Balyavastha mein hone wale rogon ki suchi banaen

  1. बेटियों के लिए 8 फायदेमंद सरकारी योजनाएं
  2. जीवाणु (बैक्टीरिया) से होने वाले प्रमुख रोग व उनके लक्षण एवं प्रभावित अंग
  3. बाल्यावस्था की विशेषताएँ (Characteristics of Childhood)
  4. आयोडीन की कमी के लक्षण, कारण, इलाज, दवा, उपचार
  5. Common Diseases in India: Bharat mai Hone Wale Rog
  6. बाल्यावस्था की परिभाषा


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बेटियों के लिए 8 फायदेमंद सरकारी योजनाएं

Image: Shutterstock भारत में शिक्षा और सुरक्षा को लेकर महिलाओं को हमेशा चुनौती का सामना करना पड़ा है। आजादी के कई वर्षों बाद भी भ्रूण हत्या व लिंगभेद जैसे मामले खत्म नहीं हो रहे हैं। भारतीय जनगणना (2001) के अनुसार, देश का लिंगानुपात 1000/933 है यानी प्रति 1000 पुरुषों के मुकाबले में महिलाओं की संख्या 933 है। इसमें सबसे बुरी स्थित हरियाणा (1000/861) जैसे राज्य की है इन दयनीय स्थितियों को देखते हुए आजादी से लेकर अब तक केंद्र व राज्य सरकारों ने बेटियों को विशेष दर्जा दिया है, ताकि उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में किसी तरह की बाधा न आए। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम कुछ ऐसी ही योजनाओं के बारे में बात करेंगे, जो देश में खासतौर पर बालिकाओं के विकास के लिए चलाई जा रही हैं। • • • • • • • • • • • बालिकाओं के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ | Ladkiyo Ke Liye Sarkari Yojana Ke Fayde केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार और दोनों सरकारों के आपसी सहयोग से देश भर में कई योजनाएं बालिकाओं के लिए चलाई जा रही हैं। ये योजनाएं कुछ विशेष उद्देश्य की पूर्ति करती हैं, जिसमें निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल किया जा सकता है – • बालिकाओं की शिक्षा • स्वास्थ्य सेवाएं • भ्रूण हत्या पर अंकुश • आर्थिक सहायता • बेटियों की शादी • लिंगानुपात को बढ़ावा देना • छात्रवृत्ति लाभ आदि अब आगे इस लेख में बालिकाओं के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं के बारे में विस्तार से जानेंगे। बालिकाओं के लिए विभिन्न सरकारी योजनाएं | Ladkiyo Ke Liye Sarkari Yojnaye आइए, अब बालिकाओं के लिए चलाई जा रहीं सरकारी योजनाओं, उनके लाभ और लाभ प्राप्त हेतु आवदेन संबंधी जानकारियों के बारे में विस्तार से जानेंगे। 1.सुकन्या समृद्धि योजना (SSY) – केंद्र सरकार केंद्र सरक...

जीवाणु (बैक्टीरिया) से होने वाले प्रमुख रोग व उनके लक्षण एवं प्रभावित अंग

जीवाणु (बैक्टीरिया) से होने वाले रोग, लक्षण एवं प्रभावित अंगों की सूची: जीवाणु (बैक्टीरिया) किसे कहते है? बैक्टीरिया जिन्हें हम हिंदी में जीवाणु कहते है, छोटे-छोटे एककोशिकीय जीव हैं, जो पूरी पृथ्वी पर हर जगह पाए जाते है। वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं।सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। बैक्टीरिया से होने वाले रोग, लक्षण एवं प्रभावित अंगों की सूची: रोग का नाम रोगाणु का नाम प्रभावित अंग लक्षण हैजा बिबियो कोलेरी पाचन तंत्र उल्टी व दस्त, शरीर में ऐंठन एवं डिहाइड्रेशन टी. बी. माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस फेफड़े खांसी, बुखार, छाती में दर्द, मुँह से रक्त आना कुकुरखांसी वैसिलम परटूसिस फेफड़ा बार-बार खांसी का आना न्यूमोनिया डिप्लोकोकस न्यूमोनियाई फेफड़े छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी ब्रोंकाइटिस जीवाणु श्वसन तंत्र छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी प्लूरिसी जीवाणु फेफड़े छाती में दर्द, बुखार, सांस लेने में परे...

बाल्यावस्था की विशेषताएँ (Characteristics of Childhood)

बाल्यावस्था की विशेषताएँ 1. विकास में स्थिरता (Stability in development) बाल्यावस्था में का सही प्रदर्शन करना प्रारम्भ करता है। सामान्यतया इस अवस्था को समझदारी की अवस्था कहा जाता है। अतः सभी क्षेत्रों में बालक का विकास निश्चितता और समझदारी से ओतप्रोत पाया जाता है। 2. अधिगम में तीव्रता (Intensity in learning) इस अवस्था में बालक के तर्कात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है। वह प्रत्येक कथन को क्यों, कैसे आदि प्रश्नों के माध्यम से जाँचता है और फिर सन्तुष्टि प्राप्त करता है। वह सीखने के विभिन्न तरीकों का प्रयोग करके अपनी जिज्ञासा को शान्त करता है। उसका मन रचनात्मक कार्यों में अधिक लगता है। वह अपनी मानसिक शक्तियों के क्षेत्र में अधिक से अधिक वृद्धि करता है। इस प्रकार से उसकी सीखने की क्षमता में तीव्रता आती है। 3. सामाजिक गुणों का विकास (Development of social traits) इस आयु का बालक अधिकांश समय विद्यालय में या खेल के साथियों में रहकर व्यतीत करता है। वह उनसे कुछ सीखता है और अन्य भी उससे कुछ ग्रहण करते हैं। इन्हीं प्रभावों को सामाजिक चेतना कहा जाता है। इसमें सहयोग, सद्भावना, सहनशीलता, आज्ञाकारिता आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है। इन गुणों को धारण करके वे स्वयं को समाज में प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। सामाजिक गुणों के साथ-साथ उनमें नैतिकता के मानदण्डों का प्रकटीकरण भी होने लगता है। जैसा स्ट्रेन्वरथ ने लिखा है-“ छः, सात और आठ साल के बालक एवं बालिकाओं में अच्छे-बुरे का ज्ञान एवं न्याय पक्ष, ईमानदारी और सामाजिक मूल्यों की भावना का विकास होने लगता है।“ 4. यथार्थवादी दृष्टिकोण (Realistic attitude) शैशवकाल में बालक अपने कल्पना लोक में विचरण करता रहता है, हवाई किले बनाता है और सुख प्राप्त करता ...

आयोडीन की कमी के लक्षण, कारण, इलाज, दवा, उपचार

आयोडीन की कमी क्या है? (और पढ़ें - अगर कोई व्यक्ति आयोडीन में उच्च खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करता तो उनमें आयोडीन की कमी हो सकती है। गर्भवती महिला को सबसे ज्यादा आयोडीन की मात्रा की आवश्यकता होती है। इसी वजह से यदि गर्भवती महिलाएं आयोडीन में उच्च खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करती, तो उनमें आयोडीन में कमी हो सकती है। आयोडीन में कमी होने से थायराइड ग्रंथि का आकार असाधारण रूप से बढ़ सकता है (Goiter) और अन्य थायराइड संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों में यह मानसिक विकलांगता (Mental disabilities) का कारण भी बन सकती है। आयोडीन की कमी से गर्दन में सूजन, सीखने या ध्यान देने में कठिनाई,वजन बढ़ना और गर्भावस्था से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं। आयोडीन में कमी की जांच पेशाब में आयोडीन की मात्रा को मापकर की जाती है। अगर किसी व्यक्ति में आयोडीन की कमी का संदेह हो रहा है, तो उस व्यक्ति में थायराइड फंक्शन की जांच करने के लिए (और पढ़ें - रोजाना आयोडीन की कितनी खुराक लेनी चाहिए ? आयोडीन शरीर के लिए एक महत्वपूर्ण खनिज होता है जो शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने में मदद करता है। शरीर में आयोडीन में कमी होने से कई कम तीव्र से गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इसको शरीर खुद नहीं बना सकता इसलिए इसको आयोडीन युक्त खाद्य पदार्थों से प्राप्त किया जाता है। लेकिन कुछ स्थितियों के अनुसार आयोडीन को कम या ज्यादा मात्रा में लेना पड़ सकता है, जो नीचे टेबल की मदद से बताया गया है: उम्र पुरुष महिला गर्भावस्था स्तनपान जन्म से 6 महीने 110 एमसीजी 110एमसीजी 7 से 12 महीनें 130एमसीजी 130एमसीजी 1 से 3 साल 90एमसीजी 90एमसीजी 4 से 8 साल 90एमसीजी 90एमसीजी 9 से 13 साल 120एमसीजी 120एमसीजी 14 से 18 साल 150एमसीजी ...

Common Diseases in India: Bharat mai Hone Wale Rog

Bharat shetra ke anusaar kaafi bada desh hai. Iske atirikt yaha ki jansankhya pure vishva ka 17.84% hissa hai. Har Kisi ko Jivan jeene ke liye mulbhut avshyaktaye ki jarurat hoti hai jaise suddha bhojan, swaccha kapde, saaf suthra nivaas aadi! Yadi inn tino chijo mai se ek mai bhi kami hoti hai vyakti ko bimari gher sakti hai. Vartmaan ka yug adhunik mashinikaran ka yug ban gaya hai aur mashino ke karan bade bade udhyog aur plant lagaye gaye hai. Jo log inn udhyog mai kaam karte hai wo aas pas hi basti bana kar rehte hai aur inn mashino se nikalne wala ganda pani tatha dhua aas pas ke jagaho par hi failta hai aur bimariyo ka karan banta hai Yeh to aap jante hi honge ki bharat mai rehne wali jansankhya mai 1/3 hissa garib logo ka hai. Matlab itne log garib gandi basti mai rehte hai yeh bahut gambheer samasya hai. Jiske karan kai saman bimariya logo mai ho jati hai. Aaiye jante hai bharat mai hone wali wo samanya bimari kya hai, padhiye Common Diseases in India. Common Diseases in India: Janiye Pramukh Rogo Ki Suchi Swine Flu ya H1N1 Influenza Yeh ek virus hai jisse sankramak rog failta hai. Iss virus ke bare mai april 2009 mai pata lagya gaya tha. Swine flu ke karan pure vishva mai kai logo ki mout ho gai hai. WHO ne iss bimari ko mahamari kaha tatha samanya tour par yeh bimari suar ke karan failti hai isliye isse swine flu kaha jata hai. Sardi ke dino mai swine flu ( Pig Influenza) se marne wale vyaktiyo ki sankhya bad jati hai, kyuki jaise jaise thandi badti jati hai iska...

बाल्यावस्था की परिभाषा

छ: वर्ष की आयु से लेकर बारह वर्ष की आयु तक की अवधि बाल्यावस्था कहलाती है। बाल्यावस्था के प्रथम तीन वर्षो के दौरान अर्थात 6 से 9 वर्ष की आयु तक शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है। बाद में शारीरिक विकास की गति कुछ धीमी हो जाती है। बाल्यावस्था में होने वाले शारीरिक विकास से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन अग्रांकित है। 1. लम्बाई व भार - 6 वर्ष से 12 वर्ष की आयु तक चलने वाली बाल्यावस्था में शरीर की लम्बाई लगभग 5 से.मी. से 7 सेमीण् प्रतिवर्ष की गति से बढ़ती है। बाल्यावस्था के प्रारम्भ में जहाँ बालकों की लम्बाई बालिकाओं की लम्बाई से लगभग एक से.मी अधिक होती है वहीं इस अवधि की समाप्ति पर बालिकाओं की औसत लम्बाई बालकों की औसत लम्बाई से लगभग 1 सेमीण् अधिक हो जाती है। लम्बाई में अन्तर निम्नलिखित तालिका द्वारा दर्शाया गया है। तालिका बाल्यावस्था में बालक तथा बालिकाओं की औैसत लम्बाई (से.मी.) आयु 6 वर्ष 7 वर्ष 8 वर्ष 9 वर्ष 10 वर्ष 11 वर्ष 12 वर्ष बालक 108-5 113-9 119-3 123-7 128-4 133-4 138-3 बालिका 107-4 112-8 118-2 122-9 128-4 133-6 139-2 बाल्यावस्था के दौरान बालकों के भार में काफी वृद्धि होती है। 9-10 वर्ष की आयु तक बालकों का भार बालिकाओं के भार से अधिक होता है। बाल्यावस्था के विभिन्न वर्षों में बालक तथा बालिकाओं का औसत भार (किलोग्राम) निम्नलिखित तालिकाओं में दर्शाया गया है। तालिका बाल्यावस्था मेंं बालक तथा बालिकाओंं का औसैसत भार (किग्रा0) आयु 6 वर्ष 7 वर्ष 8 माह 9 वर्ष 10 वर्ष 11 वर्ष 12 वर्ष बालक 16-3 18-0 19-0 21-5 23-5 25-9 28-5 बालिका 16-0 17-6 19-4 21-3 23-6 26-4 29-8 2. सिर तथ मस्तिष्क - बाल्यावस्था मे सिर के आकार मे क्रमश: परिवतर्न होता रहता है, परन्तु शरीर के अन्य अंगों की ...