न इस प्रकार थे: राजा बीरबल, मियां तानसेन, अबुल फजल, फैजी, राजा मान सिंह, राजा टोडर मल, मुल्ला दो पियाजा, फकीर अजियाओ-दीन और अब्दुल रहीम खान-ए-खाना। इस लेख के माध्यम से हम अकबर के प्रत्येक नवरत्न के बारे में जानेंगे। राजा बीरबल 1.उनका असली नाम महेशदास था और राजा बीरबल नाम अकबर ने दिया था। 2.वह अकबर के मुगल दरबार में एक महान गायक और कवि थे। वह संस्कृत, फारसी और हिन्दी भाषाओं के ज्ञाता थे। 3. उन्होंने अकबर को सैन्य और प्रशासनिक सेवाएं भी दीं और उत्तर-पश्चिम भारत में अफगानी जनजातियों के बीच फैली अशांति को शांत करते हुए युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई। तानसेन 1. रामतनु उनका जन्म नाम था और पहले के दिनों में वह स्वामी हरिदास के शिष्य थे और बाद में उन्होंने हजरत मुहम्मद गौस से संगीत सीखा । 2. वह अकबर के दरबार में एक संगीतकार थे और उन्हें उनकी महाकाव्य ध्रुपद रचनाओं के लिए याद किया जाता है , जिसमें कई नए राग रचे गए, साथ ही संगीत पर दो क्लासिक पुस्तकें - श्री गणेश स्तोत्र और संगीता सारा लिखी गईं । अबुल फजल 1. उनका असली नाम शेख अबू अल-फ़ज़ल इब्न मुबारक था, जिसे अबू-फ़ज़ल और अबू-अल-फजल 'अल्लामी के नाम से भी जाना जाता है । 2. वह अकबरनामा और आईन-ए-अकबरी के लेखक थे । उन...

मेवाड़ की शासक वंशावली

अनुक्रम • 1 वंशावली • 2 इन्हेंभीदेखें • 3 सन्दर्भ • 4 बाहरीकड़ियाँ वंशावली [ ] 24 शाखाओं का वर्णन मिलता है, जिनमें क्रम मेवाड़ के शासकों के नाम शासन काल टिप्पणी 1 566 ई० गुहिल राजवंश की स्थापना गुहिल 2 734 ई० से 753 ई० तक "रावल राजवंश का संस्थापक।" नागादित्य के पुत्र कालभोज ने 727 ई० में गुहिल राजवंश की कमान संभाली। बप्पा रावल उसकी उपाधि थी । बप्पा रावल एक अत्यंत प्रतापी शासक थे। जिन पर देवीय शक्ति थी। बप्पा और उनके गुरु हारित ऋषि के बारे में कई लोक दन्त कथाएं और मान्यताएं प्रचलित है। माना जाता हकी बप्पा रावल ने अपनी किशोरावस्था में हारित ऋषि की काफी सेवा की थी उनकी सेवा से प्रसन्न होकर स्वर्ग लोग में प्रस्थान के समय हारित ऋषि ने बप्पा के मुंह मे पान थूकने का प्रयास किया , परन्तु बाप्पा ने घृणा स्वरूप मुहफेर लिया। को थूक बाप्पा के पैरों की जमीन पर पड़ा। ऋषि ने कहाँ अगर ये पान तेरे मुंह मे चला जाता तो तू अमर हो जाता , पर चूंकि अब यह तेरे पैरों की भूमि पर पड़ा है तो इस भूमि को तुझसे ओर तेरे वंशजो से कोई नही छीन सकेगा। इस वरदान के बाद बप्पा ने चित्तोड़ के शासक मानमोरी की और सब अरबी आक्रमणों का निष्फल कर दिया। और मानमोरी से चित्तौड़ का किला अधिकार में ले लिया। बप्पा परम् शिव(एकलिंगनाथ) भक्त थे तथा इस्लाम के कट्टर दुश्मन। इन्होंने अरबो को सिंध व अफ़ग़ानिस्तान से भी खदेड़ दिया। पाकिस्तान के रावल पिंडी शहर का नाम बाप्पा की शौर्यता व बोलबाले का दर्शता है।। धन्य है ये धरा जिसमे ऐसे वीरो ने जन्म लिया।। 3 सुमेर सिऺह 753 - 773 ई० 4 रतन सिऺह 773 – 793 ई० 5 चेतन सिऺह 793 – 813 ई० 6 रावल सिंह 813 – 828 ई० 7 खुमाण सिंह द्वितीय 828 – 853 ई० 8 महाभोज 853 – 878 ई० 9 खुमाण सिंह तृतीय 878 – 90...

आइन

आइन-ए-अकबरी (अर्थ:अकबर के संस्थान), एक اکبر نامه), के नाम से है। ये खंड स्वयं तीन प्रखंडों में है। परिचय [ ] आईन-ए-अकबरी (अकबर के विधान; समाप्तिकाल 1598 ई.) अबुलफ़ज्ल-ए-अल्लामी द्वारा यद्यपि अबुल फज़ल ने कई अन्य पुस्तकें भी लिखीं, किंतु उसे स्थायी और विश्वव्यापी कीर्ति 'आईन-ए-अकबरी' के लेखन से ही मिली । स्वयं अबुलफ़ज्ल के कथानानुसार उसका ध्येय 'महान सम्राट् की स्मृति को सुरक्षित रखना' तथा 'जिज्ञासु पाठक का पथप्रदर्शन करना' था। मुगल काल के इस्लामी जगत् में इसका यथेष्ट आदर हुआ; किंतु पाश्चात्य विद्धानों को और उन के माध्यम से भारतीयों को, इस अमूल्य इतिहास-ग्रन्थ की मूल्यवत्ता तब अधिक ज्ञात हुई जब सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स के शासन-काल में ग्रंथ पाँच भागों में विभाजित है तथा सात वर्षो में पूरा हुआ था। प्रथम भाग में प्रधान रूप से सम्राट् अकबर की प्रशस्ति तथा राजसी और दरबारी विवरण अंकित है। दूसरे भाग में राज्य-कर्मचारी, सैनिक तथा नागरिक (सिविल) पद, वैवाहिक तथा शिक्षा-संबंधी नियम, विविध-मनोविनोद तथा राजदरबार के आश्रित प्रमुख साहित्यकारों और संगीतज्ञों का विवरण है। तीसरे भाग में न्याय तथा प्रबंधक (एग्ज़ीक्यूटिव) विभागों के कानून, कृषि-शासन संबंधी विवरण तथा बारह सूबों की ज्ञातव्य सूचनाएँ और आँकड़े संकलित हैं। चौथे भाग में हिंदुओं की सामाजिक दशा और उनके धर्म, दर्शन, साहित्य और विज्ञान का (संस्कृत से अनभिज्ञ होने के कारण इनका संकलन अबुलफ़ज्ल ने प्रधानतः भारतीय संस्कृत पंडितों के मौखिक कथनों का अनुवाद करा कर किया था), इसी में विदेशी आक्रमणकारियों और प्रमुख यात्रियों का तथा प्रसिद्ध मुस्लिम संतों का भी वर्णन है और पाँचवें भाग में अकबर के समय समय पर कहे कथन / सुभाष्य संकलित हैं एवं लेखक...

अकबर के पिता का नाम क्या था

अकबर (अबूल-फत जलाल उद-दीन मुहम्मद अकबर, 14 अक्टूबर 1542 – 1605) तीसरा मुगल सम्राट था। उनका जन्म उमरकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वह दूसरे मुगल सम्राट हुमायूं के पुत्र थे। अकबर 1556 में 13 वर्ष की आयु में विधि सम्मत राजा बना, जब उसके पिता की मृत्यु हो गई। उस समय बैरम खान को अकबर के रीजेंट और मुख्य सेना कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया था। सत्ता में आने के तुरंत बाद अकबर ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में अफगान सेना के जनरल हिमू को हरा दिया। कुछ वर्षों के बाद उसने बैरम खान की रीजेंसी को समाप्त कर दिया और राज्य की कमान संभाली। उसने शुरू में राजपूतों से मित्रता की पेशकश की। हालाँकि उन्हें कुछ राजपूतों के खिलाफ लड़ना पड़ा, जिन्होंने उनका विरोध किया। 1576 में उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के महाराणा प्रताप को हराया। अकबर के युद्धों ने मुगल साम्राज्य को पहले की तुलना में दोगुना बड़ा बना दिया था। उसने दक्षिण को छोड़कर अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप को कवर किया। अकबर के शासन की की प्रणाली उस प्रणाली पर आधारित थी जो दिल्ली सल्तनत के बाद से विकसित हुई थी। लेकिन विभिन्न विभागों के कार्यों को उनके कामकाज के लिए विस्तृत नियमों के साथ पुनर्गठित किया गया था। अकबर मुसलमान था। उन्होंने महसूस किया कि एक मजबूत साम्राज्य स्थापित करने के लिए, उन्हें अपने हिंदू लोगों का विश्वास हासिल करना होगा जो भारत में बहुसंख्यक थे। दीन-ए-इलाही अकबर द्वारा सुझाया गया धार्मिक मार्ग था। यह नैतिक आचरण का एक कोड था जो अकबर के धर्मनिरपेक्ष विचारों को दर्शाता था और वह अपने साम्राज्य में शांति, एकता, सहिष्णुता प्राप्त करने की इच्छा रखता था। एक ईश्वर में विश्वास, प्रकाश के स्रोत की पूजा, जानवरों की हत्या न करना, सभी...