भारतीय संगीत की एक झलक

  1. Niketan Class 8 Hindi Chapter 6 भारतीय संगीत की एक झलक
  2. हिंदी सिनेमा में गीत और संगीत का महत्व – Site Title
  3. Happy Birthday Amaal Mallik Music Director Amaal Mallik Career Songs Films Family Lifestyle Unknown Facts
  4. कर्नाटक संगीत
  5. भारतीय संगीत का इतिहास
  6. भारतीय संगीत
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Niketan Class 8 Hindi Chapter 6 भारतीय संगीत की एक झलक

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हिंदी सिनेमा में गीत और संगीत का महत्व – Site Title

भारतीय गीत, संगीत भारतवर्ष की पहचान है | यह प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक और मार्गदर्शक रहा है |गीत, संगीत ने धार्मिक एवम सामजिक ढांचे को विकसित करने का भी काम किया है |इसने हमे अध्यात्म से जोड़कर रखा है | भारतवर्ष में गीत,संगीत प्राचीन काल से ही विकसित है इसका प्रारम्भ अगर जाने तो धर्मग्रंथों के मुताबिक वैदिक काल के पूर्व से है | गीत और संगीत का मूल स्रोत्र वेदों को माना गया लेकिन लेकिन यह वेद में लिखित नहीं है | भारतवर्ष प्राचीन काल से ही कई सभ्यताओं के विकास की भूमि रही है जिसमे मौर्य संस्कृति, विजयनगर साम्राज्य, खिलजी, मुग़ल सल्तनत और भी कई लेकिन इन सभ्यताओं के उत्थान के बीच गीत, संगीत हमेशा समृद्ध ही हुयी |आज गीत, संगीत ने भारत को पूरी दुनिया में एक विशिष्ट और अलग पहचान दी है तथा हर स्तर पर, हर वर्ग के लोगों को अपनी और आकृष्ट किया है | आज भारतीय गीत, संगीत की मधुरता पूरी दुनिया में चर्चित है | विश्व में जहाँ हर तरह की गीत, संगीत चाहे वेस्ट्रन,अरबी या अन्य लेकिन इन सब के बीच जो आयाम, लोकप्रियता भारतीय गीत संगीत को मिली वह अद्वितीय है | आदिकाल से अब तक गीत, संगीत हमारे परम्परा, संस्कार, रिवाज़ के उत्थान और तरक्की के गवाह रहें हैं | गीत, संगीत इंसान के लिए प्रकृति का एक अनूठा वरदान है, यह एक अद्भुत उपहार है जो सिर्फ गिने चुने लोगों को ही मिलता है | गीत, संगीत दुर्लभ कला है और यह माता सरस्वती का प्रसाद है | रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों की रचना गीत, संगीत के प्रभाव और प्रेरणा से हुई है | भारतीय संगीत के सात स्वर हैं :-सा, रे, ग, म, प, ध, नी | साथ ही भारतीय संगीत को तीन भागों में है, शास्त्रीय संगीत, उपशास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत | सिनेमा में सुगम संग...

Happy Birthday Amaal Mallik Music Director Amaal Mallik Career Songs Films Family Lifestyle Unknown Facts

Amaal Mallik Birthday: 'जय हो' कहकर संगीत की दुनिया में छाए थे अमाल, महज आठ साल की उम्र से ही दिखाने लगे थे कमाल Happy Birthday Amaal Mallik: संगीत उनके लहू में बहता है और उनके घर के आंगन में बिखरता है. यही वजह रही कि उन्हें संगीत की तालीम बचपन से ही मिली. मशहूर सिंगर अमाल मलिक की, जिनका आज बर्थडे है Amaal Mallik Unknown Facts: 16 जून 1990 के दिन जन्मे अमाल मलिक किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. वह सरदार मलिक के पोते हैं, जिसके चलते उन्हें संगीत विरासत में मिला. वहीं, उनके भाई अरमान मलिक भी मशहूर सिंगर हैं. इसके अलावा बेहतरीन म्यूजिक डायरेक्ट डब्बू मलिक उनके पिता है. बता दें कि अमाल ने बचपन में ही अपने दादा जी से संगीत की शिक्षा-दीक्षा लेनी शुरू कर दी थी. यही वजह रही कि उन्होंने महज आठ साल की उम्र से ही अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया था. ऐसे बीता अमाल का बचपन संगीत के अलावा अमाल का फोकस पढ़ाई-लिखाई पर भी रहा. उनकी स्कूलिंग जमनाबाई नरसी स्कूल से हुई, जबकि ग्रैजुएशन मुंबई के एमएम कॉलेज से किया. बता दें कि अमाल मलिक ने ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक (वेस्टर्न, क्लासिकल, जैज और रॉक) से पियानो आदि का कोर्स किया था. यहां उन्हें बेनी, जेवियर फर्नांडिस, टोनी पिंटो और जॉय बोस से संगीत की बारीकियां सीखी थीं. वहीं, भारतीय क्लासिक संगीत के बारे में उन्होंने अपने दादा सरदार मलिक से ज्ञान हासिल किया. करियर में यूं मिली कामयाबी अमाल मलिक के करियर की बात करें तो उन्होंने बुलंदियों का सफर बेहद कम उम्र में ही शुरू कर दिया था. दरअसल, 10वीं करने के बाद अमाल ने फिल्म सरकार और शूटआउट एंड लोखंडवाला के साउंडट्रैक के लिए म्यूजिक कंपोजर और बैकग्राउंड स्कोरर अमर मोहिले को असिस्ट किया था. उस वक्त अमाल की उम्र...

कर्नाटक संगीत

कर्नाटक संगीत ( कर्नाटक सङ्गीतं) • यह संगीत • • उत्तरी शैली के विपरीत कर्नाटक संगीत ज़्यादा स्वरोन्मुखी है। जब केवल • कर्नाटक संगीत में उत्तर भारतीय संगीत की तुलना में कम वाद्य प्रयुक्त किए जाते हैं और कोई निश्चित वाद्य नहीं होते। • ' • अपनी अधिक समांगी भारतीय परंपरा के साथ कर्नाटक संगीत ने रागों और तालों की कहीं ज़्यादा व्यवस्थित व समरूपीय पद्धतियां विकसित की हैं। • अपेक्षाकृत बहुरंगी पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संगीत का इतिहास

मनुष्य के जन्म के साथ ही संगीत की उत्पत्ति का इतिहास भी जुड़ा हुआ है। संगीत की उत्पत्ति कब, कैसे और किसके द्वारा हुई, इस बारे में विद्वानों के अनेक मत हैं। संगीत का इतिहास स्वयं मानव का इतिहास है। जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता गया, संगीत की भी उन्नति होती गई। भारतीय संगीत की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों ने मुख्य तीन आधार माने हैं:- 1) धार्मिक आधार -हमारे जितने संगीत शास्त्र है वे सभी यह मानते चले आये हैं कि हमारी संगीत कला के आदि प्रेरक और उपदेशक देव-देवी रहे हैं। हमारे आचार्यों का ऐसा विश्वास है कि शिव, ब्रह्मा, सरस्वती, गन्धर्व किन्नरादि संगीत के आदि प्रेरक हैं। ऐसा माना जाता है कि शंकर जी के डमरु से वर्ण और स्वर दोनों उत्पन्न हुए हैं। शंकर की शक्ति पार्वती, शिवा, दुर्गा भी संगीत की प्रेरक मानी गई है। पूर्व-पाशाणकाल में मंजीरा वाद्य के समान पत्थर से निर्मित अग्सा नामक वाद्य बनाया गया था। उत्तर-पाशाणकाल में संगीत का कुछ विकास हुआ। धातु युग में संगीत का कुछ अधिक विकास हुआ। इस युग के लोग पर्वोत्सवों को गीत-नृत्य के साथ मनाते थे। इस काल में गीतों का विकास हो चुका था तथा अनेक छन्द बन चुके थे, जोकि सांगीतिक रूप से गाये जाते थे। अत: स्पष्टतया कहा जा सकता है कि उस समय प्रागैतिहासिक-कालीन संगीत विकसित था एवं उसका स्तर भी उत्कृष्ट था। सिन्धु घाटी की सभ्यता कालमोहन जोदड़ों तथा हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त पुरातत्वावषेशों से यह ज्ञात होता है कि तत्कालीन जीवन में संगीत का पर्याप्त प्रचलन था। धार्मिक एवं लौकिक समारोहों में गीत, वाद्य एवं नृत्य द्वारा मनोरंजन होता था। खुदाई में प्राप्त ताबीजों पर नृत्य और वाद्य के संकेत मिलते है तथा साथ ही नृत्य करती हुई स्त्रियों की मूर्तियाँ प्...

भारतीय संगीत

अपनी उद्दत्त परंपरा के साथ भारतीय संगीत को दुनिया की सबसे पुरानी संगीत परंपराओं में से एक माना जाता है। भारत के विशाल क्षेत्र और कई संस्कृतियों के बावजूद, इसकी संगीत परंपराएँ विशिष्ट केंद्रीय धागों से जुड़ी हुई हैं। धर्मों के प्रसार के साथ भारतीय संगीत ने विदेशों में भी अपना क्षितिज व्यापक किया है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रणाली की उत्पत्ति वेदों और उपनिषदों से हुई है। पौराणिक कथाएं, मिथक और लोरियां भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति और विकास को दर्शाती हैं जो बहुत ही स्पष्ट रूप से भारतीय संस्कृति में संगीत के महत्व को इंगित करता है। भारतीय संगीत का वर्णन वैदिक ऋचाओं के उच्चारण के साथ किया जा सकता है, हालाँकि यह संभावना से अधिक है कि सिंधु घाटी सभ्यता अपनी संगीत संस्कृति के बिना नहीं थी, जिसमें से लगभग कुछ भी ज्ञात नहीं है। वेदों में विभिन्न तार और वायु वाद्ययंत्रों के साथ-साथ कई प्रकार के ढोल और झांझ का भी उल्लेख है। ईसा पूर्व 2 वीं शताब्दी और 5 वीं शताब्दी के बीच, नाट्यशास्त्र पर नाटक की रचना भरत ने की थी। यह काम तब से है जब भारतीय संगीत, नृत्य और सामान्य रूप से प्रदर्शन करने वाली कलाओं के विकास पर एक अमिट प्रभाव पड़ता है। हालाँकि भारतीय संगीत पर सांस्कृतिक और ऐतिहासिक शोध के आगमन से पता चला है कि विभिन्न दौड़ और संस्कृतियों के विभिन्न लोगों के बीच एक बहुत ही जटिल परिस्थिति के भीतर भारतीय संगीत विकसित हुआ है। यह एक कला के रूप में भारतीय संगीत की यात्रा की शुरुआत थी। भारतीय संगीत ने अपनी व्यापक मौलिकता के साथ एक लंबा सफर तय किया है, जिसके बाद ठाठ समाप्‍त हो गई है। भारतीय संगीत की गाथा इसलिए भारत में बदलती परंपरा की कहानी है। भारतीय संगीत का आधार संगीत है जो मुखर संगीत और ...

भारतीय संगीत का इतिहास

अनुक्रम • 1 सक्षिप्त परिचय • 2 वैदिक काल का संगीत • 2.1 सामगान की स्वरलिपि • 3 महाकाव्य काल में संगीत • 4 भरतमुनि का नाट्यशास्त्र • 5 भरत के अनन्तर • 6 मुसलमानों के आगमन के पश्चात • 7 आधुनिक काल • 8 भारत में रचित संगीत ग्रन्थ • 9 इन्हें भी देखें • 10 बाहरी कड़ियाँ सक्षिप्त परिचय [ ] वैदिक युग में ‘संगीत’ समाज में स्थान बना चुका था। सबसे प्राचीन ग्रन्थ ‘ उत्तर वैदिक काल के ‘रामायण’ ग्रन्थ में भेरी, दुंदभि, वीणा, मृदंग व घड़ा आदि वाद्य यंत्रों व भँवरों के गान का वर्णन मिलता है, तो ‘महाभारत’ में कृष्ण की बाँसुरी के जादुई प्रभाव से सभी प्रभावित होते हैं। अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने उत्तरा को संगीत-नृत्य सिखाने हेतु बृहन्नला का रूप धारण किया। पौराणिक काल के ‘तैत्तिरीय उपनिषद’, ‘ऐतरेय उपनिषद’, ‘शतपथ ब्राह्मण’ के अलावा ‘याज्ञवल्क्य-रत्न प्रदीपिका’, ‘प्रतिभाष्यप्रदीप’ और ‘नारदीय शिक्षा’ जैसे ग्रन्थों से भी हमें उस समय के संगीत का परिचय मिलता है। चौथी शताब्दी में ग्यारहवीं शताब्दी में वैदिक काल का संगीत [ ] भारतीय संगीत का आदि रूप वेदों में मिलता है। भारतीय संगीत का इतिहास कम से कम ४००० वर्ष प्राचीन है। संसार भर में सबसे प्राचीन संगीत संभाव्य स्वरों के नियत क्रम का जो समूह है वह संगीत में "साम" कहलाता है। हम देख सकते हैं कि धीरे-धीरे विकसित होकर साम का पूर्ण ग्राम इस प्रकार बना- क्रुष्ट, प्रथम, द्वितीय, तृतीय, मंद्र, अतिस्वार्थ यह हम पहले ही कह चुके हैं कि साम का ग्राम अवरोही क्रम का था। नीचे हम सामग्रम और उनको आधुनिक संज्ञाओं को एक सारणी में देते हैं: साम आधुनिक क्रुष्ट मध्यम (म) प्रथम गांधार (ग) द्वितीय ऋषभ (रे) तृतीय षड्ज (स) चतुर्थ निषाद (नि) मंद्र घैवत (ध) अतिस्वार्य पंचम (प)...