बाल कविता इन हिंदी

  1. पर्यावरण संरक्षण पर कविता
  2. शिक्षाप्रद बाल कविता :
  3. विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस : वे चुनिंदा शेर जो बच्चों की पीड़ा से रूबरू करवाते हैं
  4. हिंदी कविता
  5. मेला पर बाल कविता
  6. Childrens Poem Dant Dapat : बाल कविता डाँट


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पर्यावरण संरक्षण पर कविता

Comments पर्यावरण हमारे जीवन का ऐसा हिस्सा है जो की हमें प्रकृति द्वारा मुफ्त में प्राप्त हुआ है प्रकृति को बचाने के लिए कई तरह के संगठन कई अभियान चलाते है जिससे की पर्यावरण का बचाव किया जा सके | इसीलिए कई महान शायरों ने पर्यावरण के ऊपर अपनी कई तरह की रचनाये की है अगर आप उन रचनाओं में से कुछ बेहतरीन कविताओं के बारे में जानना चाहे तो इसके लिए आप हमारे द्वारा बताई गयी जानकारी को पढ़ सकते है तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर भी कर सकते है | पर्यावरण प्रदूषण पर कविता अगर आप पर्यावरण बचाओ पर कविता, paryavaran पर कविता, पर्यावरण पर आधारित कविता, पर्यावरण की रक्षा पर कविता, पर्यावरण पर कविताये, पर्यावरण पर एक कविता, प्रकृति और पर्यावरण पर निबंध, पर्यावरण सुरक्षा पर कविता, पर्यावरण पर दोहे, पेड़ पर कविताएं, पर्यावरण कविता मराठी, पर्यावरणावर कविता, पर्यावरण पर नारा लेखन, पर्यावरण पर भाषण के बारे में जानना चाहे तो इसके बारे में जानकारी यहाँ से जान सकते है : बहुत लुभाता है गर्मी में, अगर कहीं हो बड़ का पेड़। निकट बुलाता पास बिठाता ठंडी छाया वाला पेड़। तापमान धरती का बढ़ता ऊंचा-ऊंचा, दिन-दिन ऊंचा झुलस रहा गर्मी से आंगन गांव-मोहल्ला कूंचा-कूंचा। गरमी मधुमक्खी का छत्ता जैसे दिया किसी ने छेड़। आओ पेड़ लगाएं जिससे धरती पर फैले हरियाली। तापमान कम करने को है एक यही ताले की ताली ठंडा होगा जब घर-आंगन तभी बचेंगे मोर-बटेर तापमान जो बहुत बढ़ा तो जीना हो जाएगा भारी धरती होगी जगह न अच्‍छी पग-पग पर होगी बीमारी रखें संभाले इस धरती को अभी समय है अभी न देर। पर्यावरण पर बाल कविता अगर आप एनवायरनमेंट पोएम इन हिंदी, पर्यावरण पर निबंध हिंदी में, पर्यावरण पर कविता इन हिंदी, विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता, वन और पर्...

शिक्षाप्रद बाल कविता :

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है ‘झूठ के पाँव’ (पद्य कथा) में लोमड़ी के माध्यम से झूठ बोलकर दूसरों को ठगने वाले लोगों से सावधान रहने की शिक्षा दी गई है। दुष्ट लोग मीठी-मीठी बातें बनाकर दूसरों को अपने जाल में फँसाना चाहते हैं। अतः हमको इनकी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आकर अपनी बुद्धि से सच्चाई को जानना चाहिए। जो लोग बिना सोचे समझे इन धूर्तों की बातों में आ जाते हैं वे अपना सब कुछ खो बैठते हैं। बालोपयोगी यह ” शिक्षाप्रद बाल कविता ” बच्चों को सोच समझ कर काम करने को प्रेरित करती है। शिक्षाप्रद बाल कविता सोच रही थी खड़ी खड़ी, नहीं सुबह से कुछ भी खाया लगती मुझको भूख बड़ी। कुछ ही देरी में सूरज भी लगता है ढलने वाला, नहीं अभी तक गया पेट में पर मेरे एक निवाला। इधर-उधर भी गई खोजने हाथ नहीं पर कुछ आया, लगा उसे तो आज मौत का सिर पर मँडराया साया। तभी एक मोटा – सा मुर्गा पड़ा पेड़ पर दिखलाई, और लोमड़ी पाने उसको मन ही मन थी ललचाई। गई पेड़ के पास लोमड़ी शक्ल बना अपनी भोली, बाँग लगाते उस मुर्गे से कोमल स्वर में यह बोली। “आओ मुर्गे भाई नीचे क्यों बैठे इतने ऊपर, आँख – मिचौली का खेलेंगे आज खेल हम तुम मिलकर। ऊब चुकी हूँ इस जंगल में एकाकीपन मैं सहते, यहाँ अकेले अब रहते। आज चाँदनी में खेलें लो छुपम – छुपाई जी भरकर, बहिन तुम्हारी बहुत दुःखी है आओ नीचे शीघ्र उतर। “ उस मुर्गे को भी जीवन का अनुभव था अच्छा खासा, बोला-” जा री चतुर लोमड़ी फेंक नहीं छल का पासा। तेरी सब चतुराई जानूँ बना नहीं मीठी बातें, ऐसे ही करती आई हो धोखे से तुम आघातें। जाओ अपनी राह पकड़ कर बनो जान की मत दुश्मन, भरा हुआ तेरी बातों में मात्र स्...

विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस : वे चुनिंदा शेर जो बच्चों की पीड़ा से रूबरू करवाते हैं

‘बाल श्रम विरोधी दिवस’ की शुरुआत 2002 में हुई थी, फिर भी तब से अब तक बाल मजदूरी की वजह से करोड़ों बच्चों का बचपन समाप्त हो गया, लेकिन ये समस्या आज भी हमारे बीच मौजूद है. बाल श्रम धीरे-धीरे देश की नींव को खोखला कर रहा है. गरीबी, लाचारी और माता-पिता की प्रताड़ना के चलते आज भी देश के कई ऐसे बच्चे हैं जो बाल मजदूरी की दलदल में फंसे हुए हैं. इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों, खेल-खिलौनों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, कंपनियों में बर्तन धोने और झाडू-पोछा करने में बीतता है. न जाने कितने ऐसे बच्चे हैं, जिनका बचपन बाल मजदूरी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है. बाल श्रम केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह एक वैश्विक घटना है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के मुताबिक पूरे विश्व में तकरीबन 22 करोड़ बाल श्रमिक हैं. हर साल 12 जून को बाल मजदूरी के प्रति विरोध और जगरुकता फैलाने के मकसद से ‘विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस’ मनाया जाता है. अगर बाल मजदूरी जैसी समस्या यूं ही बनी रही, तो आने वाले कुछ सालों में युवा शक्ति किसी काम की नहीं रहेगी. देश की 80 फीसदी ग्रामीण आबादी गरीबी का दंश झेल रही है. बाल मजदूरी के हालात में सुधार लाने के लिए सरकार ने साल 1986 में चाइल्ड लेबर ऐक्ट बनाया था, जिसके तहत बाल मजदूरी को अपराध माना गया. इसके बावजूद देश के हर गली-मोहल्ले और चौराहे पर कई बाल मजदूर काम करते हुए नजर आ जाते हैं. आपको बता दें, कि पूरे विश्व की तुलना में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में ही हैं. इन बाल श्रमिकों में 19 प्रतिशत के आसपास घरेलू नौकर हैं और बाकी के ग्रामीण, असंगठित क्षेत्रों में कृषि जैसी चीज़ों से जुड़े हुए हैं. देश में कई एनजीओ बाल मजदूरी के खिलाफ अपनी मुहिम चला रहे ह...

हिंदी कविता

लोकप्रिय कवियों तथा कवित्रियों द्वारा हिंदी में बच्चों की कविताओं का संग्रह, बच्चों के लिए लिखी गई बाल-कविताएं, हिंदी राइम्स, हिंदी कविता, हिंदी पोयम्स, नर्सरी राइम्स इन हिंदी, बच्चों के लिए बाल कविताएँ, बच्चों की दुनिया में कविता, २ से १५ साल के बच्चों के लिये कविताएं, हास्य के लिए लिखी गयी कविताएं, छोटे बच्चों की छोटी कविताएं पढ़ सकते हैं। You read here Hindi Rhymes, poems in hindi, poems for kids, kavita kosh, hindi poems, hindi kavita, balgeet, child poem in hindi, hindi short poems, short poem in hindi, rhymes, nursery rhymes, rhymes for kids, kids rhymes, children rhymes, baby rhymes, ukg rhymes, lkg rhymes, nursery songs, nursery poetry, poem rhyme, preschool rhymes etc. Category : अगर है प्यार मुझसे तो बताना भी ज़रूरी है, दिया है हुस्न मौला ने दिखाना भी ज़रूरी है। इशारा तो करो मुझको कभी अपनी निगाहों से, अगर है इश्क़ मुझसे तो जताना भी ज़रूरी है। अगर कर ले सभी ये काम झगड़ा हो नहीं सकता, ख़ता कोई नज़र आए छुपाना भी ज़रूरी है। अगर टूटे कभी रिश्ता तुम्हारी हरकतों से जब, पड़े क़दमों में जाकर फिर मनाना भी ज़रूरी है। कभी मज़लूम आ जाए तुम्हारे . . . Read More . . . Category : "कविता" होकर कौतूहल के वश में, गया एक दिन मै सर्कस में। भय-विस्मय के काम अनोखे, देखे बहु व्यायाम अनोखे। एक बड़ा-सा बन्दर आया, उसने झटपट लैंप जलाया। झट कुर्सी पर पुस्तक खोली, आ तब तक मैना यूँ बोली। हाजिर है हुजूर का घोड़ा, चौंक उठाया उसने कोड़ा। आया तब तक एक बछेरा, चढ़ बंदर ने उसको फेरा। एक मनुष्य अंत में आया, पकड़े हुए सिंह को लाया। मनुज-सिंह की देख लड़ाई, की मैंने इस . . . Read More . . . उठो, धरा के अमर सपूतों, ...

मेला पर बाल कविता

• महत्वपूर्ण तिथि पर कविता • महत्वपूर्ण दिवस पर कविता • रचनाकारों की सूची • देवी देवता स्तुति कविता • पशु पक्षी पेड़ प्रकृति पर कविता • भावना प्रधान कविता • विधा विशेष हिन्दी कविता • विविध विषय पर कविता • व्यक्तित्व विशेष कविता • समसामयिकी मुद्दे पर कविता • हिन्दी कवि की कविता • Toggle website search मेला पर बाल कविता कविता 2 जब जब भी है आता मेला हमको खूब लुभाता मेला, इसे देख मन खुश हो जाता नई उमंगें लाता मेला। दृश्य कई भाते मेले में चीज कई खाते मेले में, झुंड बना ग्रामीण लोग तो गीत कई गाते मेले में। मेले में हैं चकरी झूले बच्चे फिरते फूले – फूले, रंग – बिरंगी इस दुनिया में आ सब अपने दुःख को भूले। मेले की है बात निराली तिल रखने को जगह न खाली, लगता जैसे मना रहे हैं लोग यहाँ आकर दीवाली। मेलों से अपनापन बढ़ता रंग प्रेम का मन पर चढ़ता, मानव सामाजिक होने का पाठ इन्हीं मेलों से पढ़ता। जब जब भी है आता मेला हमको खूब लुभाता मेला, इसे देख मन खुश हो जाता नई उमंगें लाता मेला।

बाल

छोड़ घोंसला बाहर आया, देखी डालें, देखे पात, और सुनी जो पत्‍ते हिलमिल, करते हैं आपस में बात;- माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया? 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' डाली से डाली पर पहुँचा, देखी कलियाँ, देखे फूल, ऊपर उठकर फुनगी जानी, नीचे झूककर जाना मूल;- माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया? 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' कच्‍चे-पक्‍के फल पहचाने, खए और गिराए काट, खने-गाने के सब साथी, देख रहे हैं मेरी बाट;- माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया? 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' उस तरू से इस तरू पर आता, जाता हूँ धरती की ओर, दाना कोई कहीं पड़ा हो चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर; माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया? 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' मैं नीले अज्ञात गगन की सुनता हूँ अनिवार पुकार कोइ अंदर से कहता है उड़ जा, उड़ता जा पर मार;- माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया? 'आज सुफल हैं तेरे डैने, आज सुफल है तेरी काया' एक लोमड़ी खोज रही थी जंगल में कुछ खाने को, दीख पड़ा जब अंगूरों का गुच्छा, लपकी पाने को । ऊँचाई पर था वह गुच्छा, दाने थे रसदार बड़े, लगी सोचने अपने मन में कैसे ऊँची डाल चढ़े । नहीं डाल पर चढ़ सकती थी खड़ी हुई दो टाँगों पर, पहुंच न पाई, ऊपर उचकी अपना थूथन ऊपर कर । बार-बार वह ऊपर उछली बार-बार नीचे गिर कर लेकिन अंगूरों का गुच्छा रह जाता था बित्ते भर । सौ कोशिश करने पर भी जब गुच्छा रहा दूर का दूर अपनी हार छिपाने को वह बोली, खट्टे हैं अंगूर । उजला-उजला हंस एक दिन उड़ते-उड़ते आया, हंस देखकर काका कौआ मन-ही-मन शरमाया । लगा सोचने उजला-उजला में कैसे हो पाऊं- उजला हो सकता हूँ साबुन से में अगर नहाऊँ । यही सोचता मेरे घर पर आया काला कागा, और गुसलखाने से मेरा साबुन लेकर भागा । फिर जाकर गड़ही पर उसने साबुन खूब लगाया; खूब नहाया, मगर न अपना । कालापन धो पाया । मिटा न उस...

Childrens Poem Dant Dapat : बाल कविता डाँट

बाल कविता डांट - डपट मुझे नहीं अच्छी लगती है गुस्से वाली डांट-डपट। पापा अक्सर बेमतलब ही कान खींचते मेरे। उठने में जो देर हुई तो आंखें रहें तरेरे। किस थाने में होती गुस्से की मैं कर दूँ जहाँ रपट। मम्मी कहतीं शोर करो मत वरना दूंगी चांटे। टूट-टूट जाता नन्हा दिल जब भी दीदी डांटे। नन्हे मन में नहीं किसी के लिए ज़रा भी रहे कपट। लिखने में हो ग़लती टीचर जी हो जाते गुस्सा। डांट पिलाते सभी मुझी को यही रोज़ का क़िस्सा। कोई परी सभी का ग़ुस्सा ले उड़ जाए छीन -झपट। डॉ. फ़हीम अहमद