अलाउद्दीन खिलजी का जालोर पर आक्रमण

  1. Alauddin Khilji in Hindi
  2. जालौर जिला
  3. अल्लाउद्दीन खिलजी का इतिहास
  4. अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ पर आक्रमण – Studywhiz
  5. Alauddin Khilji Story in Hindi/अलाउद्दीन खिलजी की कहानी और इतिहास
  6. Rajput History: जालौर के राजकुमार ने दी थी अलाउद्दीन खिलजी को सीधी… – DHARMWANI.COM


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Alauddin Khilji in Hindi

अलाउद्दीन खिलजी का मूल नाम अली गुर्शप्प था. उसने अपने चाचा और ओहदे में ससुर जलाल-उद-दीन फिरोज खिलजी की हत्या करने के बाद 1296 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठ गया. अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के सबसे शक्तिशाली शासक के रूप में जाना जाता था. यद्यपि अलाउद्दीन खिलज़ी एक अनपढ़ शासक था लेकिन इस तथ्य के बावजूद, वह एक सक्षम सैनिक था. उसने सेना की कमान में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. उसने दिल्ली सल्तनत का उत्तर के अलावा दक्षिण के क्षेत्र में भी विस्तार किया. उसके शासन काल के दौरान दिल्ली साम्राज्य सिंधु से बंगाल तक और हिमालय से विन्ध्य क्षेत्र तक विस्तृत हुआ. उसने राजा रामचंद्र को पराजित किया और उसे पहाड़ी क्षेत्रो में पलायन करने के लिए मजबूर किया. मंगोलों का आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी ने सफलतापूर्वक मंगोलों के आक्रमण का सामना किया. मंगोलों ने कुतलुग ख्वाजा जोकि कुबलाई खान का पोता था ने करीब 200000 लाख की सेना के साथ दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण किया. अलाउद्दीन खिलज़ी मंगोलों से सीरी दुर्ग के पास मिला और युद्ध के मैदान में मंगोलों से मुलाकात की और आसानी से उन्हें हरा दिया. इसके अलावा मंगोलों के और भी आक्रमण तर्घी के नेतृत्व में हुए. हालांकि, मंगोलों को प्रत्येक बार पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने हमले को जारी रखा. अन्य मंगोल आक्रमण मंगोल सेनापति किबाक, इक़बाल मंद खान और तार्ताक के नेतृत्व में हुए लेकिन अलाउद्दीन खिलज़ी के लौह नीति ने उनकी प्रत्येक इच्छा को नेस्तनाबूत कर दिया. अलाउद्दीन खिलजी के मंगोलों के प्रति कठोर नीति ने उनके उत्साह और हिम्मत को नष्ट कर दिया. अलाउद्दीन ने अपने शासन के दौरान कुछ बिंदुओ पर, हज़रत मुहम्मद की नकल करने का प्रयास किया था और एक नए धर्म की स्थापना की ...

जालौर जिला

अनुक्रम • 1 इतिहास • 2 जालौर दुर्ग • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ इतिहास [ ] प्राचीन काल में जालोर को जबलीपुरा के नाम से जाना जाता था - जिसका नाम हिंदू संत 10 वीं शताब्दी में, जालोर पर विरम और फिरोजा के संबंध में कहा जाता है कि बादशाह राजा विरम को "पन्नू पहलवान" के साथ "वेनिटी" के खेल के लिए आमंत्रित किया। पराजित करने के बाद पहलवान राजकुमारी फिरोजा को विरम से प्यार हो गया और उसने इसका प्रस्ताव भेजा विवाह, जिसे वीरम ने अस्वीकार कर दिया। इस बादशाह राजा से नाराज होकर अपने सैनिकों के साथ पूरे जालौर को घेर लिया। जालोर का यह पुत्र विरम देव, हेरोस का सबसे बड़ा और पीछे छोड़ दिया गया है मीठी यादें। कान्हड़देव और उनके पुत्र वीरमदेव की जालोर में रक्षा के लिए मृत्यु हो गई. सैकड़ों राजपूत बहादुरों ने अपने देश के लिए जान दे दी है, धर्म और गौरव बहादुर महिलाओं ने बचाने के लिए खुद को आग में डाल लिया है उनका सम्मान के लीये| जालोर, मध्य समय में लगभग 1690 [[जालोर] का शाही परिवार [[गुजरात राज्य] दहिया शासक वराह जिसने यहाँ पर शासन किया। जालोर पर पहले परमार वन्श का शासक था, जिसकी एक पुत्रि थी जिसने दहिया राजपुत से विवाह किया और तब यहाँ दहिया शासक बना। उन्होने १६४ खेडे (गावो) पर शासन किया। उनकी सातवी पीढी के वंशज, मोताजी दहिया, ने गढ बावतरा में ६४ गाव (खेडे) पर शासन किया, जो आज दहियावट्टी के नाम से जानी जाति है। इसके पश्चात यहां सोनगरा चौहान वंश का शासन स्थापित हुआ। महाराजा जालौर जिले का कुल क्षेत्रफल – 10,640 वर्ग किलोमीटर नगरीय क्षेत्रफल – 48.43 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 10,591.57 वर्ग किलोमीटर है। जालौर जिले की मानचित्र स्थिति – 24°48’5 से 25°48’37” उत्तरी अक्षांश तथा 71°7′ से 75°...

अल्लाउद्दीन खिलजी का इतिहास

पदमावत फिल्म के आने के बाद अलाउद्दीन खिलजी को हर कोई जानने लगा | फिल्म में रणवीर सिंह ने जबरदस्त एक्टिंग की और जिस तरह से खिलजी के किरदार को निभाया उसने हमें खिलजी से नफरत करने को मजबूर कर दिया | फिल्म की कहानी रानी पद्मावती के इर्द गिर्द ही घूमती है लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि खिलजी की जिंदगी में इसके अलावा भी बहुत कुछ था | इस बात को जानकर आपको थोड़ी हैरानी भी हो सकती है लेकिन क्विंट के मुताबिक खिलजी ने चित्तोड़ को अपने क्षेत्र के विस्तार के लिए घेरा था ना कि पद्मावती के लिए | Source: खिलजी के बारे में कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि भारत Alauddin Khilji का कर्जदार है क्यूंकि उसके शासनकाल में मंगोलों ने भारत पर बार बार आक्रमण किये | मंगोल किस तरह से लोगों को क्रूरता से खत्म करते हुए आगे बढ़ते थे इसे ब्यान करना भी मुश्किल है | ऐसे में खिलजी ने एक दो बार नहीं बल्कि 5 बार मंगोलों को धूल चटाई थी | साथ ही खिलजी ने बहुत से सुधार भी किये थे और वो उस वक़्त का एक बड़ा कामयाब लीडर था | आइये आपको बताते हैं अलाउद्दीन खिलजी हिस्ट्री इन हिंदी जिससे आप खिलजी के बारे में थोड़ा और जान सके | ये जानने कि भी कोशिश करेंगे कि अलाउद्दीन खिलजी की कहानी में कितनी सच्चाई है | कहीं इस कहानी को भी किसी के लिए सिर्फ नफरत फैलने के लिए इस्तेमाल तो नहीं किया जाता | Table of Contents • • • • • • • अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास Alauddin Khilji History in Hindi बचपन से अल्लाउद्दीन ने एक सपना देखा था | उसे दुनिया का दूसरा एलेक्जेंडर बनना था और पूरी दुनिया पर राज करना था | हालांकि अल्लाउद्दीन दुनिया के लिए एलेक्जेंडर तो नहीं बन पाया लेकिन वो खुद को सिकंदर – ए – सानी कहलवाता था, यानी कि अभी के समय का सिकंदर | इससे...

अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ पर आक्रमण – Studywhiz

रावल रत्नसिंह (1302-1303 ई.) • रावल समरसिंह (1273-1302 ई.) की मृत्यु के बाद 1302 ई. में मेवाड़ के सिंहासन पर उसका पुत्र रत्नसिंह बैठा। रत्नसिंह को केवल एक वर्ष ही शासन करने का अवसर मिला जो दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए प्रसिद्ध है। • अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के प्रमुख कारण इस प्रकार थे:- अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा – • अलाउद्दीन खिलजी एक महत्त्वाकांक्षी और साम्राज्यवादी शासक था। वह सिकन्दर के समान विश्व विजेता बनना चाहता था जिसका प्रमाण उसकी उपाधि ‘सिकन्दर सानी’ (द्वितीय सिकन्दर) थी। • दक्षिण भारत की विजय और उत्तर भारत पर अपने अधिकार को स्थायी बनाये रखने के लिए राजपूत राज्यों को जीतना आवश्यक था। चित्तौड़ पर उसका आक्रमण इसी नीति का हिस्सा था। मेवाड़ की बढ़ती हुई शक्ति – • जैत्रसिंह, तेजसिंह और समरसिंह जैसे पराक्रमी शासकों के काल में मेवाड़ की सीमाओं में लगातार वृद्धि होती जा रही थी। इल्तुतमिश, नासिरुद्दीन महमूद और बलबन जैसे सुल्तानों ने मेवाड़ की इस बढ़ती शक्ति पर लगाम लगाने का प्रयास किया किन्तु वे सफल नहीं हुए। • 1299 ईमें मेवाड़ के रावल समरसिंह ने गुजरात अभियान के लिए जाती हुई शाही सेना का सहयोग करना तो दूर, उल्टे उससे दण्ड वसूल करके ही आगे जाने दिया। अलाउद्दीन खिलजी उस घटना को भूल नहीं पाया था। चित्तौड़ की भौगोलिक एवं सामरिक महत्त्व – • दिल्ली से मालवा, गुजरात तथा दक्षिण भारत जाने वाला प्रमुख मार्ग चित्तौड़ के पास से ही गुजरता था। इस कारण अलाउद्दीन खिलजी के लिए मालवा, गुजरात और दक्षिण भारत पर राजनीतिक एवं व्यापारिक प्रभुत्व बनाए रखने के लिए चित्तौड़ पर अधिकार करना आवश्यक था। • मौर्य राजा चित्रांगद द्वारा निर्मित चित्...

Alauddin Khilji Story in Hindi/अलाउद्दीन खिलजी की कहानी और इतिहास

Alauddin Khilji Story in Hindi: अलाउद्दीन खिलजी की बात की जाएं तो वह खिलजी वंश के दूसरे शासक थे। अलाउदीन खिलजी निदर्यी और लड़ाकू स्वभाव के थे और वह भारत के इतिहास में अपने निर्दयी और लड़ाकू नेचर के लिए मशहूर थे। खिलजी एक बहुत ही शक्तिशाली और कुशल रूलर था। उसने अपने समय में काफी लूटपाट की और पूरे देश में कोहराम बचा दिया। उसने अपने साम्राज्य को और बड़ा करने के लिए हर जगह लूटपाट की और अपने साम्राज्य को काफी बड़ा लिया। चलिए जानते है अलाउद्दीन खिलजी के जीवन के बारे में, उनकी पत्नी कौन थी, उनके शासन काल के बारे में, उनका जन्म कब हुआ, इतिहास के बारे में बताने जा रहे है। Alauddin Khilji Story in Hindi अलाउदीन खिलजी साउथ इंडिया (दक्षिण भारत) को जीतने वाला पहला मुस्लिम राजा था। जानकारी के लिए बता दें, खिलजी ने अपने अपने शासन काल में दक्षिण में मदुरई तक अपने साम्राज्य को और बड़ा कर दिया था। अलाउदीन खिलजी के बाद ये 300 साल बाद भी कोई भी रूलर इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा नहीं कर पाया था वह अपने आप को दूसरा अलेक्ज़ेंडर सिकंदर समझता था Table of Contents • • • • • • • • • अलाउद्दीन खिलजी का जन्म जैसा की हमने आपको बताया की अलाउद्दीन खिलजी, खिलजी वंश के दूसरे रूलर थे, बता देते है अलाउद्दीन खिलजी का अस्सली नाम अली गुरशास्प उर्फ़ जूना खान खिलजी था। हाजी उद दबीर के अनुसार 16 वीं-17 वीं शताब्दी में अलाउद्दीन का जन्म कलात, ज़ाबुल प्रान्त, अफ़्ग़ानिस्तान में हुआ था। वह एक इम्पीरियल रूरल था। अलाउदीन को अपने मतलबी होने के वजह से सिकंदर ए सनी का खिताब दिया गया था जिसका मतलब होता है दूसरा सिकंदर। खास बात तो ये है कि उसने अपने शासन काल के समय शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी। खिलजी ने की अपने चाचा की लड़की से शाद...

Rajput History: जालौर के राजकुमार ने दी थी अलाउद्दीन खिलजी को सीधी… – DHARMWANI.COM

जी हाँ ये बात सच है कि जालौर के राजकुमार वीरमदेव चौहान ने मरने से पहले एक युद्ध में 40 से भी अधिक तलवारें तोड़ दी थीं और अलाउद्दीन खिलजी के 500 से अधिक सैनिकों को अकेले ही मार दिया था। उस समय राजकुमार वीरमदेव चौहान की उम्र मात्र 22 वर्ष की ही थी। दरअसल, बात सन 1298 की है। उन दिनों दिल्ली की गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी बैठा हुआ था। राजकुमार वीरमदेव सोनगरा चौहान जालौर की तरफ से समझौते के तहत अलाउद्दीन खिलजी के सलाहकार के तौर पर दिल्ली गए हुए थे। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, राजकुमार वीरमदेव चौहान उस समय जालोर के सबसे बड़े योद्धा होने के साथ देखने में सुन्दर और सुडोल थे। बस फिर क्या था दिल्ली दरबार में रहने के दौरान अलाउद्दीन खिलजी की शहजादी फिरोजा की नजर उन पर पड़ गई और राजकुमार से एकतरफा प्रेम कर बैठी। बात खिलजी तक पहुँची। खिलजी ने अपनी बेटी की खुशी के लिए राजकुमार वीरमदेव चौहान के सामने इस शादी का प्रस्ताव रख दिया। लेकिन, राजकुमार वीरमदेव ने सुलतान खिलजी की तरफ से दिए गए उस विवाह प्रस्ताव को सामाजिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए स्वयं ही मान्यता नहीं दी और रिश्ते को ठुकराते हुए जालोर वापस लौट आये। इतिहासकारों का कहना है कि राजकुमार वीरमदेव के प्रति शहजादी फिरोजा का एकतरफा वह प्रेम इतना अधिक था कि उसका विवाह प्रस्ताव ठुकरा देने के बाद भी फिरोजा ने मन ही मन राजकुमार वीरमदेव चौहान को अपना पति मान लिया था। राजकुमार वीरमदेव के द्वारा विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिए जाने के बाद अलाउद्दीन खिलजी अपमान की आग में जलने लगा। बदला लेने के लिए खिलजी ने जालोर पर आक्रमण के लिए कई बार अपनी सैन्य टुकड़ियां भेजीं, लेकिन राजकुमार वीरमदेव की वीरता के सामने हर बार उसे हार का सामना करना पड़ा। राजकुमार वीरमदे...