Batchit shirshak nibandh ki kya visheshtaen hain

  1. Nibandh Kise Kahate Hain? निबंध के प्रकार, स्वरूप तत्व एवं लेखन शैली
  2. देवनागरी लिपि। देवनागरी लिपि की विशेषताएं। देवनागरी लिपि का मानकीकरण » Hindikeguru
  3. अधिगम (सीखना)
  4. निबंध का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं एवं अंग
  5. प्रबंधकीय लेखांकन क्या है? परिभाषा, विशेषताएं
  6. मैला आंचल


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Nibandh Kise Kahate Hain? निबंध के प्रकार, स्वरूप तत्व एवं लेखन शैली

निबंध किसे कहते हैं? इसके प्रकार निबंध किसे कहते हैं तथा यह कितने प्रकार के होते हैं निबंध की क्या विशेषताएं होती हैं तो मित्रों आज की इस पोस्ट में हम लोग यही जानेंगे। आपको पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ना है। तो मित्रो आपके भी मन में यह प्रश्न आया है कि आखिर निबंध किसे कहते हैं। (What is Essay in Hindi) और निबंध कैसे लिखें। जहां तक मुझे लगता है कि कई सारे लोगों को सही मायने में निबंध का मतलब भी पता नहीं होगा। अगर आप भी उन्हीं लोगों में से हैं जो कि निबंध के बारे में जानना चाहते हैं कि निबंध क्या है? निबंध कितने प्रकार के होते हैं? निबंध के अंग कौन कौन से होते हैं? तथा निबंध कैसे लिखे तो यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। Nibandh kya hai,nibandh kitne prakar ke hote Hain, निबंध क्या होता है,nibandh Kya hota Hai,nibandh ki paribhasha,visheshtaen aur prakar,nibandh ka kya Arth hai,nibandh kitne prakar ke hote Hain निबंध का अर्थ निबंध शब्द 'नि+बंध' से बना है जिसका अर्थ है अच्छी तरह से बना हुआ। इनकी भाषा विषय के अनुकूल होती है। निबंध की शक्ति है अच्छी भाषा। भाषा के अच्छे प्रयोग द्वारा ही भावों विचारों और अनुभवों को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया जा सकता है। निबंध की परिभाषा बाबू गुलाब राय ने निबंध की परिभाषा में अनेक तत्वों का सम्मिश्रण करते हुए कहा है - "निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन ,स्वच्छंदता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।" आचार्य शुक्ल के अनुसार - "यदि गद्य कवियों को कसौटी है, तो निबंध गद्य की।" पंडित श्यामसुंदर दास के अनुसार - "निबंध वह लेख है जिसमें किसी गहन विष...

देवनागरी लिपि। देवनागरी लिपि की विशेषताएं। देवनागरी लिपि का मानकीकरण » Hindikeguru

1.2 देवनागरी लिपि का मानकीकरण (devnagri lipi ka mankikaran in hindi) प्रत्येक भाषा की अपनी एक लिपि होती है , जिसमें उस भाषा को लिखा जाता है लिपि का आधार लिखित संकेत होता है हिंदी की लिपि देवनागरी है। देवनागरी लिपि का आविष्कार ब्राह्मी लिपि से हुआ। देवनागरी लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात के राजा जय भट्ट के एक शिलालेख में हुआ है। यह लिपि हिंदी प्रदेश के अतिरिक्त महाराष्ट्र व नेपाल में प्रचलित है गुजरात में सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां के पंडित वर्ग अर्थात नगर ब्रह्मांणों के नाम से इसे नागरे कहां गया। देव भाषा संस्कृत में इसका प्रयोग होने से इसके साथ जो शब्द जुड़ गया। देवताओं की उपासना के लिए जो संकेत बनाए जाते थे उन्हें देवनगर कहते थे। वे संकेत लिपि के समान थे वहीं से इसे देवनागरी कहा जाने लगा। => सर्वप्रथम महादेव गोविंद रानाडे ने लिपि सुधार समिति का गठन किया काका कालेलकर ने ‘ अ ‘ की बारहखड़ी का सुझाव दिया तथा स्वर ध्वनियों के संख्या को कम कर दिया। => श्यामसुंदर दास पंचमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग करने का सुझाव दिया। जैसे हिन्दी-हिंदी , कण्ठ-कंठ। => हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ( 5 अक्टूबर 1941) ने लिपि सुधार हेतु एक बैठक की , जिसमें मात्राओं को उच्चारण क्रम में लगाने तथा छोटी ‘ इ ‘ की मात्रा को व्यंजन के आगे लगाने का सुझाव पेश किया। => वर्ष 1947 प्रदेश सरकार द्वारा गठित समिति के अध्यक्षता नरेंद्र देव ने की जिसमें देवनागरी लिपि से संबंधित निम्न सुझाव पेश किए गए। ‘ अ ‘ की बारहखड़ी भ्रामक है। मात्रा यथास्थान रहें , परंतु उन्हें थोड़ा दाहिनी ओर लिखा जाए। अनुस्वार व पंचमाक्षर के स्थान पर बिंदी (ं) से काम चलाया जाए। दो तरीकों से लिखें जाने वाले अक्षरों में निम्न अक्षर...

अधिगम (सीखना)

अधिगम (Learning) सीखना या अधिगम एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलनेवाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को इस प्रक्रिया को अधिगम या सीखने की प्रकृति (Nature of Learning) प्रत्येक प्राणी में कार्य करने की प्रवृत्ति होती है। कार्यों के द्वारा वह अपने जीवन की रक्षा करता है। बालक सहज क्रियाओं और मूल प्रवृत्तियों के अनुसार सीखते हैं। व्यक्ति के अनुभव के आधार पर उसके कार्यों में परिवर्तन होता रहता है। अनुभव के इस प्रकार लाभ उठाने की क्रिया को सीखना या अधिगम कहते हैं। प्रत्येक प्राणी अपने जीवन में कुछ न कुछ सीखता है। जिस व्यक्ति में सीखने या अधिगम की जितनी अधिक शक्ति होती है, उतना ही अधिक उसके जीवन का विकास होता है। बालक प्रत्येक समय और प्रत्येक स्थान पर कुछ न कुछ सीखता रहता है।इसी आधार पर बुडवर्थ ने कहा है, “ सीखना विकास की प्रक्रिया है।“ अधिगम (सीखना) का अर्थ (Meaning of Learning) अधिगम शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य घटक है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका विशेष स्थान बताया गया है। क्योंकि शिक्षा का सर्वप्रथम उद्देश्य ही सीखना है। हम सभी जानते है मनुष्य का जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक सीखना ही है। घर, स्कूल एवं अपने आस-पास के वातावरण से मनुष्य कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है और अपना सर्वपक्षीय विकास करता है। उदाहरण के लिए– छोटे बालक के सामने जलता दीपक ले जानेपर वह दीपक की लौ को पकड़ने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसका हाथ जलने लगता है। वह हाथ को पीछे खींच लेता है। पुनः जब कभी उसके सामने दीपक लाया जाता है तो वह अपने पूर्व अनुभव के आधार पर लौ पकड़ने के लिए, हाथ नहीं बढ़ाता है, वरन् उससे दूर हो...

निबंध का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं एवं अंग

इन निबन्धों में निरूपण अथवा व्याख्या की प्रधानता रहती है। विभिन्न प्रकार के दृश्यों, घटनाओं तथा स्थलों का आकर्षक वर्णन करना ही इन निबन्धों का कलेवर - विषयवस्तु होता है। इन निबन्धों की अन्य विशेषता यह है कि- यहाँ प्राय: प्रत्येक निबंधकार अपने निबंध में एक सजीव-चित्र उपस्थित करता है। तीर्थ, यात्रा, नगर, दृश्य-वर्णन, पर्व-त्यौहार, मेले-तमाशे, दर्शनीय-स्थल आदि का मनोरम एवं संश्लिष्ट वर्णन करना ही निबंधकार का प्रमुख उद्देश्य होता है। इनमें लेखक प्रकृति और मानव-जगत् में से किसी से भी विषय चयन कर सर्वसाधारण के लिए निबंध-रचना करता है। 2. विवरणात्मक निबंध विवरणात्मक-निबन्धों में कल्पना एवं अनुभव की प्रधानता होती है। साथ ही इस वर्ग के निबन्धों में वर्णन के साथ-साथ विवरण की प्रवृत्ति भी विद्यमान रहती है। इन्हें कथात्मक अथवा आख्यानात्मक निबंध भी कहा जाता है। विवरणात्मक-निबन्धों की विषयवस्तु मुख्यत: जीवनी, कथाएँ, घटनाएँ, पुरातत्त्व, इतिहास, अन्वेषण, आखेट, युद्ध आदि विषयों पर आधृत होती है। ये निबंध ‘व्यास-शैली’ में लिखे जाते हैं। 3. भावात्मक निबंध भावात्मक-निबन्धों में बुद्धि की अपेक्षा रागवृत्ति की प्रधानता रहती है। इनका सीधा सम्बन्ध ‘हृदय’ से होता है। अनुभूति, मनोवेग अथवा भावों की अतिशय अभिव्यंजना इन निबन्धों में द्रष्टव्य है। इन निबन्धों में निबंधकार सहृदयता, ममता, प्रेम, करुणा, दया आदि भावनाओं से युक्त व्यवहार को प्रकट करता है। 4. साहित्यिक या आलोनात्मक निबंध किसी साहित्यकार, साहित्यिक विधा या साहित्यिक प्रवृत्ति पर लिखा गया निबंध साहित्यिक या आलोचनात्मक निबंध कहलाता है, जैसे मुंशी प्रेमचंद, तुलसीदास, आधुनिक हिन्दी कविता, छायावाद हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग आदि। इसमें ललित निबंध भी ...

प्रबंधकीय लेखांकन क्या है? परिभाषा, विशेषताएं

प्रबंधकीय लेखांकन क्या है?prabandhkiya lekhankan ka arth) prabandhkiya lekhankan arth paribhasha visheshta;प्रबन्धकीय लेखांकन दो शब्दों प्रबंधन+लेखांकन के योग से बना है। प्रबन्धकीय या प्रबंध से आशय उस प्रकिया से है जिसमे व्यवसाय की नीतियों का नियोजन, उद्देश्यों का निर्धारण, उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उचित समन्वय एवं नियन्त्रण तथा व्यवसास मे संगठन का कार्य सम्मिलित होता है। लेखांकन से तात्पर्य है व्यवसाय के व्यवहारों का विश्लेषण एवं व्याख्या करने की प्रक्रिया से है। यह लागत लेखांकन की एक विशिष्ट शाखा है जो प्रबन्ध को निर्णय लेने मे सहायता करती है। साधारण बोलचाल चाल की भाषा मे, कोई भी लेखाविधि, जो प्रबंध के कार्यों मे सहायता हेतु आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करती है, उसे प्रबंधकीय लेखांकन कहा जाता है। प्रबंधकीय लेखांकन लेखांकन प्रबंध का एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है जिसका प्रयोग व्यवसाय के कुशल प्रबंध, नीति-निर्धारण तथा निर्गमन के लिए अत्यंत आवश्यक है। प्रबंधकीय लेखांकन की परिभाषा (prabandhkiya lekhankan ki paribhasha) आर.एन. एन्थोनी के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखा-पद्धति की सूचनाओं से संबंधित है, जो कि प्रबंध के लिये बहुत उपयोगी है।" आई.सी.डब्ल्यू.ए. के अनुसार," लेखाविधि का कोई भी रूप, जो कि व्यवसाय को अधिक कुशलतापूर्वक संचालन योग्य बनाये, प्रबंधकीय लेखाविधि कहा जाता है।" बास्टाॅक के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखांकन के प्रबंध को उन आँकड़ों चाहे वह मुद्रा मे हो या अन्य इकाइयों मे, प्रस्तुत करने की उस कला के रूपे परिभाषित किया जा सकता है जिससे कि प्रबंध को उनके कार्यकरण मे सहायता प्राप्त हो सकें।" टी. जी. रोज के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखा सूचनाओं की प्राप्ति एवं विश्...

मैला आंचल

lekhak mool shirshak 'maila aanchal' kathanak 9788126704804 desh prishth: 353 bhasha vishay samajik prakar maila aanchal 'yah aisa saubhagyashali upanyas hai jo lekhak ki pratham kriti hone par bhi use aisi pratishtha prapt kara de ki vah chahe to phir kuchh aur n bhi likhe. aisi kriti se vah apane lie aisa pratiman sthir kar deta hai, jisaki punaravritti kathin hoti hai. 'maila aanchal' gat varshoan ka hi shreshth upanyas nahian hai, vah samasamayik paristhitiyaan 'maila aanchal' mean phanishvaranath renu 'jati samaj' aur 'varg chetana' ke bich virodhabhas ki katha kahate haian. aj is ilake ko 'maila aanchal' ki drishti se dekhane par jati samikaran aur sansadhanoan par varchasv ki jatiy vyavastha pratinidhi upanyas 'maila aanchal' sahityakar renu ke anusar - 'isamean kathanak 'maila aanchal' ' shilp shilp ki drishti se is upanyas mean film ki tarah ghatanaean ek ke bad ek ghatakar vilin ho jati hai aur doosari praranbh ho jati hai. isamean ghatana pradhanata hai, kiantu koee kendriy charitr ya katha nahian hai. is upanyas mean natakiyata aur qissagoee shaili ka prayog kiya gaya hai. ise premachand ke bad renu 'maila aanchal' aur 'parati parikatha' jaise aanchalik upanyasoan ki rachana ka shrey yah hai maila aanchal, ek aanchalik upanyas. aanchalikata yahi is poore upanyas mean ek svatantrata ke bad 'bharat' ‘renu’ ne svatantrata ke bad paida huee rajanitik avasaravadita, svarth aur kshudrata ko bhi b di kushalata se ujagar kiya hai. gaandhivad ki chadar odhe hue bhrasht ...