भारतीय संघवाद की प्रकृति

  1. संघवाद क्या है ? Federalism in India?
  2. जीएसटी और राजकोषीय संघवाद
  3. भारत में संघवाद
  4. संघवाद
  5. भारतीय संविधान की प्रकृति क्या है?
  6. संघवाद के प्रकार
  7. भारत में संघवाद के 75 साल: एक मज़बूत लोकतंत्र की बुनियाद


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संघवाद क्या है ? Federalism in India?

Table of Contents • • • • • • • • • • • संघवाद की परिभाषा देश के शासन को चलाने के लिए शक्तियों के विभाजन का सिद्धांत संघवाद कहलाता है! जिसमें एक संविदा यानी एग्रीमेंट के द्वारा केंद्र और राज्यों के बीच शासन चलाने की शक्तियों का विभाजन या बंटवारा किया जाता है! Note: भारत में फ़ेडरलिज़्म ‘कनाडा’ से लिया गया है। संघवाद के प्रकार संघवाद में हम दो प्रकार देखते हैं: दोहरी संघीय व्यवस्था इकहरी या एकात्मक संघीय व्यवस्था: केंद्र और राज्य दोनों समान होते हैं नागरिक दोहरी नागरिकता रखते हैं! केंद्र राज्यों की अपेक्षा शक्तिशाली होता है इकहरी नागरिकता होती है! 2 संविधान होते ह संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान होता है! सुरक्षा और बाहरी आक्रमण या विपदा से बचाव मुख्य लक्ष्य होता है! एकीकृत न्याय व्यवस्था होती है! केंद्र राज्य की अनुमति के बिना उसके लिए कोई निर्णय नहीं ले सकता! संसद राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने में सक्षम होती है! यह व्यवस्था यूएसए संयुक्त राज्य अमेरिका स्विजरलैंड में देखने को मिलती है! भारतीय संविधान संकटकाल में एक होता है! Jaisa Bharat India me hai. सामान्य काल में संघीय सरकार की शक्तियां और सधारण होती है! मूलभूत विषयों में एकरूपता होती है! राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति Election hota की जाती है! राज्यसभा में इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व दिया जाता! Like Senate (USA) राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है! राज्यसभा में इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता! आर्थिक दृष्टि से राज्य केंद्र पर निर्भर नहीं होते हैं ! संविधान based on coming together federation में संघ को शक्तियां प्राप्त हैं! आर्थिक दृष्टि से राज्य केंद्र पर निर्भर होते...

जीएसटी और राजकोषीय संघवाद

यह एडिटोरियल 21/05/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The Business of Federalism” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के राजकोषीय संघवाद (Fiscal Federalism) के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) से उत्पन्न चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है। संदर्भ वित्तीय संसाधनों के आवंटन से लेकर • संघवाद के प्रति पारंपरिक दृष्टिकोण—जहाँ प्रतिस्पर्द्धा और सहकारिता के बीच गहरी असहमति देखी जाती है, 1990 के दशक के बाद के परिदृश्य में अब प्रासंगिक नहीं रह गया है। सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी भावना का संयोजन समतापूर्ण और न्यायसंगत तरीके से राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि और कल्याण सुनिश्चित करता है। • सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा के प्रति एक अनुरूप दृष्टिकोण अपनाकर ही विश्व मंच पर भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ते कद को और सुदृढ़ किया जा सकता है। संघवाद • संघवाद (Federalism) मूलतः एक द्वैध शासन प्रणाली है जिसमें एक केंद्र और कई राज्य शामिल होते हैं। संघवाद भारतीय संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) के प्रमुख स्तंभों में से एक है। • संघीय सिद्धांतकार के.सी. व्हेयर ने भारतीय संविधान को अर्द्ध-संघीय (Quasi-Federal) प्रकृति का माना है। • सत पाल बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (वर्ष 1969) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी माना कि भारत का संविधान संघीय या एकात्मक की तुलना में अर्द्ध-संघीय अधिक है। • राज्यों और केंद्र से संबंधित विधायी शक्तियाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245 से 254 तक में उपलब्ध हैं। संघवाद की भावना को बढ़ावा देने के हाल के प्रयास • नीति आयोग के कार्यकरण में राज्यों को अधिक स्वतंत्रता प्रदान करना, मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की लगातार बैठकें और राज्यपालों के साथ भारत के राष्ट्रपति की आवधिक बैठकें इस दि...

भारत में संघवाद

संघात्मक शासन व्यवस्था को ही अपनाना स्वाभाविक था और भारतीय संविधान के द्वारा ऐसा ही किया गया है। भारतीय संविधान के संघात्मक लक्षण [ ] भारतीय संघ व्यवस्था में संघात्मक शासन के प्रमुख रूप से चार लक्षण कहे जा सकते हैं: • (1) संविधान की सर्वोच्चता, • (2) संविधान के द्वारा केन्द्रीय सरकार और इकाइयों की सरकारों में शक्तियों का विभाजन, • (3) लिखित और कठोर संविधान, • (4) स्वतन्त्र उच्चतम न्यायालय। • (5) द्वि-सदनीय व्यवस्थापिका। • (6) दोहरी शासन प्रणाली। भारतीय संविधान में संघात्मक शासन के ये सभी प्रमुख लक्षण विद्यमान हैं। भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण [ ] भारत एक अत्यन्त विशाल और विविधतापूर्ण देश होने के कारण संविधान-निर्माताओं के द्वारा भारत में संघात्मक शासन की स्थापना करना उपयुक्त समझा गया, लेकिन संविधान-निर्माता भारतीय इतिहास के इस तथ्य से भी परिचित थे कि भारत में जब-जब केन्द्रीय सत्ता दुर्बल हो गयी, तब-तब भारत की एकता भंग हो गयी और उसे पराधीन होना पड़ा। संविधान के ये एकात्मक लक्षण प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं: (1) शक्ति का विभाजन केन्द्र के पक्ष में (2) इकहरी नागरिकता (3) संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान (4) एकीकृत न्याय-व्यवस्था (5) संसद राज्यों की सीमाओं के परिवर्तन में समर्थ (6) भारतीय संविधान संकटकाल में एकात्मक (7) सामान्य काल में भी संघीय सरकार की असाधारण शक्तियां (8) मूलभूत विषयों में एकरूपता (9) राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा (10) राज्य सभा में इकाईयों को समान प्रतिनिधित्व नहीं (11) आर्थिक दृष्टि से राज्यों की केन्द्र पर निर्भरता (12) संविधान के संशोधन में संघ को अधिक शक्तियां प्राप्त होना (13) अन्तर्राज्य परिषद् और क्षेत्रीय परिषदें (14) भार...

संघवाद

• दे • वा • सं संघवाद सरकार की एक प्रणाली है जिसमें सत्ता केंद्रीय प्राधिकरण और देश की विभिन्न घटक इकाइयों के बीच विभाजित होती है। एक • एक है पूरे देश की सरकार जो सामान्य राष्ट्रीय हित के कुछ विषयों के लिए उत्तरदायक है। • अन्य प्रांतों या राज्यों के स्तर पर सरकारें हैं जो अपने राज्य के प्रशासन के दिन-प्रतिदिन की अधिकांश देखभाल करती हैं। इस के अर्थ में, संघों की तुलना अनुक्रम • 1 संघवाद की विशेषताएँ • 2 भारत: संघात्मक या एकात्मक • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ • 5 बाहरी कड़ियाँ संघवाद की विशेषताएँ [ ] संघवाद की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: • सरकार के दो या द्व्याधिक स्तर होते हैं। • कानून, कराधान और प्रशासन के सम्बन्ध में सरकार के विभिन्न स्तरों का अपना • सरकार के प्रत्येक स्तर के अस्तित्व और अधिकार की संवैधानिक • • संविधान और सरकार के विभिन्न स्तरों की शक्ति की व्याख्या करने के लिए • सरकार की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित करने हेतु सरकार के प्रत्येक स्तर के राजस्व के स्रोतों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। • संघीय प्रणाली के दोहरे उद्देश्य हैं, अर्थात् देश की ऐक्य की रक्षा करना और उसकी वृद्धि करना और साथ ही यह क्षेत्रीय वैविध्य को भी समायोजित करना है। • सरकार की एक आदर्श संघीय प्रणाली में एक साथ रहने हेतु पारस्परिक विश्वास और सहमति होनी चाहिए। भारत: संघात्मक या एकात्मक [ ] प्रधानत: उदाहरणार्थ, सबसे विशिष्ट तथ्य यह है कि भारतीय संविधान संघात्मक हुए भी इसका निर्माण स्वतंत्र राष्ट्रों की किसी संविदा द्वारा नहीं हुआ है; बल्कि यह उन राज इकाइयों के मेल (यूनियन) से बना है जो परंतंत्र एकात्मक भारत के अंग के रूप में पहले से ही विद्यमान थे। दूसरी विशेषता यह है कि आपत्काल में ...

भारतीय संविधान की प्रकृति क्या है?

Explanation : भारतीय संविधान के संबंध में अनेक संविधानविदों के अलग-अलग विचार हैं। संविधान की प्रकृति के सन्दर्भ में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का मानना था कि भारतीय संविधान समयानुसार एकात्मक और संघात्मक है। केसी हिब्यर के अनुसार, भारतीय संविधान अर्द्धसंघीय संविधान है। एसआर बोम्मई बनाम भारत संघवाद में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान को परिसंघीय कहा है। मूल सार यह है कि भारतीय संविधान प्रकृति में संघीय, किन्तु भावनात्मक रूप से एकात्मक है। Tags :

संघवाद के प्रकार

आज विश्व की संघात्मक प्रणालियों का व्यापक विश्लेषण करने के बाद राजनीतिक विश्लेषक इस बात से चिन्तित हैं कि आधुनिक संघवाद किस दिशा में जा रहा है। अपने प्राचीन स्वरूप में जो संघवाद स्थापना के समय सहकारी स्वरूप का था, वही संघवाद आज सौदेबाजी का संघवाद बन गया है। इस सौदेबाजी की व्यवस्था ने संघात्मक प्रणाली में संकीर्ण प्रान्तीय हितों को जन्म दिया है। आज केन्द्रीय व राज्य सरकारें संघ के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आपसी विचार-विनिमय के समय सौदेबाजी करती प्रतीत होती है। 1967 के बाद भारत में संघवाद का सौदेबाजी वाला स्वरूप स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। इस सौदेबाजी की आड़ मेंं आज आर्थिक विकास व राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकताओं ने केन्द्रीय सरकारों को अधिक शक्तिशाली बना दिया है। प्रान्तीय सरकारों द्वारा आर्थिक विकास का बोझ न उठाए जाने के कारण इस कार्य को केन्दीय सरकारें ही कर रही हैं। इससे शक्तियों के केन्द्रीयकरण का विकास हुआ है। संघवाद के आज तीन प्रतिमान दृष्टिगोचर होते हैं :- • सहकारी संघवाद • सौदेबाजी का संघवाद • एकात्मक संघवाद सहकारी संघवादसंघात्मक व्यवस्था में केन्द्र व प्रांतीय सरकारों में शक्तियों का विभाजन करने के बाद सरकार के दोनों स्तरों पर सहयोग को बढ़ाने वाली व्यवस्थाएं भी की जाती हैं ताकि संघ के वांछित लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सके। इस सहयोग की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि सरकार के दोनों स्तर समान लक्ष्यों की दिशा में अग्रसर होते हैं। संघात्मक व्यवस्था के सामान्य उद्देश्य दोनों सरकारों के अलग-अलग कार्यों के बाद भी उनके अन्त:क्षेत्राीय सम्बन्धों को अनिवार्य बना देते हैं। व्हीयर का कहना है कि अन्त:क्षेत्राीय सम्बन्धों के बिना प्रादेशिक सरकारें आपसी अनुभवो...

भारत में संघवाद के 75 साल: एक मज़बूत लोकतंत्र की बुनियाद

ये लेख India @75: Assessing Key Institutions of Indian Democracy सीरीज़ का हिस्सा है . भारत जैसे विविधता भरे देश की मशहूर संघीय व्यवस्था, लगातार बदलते हुए राजनीतिक और सामाजिक- आर्थिक आयामों के चलते निरंतर बदलावों की गवाह बनी है. आज जब भारत गणराज्य ने अपने अस्तित्व के 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं, तो ये ज़रूरी हो जाता है कि हम भारत की संघीय व्यवस्था के मिज़ाज और उसके कामकाज की गहराई से पड़ताल करें और भारत की लोकतांत्रिक राजनीति और प्रशासन पर इसके प्रभाव का मुआयना करें. एक अनूठा संघीय ढांचा अपने मूल रूप में भारत ने एक ऐसी संघीय राजनीतिक व्यवस्था को अपनाया था, जिसमें शासन के दो स्तर थे: राष्ट्रीय स्तर पर और राज्य स्तर पर. 1992 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बाद इस संघीय प्रशासनिक ढांचे में पंचायतों और नगर निकायों के रूप में एक तीसरी और अहम पायदान भी जोड़ी गई थी. भारत के संविधान निर्माताओं ने स्वतंत्र भारत में शासन चलाने के लिए एक अनूठे संघीय ढांचे को अपनाया था, जिसे ‘केंद्रीकृत संघवाद’ का नाम दिया गया था. ऐसा इसलिए था क्योंकि अमेरिका या कनाडा जैसे आदर्श संघवाद के उलट, भारत के संविधान में कई मामलों में एक बेहद मज़बूत केंद्र सरकार की परिकल्पना को अनिवार्य बना दिया गया है . भारत गणराज्य के संस्थापकों के इस फ़ैसले के पीछे उस भय को वजह बताया जाता है कि आज़ादी के दौरान, देश के बंटवारे की भयावाह त्रासदी झेलने की विरासत के चलते, भारत के कई हिस्सों में अलगाववादी प्रवृत्तियां पनप रही थीं. भारत के संविधान निर्माताओं ने स्वतंत्र भारत में शासन चलाने के लिए एक अनूठे संघीय ढांचे को अपनाया था, जिसे ‘केंद्रीकृत संघवाद’ का नाम दिया गया था. ऐसा इसलिए था क्योंकि अमेरिका या कनाडा जैसे आदर्श स...