Bhagwat geeta mahabharat ke kis parv se sambandhit hai

  1. The Mahabharata, Book 6: Bhishma Parva Index
  2. गीता: इन 18 बातों को अपनाने वाला सभी दुखों और वासनाओं से हो जाता है दूर
  3. Bhagwat Geeta kis ne likhi??
  4. श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित
  5. Bhagavad Gita
  6. Bhagavad Gita
  7. श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित
  8. Mahabharata
  9. गीता: इन 18 बातों को अपनाने वाला सभी दुखों और वासनाओं से हो जाता है दूर
  10. Bhagwat Geeta kis ne likhi??


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The Mahabharata, Book 6: Bhishma Parva Index

The Mahabharata, Book 6: Bhishma Parva Index Book 6 The Mahabharata Book 6: Bhishma Parva Kisari Mohan Ganguli, tr. [1883-1896] This book of the Mahabharata is important for two reasons. First of all, it contains the Bhagavad Gita, the best-known Hindu sacred text. Secondly, this book describes the start of the enormous battle which is the center-piece of the work, specifically the first ten days of conflict, up to the fate of the hero Bhishma. The Bhishma Parva starts with an overture of apocalyptic and unnatural portents. It then immediately digresses into a treatise on geography and natural history--one of several texts which the great epic accreted over time. After this comes the Bhagavad Gita, which unlike some of the other digressions, is a good thematic fit in the narrative. Arjuna, facing a battle in which he will have to fight many of his immediate relatives, is understandably hesitant to fight. The Avatar Krishna then proceeds to explain to Arjuna why he must fulfill his duty as a warrior, and how he can emerge from this spiritual crisis of conscience with a clean slate. This text deals with the contradictions of living a devotional life in an imperfect world. Even non-Hindus have found the Gita meaningful for this reason. Then Krishna reveals to Arjuna his divine form; this section is one of the best attempts to describe the indescribable ever written. Finally we move on to the battle itself, which occupies two-thirds of Book 6, a relentless and immersive descri...

गीता: इन 18 बातों को अपनाने वाला सभी दुखों और वासनाओं से हो जाता है दूर

भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल ज्ञान की बातें बताई हैं बल्कि जीवन जीने की कलाओं के बारे में भी बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो गीता का उपदेश दिया है, वह हर मनुष्य के लिए प्रेरणास्रोत साबित हो सकता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि जो भी मनुष्य भगवद गीता की अठारह बातों को अपनाकर अपने जीवन में उतारता है वह सभी दुखों से, वासनाओं से, क्रोध से, ईर्ष्या से, लोभ से, मोह से, लालच आदि के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आगे जानते हैं भगवद गीता की 18 ज्ञान की बातें। 1. आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करता है। परंतु मनुष्य उसे स्त्री में, घर में और बाहरी सुखों में खोज रहा है। 3. मनुष्य की वासना ही उसके पुनर्जन्म का कारण होती है। 4. इंद्रियों के अधीन होने से मनुष्य के जीवन में विकार और परेशानियां आती है। 5. संयम यानि धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण सत्संग के बिना नहीं आते हैं। 6. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को वस्त्र बदलने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता हृदय परिवर्तन की है। 7. जवानी में जिसने ज्यादा पाप किए हैं उसे बुढ़ापे में नींद नहीं आती। 8. भगवान ने जिसे संपत्ति दी है उसे गाय अवश्य रखनी चाहिए। 9. जुआ, मदिरापान, परस्त्रीगमन (अनैतिक संबंध), हिंसा, असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयता इन सब में कलियुग का वास है। 10. अधिकारी शिष्य को सद्गुरु (अच्छा गुरु) अवश्य मिलता है। 11. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन को बार-बार समझाना चाहिए कि ईश्वर के सिवाय उसका कोई नहीं है। साथ ही यह विचार करना चाहिए कि उसका कोई नहीं है। साथ ही वह किसी का नहीं है। 12. भोग में क्षणिक (क्षण भर के लिए) सुख है। साथ ही त्याग में स्थायी आनंद है। 13. श्रीकृष्ण कहते हैं कि सत्संग...

Bhagwat Geeta kis ne likhi??

कुरुक्षेत्र का मैदान महासंग्राम के लिए पूरी तरह से सज चुका था । दोनों तरफ की सेनाएं भिड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार थीं । हजारो हाथी घोड़ो की चिंघाड़ से पूरा मैदान गूँज रहा था । युद्ध से विरत अर्जुन का मोहभंग करने के लिए कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देने लगते हैं । उस क्षण की विशेषता ये थी सिर्फ अर्जुन ही कृष्ण को देख और सुन सकता था ऐसे में 1. जब कोई गीता को पढता है तो सम्पूर्ण गीता को पढने में एक दिन से अधिक का समय लगता है फिर कृष्ण ने अर्जुन को पूरी गीता मात्र कुछ मिनटों में कैसे सुना दी ? 2. जब दोनों सेनाएं युद्ध के लिए तैयार थी और कृष्ण को अर्जुन के सिवाय कोई और देखने सुनने में सक्षम नहीं था तो दोनों तरफ से युद्ध आरम्भ क्यों नहीं किया गया ? प्रद्युम्न और भीष्म किस चीज की प्रतीक्षा कर रहे थे ? 3. जब कृष्ण को उस समय सिर्फ अर्जुन ही देख सकता था तो युद्धक्षेत्र से काफी दूर राजमहल में संजय धृतराष्ट्र को गीता के उपदेश किस प्रकार सुना सकता था ? 4. इतने कोलाहल भरे माहौल में जहाँ हजारो हाथी घोड़े चिंघाड़ रहे थे कोई शांति से प्रवचन कैसे दे सकता है और कोई उनको शांति के साथ सही तरह से कैसे सुन सकता है ? 5. कृष्ण ने उपदेश दिए अर्जुन ने सुने ? दोनों में से लिखा किसी ने नहीं, किसी तीसरे ने उसको सुना नहीं फिर गीता लिखी किसने ? 6. अगर किसी तीसरे व्यक्ति ने गीता सुनी भी तो उसको युद्धक्षेत्र में लिखा कैसे गया ? 7. अगर गीता युद्ध के बाद लिखी गयी तो इतने सारे उपदेशो को कंठस्थ किसने किया ? इतने सारे उपदेशो को सुनकर याद रखकर बिलकुल वैसा ही कैसे लिखा जा सकता था ? 8. अगर गीता के उपदेश इतने ही गोपनीय थे कि उनको सिर्फ अर्जुन ही सुन सके तो इन दोनों के बीच का वार्तालाप सार्वजानिक कैसे हुआ ? 9. अगर गीत...

श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित

गीता के श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, कर्म करना तुम्हारा अधिकार है परन्तु फल की इच्छा करना तुम्हारा अधिकार नहीं है| कर्म करो और फल की इच्छा मत करो अर्थात फल की इच्छा किये बिना कर्म करो क्यूंकि फल देना मेरा काम है| गीता श्लोक परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, साधू और संत पुरुषों की रक्षा के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये और धर्म की स्थापना हेतु मैं युगों युगों से धरती पर जन्म लेता आया हूँ| गीता श्लोक गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके | हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान् || अर्थ – महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन के सामने उनके सगे सम्बन्धी और गुरुजन खड़े होते हैं तो अर्जुन दुःखी होकर श्री कृष्ण से कहते हैं कि अपने महान गुरुओं को मारकर जीने से तो अच्छा है कि भीख मांगकर जीवन जी लिया जाये| भले ही वह लालचवश बुराई का साथ दे रहे हैं लेकिन वो हैं तो मेरे गुरु ही, उनका वध करके अगर मैं कुछ हासिल भी कर लूंगा तो वह सब उनके रक्त से ही सना होगा| गीता श्लोक न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: | यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः || अर्थ – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं| गीता श्लोक कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छा...

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श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित

गीता के श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, कर्म करना तुम्हारा अधिकार है परन्तु फल की इच्छा करना तुम्हारा अधिकार नहीं है| कर्म करो और फल की इच्छा मत करो अर्थात फल की इच्छा किये बिना कर्म करो क्यूंकि फल देना मेरा काम है| गीता श्लोक परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, साधू और संत पुरुषों की रक्षा के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये और धर्म की स्थापना हेतु मैं युगों युगों से धरती पर जन्म लेता आया हूँ| गीता श्लोक गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके | हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान् || अर्थ – महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन के सामने उनके सगे सम्बन्धी और गुरुजन खड़े होते हैं तो अर्जुन दुःखी होकर श्री कृष्ण से कहते हैं कि अपने महान गुरुओं को मारकर जीने से तो अच्छा है कि भीख मांगकर जीवन जी लिया जाये| भले ही वह लालचवश बुराई का साथ दे रहे हैं लेकिन वो हैं तो मेरे गुरु ही, उनका वध करके अगर मैं कुछ हासिल भी कर लूंगा तो वह सब उनके रक्त से ही सना होगा| गीता श्लोक न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: | यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः || अर्थ – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं| गीता श्लोक कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छा...

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गीता: इन 18 बातों को अपनाने वाला सभी दुखों और वासनाओं से हो जाता है दूर

भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल ज्ञान की बातें बताई हैं बल्कि जीवन जीने की कलाओं के बारे में भी बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो गीता का उपदेश दिया है, वह हर मनुष्य के लिए प्रेरणास्रोत साबित हो सकता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि जो भी मनुष्य भगवद गीता की अठारह बातों को अपनाकर अपने जीवन में उतारता है वह सभी दुखों से, वासनाओं से, क्रोध से, ईर्ष्या से, लोभ से, मोह से, लालच आदि के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आगे जानते हैं भगवद गीता की 18 ज्ञान की बातें। 1. आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करता है। परंतु मनुष्य उसे स्त्री में, घर में और बाहरी सुखों में खोज रहा है। 3. मनुष्य की वासना ही उसके पुनर्जन्म का कारण होती है। 4. इंद्रियों के अधीन होने से मनुष्य के जीवन में विकार और परेशानियां आती है। 5. संयम यानि धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण सत्संग के बिना नहीं आते हैं। 6. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को वस्त्र बदलने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता हृदय परिवर्तन की है। 7. जवानी में जिसने ज्यादा पाप किए हैं उसे बुढ़ापे में नींद नहीं आती। 8. भगवान ने जिसे संपत्ति दी है उसे गाय अवश्य रखनी चाहिए। 9. जुआ, मदिरापान, परस्त्रीगमन (अनैतिक संबंध), हिंसा, असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयता इन सब में कलियुग का वास है। 10. अधिकारी शिष्य को सद्गुरु (अच्छा गुरु) अवश्य मिलता है। 11. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन को बार-बार समझाना चाहिए कि ईश्वर के सिवाय उसका कोई नहीं है। साथ ही यह विचार करना चाहिए कि उसका कोई नहीं है। साथ ही वह किसी का नहीं है। 12. भोग में क्षणिक (क्षण भर के लिए) सुख है। साथ ही त्याग में स्थायी आनंद है। 13. श्रीकृष्ण कहते हैं कि सत्संग...

Bhagwat Geeta kis ne likhi??

कुरुक्षेत्र का मैदान महासंग्राम के लिए पूरी तरह से सज चुका था । दोनों तरफ की सेनाएं भिड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार थीं । हजारो हाथी घोड़ो की चिंघाड़ से पूरा मैदान गूँज रहा था । युद्ध से विरत अर्जुन का मोहभंग करने के लिए कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देने लगते हैं । उस क्षण की विशेषता ये थी सिर्फ अर्जुन ही कृष्ण को देख और सुन सकता था ऐसे में 1. जब कोई गीता को पढता है तो सम्पूर्ण गीता को पढने में एक दिन से अधिक का समय लगता है फिर कृष्ण ने अर्जुन को पूरी गीता मात्र कुछ मिनटों में कैसे सुना दी ? 2. जब दोनों सेनाएं युद्ध के लिए तैयार थी और कृष्ण को अर्जुन के सिवाय कोई और देखने सुनने में सक्षम नहीं था तो दोनों तरफ से युद्ध आरम्भ क्यों नहीं किया गया ? प्रद्युम्न और भीष्म किस चीज की प्रतीक्षा कर रहे थे ? 3. जब कृष्ण को उस समय सिर्फ अर्जुन ही देख सकता था तो युद्धक्षेत्र से काफी दूर राजमहल में संजय धृतराष्ट्र को गीता के उपदेश किस प्रकार सुना सकता था ? 4. इतने कोलाहल भरे माहौल में जहाँ हजारो हाथी घोड़े चिंघाड़ रहे थे कोई शांति से प्रवचन कैसे दे सकता है और कोई उनको शांति के साथ सही तरह से कैसे सुन सकता है ? 5. कृष्ण ने उपदेश दिए अर्जुन ने सुने ? दोनों में से लिखा किसी ने नहीं, किसी तीसरे ने उसको सुना नहीं फिर गीता लिखी किसने ? 6. अगर किसी तीसरे व्यक्ति ने गीता सुनी भी तो उसको युद्धक्षेत्र में लिखा कैसे गया ? 7. अगर गीता युद्ध के बाद लिखी गयी तो इतने सारे उपदेशो को कंठस्थ किसने किया ? इतने सारे उपदेशो को सुनकर याद रखकर बिलकुल वैसा ही कैसे लिखा जा सकता था ? 8. अगर गीता के उपदेश इतने ही गोपनीय थे कि उनको सिर्फ अर्जुन ही सुन सके तो इन दोनों के बीच का वार्तालाप सार्वजानिक कैसे हुआ ? 9. अगर गीत...