अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना करें

  1. अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें
  2. ALL TIME SUPER HIT KNOWLEDGE : *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह
  3. अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें
  4. अकबर की "सुलह
  5. The Religious Policy of Aurangzeb and its Effects
  6. अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना कीजिए।
  7. Religious Policies Of Akbar And Aurangzeb: अकबर और औरंगजेब की धार्मिक नीतियों की तुलना
  8. ALL TIME SUPER HIT KNOWLEDGE : *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह
  9. अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें
  10. अकबर की "सुलह


Download: अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना करें
Size: 56.32 MB

अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें

अकबर के बारें में : अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। बता दे की सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। अकबर की धार्मिक नीति : बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। अकबर एक मुसलमान था लेकिन दूसरे धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। इसका नतीजा ये हुआ की अकबर ने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। अकबर की धार्मिक नीति गैर इस्लामीयों के प्रति सहिष्णुता (सहन करने वाला) की नीति थी। उसने दिल्ली सल्तनत कालीन सुल्तानों और अपने परवर्ती मुगल सम्राटों के प्रति कठोर क्रूर शत्रुता पूर्ण नीति का शीघ्र ही परित्याग कर...

ALL TIME SUPER HIT KNOWLEDGE : *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह

ALL TIME SUPER HIT KNOWLEDGE : *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह- ए- कुल के विषय में आप क्या जानते हैं?* अथवा *अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें* अथवा *दीन-ए-इलाही के संदर्भ में अकबर की धार्मिक नीति का परीक्षण करें।* अथवा *दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक था। उसकी बुद्धिमता का नहीं।"आलोचना करें।* *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह- ए- कुल के विषय में आप क्या जानते हैं?* अथवा *अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें* अथवा *दीन-ए-इलाही के संदर्भ में अकबर की धार्मिक नीति का परीक्षण करें।* अथवा *दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक था। उसकी बुद्धिमता का नहीं।"आलोचना करें।* ♓🅰♉🚩🅾♏ *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह- ए- कुल के विषय में आप क्या जानते हैं?* अथवा *अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें* अथवा *दीन-ए-इलाही के संदर्भ में अकबर की धार्मिक नीति का परीक्षण करें।* अथवा *दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक था। उसकी बुद्धिमता का नहीं।"आलोचना करें।* *उत्तर-अकबर के धार्मिक विचार:* प्रारंभ से ही अकबर के विचार उदार, व्यापक और महान थे। कालांतर में विभिन्न धर्मों को मानने वाले विद्वान, संत, धर्मगुरू आदि के संपर्क में आने का अवसर उसे मिला; जैसे ---हिंदुओं के पुरुषोत्तम और देवी; जैन धर्म के हरिविजय सूरी, विजय सेन सूरी, भानु चंद्र उपाध्याय जिनचंद्र, पारसी धर्म के दस्तूर मेंहर जी राणा आदि; जिनका प्रभाव उसके ऊपर पड़ा और उसका दृष्टीकोन उदार होता गया। इनके अतिरिक्त सिक्ख गुरुओं में गुरु अमरदास, गुरु अर्जुन देव, ईसाई...

अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें

3 इन्हें भी पढ़ें: अकबर की धार्मिक नीति अकबर की धार्मिक नीति में बहुत बड़ा महत्व है. अकबर के शासनकाल में उसकी धार्मिक नीति उसके प्रशासनिक व्यवस्था की मुख्य केंद्र थी. प्रारम्भ में अकबर एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था अत: वह भी बाबर और हुमायु की कट्टर धार्मिक नीति का पालन करता रहा, लेकिन कालांतर में कई कारणों से उसके कट्टर धार्मिक विचारों में भारी परिवर्तन होता चला गया. उसके धार्मिक विचारों में बदलाव होने के कारण वह अन्य धर्मों के प्रति भी उदार हो गया. अकबर की धार्मिक नीति में बदलाव होने का कारण 1. आनुवंशिक प्रभाव अकबर के पिता हुमायुँ और उसके दादाजी बाबर, इस्लामी अनुयायी थे. लेकिन उनके विचारों में सल्तनत कालीन शासकों की तरह कट्टरता नहीं थी. अकबर की मां हमीदा बानू, जो की हुमायुँ की पत्नी थी, वो इस्लाम के शिया समुदाय से सम्बन्ध रखने वाली थी. वह बहुत ही उदार विचारों वाली महिला थी. अत: अकबर को ये गुण अनुवांशिक रूप से भी प्राप्त हुआ था. इसीलिए ये गुण उनके विचारों में भी झलकने लगा. 2. शिक्षकों का प्रभाव अकबर को शिक्षा, शिया और सुन्नी दोनों समुदायों से सम्बन्ध रखने वाले शिक्षकों से मिला था. उसके शिक्षक अब्दुल लतीफ़ शिया तथा मुनीम खां सुन्नी समुदाय से सम्बन्ध रखते थे. इन दोनों शिक्षकों का स्वभाव काफी उदार था. ऐसे उदार विचार वाले शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण करने के कारण अकबर के विचारों में भारी परिवर्तन हुआ. 3. विभिन्न धार्मिक नेताओं का प्रभाव अकबर, सूफी संप्रदाय के शेख मुबारक, पारसी दस्तूर महयार, जैन भानुचन्द्र, विजयसेन और हिन्दू धर्म के नेता आचार्य पुरुषोत्तम और देवा जैसे विभिन्न धर्मों के धार्मिक नेताओं के साथ संपर्क में था. उनके साथ लगातार संपर्क में रहने के कारण अकबर के अंदर धार्मिक चिंतन...

अकबर की "सुलह

प्रश्न:- अकबर की "सुलह-ए-कुल" की नीति का विस्तार से वर्णन कीजिए। परिचय:- अकबर ने यह महसूस किया कि सभी धर्मों का एक ही उद्देश्य है। अतः उसने सर्वधर्म समन्वय अर्थात सब धर्मों की अच्छी बातें लेने का मार्ग अपनाया। इसी को उसने 'सुलह-ए-कुल' कहा। इस तरह सब धर्मों की अच्छी बातों को लेकर उसने दीन-ए-इलाही चलाया। अकबर की धार्मिक नीति के मुख्य रूप से दो पक्ष थे- उसकी राज्य नीतियां व उसके अपने व्यक्तिगत विचारों के कारण। उसने उदार नीति अपनाकर हिंदुओं के प्रति सामान्य व्यवहार किया तथा रूढ़िवादिता को समाप्त किया। अकबर की नीतियों ने धार्मिक विरोधी समाज में सामंजस्य और सद्भावना का वातावरण उत्पन्न किया। हाल के इतिहासकारों ने उन आधारों पर ध्यान केंद्रित किया है जिसके कारण अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। इतिहासकार "इक्तेदार आलम खान" के अनुसार अकबर ने शिया और राजपूतों को भी अपनी नीति में शामिल किया। अकबर ने इसे अपने शासनकाल के अंतिम वर्षों में अपनाया था। माना जाता है कि अकबर की सुलह-ए-कुल की नीति जनमानस पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाई और उन्हें पूर्ण रूप से प्रभावित नहीं कर सकी। बदायूंनी के समकालीन प्रमाणों के आधार पर पता चलता है कि 1581 के बाद अकबर मुसलमान ही नहीं रहा। अकबर की सुलह-ए-कुल की नीति को जानने के लिए हमें उसके शासनकाल से उसके व्यक्तिगत विचारों का अध्ययन करने की जरूरत है। अकबर ने अपने शासनकाल के शुरुआती समय में 1563 में तीर्थ-यात्रा कर को समाप्त किया। उसने विद्रोही ग्रामीणों की पत्नियों और बच्चों को दासता से मुक्त कर दिया। अकबर ने राजपूत राजकुमारियों से विवाह किया और उन पर इस्लाम कबूल करने का कोई दबाव नहीं डाला। विवाह के उपरांत भी उसने अपने हिंदू पत्नियों को उनके अपने हिंदू धर्म क...

The Religious Policy of Aurangzeb and its Effects

Fanatic Religious Policy of Aurangzeb: The general view of historians is that Aurangzeb entirely reversed the policy of religious toleration followed by Akbar and it resulted in serious revolts among the Hindus. In the words of Lane-Poole, “For the first time in their history, the Mughals beheld a rigid Muslim in their emperor—a Muslim as sternly repressible of himself as of his people around him, a king who was prepared to stake his throne for sake of his faith. ADVERTISEMENTS: He must have been fully conscious of the dangerous path he was pursuing, and well aware … against every Hindu sentiment. Yet he chose this course, and adhered to this with unbending resolve through close on fifty years of unchallenged sovereignty.” Dr. S.R. Sharma, writing about the acts of religious intolerance of Aurangzeb has observed, “These were not the acts of a righteous ruler of constructive statesman, but the outbursts of blind fanaticism, unworthy of the great genius that Aurangzeb undoubtedly possessed in all other aspects.” Aims of Aurangzeb’s religious policy: It is generally accepted that Aurangzeb was a fanatic Sunni Mussalman. His chief aim was to convert Dar-ul-harb (India: the country of Kafirs or infidels) to Dar-ul-Islam (country of Islam). He was intolerant towards other faiths, especially Hindus. He was also against Shia Muslims. ADVERTISEMENTS: Following were the anti-Hindu measures adopted by Aurangzeb: 1. Demolishing temples and breaking idols: Even as a governor of Deccan ...

अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना कीजिए।

अकबर की धार्मिक नीति-अकबर महान् भारत में ही नहीं, वरन् विश्व के महानतम सम्राटों में प्रमुख स्थान रखता है। उसकी महानता का प्रमुख कारण है उसकी धार्मिक नीति, जिसके द्वारा वह दो परस्पर विरोधी धर्मावलम्बियों में समन्वय स्थापित करने में सफल रहा। 16वीं शताब्दी, जिस शताब्दी में अकबर भारत का शासक था, यूरोप के इतिहास में धर्मान्धता की शताब्दी मानी जाती है। उस समय धर्म के नाम पर अमानुषिक युद्ध एवं लोगों पर अमानवीय अत्याचार किए जाते थे। ऐसे समय में अकबर ने ‘सुलह-कुल की नीति को अपनाया, जिसके द्वारा एक अपूर्व धार्मिक सहिष्णुता को उसने भारत में स्थापित किया। मुस्लिम साम्राज्य के आरम्भ होने से लेकर अकबर के राज्यारोहण तक भारत में धर्म के नाम पर असंख्य अत्याचार किए गए थे किन्तु प्रकृति से ही सहिष्णु एवं उदार सम्राट अकबर ने शासितों को सुरक्षा एवं धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की। उसकी यह उदार नीति विभिन्न परिस्थितियों की उपज थी। अकबर की धार्मिक सहिष्णुता के तत्त्व –अकबर आरम्भ से ही धर्मान्ध अथवा अनुदार नहीं था। अपने पूर्वजों से उसे धार्मिक सहिष्णुता उत्तराधिकार में मिली थी। तैमूर, बाबर तथा हुमायूँ दिल्ली के अन्य सुल्तानों के समान धर्मान्ध अथवा अत्याचारी नहीं थे। इसके अतिरिक्त अकबर का संरक्षक बैरम खाँ भी उदार स्वभाव का था। 15वीं एवं 16वीं शताब्दी के भक्ति आन्दोलनों का प्रभाव भी अकबर पर पड़ा था। 1581 ई० में इबादतखाने की स्थापना के पश्चात् अकबर हिन्दू, जैन, सिक्ख, पारसी आदि अनेक धर्मावलम्बियों के सम्पर्क में आया, जिससे उसका धार्मिक दृष्टिकोण उदार होता गया तथा अन्त में उसने एक नवीन धर्म की स्थापना भी की, जिसके अनुसरण के लिए किसी भी धर्म का बन्धन आवश्यक नहीं था। अकबर के धार्मिक विचारों में क्रमिक पर...

Religious Policies Of Akbar And Aurangzeb: अकबर और औरंगजेब की धार्मिक नीतियों की तुलना

मुग़ल मुग़लों के वंश में दो महान वंशों की आनुवंशिक गुणवत्ता मिली हुयी थी. बाबर, जिसने सर्वप्रथम सन् 1526 में भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की थी, अपने पिता की ओर से तैमूर का और माँ की ओर से चंगेज़ खां का वंशज था. अपने पिता के बाद बाबर फ़रगाना (उज्बेकिस्तान) का शासक बना लेकिन जल्दी हीं वह राज्य उसके हाथों से निकल गया. राज च्यूत होने के बाद बाबर काबुल चला गया. वित्तीय कठिनाइयां, काबुल पर उज्बेकिस्तान के हमले की आशंका और राणा सांगा के भारत पर आक्रमण के निमंत्रण ने बाबर का ध्यान भारत की ओर आकर्षित किया. जिसके बाद 1526 की पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हरा कर बाबर ने भारत में दिल्ली सल्तनत का शासन ख़त्म किया और मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की.- यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं FREE GK EBook- Download Now. March Month Current Affairs Magazine- DOWNLOAD NOW मुग़ल साम्राज्य ने लगभग तीन शताब्दियों (1526-1540, 1555-1857) तक भारत पर राज किया. हालाँकि बीच में कुछ समय के लिए भारत में सूर वंश का शासन रहा. 1540 के बिलग्राम के युद्ध में शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को पराजित करके भारत में सूर साम्राज्य की स्थापना की. 1555 में हुमायूँ ने सरहिन्द की लड़ाई जीती और दुबारा राजगद्दी पर बैठे. 1556 में हुमायूँ की मृत्यु के बाद उसके बेटे अकबर को मात्र 14 वर्ष की उम्र में भारत की राजगद्दी मिली लेकिन उसके पहले बैरम खां के नेतृत्व में पानीपत की दूसरी लड़ाई लड़ी गयी जिसमें हेमचन्द्र विक्रमादित्य की पराजय के बाद भारत में वापस मुग़ल साम्राज्य की स्थापना हो गयी. 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्...

ALL TIME SUPER HIT KNOWLEDGE : *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह

ALL TIME SUPER HIT KNOWLEDGE : *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह- ए- कुल के विषय में आप क्या जानते हैं?* अथवा *अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें* अथवा *दीन-ए-इलाही के संदर्भ में अकबर की धार्मिक नीति का परीक्षण करें।* अथवा *दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक था। उसकी बुद्धिमता का नहीं।"आलोचना करें।* *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह- ए- कुल के विषय में आप क्या जानते हैं?* अथवा *अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें* अथवा *दीन-ए-इलाही के संदर्भ में अकबर की धार्मिक नीति का परीक्षण करें।* अथवा *दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक था। उसकी बुद्धिमता का नहीं।"आलोचना करें।* ♓🅰♉🚩🅾♏ *अकबर की धार्मिक नीति* *प्रश्न: अकबर के धार्मिक विचारों की विवेचना करें।* अथवा *अकबर की सुलह- ए- कुल के विषय में आप क्या जानते हैं?* अथवा *अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें* अथवा *दीन-ए-इलाही के संदर्भ में अकबर की धार्मिक नीति का परीक्षण करें।* अथवा *दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक था। उसकी बुद्धिमता का नहीं।"आलोचना करें।* *उत्तर-अकबर के धार्मिक विचार:* प्रारंभ से ही अकबर के विचार उदार, व्यापक और महान थे। कालांतर में विभिन्न धर्मों को मानने वाले विद्वान, संत, धर्मगुरू आदि के संपर्क में आने का अवसर उसे मिला; जैसे ---हिंदुओं के पुरुषोत्तम और देवी; जैन धर्म के हरिविजय सूरी, विजय सेन सूरी, भानु चंद्र उपाध्याय जिनचंद्र, पारसी धर्म के दस्तूर मेंहर जी राणा आदि; जिनका प्रभाव उसके ऊपर पड़ा और उसका दृष्टीकोन उदार होता गया। इनके अतिरिक्त सिक्ख गुरुओं में गुरु अमरदास, गुरु अर्जुन देव, ईसाई...

अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन करें

अकबर के बारें में : अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। बता दे की सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। अकबर की धार्मिक नीति : बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। अकबर एक मुसलमान था लेकिन दूसरे धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। इसका नतीजा ये हुआ की अकबर ने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। अकबर की धार्मिक नीति गैर इस्लामीयों के प्रति सहिष्णुता (सहन करने वाला) की नीति थी। उसने दिल्ली सल्तनत कालीन सुल्तानों और अपने परवर्ती मुगल सम्राटों के प्रति कठोर क्रूर शत्रुता पूर्ण नीति का शीघ्र ही परित्याग कर...

अकबर की "सुलह

प्रश्न:- अकबर की "सुलह-ए-कुल" की नीति का विस्तार से वर्णन कीजिए। परिचय:- अकबर ने यह महसूस किया कि सभी धर्मों का एक ही उद्देश्य है। अतः उसने सर्वधर्म समन्वय अर्थात सब धर्मों की अच्छी बातें लेने का मार्ग अपनाया। इसी को उसने 'सुलह-ए-कुल' कहा। इस तरह सब धर्मों की अच्छी बातों को लेकर उसने दीन-ए-इलाही चलाया। अकबर की धार्मिक नीति के मुख्य रूप से दो पक्ष थे- उसकी राज्य नीतियां व उसके अपने व्यक्तिगत विचारों के कारण। उसने उदार नीति अपनाकर हिंदुओं के प्रति सामान्य व्यवहार किया तथा रूढ़िवादिता को समाप्त किया। अकबर की नीतियों ने धार्मिक विरोधी समाज में सामंजस्य और सद्भावना का वातावरण उत्पन्न किया। हाल के इतिहासकारों ने उन आधारों पर ध्यान केंद्रित किया है जिसके कारण अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। इतिहासकार "इक्तेदार आलम खान" के अनुसार अकबर ने शिया और राजपूतों को भी अपनी नीति में शामिल किया। अकबर ने इसे अपने शासनकाल के अंतिम वर्षों में अपनाया था। माना जाता है कि अकबर की सुलह-ए-कुल की नीति जनमानस पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाई और उन्हें पूर्ण रूप से प्रभावित नहीं कर सकी। बदायूंनी के समकालीन प्रमाणों के आधार पर पता चलता है कि 1581 के बाद अकबर मुसलमान ही नहीं रहा। अकबर की सुलह-ए-कुल की नीति को जानने के लिए हमें उसके शासनकाल से उसके व्यक्तिगत विचारों का अध्ययन करने की जरूरत है। अकबर ने अपने शासनकाल के शुरुआती समय में 1563 में तीर्थ-यात्रा कर को समाप्त किया। उसने विद्रोही ग्रामीणों की पत्नियों और बच्चों को दासता से मुक्त कर दिया। अकबर ने राजपूत राजकुमारियों से विवाह किया और उन पर इस्लाम कबूल करने का कोई दबाव नहीं डाला। विवाह के उपरांत भी उसने अपने हिंदू पत्नियों को उनके अपने हिंदू धर्म क...