Angen gatram shlok in sanskrit

  1. 101+ भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक भावार्थ सहित
  2. गणपति मंत्र तथा श्लोक
  3. संस्कृत के 20 श्लोक जो हमें जीना सिखाते हैं Sanskrit Shlokas Meaning in Hindi
  4. Bhagavad Gita Shlok in Sanskrit
  5. विद्या पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  6. Shri Ganga Stotram in Sanskrit ( श्री गंगा स्तोत्रं ) – Devshoppe
  7. भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  8. Bhagavad Gita
  9. गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (2023)
  10. विद्या पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित


Download: Angen gatram shlok in sanskrit
Size: 67.10 MB

101+ भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक भावार्थ सहित

Bhagavad Geeta Shlok : आज इस अध्याय में भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक भावार्थ सहित – Geeta Shlok in Sanskrit भारत का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ महाभारत है जिसके रचयिता वेदव्यास थे, महाभारत में पांडवों और कौरवों से युद्ध के दौरान भगवान श्रीं कृष्ण ने अर्जुन को भगवत गीता उपदेश दिये थे। जिसमे कई सारे प्रसिद्ध श्लोक सामिल है आज इस पोस्ट में (3) यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्‍क्षति। शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥ भावार्थ : जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है । (4) न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌। कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥ भावार्थ : निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है । (5) यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ भावार्थ : :श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य-समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है (यहाँ क्रिया में एकवचन है, परन्तु ‘लोक’ शब्द समुदायवाचक होने से भाषा में बहुवचन की क्रिया लिखी गई है। (6) कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे। अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌॥ भावार्थ : हे महात्मन्‌! ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आपके लिए वे कैसे नमस्कार न करें क्योंकि हे अनन्त! हे देवेश! हे जगन्निवास! जो सत्‌, असत्‌ और उनसे परे अक्...

गणपति मंत्र तथा श्लोक

लेख सारिणी • • • • • • • • • • • गणपति मंत्र तथा श्लोक – Ganpati Shlok & Mantra Ganesh Mantra in Hindi : विघ्नहर्ता श्री गणेश के मंत्र (Ganesh Mantra) और गणेश श्लोक (Ganpati Shlok) के उच्चारण से भक्तो के दुःख पल भर में समाप्त हो जाते हैं। गणेश मंत्र जाप (Ganesh Mantra in Sanskrit) से समस्त चिंता दूर हो जाएँगी । इन गणेश मंत्रो (Ganesh Mantra with Lyrics) में से कोई भी एक मंत्र की 108 बार नित्य माला जपने या स्मरण करने मात्र से श्री गणेश प्रसन्न हो जाते हैं। गणेश मंत्र – Ganesh Mantra Lyrics || ॐ गं गणपतये नमो नमः || || श्री सिद्धिविनायक नमो नमः || || अष्टविनायक नमो नमः || || गणपति बाप्पा मोरया || गजानंद एकाक्षर मंत्र – Gajanand Ekashar Mantra ।। ऊँ गं गणपतये नमः ।। गणेश गायत्री मन्त्र – Ganesh Gayatri Mantra || ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् || यह गणेश गायत्री मंत्र (Ganesh Mantra) है। इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करने से गणेशजी की कृपा होती है। लगातार 42 दिन तक गणेश गायत्री मंत्र के जप से व्यक्ति के पूर्व कर्मो का बुरा फल खत्म होने लगता है और भाग्य उसके साथ हो जाता है। गणेश तांत्रिक मंत्र – Ganesh Tantrik Mantra ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश। ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति। मेरे कर दूर क्लेश।। यह गणेश तांत्रिक मंत्र (Ganesh Mantra) है जिसकी साधना में रोज सुबह महादेवजी, पार्वतीजी तथा गणेशजी की पूजा करने के बाद इस मंत्र का 108 बार जाप करने व्यक्ति के समस्त दुख समाप्त होते हैं। इस मंत्र जप के दौरान व्यक्ति को पूर्ण सात्विकता रखनी होती है और क्रोध, मांस, मदिरा, परस्त्री से संबंधों से दूर रहना होता है। गणेश कुबेर मंत्र – Gane...

संस्कृत के 20 श्लोक जो हमें जीना सिखाते हैं Sanskrit Shlokas Meaning in Hindi

Sanskrit Shlokas 1. येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः। ते मत्र्यलोके भुवि भारभूताः, मनुष्य रूपेण मृगाष्चरन्ति।। अर्थात – जो विद्या, तप, दान, ज्ञान, चरित्र, गुण व धर्म से रहित हैं वे तो धरा पर भार रूप ही हैं एवं सीख – जीवन में खाने-सोने के सिवाय कुछ सार्थकता भी होनी चाहिए। आपका जीवन सब के लिये मंगलकारी हो। 2. विद्या कर्म च शौचं च ज्ञानं च बहुविस्तरम्। अर्थार्थमनुसार्यन्ते सिद्धार्थष्च विमुच्यते।। अर्थात – अर्थ यानी परमात्मा की प्राप्ति के ही लिये विद्या, कर्म, पवित्रता व अत्यन्त विस्तृत सीख – व्यक्ति तो कुछ ग्रहण करे प्रभु प्राप्ति के ही लिये करे, तभी उसके ये अर्जन-उपार्जन उपयोगी होंगे। 3. सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मषक्त्या वृक्षान् सरीसृपपशून् खगदंषमत्स्यान्। तैस्तैरतुष्टहृदयः पुरुषं विधाय ब्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देवः।। अर्थात् – भगवान् ने अपनी अचिंत्य शक्ति माया से पेड़-पौधे, सरीसृप यानि रेंगकर चलने वाले जन्तु, जैसे कि सर्प, मगरमच्छ इत्यादि, पशु-पक्षी, डाँस व मत्स्यादि अनेक प्रकार की योनियाँ रचीं परन्तु उनसे उन्हें सीख – मानव शरीर मिला है तो इसे मोक्ष हेतु अग्रसर होने में सदुपयोग करें। 4. कामो लोभस्तथा क्रोधो दम्भष्चत्वार इत्यमी। महाद्वाराणि वीचीनां तस्मादेतांस्तु वर्जयेत्।। अर्थात् – काम, लोभ, क्रोध व दम्भ ये नरक के चार महाद्वार हैं. इस कारण इनको त्याग देना चाहिए। सीख – काम, लोभ, क्रोध व दम्भ का सर्वथा त्यागकर निर्मल जीवन जियें। 5. जायात्मजार्थपषुभृत्यगृहाप्तवर्गान् पुष्णाति यत्प्रियचिकीर्षुतया वितत्वन्। स्वान्ते सकृच्छ्रमवरुद्धधनः स देहः सृष्ट्वास्य बीजमवसीदति वृक्षधर्मा।। अर्थात् – जीव जिस शरीर का प्रिय करने के ही लिये अनेक प्रकार की इच्छाएँ ...

Bhagavad Gita Shlok in Sanskrit

Bhagavad Geeta Shloka in Sanskrit with meaning in Hindi : Bhagavad Gita Shlok in Sanskrit: Bhagavad gita is the essence of vedic knowledge and one of the most important shastra in Vedic literature. It was spoken 5000 years ago by Lord Sri Krishna to the Prince Arjuna on the battlefield of kuruksetra. Bhagavad Gita can be seen as both a historical book and a trans historical book. historically the Bhagavad gita appears as a conversation between two heroes Krishna and Arjuna. Their conversation which runs over 700 Sanskrit verses (shlokas) and 18 chapters in the longest epoch in the world the Mahabharata is about what is the nature of one’s duty at the moment. When a climactic war is about to start Arjuna becomes confused should I fight or should I not fight and at that time he turns to Krishna for guidance. In the Gita because it answers these fundamental questions of life Who am I and what am I meant to do in life what is my identity and what is my destiny. If you are interested to know the answers to these questions about identity and destiny then the Bhagavad Gita is meant for us and in this blog a collection of best and powerful bhagavad gita shlok in Sanskrit with hindi meaning and we hope that will surely help you to transform your day. Bhagavad Gita Shlok in Sanskrit with Hindi meaning Sanskrit Transcript: असक्तबुद्धि: सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृह: | नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां सन्न्यासेनाधिगच्छति || chapter 18 verse 49 Hindi Translation: हे अर्जुन ! जो आत्मसंयमी तथा अनासक...

विद्या पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

अधिगतपरमार्थान्पण्डितान्मावमंस्था स्तृणमिव लघुलक्ष्मीर्नैव तान्संरुणद्धि। अभिनवमदलेखाश्यामगण्डस्थलानां न भवति बिसतन्तुवरिणं वारणानाम्।। भावार्थ: किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति को कभी भी काम या अपमान के लिए नहीं आंका जाना चाहिए क्योंकि भौतिक संसार की भौतिक संपत्ति उसके लिए घास की तरह है। जिस प्रकार शराबी हाथी को कमल की पंखुड़ियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार धन से बुद्धिमान को नियंत्रित करना असंभव है। विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा। सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम् तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु।। भावार्थ: विद्या एक अतुलनीय प्रसिद्धि है; भाग्य नष्ट होने पर आश्रय देती है, कामधेनु है, वियोग में समान है, तीसरी आंख है, आतिथ्य का मंदिर है, परिवार-महिमा है, रत्नों के बिना आभूषण है; इसलिए अन्य सभी विषयों को छोड़कर ज्ञान के अधिकारी बनो। विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम् विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः। विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम् विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः।। भावार्थ: ज्ञान मनुष्य का विशेष रूप है, यह छिपा हुआ धन है। वह भोग की दाता, यश की दाता और उपकारी है। विद्या गुरुओं की गुरु है, विदेश में वह मनुष्य की भाई है। विद्या महान देवता हैं; राजाओं में ज्ञान की पूजा होती है, धन की नहीं। इसलिए वह बिना शिक्षा वाला जानवर है। मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्। लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।। भावार्थ: विद्या माता के समान रक्षा करती है, पिता के समान लाभ करती है, ...

Shri Ganga Stotram in Sanskrit ( श्री गंगा स्तोत्रं ) – Devshoppe

Tags • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Shri Ganga Stotram was composed by Sri Adi Shankaracharya. To Hindus Ganga is not merely a river, She is goddess, She is our mother. According to the Puranas (Holy Scriptures of Hindus), the sight, the name and the touch of Ganga takes away all sins. Ganga has been considered a sacred river since the Vedic age. Though the first Veda – the Rig Veda scarcely mentioned Ganga and considered Saraswati and Indus as holiest of all rivers, the later three Vedas – the Yajur, Sam and Atharva Vedas heavily mention Ganga as a scared river. As per Hindu thoughts, bathing in the river on special occasions causes remission of sins and facilitates the attainment of salvation. It is considered that Ganga bestows blessings of the highest order. On the earth, Ganges or Ganga originates from the Gaumukha, Gangotri glacier in the central Himalayas, located in Uttarakhand state, India. Shri Ganga stotram is hymn in praise of maa Ganga. गंगा से अलग होकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। गंगा सहस्त्रों वर्षों से अविरल प्रवाहित, भारतीय संस्कृति को युगों से गढ...

भगवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक हिंदी अर्थ सहित

Geeta Shlok in Sanskrit: श्री कृष्ण भगवान के द्वारा महाभारत युद्ध से पहले जो उपदेश दिए गये, वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से जाने जाते हैं। जब महाभारत के समय अर्जुन युद्ध करने से मना कर देते हैं तब भगवान श्री कृष्ण उपदेश देकर धर्म और कर्मे के सच्चे ज्ञान से अवगत करवाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के इन सभी उपदेशों को भगवत गीता ग्रन्थ में संकलित किया हुआ है। गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान्।। भावार्थ: महाभारत युद्ध के दौरान जब उनके रिश्तेदार और शिक्षक अर्जुन के सामने खड़े थे, तो अर्जुन दुखी हो गए और श्री कृष्ण से कहा कि अपने महान शिक्षक को मारकर जीने की तुलना में भीख मांगकर जीना बेहतर है। भले ही वह लालच से बुराई का समर्थन करता है, लेकिन वह मेरा शिक्षक है, भले ही मैं उसे मारकर कुछ हासिल कर लूं, तो यह सब उसके खून से रंगा होगा। Bhagwat Geeta Shlok in Hindi न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:। यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।। भावार्थ: अर्जुन कहते हैं कि मैं यह भी नहीं जानता कि क्या सही है और क्या नहीं – हम उन पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं या उनसे जीतना चाहते हैं। धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी नहीं जीना चाहेंगे, फिर भी वे सभी हमारे सामने युद्ध के मैदान में खड़े हैं। कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्म सम्मूढचेताः। यच्छ्रेयः स्यान्निश्र्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेSहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।। भावार्थ: अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मेरी दुर्बलता के कारण मैं अपना धैर्य खो रहा हूं, मैं अपने कर्तव्यों को भूल रहा हूं। अब आप भी मुझे सही बताओ जो ...

Bhagavad Gita

Bhagavad gita | भगवद गीता अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वाष्र्णेय बलादिव नियोजितः । । ३६ Hindi translation:- अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं कि यह कौन है जो मुझसे पाप करा रहा है। मेरी तो इच्छा भी नहीं है, मुझे ऐसा लगता है कि बलपूर्वक मुझसे यह काम करवाया जा रहा है। English translation:- Arjuna asks Lord Krishna who is this who is making me sin. I do not even wish, I feel that I am being forced to do this work. भावार्थ:- यह अर्जुन का तात्पर्य है कि मनुष्य न चाहते हुए भी पाप कर्म के लिए प्रेरित क्यों होता है। ऐसा लगता है कि उसे बलपूर्वक उनमें लगाया जा रहा है। यह ऐसा क्यू होता और कैसे होता है तथा कोन करता है। काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥ ३७ ॥ Hindi translation:- भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बताते है कि मनुष्य से पाप करने वाल रजो गुड है। रजोगुड से काम उत्पन्न होता है जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का पापी शत्रु है। English translation:- Lord Shri Krishna tells Arjuna that, It is lust alone, which is born of contact with the mode of passion, and later transformed into anger. Know this as the sinful, all-devouring enemy in the world. भावार्थ:- यह भगवान श्री कृष्ण का तात्पर्य है कि रजो गुड के कारण काम, क्रोध उत्पन्न होता है और यही मनुष्य को पाप करने के लिए प्रेरित करता है। यह मनुष्य का सबसे बड़ा पापी शत्रु है। आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा । कामरूपेण कौन्तेय दुष्परेणानलेन च ॥ ३९ ॥ Hindi translation:- भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बताते है कि यह मनुष्य के ज्ञान को ढक देता है और ज्ञानी लोगो...

गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित (2023)

नमस्कार दोस्तों, हर किसी को अपने जीवन के लिए एक मार्गदर्शक की जरूरत पड़ती है, जो हमें एक अच्छे संस्कार के साथ ही अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें। हमारे पहले गुरू माता पिता होते है जो हमें इस दुनिया में लाते है। जिनकी शिक्षा हमारे जीवन में हर जगह पर काम आती है। गुरू शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है। पारमार्थिक और सांसारिक ज्ञान देने वाले व्यक्ति को गुरू कहा जाता है। माता पिता के बाद गुरू ही होता है जो हमें बिना किसी भेदभाव और निस्वार्थ भाव से हमारे जीवन को इस पोस्ट में हमने गुरु श्लोक संस्कृत शेयर किये है। इन श्लोकों में गुरू के महत्व को समझा जा सकता है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लोकप्रिय गुरू के संस्कृत श्लोक पसंद आयेंगे, इन्हें आगे शेयर जरूर करें। आपको यह प्रेरणादायक श्लोक कैसे लगे, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। Read Also: गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit Slokas on Guru in Hindi guru brahma guru vishnu sloka in hindi meaning पूर्णे तटाके तृषितः सदैव भूतेऽपि गेहे क्षुधितः स मूढः। कल्पद्रुमे सत्यपि वै दरिद्रः गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी।। भावार्थ: जो इन्सान गुरु मिलने के बावजुद प्रमादी(अज्ञानी) रहे, वह मूर्ख पानी से भरे हुए सरोवर के पास होते हुए भी प्यासा, घर में अनाज होते हुए भी भूखा, और कल्पवृक्ष के पास रहते हुए भी दरिद्र है। योगीन्द्रः श्रुतिपारगः समरसाम्भोधौ निमग्नः सदा शान्ति क्षान्ति नितान्त दान्ति निपुणो धर्मैक निष्ठारतः। शिष्याणां शुभचित्त शुद्धिजनकः संसर्ग मात्रेण यः सोऽन्यांस्तारयति स्वयं च तरति स्वार्थं विना सद्गुरुः।। भावार्थ: योगियों में श्रेष्ठ, श्रुतियों को समझा हुआ, (संसार/सृष्टि) सागर में समरस हुआ, शांति-क्षमा-दमन ऐसे गुणोंवाला, ...

विद्या पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

अधिगतपरमार्थान्पण्डितान्मावमंस्था स्तृणमिव लघुलक्ष्मीर्नैव तान्संरुणद्धि। अभिनवमदलेखाश्यामगण्डस्थलानां न भवति बिसतन्तुवरिणं वारणानाम्।। भावार्थ: किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति को कभी भी काम या अपमान के लिए नहीं आंका जाना चाहिए क्योंकि भौतिक संसार की भौतिक संपत्ति उसके लिए घास की तरह है। जिस प्रकार शराबी हाथी को कमल की पंखुड़ियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार धन से बुद्धिमान को नियंत्रित करना असंभव है। विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा। सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम् तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु।। भावार्थ: विद्या एक अतुलनीय प्रसिद्धि है; भाग्य नष्ट होने पर आश्रय देती है, कामधेनु है, वियोग में समान है, तीसरी आंख है, आतिथ्य का मंदिर है, परिवार-महिमा है, रत्नों के बिना आभूषण है; इसलिए अन्य सभी विषयों को छोड़कर ज्ञान के अधिकारी बनो। विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम् विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः। विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम् विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः।। भावार्थ: ज्ञान मनुष्य का विशेष रूप है, यह छिपा हुआ धन है। वह भोग की दाता, यश की दाता और उपकारी है। विद्या गुरुओं की गुरु है, विदेश में वह मनुष्य की भाई है। विद्या महान देवता हैं; राजाओं में ज्ञान की पूजा होती है, धन की नहीं। इसलिए वह बिना शिक्षा वाला जानवर है। मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्। लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।। भावार्थ: विद्या माता के समान रक्षा करती है, पिता के समान लाभ करती है, ...