अमेरिका डॉलर

  1. Us:अदालत ने यौन शोषण मामले में डोनाल्ड ट्रंप को ठहराया दोषी, पांच मिलियन अमेरिकी डॉलर का लगाया जुर्माना
  2. रुपया 15 पैसे मजबूत होकर 82.10 प्रति डॉलर पर पहुंचा – ThePrint Hindi
  3. Has The Time Come To Eradicate The Dominance Of US Dollar From Global Economy Abpp
  4. 31.46 ट्रिलियन डॉलर... अमेरिका पर इतना कर्ज कैसे बढ़ गया? डिफॉल्ट होने से बचने का रास्ता क्या है?
  5. hindustan opinion column 15 june 2023
  6. अमेरिकन डॉलर
  7. अमेरिका, फिर होगा यूनेस्को में शामिल


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Us:अदालत ने यौन शोषण मामले में डोनाल्ड ट्रंप को ठहराया दोषी, पांच मिलियन अमेरिकी डॉलर का लगाया जुर्माना

US: अदालत ने यौन शोषण मामले में डोनाल्ड ट्रंप को ठहराया दोषी, पांच मिलियन अमेरिकी डॉलर का लगाया जुर्माना 79 वर्षीय पूर्व लेखिका ई.जीन कैरोल ने ट्रंप पर मुकदमा दायर किया था। जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने बर्गडॉर्फ गुडमैन स्टोर के चेंजिंग रूम में उसके साथ दुष्कर्म किया था। उन्होंने कहा कि इस मामले को सार्वजनिक करने में 20 साल से अधिक का समय लगा क्योंकि वह ट्रंप से डरी हुई थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अक्टूबर 2022 में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखकर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया। हालांकि, अदालत ने ट्रंप को दुष्कर्म का दोषी नहीं पाया है। अदालत ने कैरोल के इस दावे को खारिज कर दिया कि डोनाल्ड ट्रंप ने उसके साथ दुष्कर्म किया। ट्रंप ने आरोपों को नकारा था हालांकि ट्रंप ने खुद पर लगे आरोपों को नकारते हुए कहा था कि 'यह घटिया और हास्यास्पद कहानी है। यह पूरी तरह मनगढ़ंत है, इसमें कोई सच्चाई नहीं है।' उल्लेखनीय है कि लेखिका कैरोल ने अक्तूबर 2022 में एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए खुलासा किया था कि 90 के दशक में ट्रंप ने उसके साथ दुष्कर्म किया था। वहीं ट्रंप ने दुष्कर्म के आरोपों से इंकार किया था। दो अन्य महिलाओं ने भी लगाए हैं ट्रंप पर आरोप ट्रंप के खिलाफ दो अन्य महिलाओं ने भी यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं। जिनमें पीपल मैगजीन की पूर्व रिपोर्टर नताशा स्टेनॉफ का नाम शामिल है। नताशा का आरोप है कि ट्रंप ने 2005 में अपने फ्लोरिडा स्थित मार ए लोगो क्लब में उसके साथ बदतमीजी की थी। वहीं ट्रंप पर आरोप लगाने वाली दूसरी महिला जेसिका लीड्स ने भी आरोप लगाए हैं कि साल 1979 में ट्रंप ने उसका यौन उत्पीड़न किया था।

रुपया 15 पैसे मजबूत होकर 82.10 प्रति डॉलर पर पहुंचा – ThePrint Hindi

अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 82.28 प्रति डॉलर पर खुला और घरेलू शेयर बाजार में तेजी के बीच कारोबार के अंत में 82.10 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। इस तरह पिछले बंद भाव के मुकाबले रुपये में 15 पैसे की मजबूती दर्ज की गई। दिन में कारोबार के दौरान रुपये ने 82.08 प्रति डॉलर के उच्च स्तर को छुआ और यह 82.32 प्रति डॉलर के निचले स्तर तक भी आया। मंगलवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 82.25 प्रति डॉलर के भाव पर बंद हुआ था। बीएनपी परिबा बाय शेयरखान में शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा, ‘‘कंपनियों के निवेश से जुड़ी खबरों और सकारात्मक घरेलू शेयर बाजार के कारण भारतीय रुपया एक महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया।’’ चौधरी ने कहा कि कमजोर अमेरिकी डॉलर ने भी रुपये का समर्थन किया, जबकि कच्चे तेल की कीमतों में आए कुछ सुधार ने तेज लाभ को सीमित कर दिया। इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.18 प्रतिशत गिरकर 103.15 रह गया। वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 1.09 प्रतिशत बढ़कर 75.10 डॉलर प्रति बैरल हो गया। तीस शेयरों पर आधारित बीएसई सेंसेक्स 85.35 अंक की तेजी के साथ 63,228.51 अंक पर बंद हुआ। शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) पूंजी बाजार में शुद्ध लिवाल रहे और उन्होंने बुधवार को 1,714.72 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर खरीदे। भाषा राजेश राजेश प्रेम प्रेम यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

Has The Time Come To Eradicate The Dominance Of US Dollar From Global Economy Abpp

बीते एक साल से लगातार पूरी दुनिया में प्रचलित सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूत स्थिति ने बाकी देशों की आर्थिक परेशानियां बढ़ा दी हैं.ग्लोबल इकोनॉमी में हमेशा से डॉलर की स्थिति मजबूत रही है. 70 के दशक में दुनियाभर के केंद्रीय बैंको के विदेशी मुद्रा भंडार में 80 फीसदी डॉलर था हालांकि वर्तमान में ये घट चुका है. लेकिन आज भी दुनियाभर के केंद्रीय बैंको में ये 60 फीसदी से ज्यादा है. जबकि यूरो का हिस्सा महज 20 फीसदी है. यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि दिक्कत सिर्फ डॉलर की मजबूत स्थिति नहीं बल्कि अमेरिका में जिस तरह की मौद्रिक नीति अपनाई जा रही है, वो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के लिए किसी बुरी खबर से कम नहीं है. हालांकि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था जिन हालात से गुजर रही है उसके लिए पूरी तरह से सिर्फ डॉलर जिम्मेदारी नहीं है. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि डॉलर ने इन हालातों का बद से बदतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. यही वजह है कि अब एक बार फिर से विश्व परिदृश्य पर डॉलर की दादागिरी को खत्म करने की कवायद तेज हो गई है. ये कोई पहली बार नहीं है जब किसी दूसरी मुद्रा ने डॉलर की जगह लेने की कोशिश हुई है. लेकिन इस बार ये प्रयास कोई एक देश अकेला नहीं कर रहा है बल्कि दुनिया के कई देश मिलकर डॉलर का विकल्प तलाश करने और इसके एकाधिकार खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. वित्तीय क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी क्रेडिट स्विस की ओर से 'द फ्यूचर ऑफ द मॉनटरी सिस्टम' नाम की हालिया रिपोर्ट में भी डॉलर की वैकल्पिक व्यवस्था या बहुध्रुवीय मौद्रिक व्यवस्था को विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया गया है. हालांकि इस रिपोर्ट में साफ शब्दों में ये भी कहा गया है कि फिलहाल डॉलर की जगह लेने वाली कोई...

31.46 ट्रिलियन डॉलर... अमेरिका पर इतना कर्ज कैसे बढ़ गया? डिफॉल्ट होने से बचने का रास्ता क्या है?

ये तीन आंकड़े अमेरिकी अर्थव्यवस्था की कहानी बयां करते हैं. अमेरिका डिफॉल्ट होने की कगार पर है. ये कर्ज बढ़ता ही जा रहा है. इस समय अमेरिका पर कुल कर्ज बढ़कर 31.46 ट्रिलियन डॉलर हो गया है. भारतीय करंसी के हिसाब से ये कर्ज 260 लाख करोड़ रुपये होता है. कोविड महामारी से पहले अमेरिका पर 22.7 ट्रिलियन डॉलर का कर्जा था. यानी, तीन साल में ही ये कर्ज लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर बढ़ गया है. अमेरिका के ट्रेजरी सेक्रेटरी जेनेट येलेन ने चेताया है कि अगर सरकार ने कर्ज लेना की सीमा यानी डेट सीलिंग नहीं बढ़ाई तो 1 जून से नकदी का संकट खड़ा हो जाएगा. डेट सीलिंग बढ़ाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रिपब्लिकन नेता केविन मैक्कार्थी से बात बात भी की थी. लेकिन ये बातचीत बेनतीजा ही रही. डेट सीलिंग यानी कर्ज लेने की सीमा बढ़ाने के लिए बाइडेन सरकार के पास कुछ ही दिन बचे हैं. दरअसल, अमेरिका में कर्ज लेने की एक सीमा तय है. इसे ही डेट सीलिंग कहा जाता है. और नया कर्ज लेने के लिए संसद से बिल पास कराना होगा. लेकिन दिक्कत ये है कि बाइडेन डेमोक्रेट हैं और जहां से बिल पास होगा, वहां रिपब्लिकन बहुमत में हैं. कुल मिलाकर बाइडेन सरकार को कुछ न कुछ हल निकालना होगा, वरना नए पेमेंट के लिए पैसा नहीं होगा. अगर ऐसा हुआ, तो तकनीकी तौर पर अमेरिका डिफॉल्ट या डिफॉल्ट माना जाएगा. कितना भारी है ये कर्ज? - अगर हर अमेरिकी परिवार हर महीने एक हजार डॉलर का योगदान दे तो भी इस कर्ज को चुकने में 19 साल का वक्त लग जाएगा. - चीन (19.37 ट्रिलियन डॉलर), जापान (4.41 ट्रिलियन डॉलर), जर्मनी (4.31 ट्रिलियन डॉलर) और यूके (3.16 ट्रिलियन डॉलर) की कुल जीडीपी से भी ज्यादा कर्ज अमेरिका पर है. - इस समय भारत की जितनी जीडीपी है, उसका 10 गुना कर्ज...

hindustan opinion column 15 june 2023

प्रधानमंत्री चीन को अमेरिकी साथ का फायदा इसलिए मिला था, क्योंकि दोनों सोवियत संघ (अब रूस) के खिलाफ ‘सामरिक साझेदार’ बने। इसे अमलीजामा पहनाने के लिए 1972 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर अपने राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का संदेश लेकर चुपचाप चीन गए थे, और फिर बाद में निक्सन व माओ का मिलना तय हुआ था। आज भारत और अमेरिका, दोनों के लिए ठीक इसी तरह की स्थिति है। दोनों देशों के लिए चीन एक बड़ा खतरा है। लिहाजा, दोनों के बीच सामरिक साझेदारी मौजूदा वक्त की बड़ी जरूरत है। आज यूके्रन युद्ध के कारण रूस और चीन एक-दूसरे के काफी करीब आ रहे हैं, क्योंकि दोनों देशों को पश्चिमी ताकतें किनारे करने पर आमादा हैं। इससे एक अलग तरह का शीतयुद्ध शुरू हो गया है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जो शीतयुद्ध चला था, उसमें एक तरफ सोवियत संघ था, तो दूसरी तरफ अमेरिका, यानी वह टकराव साम्यवाद बनाम पूंजीवाद का था। मगर आज दोनों तरफ पूंजीवादी राष्ट्र हैैं। इसमें भारत के लिए स्थिति कहीं ज्यादा शोचनीय हो जाती है, क्योंकि हम न रूस का साथ छोड़ सकते हैं और न अमेरिका का। आज भी हमारी 60 फीसदी सैन्य सामग्री मॉस्को से आती है, शेष अमेरिका व फ्रांस जैसे देशों से। इसी कारण, हमने निरपेक्ष (गुटनिरपेक्ष) रुख अपना लिया है। अमेरिका हमारी मजबूरी जानता है। उसे पता है कि नई दिल्ली और वाशिंगटन, दोनों के सामरिक हित जुड़े हुए हैं। चूंकि चीन काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है, इसलिए बीजिंग को घेरने के लिए वाशिंगटन कई तरह की रणनीति बना रहा है। क्वाड जैसे गुट का निर्माण, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अलग नीति और चीन के पड़ोसी देशों से रिश्ते सुधारने जैसी कवायद इसी रणनीति का हिस्सा है। जाहिर है, उसकी यह मंशा तभी पूरी होगी, जब दक्षिण एश...

अमेरिकन डॉलर

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अमेरिका, फिर होगा यूनेस्को में शामिल

संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक एजेंसी (UNESCO) की प्रमुख ऑड्री अज़ूले ने सोमवार को घोषणा की है कि, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) ने अगले महीने इस संगठन में फिर से शामिल होने का निर्णय लिया है. अमेरिका ने वर्ष 2011 में इस संगठन के लिए अपना तमाम वित्तीय योगदान रोक दिया था, और लगभग छह वर्ष पहले, इस संगठन से पूरी तरह हटने की घोषणा की थी. UNESCO यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने सदस्य देशों को बताया है कि अमेरिका का ये निर्णय, इस संगठन व बहुपक्षवाद में, भरोसे की एक मज़बूत कार्रवाई है. ये एजेंसी संस्कृति, शिक्षा, विज्ञान और सूचना पर शासनादेश को लागू करने के लिए जो रास्ता अपना रही है, ये निर्णय उसमें भी भरोसा व्यक्त करता है. सुधार और आधुनिकाकरण यूनेस्को ने बताया कि अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने, ऑड्री अज़ूले को भेजे एक पत्र में “उन उपायों का स्वागत किया, जिनके ज़रिए, हाल के वर्षों में उभरती चुनौतियों का सामना किया है, इसके प्रबन्धन का आधुनिकाकरण किया है, और राजनैतिक तनाव कम किए हैं”. संयुक्त राज्य अमेरिका ने, फ़लस्तीन को यूनेस्को की सदस्यता दिए जाने के बाद, वर्ष 2011 में यूनेस्को के लिए अपना वित्तीय योगदान बन्द कर दिया था. उस समय यूनेस्को के कुल बजट का लगभग 22 प्रतिशत हिस्सा, अमेरिका से मिलता था. अमेरिका, यूनेस्को का एक संस्थापक सदस्य है और अतीत में भी एक बार 1984 में यूनेस्को से बाहर निकल चुका था. यह देश फिर से 2003 में यूनेस्को में शामिल हुआ था. यूनेस्को में एक सदस्य देश के रूप में, अमेरिका की पूर्ण वापसी, दिसम्बर 2022 में कांग्रेस में हुई एक सहमति की बदौलत सम्भव हो रही है. उसके ज़रिए, यूनेस्को को देश का वित्तीय योगदान भी बहाल किया जाएगा. तनावपूर्ण इतिहास 2011 में अमेरिका का वि...