अन्नम ब्रह्मा रसो विष्णु

  1. अन्नप्राशन संस्कार
  2. Annabrahma Rasovishnu
  3. scripture
  4. ब्रह्मा
  5. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः श्लोक
  6. विष्णु
  7. विष्णु सहस्रनाम
  8. ब्रह्मा
  9. विष्णु सहस्रनाम
  10. scripture


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अन्नप्राशन संस्कार

अन्नप्राशन संस्कार वा पास्नी महत्त्व [ ] अन्नप्राशनको स्पष्ट अर्थ शिशु अब पेय पदार्थ, विषेश गरी आमाको दुधमा मात्र निर्भर नहुने हुँदा अन्न ग्रहण गरी शारीरिक र मानसिक रूपमा आफूलाई बलबान् बनाउनु हो । तन र मनलाई सुदृढ बनाउनलाई अन्नको सर्वाधिक योगदान छ । शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक आहारले तन र मन दुबै स्वस्थ रहन्छ । स्वस्थ तनमा नै स्वस्थ मनको निवास हुन्छ । शुद्ध र सात्विक आहारले नै अन्तस्करण शुद्ध हुन्छ तथा मन, बुद्धि, आत्मा सबैलाई पोषण मिल्छ । यसैकारण अन्नप्राशन संस्कारको हाम्रो जीवनमा विषेश महत्त्व रहेको छ । संस्कार विधि [ ] हिन्दू धर्मका अनुयायीहरूले जन्मको छैठौं महिनालाई अन्नप्राशनको उपयुक्त समय बताएका छन् । सो महिनामा शुभ नक्षत्र एवं शुभ दिन हेराएर यो संस्कार गरिन्छ । यस संस्कारमा दियो, कलश, अन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुर्भुक्ता देवो महेश्वरः भनेको छ । देवपूजन कार्य सकेपछि खिर र मिठा मिठा मिष्ठान्न शिशुलाई भोजन गराइन्छ ।

Annabrahma Rasovishnu

A prayer or invocation offered before eating. The act of consuming food is considered to be a Yajna (sacrifice) and the offering goes to the divine authority called Jataragni, the digestive fire in the belly. It is that principle which breaks down the food consumed into a form that can be supplied to through the blood for the whole body. The creative energy in the food (Annam) is Brahma. The nourishing energy (Rasa) in the body is Vishnu. The transformation of food into pure consciousness is Shiva. If you know this, then any impurities in the food you eat will never become part of you. This shlokam is chanted before eating food so that even while eating, our attention is focused on the food, and we eat it with an awareness of its importance. While eating our food, we must utter the words, “Annam Brahma” (food is God); Raso Vishnuhu (the essence of food is Vishnu). Food is God. It gets into the body and provides its essence to all the parts of the body. It indeed gets transformed into blood and energy. Bhoktodevo Maheswarah (the one who consumes the food is Maheswarah). This principle teaches wisdom to the whole world. Annam Brahma, Raso Vishnuhu, Bhoktodevo Maheswarah –These three correspond to body, mind and action, respectively. Manasyeka Vachasyekam Karmanyekam Mahatmanam (those whose thoughts, words and deeds are in complete harmony are noble ones.) The oneness of thought, word and deed is ritham. They represent the Trinity of Brahma, Vishnu and Maheswara. Hence, every...

scripture

Brahmā (ब्रह्मा) who is the creator aspect of the Trimurti God, while Vishnu (विष्णु) and Shiva (शिव ) being the Preserver and the Destroyer aspects. The most frequently used etymological meaning for Vishnu and Shiva which I have encountered almost everywhere is :- Vishnu (विष्णु) = The all pervader, who is everywhere, all pervading. The One who enters (everywhere?), etc. Shiva (शिव ) = The all auspicious one, the one who's Pure and the most auspicious, etc. For the word Brahmā (ब्रह्मा), I haven't found anywhere, any proper etymology and meaning. I'd like to know (with scriptural as well as non-scriptural references too) all possible etymology and meanings of all of the Trimurtis - Brahmā, Vishnu, Shiva, with specific emphasis on Brahmā (ब्रह्मा). @Ikshvaku I couldn't find any acceptable or proper etymology for the word - Brahmā (ब्रह्मा). There are several sahasranamam for Vishnu and Shiva in the scriptures and thus almost all of their major names have have been dissected and analysed with multiple perspectives by several eminent Acharya or commentators. Not the same case with Brahmā though. Thus, I'm quite interested to know his etymology.

ब्रह्मा

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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः श्लोक

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः श्लोक गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।। गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी और अंग्रेजी अर्थ सहित प्रस्तुत है| यह बहुत ही प्रसिद्ध श्लोक है जो गुरु के महात्म को दर्शाता है। ज्ञान जीवन में बहुत आवश्यक है और ज्ञान प्राप्त करने के आपको गुरु के शरण में जाना ही होगा | इस श्लोक का भावार्थ यही है की गुरु ही भगवान है। आइये विस्तार से जानते है इस श्लोक के बारे में | • 1 GururBrahma GururVishnuh GururDevo Maheshvarah Shlok • 2 गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः का अर्थ • 2.1 गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः श्लोक के प्रत्येक शब्द का अर्थ • 2.2 गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः का हिन्दी मे अर्थ • 2.3 गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु Shlok का Englishमें अर्थ • 3 FAQ – गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः श्लोक के अकसर पूछे जाने वाले सवाल GururBrahma GururVishnuh GururDevo Maheshvarah Shlok गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।। GururBrahma GururVishnuh GururDevo Maheshvarah, Gururev Parambrahm Tasmai ShreeGurave Namaha. GururBrahma GururVishnuh Gururdevo Maheshvarah गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः का अर्थ यह श्लोक “स्कन्द पुराण” के गुरुगीता (Gurugītā) के गुरु-स्त्रोतम से लिया गया है। गुरुगीता नामक यह पूरा अध्याय गुरु को समर्पित है। गुरु की महिमा अपरंपार है। हम कोई भी शास्त्र, वेद, पुराण, उपनिषद, उठा लें, सभी में गुरु की महिमा को बताया गया है। अगर जीवन में सिर पर गुरु का हाथ है तो फिर कुछ भी कर पाना स...

विष्णु

अनुक्रम • 1 शब्द-व्युत्पत्ति और अर्थ • 2 ऋग्वेद में विष्णु • 2.1 लोकत्रय के शास्ता: तीन पाद-प्रक्षेप • 2.2 विष्णु-धाम अर्थात् विष्णु का प्रिय आवास (वैकुण्ठ) • 2.3 विष्णु-इन्द्र युग्म अर्थात् इन्द्र-सखा • 2.4 परम वीर्यशाली • 2.5 कुत्सितों के लिए भयकारक • 2.6 व्यापक तथा अप्रतिहत गति वाले • 2.7 लोकोपकारक • 2.8 सर्जक-पालक-संहारक • 2.9 सर्वोच्चता • 3 ब्राह्मणों में विष्णु • 4 पौराणिक मान्यताएँ • 5 विष्णु का स्वरूप • 6 विष्णु-शिव एकता • 7 विष्णु के अवतार • 7.1 अवतार का प्रयोजन • 7.2 अवतारों की संख्या • 7.3 दशावतार • 7.4 अन्य अवतार • 8 108 नाम, महत्त्व और अर्थ • 9 इन्हें भी देखें • 10 सन्दर्भ • 11 बाहरी कड़ियाँ शब्द-व्युत्पत्ति और अर्थ [ ] 'विष्णु' शब्द की व्युत्पत्ति मुख्यतः 'विष्' धातु से ही मानी गयी है। ('विष्' या 'विश्' धातु लैटिन में - vicus और सालविक में vas -ves का सजातीय हो सकता है।) आदि शंकराचार्य ने भी अपने विष्णुसहस्रनाम-भाष्य में 'विष्णु' शब्द का अर्थ मुख्यतः व्यापक (व्यापनशील) ही माना है ऋग्वेद के प्रमुख भाष्यकारों ने भी प्रायः एक स्वर से 'विष्णु' शब्द का अर्थ व्यापक (व्यापनशील) ही किया है। विष्णुसूक्त (ऋग्वेद-1.154.1 एवं 3) की व्याख्या में आचार्य सायण 'विष्णु' का अर्थ व्यापनशील (देव) तथा सर्वव्यापक करते हैं; इस प्रकार सुस्पष्ट परिलक्षित होता है कि 'विष्णु' शब्द 'विष्' धातु से निष्पन्न है और उसका अर्थ व्यापनयुक्त (सर्वव्यापक) है। ऋग्वेद में विष्णु [ ] वैदिक देव-परम्परा में सूक्तों की सांख्यिक दृष्टि से विष्णु का स्थान गौण है क्योंकि उनका स्तवन मात्र 5 सूक्तों में किया गया है; लेकिन यदि सांख्यिक दृष्टि से न देखकर उनपर और पहलुओं से विचार किया जाय तो उनका महत्त्व बहुत ब...

विष्णु सहस्रनाम

अनुक्रम • 1 उत्पत्ति • 2 स्तोत्रभाग • 2.1 पूर्व पीठिका • 2.2 सहस्रनाम • 2.3 उत्तर पीठिका • 2.3.1 फलश्रुति • 3 विष्णु के सहस्र नामों की सूची • 4 सन्दर्भ • 5 इन्हें भी देखे • 6 बाहरी कड़ियाँ उत्पत्ति [ ] कुरुक्षेत्र युद्ध मे हुई विनाश देख धर्मराज युधिष्ठिर विचलित हुए। बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म भी अपने प्राण त्यागने की प्रतीक्षा करते थे। समय उचित पाकर भगवान स्तोत्रभाग [ ] इस स्तोत्र के तीन प्रमुख भागों को निम्न भागों मे दिया गया है। पूर्व पीठिका [ ] इसमें सर्वप्रथम इसके उपरान्त फिर युधिष्ठिर के प्रश्न है: किमेकं दैवतं लोके किं वाप्येकं परायणम्। स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम् ॥ अर्थ: • सभी लोकों में सर्वोत्तम देवता कौन है? • संसारी जीवन का लक्ष्य क्या है? • किसकी स्तुति व अर्चन से मानव का कल्याण होता है? • सबसे उत्तम धर्म कौनसा है? • किसके नाम जपने से जीव को संसार के बन्धन से मुक्ति मिलती है? इसके उत्तर में इसके उपरान्त ऋषि, देवादि संकल्प तथा परमात्मा का ध्यान किया जाता है। सहस्रनाम [ ] इस भाग मे उत्तर पीठिका [ ] फलश्रुति [ ] इस भाग मे सहस्रनाम के सुनने अथवा पठन से प्राप्त होने के लाभ का विवरण दिया गया है। विष्णु के सहस्र नामों की सूची [ ] यह विष्णु के एक हजार नामों की सूची है यह सम्पूर्ण पृष्ठ या इसके कुछ अनुभाग हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषा(ओं) में भी लिखे गए हैं। आप इनका क्रमांक नाम अनुवाद 1 विश्वम् जो स्वयं ही ब्रह्माण्ड है 2 विष्णुः सर्वत्र विद्यमान 3 वषट्कारः जिसका यज्ञ में आह्वान किया जाता है 4 भूतभव्यभवत्प्रभुः अतीत, वर्तमान और भविष्य के भगवान 5 भूतकृत् सभी प्राणियों के निर्माता 6 भूतभृत् वह जो सभी प्राणियों को पोषण देते हैं 7 भावः वह जो सभी जड़ और च...

ब्रह्मा

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विष्णु सहस्रनाम

अनुक्रम • 1 उत्पत्ति • 2 स्तोत्रभाग • 2.1 पूर्व पीठिका • 2.2 सहस्रनाम • 2.3 उत्तर पीठिका • 2.3.1 फलश्रुति • 3 विष्णु के सहस्र नामों की सूची • 4 सन्दर्भ • 5 इन्हें भी देखे • 6 बाहरी कड़ियाँ उत्पत्ति [ ] कुरुक्षेत्र युद्ध मे हुई विनाश देख धर्मराज युधिष्ठिर विचलित हुए। बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म भी अपने प्राण त्यागने की प्रतीक्षा करते थे। समय उचित पाकर भगवान स्तोत्रभाग [ ] इस स्तोत्र के तीन प्रमुख भागों को निम्न भागों मे दिया गया है। पूर्व पीठिका [ ] इसमें सर्वप्रथम इसके उपरान्त फिर युधिष्ठिर के प्रश्न है: किमेकं दैवतं लोके किं वाप्येकं परायणम्। स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम् ॥ अर्थ: • सभी लोकों में सर्वोत्तम देवता कौन है? • संसारी जीवन का लक्ष्य क्या है? • किसकी स्तुति व अर्चन से मानव का कल्याण होता है? • सबसे उत्तम धर्म कौनसा है? • किसके नाम जपने से जीव को संसार के बन्धन से मुक्ति मिलती है? इसके उत्तर में इसके उपरान्त ऋषि, देवादि संकल्प तथा परमात्मा का ध्यान किया जाता है। सहस्रनाम [ ] इस भाग मे उत्तर पीठिका [ ] फलश्रुति [ ] इस भाग मे सहस्रनाम के सुनने अथवा पठन से प्राप्त होने के लाभ का विवरण दिया गया है। विष्णु के सहस्र नामों की सूची [ ] यह विष्णु के एक हजार नामों की सूची है यह सम्पूर्ण पृष्ठ या इसके कुछ अनुभाग हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषा(ओं) में भी लिखे गए हैं। आप इनका क्रमांक नाम अनुवाद 1 विश्वम् जो स्वयं ही ब्रह्माण्ड है 2 विष्णुः सर्वत्र विद्यमान 3 वषट्कारः जिसका यज्ञ में आह्वान किया जाता है 4 भूतभव्यभवत्प्रभुः अतीत, वर्तमान और भविष्य के भगवान 5 भूतकृत् सभी प्राणियों के निर्माता 6 भूतभृत् वह जो सभी प्राणियों को पोषण देते हैं 7 भावः वह जो सभी जड़ और च...

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Brahmā (ब्रह्मा) who is the creator aspect of the Trimurti God, while Vishnu (विष्णु) and Shiva (शिव ) being the Preserver and the Destroyer aspects. The most frequently used etymological meaning for Vishnu and Shiva which I have encountered almost everywhere is :- Vishnu (विष्णु) = The all pervader, who is everywhere, all pervading. The One who enters (everywhere?), etc. Shiva (शिव ) = The all auspicious one, the one who's Pure and the most auspicious, etc. For the word Brahmā (ब्रह्मा), I haven't found anywhere, any proper etymology and meaning. I'd like to know (with scriptural as well as non-scriptural references too) all possible etymology and meanings of all of the Trimurtis - Brahmā, Vishnu, Shiva, with specific emphasis on Brahmā (ब्रह्मा). @Ikshvaku I couldn't find any acceptable or proper etymology for the word - Brahmā (ब्रह्मा). There are several sahasranamam for Vishnu and Shiva in the scriptures and thus almost all of their major names have have been dissected and analysed with multiple perspectives by several eminent Acharya or commentators. Not the same case with Brahmā though. Thus, I'm quite interested to know his etymology.