अपराजिता स्तोत्र

  1. APARAJITA STOTRA
  2. Stotra (हिंदी स्तोत्र लिस्ट)
  3. अपराजिता स्तोत्र
  4. श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता स्तोत्र
  5. श्री गजेन्द्र मोक्ष स्तवन
  6. अपराजिता स्तोत्र


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APARAJITA STOTRA

मान्यता है कि जो भी भक्त नवरात्र में नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं उन्हें विजयादशमी के दिन मां अपराजिता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। देवी अपराजिता की उपासना के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। दशहरा के दिन दुर्गा मां की विदाई से पहले अपराजिता पूजन किया जाता है। शारदीय नवरात्र अपराजिता पूजन के बिना अधूरा माना जाता है। इस पूजा से कभी असफलता नहीं मिलती। जब चारों युगों का प्रारम्भ हुआ था तब से अपराजिता पूजन की जाती है। देवी अपराजिता की पूजा देवता करते थे तथा ब्रह्म, विष्णु नित्य देवी का ध्यान करते हैं। देवी अपराजिता को दुर्गा का अवतार माना जाता है और विजयादशमी के दिन अपराजिता पूजा की जाती है। देवी अपराजिता की उपासना के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की विदाई से पूर्व अपराजिता के फूल से मां की पूजा कर उनसे अभयदाय मांगा जाता है। इस तरह की आराधना से देवी प्रसन्न होकर विजयी होने का आर्शीवाद प्रदान करती हैं। श्रीराम ने भी की थी अपराजिता पूजा अपराजिता पूजा सभी कार्यों में सफलता दिलाती है। श्रीराम चन्द्र जी ने रावण का वध करने से पर्व देवी अपराजिता की आराधना की थी। देवी की आराधना का विशेष महत्व श्रीरामचन्द्र जी की उपासना के कारण भी है। ॥ अपराजिता स्तोत्र ॥ ॐ नमोऽपराजितायै । ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाःवामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः । गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि ।लक्ष्मीनृसिंहो देवता ।ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।हुं शक्तिः ।सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः । मूल स्तोत्र ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् । शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ॥ १॥ शङ्खचक्रधरां देवी ...

Stotra (हिंदी स्तोत्र लिस्ट)

Stotra/स्तोत्र Stotra/Stotram ( “Ode, Eulogy or A Hymn of Praise”. It is a literary genre of Indian texts designed to be melodically sung, in contrast to shastra which are composed to be recited. A Stotra can be a prayer, a description, or a conversation, but always with a poetic structure. They are the hymns written to praise the god. Suktam & Stotra both have same purpose to pray to god. A set of shlokas compiled together is called a stotram. A stotram is an extract from a religious scripture but generally poetic in the praise of God, emphasizing His qualities or describing Him as supreme. stotram comes from the word Sthuthi and Sthuthi means praise. Some stotram are also called as Sthavas. stotram could be broadly translated as “Praise of God”. Stotra (stotram) can be broadly classified according the time period as those originating during period of Vedas, period of the Puranas and post Purana Stotra or according to the style in which they are written. Stotra are useful for cutting away at karma. They are not bound by the rules that Shruti (Stotra) such as the Vedas are bound by, so therefore, they are accessible by the everyday householder. पूजा के लिए स्तोत्र हिन्दू धर्म के अनुसार संस्कृत साहित्य में किसी देवी-देवता की स्तुति में लिखे गये काव्य को स्तोत्र (Stotra) कहा जाता है। संस्कृत साहित्य में यह स्तोत्र काव्य के अन्तर्गत आता है। स्तोत्र का पाठ वाचिक और कंठ स्वर से होता है, जो एक प्रकार से देवी-देवता की स्तुति ही है। स्तोत्र का पाठ पूजा, मन्त्र जाप, हवन आदि के अंत ...

अपराजिता स्तोत्र

• by • Posted On 11-02-2018 अपराजिता स्तोत्र :- अर्थात् वह स्तोत्र पाठ जिस पाठ को सिद्ध करने से साधक को कोई पराजित नहीं कर सकता। भगवान श्रीराम ने भी रावण पर विजय पाने के लिए युद्ध से पहले अपराजिता अनुष्ठान किया था। Dr.R.B.Dhawan श्रीत्रैलोक्यविजया अपराजितास्तोत्रम् । ॐ नमोऽपराजितायै । ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि । लक्ष्मीनृसिंहो देवता । ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् । हुं शक्तिः । सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः । ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् । शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ॥ १॥ शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ॥ २॥ नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ॥ ३॥ मार्ककण्डेय उवाच – शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् । असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ॥ ४॥ ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय, नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे, क्षीरोदार्णवशायिने, शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुडवाहनाय, अमोघाय अजाय अजिताय पीतवाससे, ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम । वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा, ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-कूष्माण्ड- सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा । ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अ...

अपराजिता

॥ श्री गणेशाय नम ॥ नमोऽपराजितायै। अस्याः वैष्णव्याः परायाः अपराजितायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्कण्डेयाः ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीछन्दान्सि, लक्ष्मीनरसिंहो देवता, ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम्, हुं शक्तिः, सकलकामनासिद्ध्यर्थम् अपराजिताविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः। ध्यानम् : ॐ नीलोत्पलदलश्यामां भुजाङ्गाभरणान्विताम्। शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम्।।१।। शङ्खचक्रधरां देवीं वैष्णवीमपराजिताम्। बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम्।। २।। नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः।।३।। मार्कण्डेय उवाच : शृणुश्व मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम्। असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।४।। ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय, नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षाय, क्षीरोदार्णवशायिने, शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुडवाहनाय, अमोघाय , अजाय अजिताय, पीतवाससे। ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म वराह, नरसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम राम राम, वरद वरद वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तु ते स्वाहा। ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-कूष्माण्डसिद्धयोगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान् नक्षत्रग्रहान् चान्यान् हन हन, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय विध्वंसय, विद्रावय विद्रावय, चूर्णय चूर्णय, शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मूसलेन, हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा। ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर...

श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता स्तोत्र

ॐ सहस्त्रबाहो सहस्त्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्त्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबंधविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्व्जवरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोस्तुते स्वाहा | ॐ नमोस्तुते | अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति, सिद्धे, जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, ऐकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुंधति, गायत्री, सावित्री, जातवेदसि,मानस्तोके,सरस्वती, धरणि, धरणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारी, मातङ्गी,कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि, ब्रह्मवादिनी, कालि, कपालिनी,करालनेत्रे, भद्रे,निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं, जलगतं, अंतरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा | ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान सर्वान दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि ब्रह्माणि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंही ऐन्द्रि चामुण्डे महालक्ष्मी वैनायिकी औपेन्द्री आग्नेयी चण्डी नैऋति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इंद्रोपेन्द्रभगिनि |

श्री गजेन्द्र मोक्ष स्तवन

इस स्तवन का पाठ ब्राह्ममुहूर्त में भगवान् श्री हरी के सामने या कही पर भी भाव पूर्वक कर सकते है | इसका निरंतर स्तवन करने से मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो जाता है,सभी कष्टों का निवारण हो जाता है,दुःस्वप्नो का विनाश हो जाता है ,सभी प्रकार के विघ्नो का विनाश हो जाता है और मृत्यु पर्यन्त कभी नरक में नहीं जाता ऐसा स्वयं भगवान् का वचन है | • ► (76) • ► (18) • ► (23) • ► (16) • ► (15) • ► (4) • ► (103) • ► (4) • ► (3) • ► (3) • ► (28) • ► (3) • ► (15) • ► (26) • ► (9) • ► (12) • ► (100) • ► (6) • ► (1) • ► (7) • ► (5) • ► (9) • ► (12) • ► (14) • ► (5) • ► (8) • ► (13) • ► (20) • ▼ (117) • ► (9) • ► (7) • ► (11) • ► (6) • ► (1) • ► (16) • ► (5) • ► (11) • ► (10) • ► (24) • ▼ (8) • • • • • • • • • ► (9) • ► (152) • ► (6) • ► (6) • ► (9) • ► (8) • ► (12) • ► (25) • ► (18) • ► (55) • ► (13)

अपराजिता स्तोत्र

अपराजिता स्तोत्र संस्कृत अपराजिता स्तोत्र पाठ विधि :सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करे: विनियोग : ॐ अस्या: वैष्ण्व्या: पराया: अजिताया: महाविद्ध्या: वामदेव-ब्रहस्पतमार्कणडेया ॠषयः।गाय्त्रुश्धिगानुश्ठुब्ब्रेहती छंदासी। लक्ष्मी नृसिंहो देवता। ॐ क्लीं श्रीं हृीं बीजं हुं शक्तिः सकल्कामना सिद्ध्यर्थ अपराजित विद्द्य्मंत्र पाठे विनियोग:। (जल भूमि पर छोड़ दे) अपराजिता देवी ध्यान ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजंगाभरणानिव्तं। शुद्ध्स्फटीकंसकाशां चन्द्र्कोटिनिभाननां।। १।। शड़्खचक्रधरां देवीं वैष्णवीं अपराजितं। बालेंदुशेख्रां देवीं वर्दाभाय्दायिनीं।। २।। नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कंडेय महातपा: ।। ३।। श्री मार्कंडेय उवाच शृणुष्वं मुनय: सर्वे सर्व्कामार्थ्सिद्धिदाम्। असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीं अपराजितम्।। ४।। ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय, नमोऽस्त्वनंताय सह्स्त्रिशीर्षायणे, क्षिरोदार्णवशायिने, शेषभोगपययड़्काय,गरूड़वाहनाय, अमोघाय अजाय अजिताय पीतवाससे, ॐ वासुदेव सड़्कर्षण प्रघुम्न, अनिरुद्ध, हयग्रीव, मत्स्य, कुर्म, वाराह, नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर,राम राम राम । वरद, वरद, वरदो भव, नमोस्तुते, नमोस्तुते स्वाहा, ॐ असुर- दैत्य- यक्ष- राक्षस- भूत-प्रेत- पिशाच- कुष्मांड- सिद्ध- योगिनी- डाकिनी- शाकिनी- स्क्न्गद्घान, उपग्रहानक्षत्रग्रहांश्रचान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंस्य विध्वंस्य विद्रावय विद्रावय चूणय चूणय शंखेंन चक्रेण वज्रेण शुलेंन गदया मुसलेन हलेंन भास्मिकुरु कुरु स्वाहा। ॐ सहस्त्र्बाहो सह्स्त्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत,सहत्स्र्नेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसुदन,महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्द्नाभ, गोविन्द, दामोदर, हृ...