अपनी खबर आत्मकथा है

  1. [Solved] 'अपनी खबर' किसकी आत्�
  2. Tn Seshan:टीएन शेषन की किताब में चौंकाने वाला खुलासा, Cec के पद को लेकर राजीव गांधी
  3. पांडेय बेचन शर्मा उग्र :: :: :: अपनी खबर :: आत्मकथा
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  5. आत्मकथा किसे कहते हैं?
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  7. आत्मकथा क्या होती है?
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[Solved] 'अपनी खबर' किसकी आत्�

'अपनी खबर'पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र की आत्मकथा है। Key Points • 'अपनी खबर' पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' द्वारा हिंदी में लिखी गई एक आत्मकथा है। • यह आत्मकथा नैतिकता के धरातल पर अपने उन्मुक्त अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है। • पांडेय बेचन शर्मा "उग्र" • पांडेय बेचन शर्मा "उग्र" (1900- 1967) हिन्दी के साहित्यकार एवं पत्रकार थे। • पांडेय बेचन शर्मा जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के अंतर्गत चुनार नामक कसबे में 1900 ई. को हुआ था। • इनके पिता का नाम वैद्यनाथ पांडेय था। • पांडेय बेचन शर्मा सरयूपारीण ब्राह्मण थे। • पांडेय बेचन शर्मा अत्यंत अभावग्रस्त परिवार में उत्पन्न हुए थे। • अत: पाठशालीय शिक्षा भी इन्हें व्यवस्थित रूप से नहीं मिल सकी। • अभाव के कारण इन्हें बचपन में राम-लीला में काम करना पड़ा था। • ये अभिनय कला में बड़े कुशल थे। Additional Information लेखक रचनाएँ हंसराज रहबर(1913-1957 ) बंद गली (कहानी संग्रह) भ्रांति पथ(कहानी संग्रह) दिशाहीन (उपन्यास) डॉ. देवराज उपाध्याय(1917-1989) 'अजय की डायरी' (उपन्यास, 1960) 'संस्कृति का दार्शनिक विवेचन' (1966) 'इतिहास पुरुष' (कविता संग्रह, 1965) 'मैं वे और आप' (उपन्यास, 1969) शिवपूजन सहाय(1893-1963) मेरा जीवन - 1985 (उपन्यास) स्मृतिशेष - 1994 (उपन्यास) हिन्दी भाषा और साहित्य - 1996 (उपन्यास) ग्राम सुधार - 2007 (उपन्यास) The Navodaya Vidyalaya Samiti (NVS) has announced the final result for the recruitment of Trained Graduate Teachers (TGT) for the 2022 cycle. Candidates who had appeared for the NVS TGT recruitment can now check the final result. The Navodaya Vidyalaya Samiti (NVS) released a notification for the recruitment at the post of

Tn Seshan:टीएन शेषन की किताब में चौंकाने वाला खुलासा, Cec के पद को लेकर राजीव गांधी

TN Seshan: टीएन शेषन की किताब में चौंकाने वाला खुलासा, CEC के पद को लेकर राजीव गांधी-वेंकटरमन ने दी थी ये सलाह विस्तार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) टीएन शेषन ने अपनी आत्मकथा 'थ्रू द ब्रोकन ग्लास' में चौंकाने वाला खुलासा किया है। इसमें उन्होंने बताया है कि वह सीईसी बनने को लेकर किस तरह दुविधा में थे। इस पद के लिए जब उनके नाम का प्रस्ताव रखा गया तो वह संकट में आ गए। उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन राष्ट्रपति वेंकटरमन से संपर्क किया। दोनों ने उन्होंने सलाह दी कि अगर उनके पास कोई अन्य पद नहीं है तो इसे स्वीकार कर लें। रूपा प्रकाशन द्वारा मरणोपरांत प्रकाशित इस पुस्तक में बताया गया है कि इसके बाद भी वह उलझन में थे। फिर उन्होने कांची के शंकराचार्य से मशविरा लेने का फैसला किया। शंकराचार्य के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि वह इसे स्वीकार कर लें और यह एक सम्मानजनक काम है। इसके बाद शेषन ने कानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी को फोन किया और कहा कि वह कार्यभार संभालने के लिए तैयार हैं। किताब में कहा गया है,"... तत्कालीन सीईसी (पेरी शास्त्री) का खराब स्वास्थ्य के कारण निधन हो गया। सरकार ने कुछ ऐसा किया जो बहुत ही नासमझी भरा था। यह रमा देवी (सचिव, कानून) को कार्यवाहक सीईसी के रूप में नियुक्ति की प्रक्रिया के लिए आगे बढ़ी। देवी के पदभार संभालने के चौथे दिन मुझे कैबिनेट सचिव विनोद पांडे का फोन आया।" पांडे ने कहा कि सरकार योजना आयोग के तत्कालीन सदस्य शेषन को सीईसी नियुक्त करने की योजना बना रही है। किताब में कहा गया है, "यह जानकर मुझे हैरानी हुई कि कोई मुझे सीईसी बनाने के बारे में सोचेगा। इसलिए, मेरी तत्काल प्रतिक्रिया 'नहीं' कहने की थी क्योंकि मेरा कभी चुनावों से कोई लेना-देना ...

पांडेय बेचन शर्मा उग्र :: :: :: अपनी खबर :: आत्मकथा

महन्‍त भागवतदास ‘कानियाँ’ की नागा-जमात के साथ मैंने पंजाब और नार्थवेस्‍ट फ्रण्टियर प्राविंस का लीला-भ्रमण किया। अमृतसर, लाहौर, सरगोधा मण्‍डी, चूहड़ काणा, पिंड दादन खाँ, मिण्‍टगुमरी, कोहाट और बन्‍नू तक रामलीलाओं में अपने राम स्‍वरूप की हैसियत से शिरकत करते रहे। यह सब सन् 1911-12 ई. की बात होगी। मेरा ख़याल है उन्‍हीं दोनों बरसों में कभी दिल्‍ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम भी फेंका गया था। उसकी चर्चा रामलीला-मण्‍डली वालों में भी कम गरम नहीं रही। फ्रण्टियर से चुनार लौटने के बाद शीघ्र ही हम दोनों भाई पुन: अयोध्‍याजी चले गए थे। इसका ख़ास सबब था चुनार आते ही बड़े भाई साहब का पुन: जुआ-जंगाड़ी जमात में जुड़ जाना, जिससे खीसा काटते ज़रा भी देर न लगी। ऋणदाताओं के मारे जब घुटन महसूस करने लगते, तभी भाई साहब चुनार छोड़ दिया करते थे। अयोध्‍या से मझले भाई श्रीचरण पाँडे उर्फ़ सियारामदास ने पत्र दिया था कि वह इन दिनों महन्‍त राममनोहरदास की मण्‍डली में है। महन्‍तजी मालदार हैं, साथ ही भागवतदास कानियाँ से कहीं उदार। एक्‍टरों की तनख़ाहें पुष्‍ट, तुष्टिकारक हैं। मझले ने बड़े भाई से आग्रह किया था कि वह भी राममनोहरदास की मण्‍डली में आ जाएँ। सो, हम जा ही पहुँचे। राममनोहरदास की मण्‍डली के साथ मैंने सी.पी. के कुछ नगरों तथा यू.पी. के अनेक नगरों का भ्रमण किया। मेरा काम था रामलीला में सीता और लक्ष्‍मण बनना। इस तरह अयोध्‍या, फैज़ाबाद, बाराबंकी, परतापगढ़, दलीपपुर, अलीगढ़, बुलन्‍दशहर, मेरठ, दिल्‍ली, दमोह, सागर, गढ़ाकोटा, कटनी आदि स्‍थानों में रामलीला का स्‍वरूप बनकर ग्‍यारह-बारह साल की उम्र में बन्‍देखाँ ने सहस्र-सहस्र नर-नारियों के चरण पुजवाए हैं। इससे पूर्व ये ही चरण पंजाब और सीमाप्रान्‍त के मण्‍डी-न...

hindustan tirchhi nazar column 11 june 2023

जब कुछ न लिख सकें, तो संस्मरण लिखें या आत्मकथा; और जब ये भी न लिख सकें, तो डायरी लिखें! इतिहास गवाह है कि जब लेखक ‘बोर’ करने लगता है और पत्र-पत्रिकाएं उसके नाम से दूर भागने लगती हैं, तो यही लिखा जाता है। यूं तो अंग्रेजी में इन विधाओं को अभी भी कुछ ‘सीरियसली’ लिया जाता है, लेकिन हिंदी में संस्मरण या आत्मकथा या डायरी लेखन को ‘टैक्टिकल लेखन’ कहा जाता है। जब हिंदी के साहित्यकार वानप्रस्थी होने लगते हैं और संन्यास उनकी ओर ताकने लगता है, तब वे इन विधाओं में हाथ आजमाते हैं, ताकि उनके पास जो कुछ बचा-खुचा है, उसे भी लोक में अर्पित कर दिया जाए और साहित्य का परमपद पा लिया जाए। इसी तरह आत्मकथा है। इसमेें आप अपने मित्र-शत्रुओं के साथ हिसाब-किताब चुकता कर सकते हैं। कब किसने आपका शोषण किया, किस-किस ने धोखा दिया, किस नौकरी में मालिक ने कितना सताया, किस ढाबे वाले ने कब उधार न खिलाया, कब किसने रॉयल्टी न दी... पर कठिन से कठिन दिनों में भी साहित्य-साधना करते रहे, सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। यदि हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा व दलित आत्मकथाओं को छोड़ दें, तो हिंदी की अधिकतर आत्मकथाएं आत्मश्लाघा की कथाएं हैं। इस विधा में सिर्फ लेखक देवता होता है, बाकी सब खल, दुष्ट, उत्पीड़क, छिनट्टे होते हैं। ऐसे घटिया लोगों के बीच वह किस तरह बचा रहा और अपनी रचनाधर्मिता को बचाता रहा और फिर भी समाज के प्रति प्रतिबद्ध रहा, यह कोई मामूली बात नहीं। मगर ऐसी आत्मकथा लिखने वाले यह सब तब लिखते हैं, जब उनके वक्त के सारे ‘दुष्ट’ सिधार चुके होते हैं या साहित्य के मैदान से ‘टायर्ड’ या ‘रिटायर्ड’ हो चुके होते हैं। ऐसे लोग अव्वल तो खंडन नहीं करते। करते हैं, तो आत्मकथा चर्चित हो जाती है। लोग मजे लेने लगते हैं। जिनको गालिया...

आत्मकथा किसे कहते हैं?

आत्मकथा किसी व्यक्ति की स्वलिखित जीवनगाथा है। इसमें लेखक स्वयं की कथा को बड़ी आत्मीयता के साथ पाठक के समक्ष प्रस्तुत करता हैं। लेखक अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों, घटनाओं, पारिवारिक, आर्थिक तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में लिखता है। अपने जीवन में घटित मार्मिक घटनाओं का वर्णन भी करता है। महापुरुषों की आत्मकथायें हमारा मार्गदर्शन करती है तथा प्रेरणा देती हैं। जीवन और आत्मकथा में यही अंतर है कि जीवनी में लेखक किसी पुरुष की कथा, चरितनायक गुणों की प्रशंसा लिखता है। और आत्मकथा में स्वयं अपनी जीवन का सिंहावलोकन हुए अपनी बात लिखता हैं भारतेन्दु हरिष्चन्द्र की‘कुछ आप बीती कुछ जगवीती’ के प्रकाशन से ही हिन्दी आत्मकथा का लेखन प्रारंभ हुआ। आत्मकथा किसे कहते हैं? जब व्यक्ति स्वयं अपनी कथा, अपनी शैली में लिखता है, उसेआत्मकथाकहते हैं। उसमें लेखक अपने बचपन से लेकर उस विशिष्ट बिन्दु तक का जीवन जो उसने सोचा है, उसे वह अपनी आत्मकथा में लिखता है। उसी कालखण्ड का विस्तृत जीवन-ब्यौरा प्रस्तुत करता है। अर्थात् लेखक अपने व्यक्तिगत जीवन को नि:संकोच विश्लेषित और विवेचित करता है। अपनी भावों-अनुभूतियों को, जीवन में घटित घटना-प्रसंगों आदि को वह प्रस्तुत करता है। साथ ही इस घटना-प्रसंगों को लेकर वह अपनी मानसिक क्रिया-प्रतिक्रियाओं को भी रेखांकित करता है। क्योंकि‘‘आत्मकथा लेखक के अतीत का लेखा-जोखा भर नहीं है। वह तो परिवेश में जिए गए क्षणों का पुन: सृजन है।’’ अतीत की घटनाओं का वर्तमान की दृष्टि से किया गया चित्रण है। आत्मकथा का अर्थ‘आत्मकथा’ मूलत: अंग्रेजी शब्द ‘ऑटोबायोग्राफी’ ( Autobiography ) पर बना हुआ शब्द है। संस्कृत में‘आत्मवृत्तकथनम्’ और ‘आत्मचरितम्’ शब्द अवश्य मिलते हैं, जो आत्मकथा के अर्थ मे...

Apni Khabar

लोगों की राय • चौकड़िया सागर Yes Arvind Yadav • सम्पूर्ण आल्ह खण्ड Rakesh Gurjar • हनुमन्नाटक Dhnyavad is gyan vardhak pustak ke liye, Pata hi nai tha ki Ramayan Ji ke ek aur rachiyeta Shri Hanuman Ji bhi hain, is pustak ka prachar krne ke liye dhanyavad Pratiyush T • क़ाफी मग " कॉफ़ी मग " हल्का फुल्का मन को गुदगुदाने वाला काव्य संग्रह है ! " कॉफ़ी मग " लेखक का प्रथम काव्य संग्रह है ! इसका शीर्षक पुस्तक के प्रति जिज्ञासा जगाता है और इसका कवर पेज भी काफी आकर्षक है ! इसकी शुरुआत लेखक ने अपने पिताजी को श्रद्धांजलि के साथ आरम्भ की है और अपने पिता का जो जीवंत ख़ाका खींचा है वो मनोहर है ! कवि के हाइकु का अच्छा संग्रह पुस्तक में है ! और कई हाइकू जैसे चांदनी रात , अंतस मन , ढलता दिन ,गृहस्थी मित्र , नरम धूप, टीवी खबरे , व्यवसाई नेता व्यापारी, दिए जलाये , आदि काफी प्रासंगिक व भावपूर्ण है ! कविताओं में शीर्षक कविता " कॉफ़ी मग " व चाय एक बहाना उत्कृष्ट है ! ग़ज़लों में हंसी अरमां व अक्सर बड़ी मनभावन रचनाये है ! खूबसूरत मंजर हर युवा जोड़े की शादी पूर्व अनुभूति का सटीक चित्रण है व लेखक से उम्मीद करूँगा की वह शादी पश्चात की व्यथा अपनी किसी आगामी कविता में बया करेंगे ! लेखक ने बड़ी ईमानदारी व खूबसूरती से जिंदगी के अनुभवों, अनुभूतियों को इस पुस्तक में साकार किया है व यह एक मन को छूने वाली हल्की फुल्की कविताओं का मनोरम संग्रह है ! इस पुस्तक को कॉफी मग के अलावा मसाला चाय की चुस्की के साथ भी आनंद ले Vineet Saxena • आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास Bhuta Kumar • पांव तले भविष्य 1 VIJAY KUMAR • कारगिल Priyanshu Singh Chauhan • सोलह संस्कार kapil thapak • सोलह संस्कार kapil thapak • कामसूत्रकालीन समाज एव...

आत्मकथा क्या होती है?

By: RF competition Copy Share (423) आत्मकथा क्या होती है? | प्रमुख आत्मकथा लेखक एवं उनकी रचनाएँ May 28, 2022 01:05PM 1716 आत्मकथा की परिभाषा आत्मकथा हिन्दी साहित्य की वह गद्य विधा है, जिसमें लेखक अपनी स्वयं की कथा लिखता है। आत्मकथा काल्पनिक भी हो सकती है। इसमें रचनाकार दृष्टा और भोक्ता दोनों बना रहता है। मानव जीवन में अटूट आस्था का होना आत्मकथा का प्रमुख तत्व है। आत्मकथा के द्वारा देशकाल और वातावरण का सही ज्ञान होता है। साथ ही मूल घटना का कोई पक्ष अस्पष्ट नहीं रहता। घटना सूत्र कहीं प्रधान रूप धारण करता है और कहीं गौण रहता है। आत्मकथा में लेखक के अनेक अज्ञात व गोपनीय पहलू प्रगट होते हैं। इसमें घटनाओं के स्थान पर व्यक्तित्व प्रकाशन और आत्मोद्घाटन पर बल दिया जाता है। भारतेन्दु युग अन्य विधाओं की भाँति इस विधा के लिए भी उर्वर सिद्ध हुआ है। हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए। 1. पत्र-साहित्य क्या है? | प्रमुख पत्र-साहित्य एवं उनके लेखक 2. निबन्ध क्या है? | निबन्ध का इतिहास || प्रमुख निबन्धकार एवं उनकी रचनाएँ प्रमुख आत्मकथा लेखक एवं उनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य के प्रमुख आत्मकथा लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं– 1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र– कुछ आप बीती कुछ जग बीती 2. वियोगी हरि– मेरा जीवन प्रवाह 3. राहुल सांकृत्यायन– मेरी जीवन यात्रा 4. महात्मा गांधी– सत्य के प्रयोग 5. गुलाबराय– मेरी असफलताएँ 6. हरिवंश राय बच्चन– क्या भूलूँ? क्या याद करूँ? 7. पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र– अपनी खबर। हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए। 1. यह तन काँचा कुम्भ है – कबीर दास 2. नाम अजामिल-से खल कोटि – गोस्वामी तुलसीदास 3. एहि घाटतें थोरिक दूरि अहै– गोस्वामी तुलसीदास 4. रावरे दोषु न पायन को – गोस्वामी तुलसीदास...

अपनी खबर

सभी Hindi Pdf Book यहाँ देखें सभी Audiobooks in Hindi यहाँ सुनें अपनी खबर का संछिप्त विवरण : लिख तो डालू लेकिन जीवित महाशयों की बिरादरी- अंध भक्त बिरादरी-का बड़ा भय है। बहुतों के बारे में सत्य प्रकट हो जाए तो उनके यश और जीवन का चिराग ही लुप्त-लुप्त करने लगे। कुछ तो मारने पर भी आमादा हो सकते है। उदाहरण एक जगह वाल्मीकीय रामायण सुन्दर काण्ड की कथा में मेरा एक ऐसा मित्र भी उपस्थित थे जो हनुमानजी के अंध भक्त थे….. Apani Khabar PDF Pustak Ka Sankshipt Vivaran : Likh to Daloo Lekin jeevit Mahashayon kee biradari- Andh Bhakt biradari-ka bada bhay hai. Bahuton ke bare mein saty prakat ho jaye to unake yash aur jeevan ka chirag hee lupt-lupt karane lage. Kuchh to Marane par bhee Aamada ho sakate hai. Udaharan Ek Jagah Valmeekeey Ramayan Sundar kand ki katha mein mera ek aisa mitra bhee upasthit the jo Hanumana ji ke andh bhakt the………. Short Description of Apani Khabar PDF Book : Write down, but the community of living superpowers – the blind devotee community – has a great fear. If the truth about many is revealed, then only the lamp of fame and life started disappearing. You can be intent on killing anything. Example: In one place, in the story of Valmikya Ramayana Sundar Kand, a friend of mine who was blind devotee of Hanuman was also present………. 44Books का एंड्रोइड एप डाउनलोड करें “कुशलतापूर्वक किसी की बात सुनना अकेलेपन, वाचालता और कंठशोथ का सबसेबढ़िया इलाज है।” ‐ विलियम आर्थर वार्ड “Skillful listening is the best remedy for loneliness, loquaciousness, and laryngitis.” ‐ William A...

पांडेय बेचन शर्मा उग्र :: :: :: अपनी खबर :: आत्मकथा

महन्‍त भागवतदास ‘कानियाँ’ की नागा-जमात के साथ मैंने पंजाब और नार्थवेस्‍ट फ्रण्टियर प्राविंस का लीला-भ्रमण किया। अमृतसर, लाहौर, सरगोधा मण्‍डी, चूहड़ काणा, पिंड दादन खाँ, मिण्‍टगुमरी, कोहाट और बन्‍नू तक रामलीलाओं में अपने राम स्‍वरूप की हैसियत से शिरकत करते रहे। यह सब सन् 1911-12 ई. की बात होगी। मेरा ख़याल है उन्‍हीं दोनों बरसों में कभी दिल्‍ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम भी फेंका गया था। उसकी चर्चा रामलीला-मण्‍डली वालों में भी कम गरम नहीं रही। फ्रण्टियर से चुनार लौटने के बाद शीघ्र ही हम दोनों भाई पुन: अयोध्‍याजी चले गए थे। इसका ख़ास सबब था चुनार आते ही बड़े भाई साहब का पुन: जुआ-जंगाड़ी जमात में जुड़ जाना, जिससे खीसा काटते ज़रा भी देर न लगी। ऋणदाताओं के मारे जब घुटन महसूस करने लगते, तभी भाई साहब चुनार छोड़ दिया करते थे। अयोध्‍या से मझले भाई श्रीचरण पाँडे उर्फ़ सियारामदास ने पत्र दिया था कि वह इन दिनों महन्‍त राममनोहरदास की मण्‍डली में है। महन्‍तजी मालदार हैं, साथ ही भागवतदास कानियाँ से कहीं उदार। एक्‍टरों की तनख़ाहें पुष्‍ट, तुष्टिकारक हैं। मझले ने बड़े भाई से आग्रह किया था कि वह भी राममनोहरदास की मण्‍डली में आ जाएँ। सो, हम जा ही पहुँचे। राममनोहरदास की मण्‍डली के साथ मैंने सी.पी. के कुछ नगरों तथा यू.पी. के अनेक नगरों का भ्रमण किया। मेरा काम था रामलीला में सीता और लक्ष्‍मण बनना। इस तरह अयोध्‍या, फैज़ाबाद, बाराबंकी, परतापगढ़, दलीपपुर, अलीगढ़, बुलन्‍दशहर, मेरठ, दिल्‍ली, दमोह, सागर, गढ़ाकोटा, कटनी आदि स्‍थानों में रामलीला का स्‍वरूप बनकर ग्‍यारह-बारह साल की उम्र में बन्‍देखाँ ने सहस्र-सहस्र नर-नारियों के चरण पुजवाए हैं। इससे पूर्व ये ही चरण पंजाब और सीमाप्रान्‍त के मण्‍डी-न...

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जब कुछ न लिख सकें, तो संस्मरण लिखें या आत्मकथा; और जब ये भी न लिख सकें, तो डायरी लिखें! इतिहास गवाह है कि जब लेखक ‘बोर’ करने लगता है और पत्र-पत्रिकाएं उसके नाम से दूर भागने लगती हैं, तो यही लिखा जाता है। यूं तो अंग्रेजी में इन विधाओं को अभी भी कुछ ‘सीरियसली’ लिया जाता है, लेकिन हिंदी में संस्मरण या आत्मकथा या डायरी लेखन को ‘टैक्टिकल लेखन’ कहा जाता है। जब हिंदी के साहित्यकार वानप्रस्थी होने लगते हैं और संन्यास उनकी ओर ताकने लगता है, तब वे इन विधाओं में हाथ आजमाते हैं, ताकि उनके पास जो कुछ बचा-खुचा है, उसे भी लोक में अर्पित कर दिया जाए और साहित्य का परमपद पा लिया जाए। इसी तरह आत्मकथा है। इसमेें आप अपने मित्र-शत्रुओं के साथ हिसाब-किताब चुकता कर सकते हैं। कब किसने आपका शोषण किया, किस-किस ने धोखा दिया, किस नौकरी में मालिक ने कितना सताया, किस ढाबे वाले ने कब उधार न खिलाया, कब किसने रॉयल्टी न दी... पर कठिन से कठिन दिनों में भी साहित्य-साधना करते रहे, सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। यदि हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा व दलित आत्मकथाओं को छोड़ दें, तो हिंदी की अधिकतर आत्मकथाएं आत्मश्लाघा की कथाएं हैं। इस विधा में सिर्फ लेखक देवता होता है, बाकी सब खल, दुष्ट, उत्पीड़क, छिनट्टे होते हैं। ऐसे घटिया लोगों के बीच वह किस तरह बचा रहा और अपनी रचनाधर्मिता को बचाता रहा और फिर भी समाज के प्रति प्रतिबद्ध रहा, यह कोई मामूली बात नहीं। मगर ऐसी आत्मकथा लिखने वाले यह सब तब लिखते हैं, जब उनके वक्त के सारे ‘दुष्ट’ सिधार चुके होते हैं या साहित्य के मैदान से ‘टायर्ड’ या ‘रिटायर्ड’ हो चुके होते हैं। ऐसे लोग अव्वल तो खंडन नहीं करते। करते हैं, तो आत्मकथा चर्चित हो जाती है। लोग मजे लेने लगते हैं। जिनको गालिया...