अखंड मंडलाकारं श्लोक अर्थ

  1. अखंड
  2. अखंड भारत के 10 रहस्य जानकर रह जाएंगे हैरान
  3. वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड हिंदी अर्थ valmiki ramayana Sundarakanda in hindi
  4. 100+ संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित
  5. 101+ संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  6. श्री रामचरितमानस पारायण विधि कैसे करें
  7. तुकाराम गाथा/गाथा १ ते ३००
  8. विद्या पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित


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अखंड

चर्चित शब्द (नाम) जिच्यापासून माणसाला आपली सुटका करून घ्यावीशी वाटते ती मानसिक वा शारीरिक अप्रिय अनुभूती. (नाम) एखाद्या व्यक्तीच्या जिवंतपणी वा तिच्या पश्च्यात तिच्या ठिकाणी असणारे गुण जिच्यात आढळतात किंवा तिचे कार्य जी व्यक्ती चालवते ती. (विशेषण) कोणी अजून किंवा काही भिन्न. (नाम) छापण्यासाठी द्यावयाची हाताने लिहिलेली पुस्तक वा लेखाची प्रत. (नाम) रेड्याची मादी. (नाम) एखाद्या पदावर नेमण्याची क्रिया. (नाम) प्रतिकूल परिस्थितीमुळे निर्माण होणारा कठीण प्रसंग. (नाम) ज्यावर फूल उगवते असा कमळाचा देठ. (नाम) बदकापेक्षा मोठा एक पांढरा पक्षी. (नाम) एखाद्या ठिकाणी राहणार्‍या लोकांची मोजणी.

2)अखंड

"2)अखंड-मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः." का हिन्दी में अनुवाद अ, अखंड-मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः, गुरु वही श्रेष्ठ होता है जिसकी प्रेरणा से किसी का चरित्र बदल जाये। "2)अखंड-मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः." का हिन्दी में शीर्ष अनुवाद है।

अखंड भारत के 10 रहस्य जानकर रह जाएंगे हैरान

भारतीय हो तो यह स्वीकारना जरूरी है कि हम भी भारत के इतिहास के हिस्से हैं। हमारे पूर्वज ब्रह्मा, मनु, ययाति, राम और कृष्ण ही थे। इतिहास में उन लोगों के इतिहास का उल्लेख हो जिन्होंने इस देश को बनाया, कुछ खोजा, अविष्कार किए या जिन्होंने देश और दुनिया को कुछ दिया। जिन्होंने इस देश की एकता और अखंडता को कायम रखा। यहां प्रस्तुत है अखंड भारत के बारे में संक्षिप्त बातें। आप कागज पर पीपल के दो पत्तों और दो खरगोश की आकृति बनाइए और फिर उसे उल्टा करके देखिए, आपको धरती का मानचित्र दिखाई देखा। यह श्लोक 5 हजार वर्ष पूर्व लिखा गया था। इसका मतलब लोगों ने चंद्रमा पर जाकर इस धरती को देखा होगा तभी वह बताने में सक्षम हुआ होगा कि ऊपर से समुद्र को छोड़कर धरती कहां-कहां नजर आती है और किस तरह की। पहले संपूर्ण हिन्दू धर्म जम्बू द्वीप पर शासन करता था। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन मध्यकाल में लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है। यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है। जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता ...

वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड हिंदी अर्थ valmiki ramayana Sundarakanda in hindi

वाल्मीकिरामायणसुन्दरकाण्डश्लोकहिंदीअर्थसहित Valmiki Ramayana Sundarakanda with Hindi Meaning काण्डपरिचय: श्राद्धेषुदेवकार्येषुपठेत्सुन्दरकाण्डम्॥ वाल्मीकिरामायणकेइससर्वाधिकलोकप्रियकाण्डमें 68 सर्गहैंजोकुल 2,855 श्लोकोंकासंग्रहहै।धार्मिकदृष्टिसेकाण्डकापारायणसमाजमेंबहुधाप्रचलितहै।बृहद्धर्मपुराणमेंवर्णितउपरोक्तश्लोककेअनुसारश्राद्धतथादेवकार्यमेंइसकेपाठकाविधानहै। सुन्दरकाण्डमेंहनुमानद्वारासमुद्रलंघनकरकेलंकापहुँचना,सुरसावृत्तान्त,लंकापुरीवर्णन,रावणकेअन्त:पुरमेंप्रवेशतथावहाँकासरसवर्णन,अशोकवाटिकामेंप्रवेशतथाहनुमानकेद्वारासीताकादर्शन, सीतातथारावणसंवाद, सीताकोराक्षसियोंकेतर्जनकीप्राप्ति, सीता-त्रिजटा-संवाद, स्वप्न-कथन, शिंशपावृक्षमेंअवलीनहनुमानकानीचेउतरनातथासीतासेअपनेकोरामकादूतबताना, रामकीअंगूठीसीताकोदिखाना, “मैंकेवलएकमासतकजीवितरहूँगी, उसकेपश्चात्नहीं” -ऐसासन्देशसीताकेद्वाराहनुमानकोदेना, लंकाकेचैत्य-प्रासादोंकोउखाड़नातथाराक्षसोंकोमारनाआदिहनुमानकृत्यवर्णितहैं। इसकाण्डमेंअक्षकुमारकावध, हनुमानकामेघनादकेसाथयुद्ध, मेघनादकेद्वाराब्रह्मास्त्रसेहनुमानकाबन्धनपूर्वकरावणकेदरबारमेंप्रवेश, रावण-हनुमान-संवाद, विभीषणकेद्वारादूतवधनकरनेकापरामर्श, हनुमानकीपूँछजलानेकीआज्ञा, लंका-दहन, हनुमानकासीता-दर्शनकेपश्चात्प्रत्यावर्तन, समाचार-कथन, दधिमुख-वृत्तान्त, हनुमानकेद्वारासीतासेलीगईकाञ्चनमणिरामकोसमर्पितकरना, तथासीताकीदशाआदिकावर्णनकियागयाहै। (यहकार्य सर्गएवंविषय: सर्ग 1: हनुमान्जीकेद्वारासमुद्रकालङ्घन, मैनाककेद्वाराउनकास्वागत, सुरसापरउनकीविजयतथासिंहिकाकावध,लंकाकीशोभादेखना सर्ग 2: लंकापुरीकावर्णन, उसमेंप्रवेशकरनेकेविषयमेंहनुमानजीकाविचार, उनकालघुरूपसेपुरीमेंप्रवेशतथाचन्द्रोदयकावर्णन सर्ग 3: लंकापुरीकाअवलोकनकर...

100+ संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित

Sanskrit Suktiyan Arth Sahit सूक्तियाँ हमारी मानसिकता व हमारे शुद्ध विचारों का निर्माण करती हैं, जिनके अनुसरण से जीवन को सरलता से जिया जा सकता है। यह जीवन में सुहृद् मित्र की भाँति हमारा पथ-प्रदर्शन करती हैं। आज की इस पोस्ट में हम आपको मुख्य 100 से भी अधिक सूक्तियां (नीतिवचन) को बतायेंगे, इन्हें आप अपने जीवन में जरूर अपनाये। संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Suktiyan Arth Sahit संस्कृत सूक्तियाँ अतिथि देवो भव। अर्थ– अतिथि हमारे लिए भगवान के स्वरूप होता है। असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय। अर्थ– जो ज्ञान असत्य से सत्य की ओर ले जायें और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जायें। तमसो मा ज्योतिर्गमय। अर्थ– अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाये। वसुधैव कुटुंबकम। अर्थ– पृथ्वी के सभी वासी एक परिवार है। परोपकाराय सतां विभूतय:। अर्थ– सज्जनों की विभूति हमेशा परोपकार के लिए होती है। हम 5 सूक्तियां संस्कृत में अर्थ सहित पढ़ चुके है, चलिए आगे पढ़ते है। विद्या विहीन पशु। अर्थ– विद्याविहीन (विद्या को ग्रहण ना करने वाला) मनुष्य पशु के समान होता है। आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महानरिपु:। अर्थ– आलस्य घोर शत्रु है। Image: संस्कृत में 10 सूक्ति (sukti in sanskrit) अहिंसा परमो धर्म:। अर्थ– अहिंसा ही सबसे बड़ा (परम) धर्म होता है। मा कश्चिद् दुख भागभवेत। अर्थ– कोई दु:खी न हो अर्थात सभी सुखी रहे। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। अर्थ– हमारी जन्मस्थली स्वर्ग से भी बड़ी होती है। हम 10 सूक्तियां संस्कृत में अर्थ सहित पढ़ चुके है, चलिए आगे पढ़ते है। नास्तिको वेदनिन्दकः। अर्थ– वेदों की निन्दा करने वाला इंसान नास्तिक होता है। मा गृधः कस्यस्विद्धनम्। अर्थ– किसी दूसरे के धन का लोभ नहीं करना चाहिए। योग: कर्...

101+ संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

सर्वश्रेष्ठ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (Sanskrit Shlokas): संस्कृत भाषा विश्व की सबसे पुरानी भाषा है और संस्कृत भाषा (best sanskrit slokas) का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है। संस्कृत भाषा को देव भाषा भी कहा जाता है। संस्कृत श्लोकों (Slokas in Sanskrit) का आधार हमेशा से ही मनुष्य जीवन रहा हैं, ऐसा प्राचीनकाल से ही चला आ रहा हैं जो वर्तमान जीवन में भी प्रासंगिक हैं। प्रत्येक संस्कृत के श्लोक (5 slokas in sanskrit) में मनुष्य के जीवन जीने के मूल्य, उससे होने वाले लाभ तथा जीवन की नीतियोंके बारे में बताया गया हैं। यह श्लोक (slokam) मात्र विद्यार्थियों के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्राणी मात्र के लिए हैं और उनके जीवन के सम्पूर्ण विकास का आधार माना हैं। बिना ज्ञान और विद्या अर्जन के मानव जीवन दिशाहीन और भ्रमित जैसा लगता हैं। ऋषि-मुनियों ने संस्कृत भाषा (easy sanskrit slokas) में कई सारी बातें संस्कृत श्लोको (Sanskrit Shlokas) में लिखी है। हमने इस इस पोस्ट में आपके लिए संस्कृत में श्लोक अर्थ सहित के कुछ विडियो भी उपलब्ध किये है, आप उन्हें जरूर देखे। तो आइये जानते हैं प्रेरणादायक नीति श्लोक हिंदी अर्थ सहित। काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।। अर्थ– हर विद्यार्थी में हमेशा कौवे की तरह कुछ नया सीखाने की चेष्टा, एक बगुले की तरह एक्राग्रता और केन्द्रित ध्यान एक आहत में खुलने वाली कुते के समान नींद, गृहत्यागी और यहाँ पर अल्पाहारी का मतबल अपनी आवश्यकता के अनुसार खाने वाला जैसे पांच लक्षण होते है। श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन। विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन।। अर्थ – कानों में कुंडल पहन लेने से...

श्री रामचरितमानस पारायण विधि कैसे करें

श्रीरामचरितमानसपारायण, अखंडरामायणपूजनविधिकैसेकरें: श्रीरामचरितमानसकाविधिपूर्वकपाठकरनेसेपूर्वगोस्वामीतुलसीदासजी, श्रीवाल्मीकिजी, श्रीमहादेवजीतथाश्रीहनुमानजीमहाराजकाआह्वान-पूजनकरनेकेपश्चात्तीनोंभाइयोंसहितश्रीसीतारामजीकाआह्वान, षोडशोपचारपूजनऔरध्यानकरनाचाहिये।इसकेबादपाठकाआरम्भकरनाचाहिये। आह्वानमन्त्र, षोडशोपचारपूजा, करन्यास, हृदयन्यासऔरध्यानकेलिएनीचेमंत्रदिएजारहेहैं, जिसेपवित्रहृदयसेआपस्वयंभीकरसकतेहैं।अन्यथाकिसीविप्रकासहयोगलियाजासकताहै: आवाहनमन्त्रः तुलसीकनमस्तुभ्यमिहागच्छशुचिव्रत। नैर्ऋत्यउपविश्येदंपूजनंप्रतिगृह्यताम्।।१।। ॐतुलसीदासायनमः श्रीवाल्मीकनमस्तुभ्यमिहागच्छशुभप्रद। उत्तरपूर्वयोर्मध्येतिष्ठगृह्णीष्वमेऽर्चनम्।।२।। ॐवाल्मीकायनमः गौरीपतेनमस्तुभ्यमिहागच्छमहेश्वर। पूर्वदक्षिणयोर्मध्येतिष्ठपूजांगृहाणमे।।३।। ॐगौरीपतयेनमः श्रीलक्ष्मणनमस्तुभ्यमिहागच्छसहप्रियः। याम्यभागेसमातिष्ठपूजनंसंगृहाणमे।।४।। ॐश्रीसपत्नीकायलक्ष्मणायनमः श्रीशत्रुघ्ननमस्तुभ्यमिहागच्छसहप्रियः। पीठस्यपश्चिमेभागेपूजनंस्वीकुरुष्वमे।।५।। ॐश्रीसपत्नीकायशत्रुघ्नायनमः श्रीभरतनमस्तुभ्यमिहागच्छसहप्रियः। पीठकस्योत्तरेभागेतिष्ठपूजांगृहाणमे।।६।। ॐश्रीसपत्नीकायभरतायनमः श्रीहनुमन्नमस्तुभ्यमिहागच्छकृपानिधे। पूर्वभागेसमातिष्ठपूजनंस्वीकुरुप्रभो।।७।। ॐहनुमतेनमः अथप्रधानपूजाचकर्तव्याविधिपूर्वकम्। पुष्पाञ्जलिंगृहीत्वातुध्यानंकुर्यात्परस्यच।।८।। रक्ताम्भोजदलाभिरामनयनंपीताम्बरालंकृतं श्यामांगंद्विभुजंप्रसन्नवदनंश्रीसीतयाशोभितम्। कारुण्यामृतसागरंप्रियगणैर्भ्रात्रादिभिर्भावितं वन्देविष्णुशिवादिसेव्यमनिशंभक्तेष्टसिद्धिप्रदम्।।९।। आगच्छजानकीनाथजानक्यासहराघव। गृहाणममपूजांचवायुपुत्रादिभिर्युतः।।१०।। इत्यावाहनम् सुवर्णरचितंरामदिव्यास्तरण...

तुकाराम गाथा/गाथा १ ते ३००

398 मंगलाचरण - अभंग ६ १ समचरणदृष्टि विटेवरी साजिरी । तेथें माझी हरी वृत्ति राहो ॥१॥ आणीक न लगे मायिक पदार्थ । तेथें माझें आर्त्त नको देवा ॥ध्रु.॥ ब्रम्हादिक पदें दुःखाची शिराणी । तेथें दुश्चित झणी जडों देसी ॥२॥ तुका म्हणे त्याचें कळलें आम्हां वर्म । जे जे कर्मधर्म नाशवंत ॥३॥ २ सुंदर तें ध्यान उभे विटेवरी । कर कटावरी ठेवूनियां ॥१॥ तुळसीचे हार गळां कासे पीतांबर । आवडे निरंतर तें चि रूप ॥ध्रु.॥ मकरकुंडलें तळपती श्रवणीं । कंठीं कौस्तुभमणि विराजित ॥२॥ तुका म्हणे माझें हें चि सर्व सुख । पाहीन श्रीमुख आवडीनें ॥३॥ ३ सदा माझे डोळे जडो तुझे मूर्ती । रखुमाईच्या पती सोयरिया ॥१॥ गोड तुझें रूप गोड तुझें नाम । देईं मज प्रेम सर्व काळ ॥ध्रु.॥ विठो माउलिये हा चि वर देईं । संचरोनि राहीं हृदयामाजी ॥२॥ तुका म्हणे कांहीं न मागे आणीक । तुझे पायीं सुख सर्व आहे ॥३॥ ४ राजस सुकुमार मदनाचा पुतळा । रविशशिकळा लोपलिया ॥१॥ कस्तुरीमळवट चंदनाची उटी । रुळे माळ कंठीं वैजयंती ॥ध्रु.॥ मुगुट कुंडले श्रीमुख शोभलें । सुखाचें ओतलें सकळ ही ॥२॥ कासे सोनसळा पांघरे पाटोळा । घननीळ सांवळा बाइयानो ॥३॥ सकळ ही तुम्ही व्हा गे एकीसवा । तुका म्हणे जीवा धीर नाहीं ॥४॥ ५ कर कटावरी तुळसीच्या माळा । ऐसें रूप डोळां दावीं हरी ॥१॥ ठेविले चरण दोन्ही विटेवरी । ऐसें रूप हरी दावीं डोळां ॥ध्रु.॥ कटीं पीतांबर कास मिरवली । दाखवीं वहिली ऐसी मूर्ती ॥२॥ गरुडपारावरी उभा राहिलासी । आठवें मानसीं तें चि रूप ॥३॥ झुरोनी पांजरा होऊं पाहें आतां । येईं पंढरीनाथा भेटावया ॥४॥ तुका म्हणे माझी पुरवावी आस । विनंती उदास करूं नये ॥५॥ ६ गरुडाचें वारिकें कासे पीतांबर । सांवळें मनोहर कैं देखेन ॥१॥ बरवया बरवंटा घनमेघ सांवळा । वैजयंतीमाळा गळां शोभे ॥ध्रु.॥ मुगुट ...

विद्या पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

अधिगतपरमार्थान्पण्डितान्मावमंस्था स्तृणमिव लघुलक्ष्मीर्नैव तान्संरुणद्धि। अभिनवमदलेखाश्यामगण्डस्थलानां न भवति बिसतन्तुवरिणं वारणानाम्।। भावार्थ: किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति को कभी भी काम या अपमान के लिए नहीं आंका जाना चाहिए क्योंकि भौतिक संसार की भौतिक संपत्ति उसके लिए घास की तरह है। जिस प्रकार शराबी हाथी को कमल की पंखुड़ियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार धन से बुद्धिमान को नियंत्रित करना असंभव है। विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा। सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम् तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु।। भावार्थ: विद्या एक अतुलनीय प्रसिद्धि है; भाग्य नष्ट होने पर आश्रय देती है, कामधेनु है, वियोग में समान है, तीसरी आंख है, आतिथ्य का मंदिर है, परिवार-महिमा है, रत्नों के बिना आभूषण है; इसलिए अन्य सभी विषयों को छोड़कर ज्ञान के अधिकारी बनो। विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम् विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः। विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम् विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः।। भावार्थ: ज्ञान मनुष्य का विशेष रूप है, यह छिपा हुआ धन है। वह भोग की दाता, यश की दाता और उपकारी है। विद्या गुरुओं की गुरु है, विदेश में वह मनुष्य की भाई है। विद्या महान देवता हैं; राजाओं में ज्ञान की पूजा होती है, धन की नहीं। इसलिए वह बिना शिक्षा वाला जानवर है। मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्। लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।। भावार्थ: विद्या माता के समान रक्षा करती है, पिता के समान लाभ करती है, ...

2)अखंड

"2)अखंड-मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः." का हिन्दी में अनुवाद अ, अखंड-मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः, गुरु वही श्रेष्ठ होता है जिसकी प्रेरणा से किसी का चरित्र बदल जाये। "2)अखंड-मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः." का हिन्दी में शीर्ष अनुवाद है।