अलाउद्दीन खिलजी को किसने मारा

  1. Alauddin Khilji History in Hindi
  2. अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण नीति
  3. अलाउद्दीन खिलजी कौन था
  4. अलाउद्दीन खिलजी का बाजार नियंत्रण व्यवस्था, साम्राज्य विस्तार नीति और कर प्रणाली
  5. अलाउद्दीन खिलजी की उपलब्धियां/विजय


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Alauddin Khilji History in Hindi

अलाउद्दीन खिलजी एक महत्वकांक्षी शासक था जिसने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया था। खिलजी वंश के प्रथम शासक जलाउद्दीन खिलजी के बाद अलाउदीन राजगद्दी पर बैठा था। अलाउद्दीन खिलजी को इतिहास में क्रूर शासक के तौर पर जाना जाता है। परंतु इतिहास में उसके द्वारा किये गए विभिन्न सुधारों को भी याद किया जाता है। Alauddin Khilji History in Hindi से क्या आप कुछ अनसुने किस्से जानने चाहते है, तो आइए जानते हैं Alauddin Khilji History in Hindi विस्तार से। Check Out: Indian Freedom Fighters (महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी) Source : Wikipedia अलाउद्दीन खिलजी के जन्म को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत है। उसका जन्म 1260 से 1275 के बीच में माना जाता है। उनका वास्तविक नाम अली गुरशास्प उर्फ़ जूना खान खिलजी था।इनके पिता शाहिबुद्दीन मसूद की मृत्यु के बाद अलाउद्दीन खिलजी को उसके चाचा एवं खिलजी वंश के प्रथम सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज खिलजी ने उनका पालन-पोषण किया था। जलालुद्दीन ने अपनी बेटियों का विवाह, अलाउद्दीन खिलजी और उसके छोटे भाई अलमास बेग के साथ कर दिया था, हालांकि, अलाउद्दीन उसकी बेटी से शादी कर के खुश नहीं थे, इसलिए उन्होंने दूसरी शादी महरू नाम की बेगम के साथ कर ली थी। Check Out: Alauddin Khilji History in Hindi अब आप पढ़ेंगे रानी पद्मावती और खिलजी के बारे में अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्दावती 1302 से 1303 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने राजपूत राजा रतन सिंह के राज्य चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया था, इस हमले के पीछे कुछ इतिहासकार यह तर्क देते हैं कि, खिलजी ने रतन सिंह की बेहद खूबसूरत पत्नी रानी पद्दावती को अपने हरम में शामिल होने को कहा। Source : Hill Post लेकिन जब उन्होंने इंकार कर दिया तो उसने चित्तौड़़गढ़ दुर...

अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण नीति

अलाउद्दीन खिलजी पहला सुल्तान था जिसने विजय के बाद यह नवीन कार्य संपादित किया। उसके शासनकाल से दक्षिण में होने वाले उस नाटक का प्रारंभ हुआ जो 1296 ई. में जब जब 1296 ई. में अलाउद्दीन देवगिरि गया तो सिंघण देव अपनी सेनाओं के साथ होयसल राज्य की सीमाओं की ओर गया था। जब काफूर होयसल राजा के विरुद्ध पहुँचा तो वह पांड्य प्रदेश का कुछ भाग प्राप्त करने के संबंध में सुदूर दक्षिण में था, और राजकुमार सुंदर पांड्य तथा वीर पांड्य एख दूसरे के कट्टर शत्रु थे। रामदेव ने तेलंगाना की विजय में मलिक काफूर को सहायता दी और वीर बल्लाल ने सुदूर दक्षिण में माबर में शाही सेनाओं को सहयोग दिया। सुंदर पांड्य ने अपने भाई के विरुद्ध सुल्तान से सहायता प्राप्त करके देशवासियों के लिये कठिनाइयाँ उत्पन्न की। इस प्रकार दक्षिणी राजाओं की पराजय का कारण केवल आपसी अनैतिकता ही नहीं वरन दिल्ली सेना का सुसज्जित और संगठित होना भी था। साथ ही, तुर्की सेना सैन्य बल तथा युद्ध कला में भी दक्षिणी सेनाओं से अधिक योग्य तथा उत्तम कोटि की थी। अनुशासन, युद्ध कौशल और युक्तियों में तुर्की सेना दक्षिणी सेनाओं से बहुत श्रेष्ठ थी। इटली के यात्री अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण नीति का स्वरूप अलाउद्दीन की दक्षिणी विजय का स्वरूप प्राचीन भारतीय सम्राटों की दिग्विजय के समान था। वह दक्षिण के राज्यों को जीतकर साम्राज्य में मिला लेने अथवा दक्षिण की जनता का प्रत्यक्ष रूप से शासन करने की इच्छा नहीं रखता था। किंतु उसकी दक्षिण नीति राजनीतिक दूरदर्शिता का सीधा परिणाम थी। वह भली भाँति समझ चुका था कि सुदूर दक्षिण को राज्य में मिलाकर उस पर नियंत्रण रखना संभव न होगा। मुख्य रूप से दक्षिण की भौगोलिक स्थिति, यातायात के साधनों का अभाव, दिल्ली से दक्षिण की दूरी औ...

अलाउद्दीन खिलजी कौन था

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण लेख- • • • • अलाउद्दीन खिलजी ( 1296-1316 ई. )का वास्तविक नाम अली गुर्शास्प था।यह 22 अक्टूबर 1296 को दिल्ली का सुल्तान बना।यह खिलजी वंश का दूसरा शासक था। अलाउद्दीन खिलजी का राज्यारोहण दिल्ली में स्थित बलबनके लाल महल में हुआ।इसने सिकंदर-ए-सानी की उपाधि धारण की । इसने यामिनि-उल-खलीफा तथा नासिरी -अमीर -उल -मोमनीत जैसी उपाधियां भी धारण की थी। • अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात, जैसलमेर, रणथंभौर, चित्तौङ, मालवा, उज् • यह प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया और उसे अपने अधीन कर लिया।दक्षिण भारत की विजय का श्रेय अलाउद्दीन खिलजी के सेनानायक मलिक काफूर को दिया जाता है। मलिक काफूर एक हिंदू हिंजङा था जिसे नुसरत खाँ ने गुजरात विजय के दौरान 1000 दीनार में खरीदा था जिसके कारण उसे हजारदीनारी भी कहा जाता है। अलाउद्दीन खिलजी की नीतियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नीति उसकी बाजार नियंत्रण की नीति थी। अलाउद्दीन खिलजी को सर्वप्रथम उलेमा वर्ग के प्रभाव से स्वतंत्र होकर शासन करने श्रेय दिया जाता है। अलाउद्दीन की कर व्यवस्था- • इसन भूराजस्व की दर को बढाकर उपज का 1/2 भाग कर दिया। • राजत्व का दैवीय सिद्धांत प्रतिपादित करने वाला शासक भी अलाउद्दीन खिलजी ही था। • अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में दो नए कर चराई ( दुधारू पशुओं पर ) एवं गढी ( घरों एवं झोंपङी पर ) लगाये। • इसने इक्ता, इनाम, मिल्क तथा वक्फ भूमि को खालसा ( राजकीय ) भूमि में परिवर्तित कर दिया। • गैर – मुस्लिम लोगों से जजिया कर और मुस्लिमों से जकात कर वसूला जाता था। अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य व्यवस्था- • अलाउद्दीन खिलजी प्रशासनिक क्षेत्र में महान सेनानी था। • इसने सेना को नकद वेतन देने एवं स्थायी सेना रखने क...

अलाउद्दीन खिलजी का बाजार नियंत्रण व्यवस्था, साम्राज्य विस्तार नीति और कर प्रणाली

यह भी पढ़ें: अलाउद्दीन खिलजी का परिचय – Alauddin Khalji in hindi अलाउद्दीन खिलजी का मूल नाम अली गुरशास्प था| वह खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी के भाई शिहाबुद्दीन मसूद खिलजी का पुत्र था। मलिक-छज्जू के विद्रोह का दमन करने के फलस्वरूप अलाउद्दीन को कड़ा मानिकपुर का सुबेदार बनाया गया। 1292 ई. में भिलसा अभियान में सफलता के बाद उसे आरिज-ए-मुमालिक के पद के साथ अवध की सुबेदारी प्रदान की गई। अलाउद्दीन द्वारा द्वितीय देवगिरि अभियान में अपार सम्पत्ति प्राप्त की गयी जिसके बाद उसने अपने चाचा का तख्ता पलटने का मन बनाया तथा 17 जुलाई 1296 में जलालुद्दीन की हत्या के बाद स्वयं सुल्तान बना। अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली स्थित बलबन के लाल महल में अपना राज्याभिषेक करवाया। राजनीतिक समीकरण अलाउद्दीन खिलजी का राजनितिक समीकरण के अंतर्गत उसके सुल्तान बनने के बाद की चुनौती, उसका राजत्व सिद्धांत, उसके शासन के समय मंगोल का आक्रमण और उसकी साम्राज्य विस्तार की नीति को समझना ठीक हो सकता है| 1. सुल्तान बनने के बाद चुनौती सुल्तान बनने के पश्चात अलाउद्दीन के सामने अनेक कठिनाइयां थी। जलालुदीन का वध करने के कारण प्रजा उससे घृणा करती थी अनेक जलाली सरदार उससे असंतुष्ट थे। दिवंगत सुल्तान का पुत्र अर्कली खाँ मुल्तान का प्रान्तपति था। मंगोल एक अन्य समस्या थे| पंजाब में खोक्खरों का विद्रोह जारी था| अनेक स्वतंत्र पडोसी राज्य सल्तनत की सत्ता को चुनौती दे रहे थे, पूर्व में लखनौती स्वतंत्र हो गया था। ऐसी स्थिति में शासन को व्यवस्थित करना तथा सल्तनत के प्रति सम्मान उत्पन्न करना अलाउद्दीन के लिए आवश्यक था| सुल्तान बनने के पश्चात अलाउददीन ने सर्वप्रथम पुर्व सुल्तान के पुत्र अर्कली खाँ सहित उसके परिवार के समस्त...

अलाउद्दीन खिलजी की उपलब्धियां/विजय

अलाउद्दीन खिलजी का संक्षिप्त परिचय alauddin khilji ki vijayuplabdhi;अलाउद्दीन खलजी के प्रांरभिक शासन को इतिहास में क्रांतिकारी शासनकाल कहा जाता है। पहले तो अलाउद्दीन ने पैगम्‍बर और सिकन्‍दर बनने की बात सोची। शीघ्र ही उसने इन अव्‍यावहारिक विचारों को त्‍याग दिया और व्‍यावहारिक धरातल पर विजय, विस्‍तार, संगठन एंव आर्थिक मामलों में अनेक असाधारण और क्रांतिकारी कार्य कर डाले। अलाद्दीन खलजी अपने शासन काल में स्‍थायी सेना, नकद वेतन तथा बाजार नियंत्रण जैसे क्रांतिकारी प्रयोग भी करने में वह सफल रहा। सबसे पहले हम खलजियो की विजय और विस्‍तार नीति का विश्‍लेषण करेंगे। अलाउद्दीन खिलजी की विजय/उपलब्धियां अलाउद्दीन खिलजी की विजय या उपलब्धियों का वर्णन इस प्रकार है-- उत्तर की विजय अलाउद्दीन खलजी ने पहले उत्तर भारत में विजय पाताका लहराने के बाद दक्षिण को नतमस्‍तक करने की योजना बनाई। उत्तरी भारत में अलाउद्दीन खिलजी की प्रमुख विजयें इस प्रकार है-- 1. गुजरात 1299 ई. मे अलाउद्दीन शासन के सबसे प्रसिद्ध सेनापतियों, उलग खां तथा नुस्‍तर खां ने गुजरात पर आक्रमण किया। गुजरात में इस समय बघेल राजा कर्ण शासन कर रहा था। अहमदाबाद के निकट युद्ध में राजा कर्ण हार गया। अपनी पुत्री देवल देवी के साथ उसने देवगिरी के यादव राजा रामचन्‍द्र देव के यहां शरण ली। आक्रमणकारी सेनाओं ने सोमनाथ, सुरत ओर कैम्‍बे तक लूटमार की। राजा कर्ण का कोष दिल्ली के खजाने मेय और उसकी पत्‍नी कमलादेवी अलाउद्दीन के हरम में पहुंच गयी। दक्षिण भारत का भावी विजेता मलिक काफूर भी इसी अभियान में खरीदा गया। 2. रणथम्‍भौर इस समय रणथम्‍भौर पर प्रसिद्ध चैहान राजा हम्‍मीर देव का शासन था। जलालउद्दीन ने इसे जीतने की कोशिश की थी, लेकिन वह असफल रहा। रणथम्‍भौ...