भद्रा काल क्या होता है

  1. Raksha Bandhan 2022 Bhadra Kaal Time Significance And All About Bhadra On Rakhi
  2. Holi 2022: Shadow Of Bhadra On Holi, What Is Bhadra? Why Is It Considered Inauspicious
  3. क्या होता है भद्रा काल, होलिका दहन मुहूर्त में क्यों रखा जाता है इसका ध्यान
  4. Raksha Bandhan 2023 Date, Raksha Bandhan Will Be Celebrated 2 Days This Year, Raksha Bandhan Kab Hai
  5. राखी पर सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनिदेव की बहन भद्रा का साया : जानिए क्यों माना जाता है इसे अशुभ ?
  6. आखिर क्या होती है भद्रा, शुभ कार्यों में क्यों माना जाता है अशुभ
  7. जून में भाद्र विचार की तिथि
  8. Bhadra kal Timing


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Raksha Bandhan 2022 Bhadra Kaal Time Significance And All About Bhadra On Rakhi

Raksha Bandhan 2022: रक्षा बंधन पर भद्रा काल को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. रक्षा बंधन कुछ लोग 11 को मना रहे हैं तो कुछ 12 अगस्त को मनाएंगे. बहरहाल रक्षा बंधन जब कभी भी मनाया जाता है तो भद्रा काल का ध्यान जरूर रखा जाता है. इस बार राखी बांधने को लोकर लोग बहुत परेशान हैं कि पूर्णिमा तिथि कब तक रहोगी. अगर पूर्णिमा में भद्र लग गई तो क्या उस दौरान राखी बांधना शुभ रहेगा. शास्त्रों में भद्रा काल को अशुभ माना गया है. कहा जाता है कि इस दौरान राखी नहीं बांधनी चाहिए. इस बार सावन पूर्णिमा तिथि के साथ ही भद्रा लगेगी जो रात 8 बजकर 53 मिनट पर खत्म हो जाएगी. आइए जानते हैं कि भद्र के बारे में. यह भी पढ़ें • Raksha Bandhan 2023: इस साल 2 दिन मनाया जाएगा रक्षाबंधन, जानिए क्या है तारीख और राखी बांधने का शुभ मुहूर्त • सिनेमाघरों में फ्लॉप हुई यह 5 फिल्में लेकिन ओटीटी पर बिकी महंगे दाम पर- जानें कौन हैं यह लकी एक्टर • बॉलीवुड के भौकाल को 2022 में लगी जोरदार चोट, आठ महीने में सिर्फ 3 फिल्में कमा सकी हैं 100 करोड़ रुपये भद्रा का महत्व |importance of bhadra हिंदू धर्म में रक्षा बंधन पर्व का खास महत्व है. हालांकि इस बार रक्षा बंधन पर भद्रा का साया है. ज्योतिष शास्त्र में भद्रा काल को शुभ नहीं माना जाता है. भद्रा काल में ना तो राखी बांधी जाती है और ना ही पूजा-पाठ, नए काम, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुभ कार्य किए जाते हैं. कहा जाता है कि भद्रा काल में किए गए शुभ काम भी अशुभ फल देते हैं, इसलिए भद्रा काल से बचना ही बेहतर माना गया है. शनि देव की बहन है भद्रा |Bhadra is the sister of Shani Dev भद्रा सूर्य देव और उनकी पत्‍नी छाया की पुत्री हैं. इसके साथ ही ये शनि देव की बहन भी मानी जाती हैं. जिस तरह शनि ...

Holi 2022: Shadow Of Bhadra On Holi, What Is Bhadra? Why Is It Considered Inauspicious

होली पर भद्रा का साया, क्या है भद्रा? क्यों मानी जाती है अशुभ हिंदू धर्म के अनुसार होली पर होलिका दहन का विशेष महत्व है इस वर्ष होलिका दहन पर भद्रा का साया पड़ रहा है ज्योतिषियों के अनुसार 17 मार्च 2022 को फागुन मास की पूर्णिमा तिथि है और गुरुवार गुरुवार यानी आज दोपहर 1:30 से यह तिथि शुरू होकर शुक्रवार को दोपहर 12:48 तक रहेगी। आज के दिन पूर्णिमा शुरू होने के साथी भद्रा भी है जो की अर्धरात्रि बाद रात 1:09 तक रहेगी। शास्त्रों की माने तो मध्यरात्रि के बाद भद्रा के टल्ली से भद्रा के पुछ काल में होलिका दहन किया जा सकता है। इस बार होलिका दहन भद्रा पुच्छ काल में होगा यानी रात्रि 9:02 से 10:14 तक भद्राकाल रहेगा। यानी कुल 72 मिनट का समय होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त रहेगा आज होली का पर्व फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी युक्त पूर्णिमा तिथि में मनाया जाएगा। मान्यता अनुसार जब भद्रा पूछने होती है तो विजय की प्राप्ति एवं सभी कार्य सिद्ध होते हैं। होली पर वृंदावन बिहारी जी को चढ़ाएं गुजिया और गुलाल - 18 मार्च 2022 आइए जानते हैं भद्रा कौन है? धार्मिक पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और राजा सनी की बहन है। शनि की तरह ही भद्रा का स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के प्रमुख स्थान दिया। किसी भी मांगलिक कार्य में भद्र आयोग का विशेष ध्यान फिर ध्यान रखा जाता है क्योंकि भद्रा काल में मंगल कार्य की शुरुआत या समाप्ति अशोक मानी जाती है। अतः भद्राकाल की उत्सुकता को मानकर कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। आइए जानते हैं आखिर क्या होती है भद्रा? और क्यों इसे अशुभ माना जाता है? हिंदी पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं ...

क्या होता है भद्रा काल, होलिका दहन मुहूर्त में क्यों रखा जाता है इसका ध्यान

जीवन मंत्र डेस्क. हिंदू धर्म में किसी भी पर्व, त्योहार या शुभ मुहूर्त में काम करने से पहले ज्योतिषियों द्वारा भद्राकाल के बारे में विचार किया जाता है। ज्योतिषियों द्वारा माना गया है कि जब भद्राकाल किसी त्योहार के पर्व काल में रहता है तो उस समय कोई पर्व से जुड़े शुभ और महत्वपूर्ण काम नहीं किए जाते हैं। विद्वानों के अनुसार किसी पर्व काल में भद्रा का आखिरी समय यानी मुख काल को छोड़ देना चाहिए। भद्रा में क्रूर कर्म, ऑपरेशन करना, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना, युद्ध, किसी को विष देना, अग्नि कार्य, किसी को कैद करना, विवाद संबंधी काम, शस्त्रों यानी हथियारों का उपयोग, दुश्मन पर जीत के लिए काम और पशु संबंधी काम भद्रा काल के दौरान किए जा सकते हैं। भद्रा काल के दौरान कौन से काम नहीं किए जाते भद्रा काल में शुभ काम भूलकर भी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से निश्चित ही अशुभ नतीजे मिलते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भद्रा में विवाह, मुण्डन संस्कार, गृह-प्रवेश, रक्षाबंधन,नया व्यवसाय प्रारम्भ करना, शुभ यात्रा, शुभ उद्देश्य से किए जाने वाले सभी काम भद्रा काल में नही करने चाहिए।

Raksha Bandhan 2023 Date, Raksha Bandhan Will Be Celebrated 2 Days This Year, Raksha Bandhan Kab Hai

Raksha Bandhan 2023: सालभर में कई तीज-त्योहार पड़ते हैं. इन्हीं में से एक है रक्षाबंधन. बहन और भाई के प्रेम के इस पर्व को बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर प्रेम का धागा यानी राखी (Rakhi) बांधती हैं और भाई से रक्षा का वचन लेती हैं. इस दिन से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हैं और इसकी विशेष धार्मिक मान्यता भी है. पंचांग के अनुसार, इस साल रक्षा बंधन एक नहीं बल्कि 2 दिनों का माना जा रहा है. जानिए इसका क्या कारण है और किस दिन राखी बांधी जा सकेगी. रक्षाबंधन 2023 की तारीख | Raksha Bandhan 2023 Date इस साल रक्षा बंधन की 2 तारीखें निकल रही हैं. रक्षाबंधन साल 2023 में 30 अगस्त, बुधवार और 31 अगस्त, गुरुवार के दिन बताया जा रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 30 अगस्त के दिन सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू होगी और इस तिथि का समापन अगले दिन 31 अगस्त सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर हो जाएगा. इस चलते रक्षाबंधन की 2 तिथियां बताई जा रही हैं. लेकिन, शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन मनाने और राखी बांधने का उपयुक्त समय दोपहर का बताया जाता है. रक्षाबंधन के दिन यदि भद्रा का साया (Bhadra ka saya) लग जाए तो दोपहर की बजाय राखी शाम के समय प्रदोष काल में बांधी जाती है. भद्रा काल इस साल 30 अगस्त की शाम तक रहने वाला है. ऐसे में रक्षा बंधन 30 अगस्त के दिन ही मनाया जाएगा लेकिन भद्रा के चलते रात के समय राखी बांधने का शुभ मुहूर्त पड़ रहा है. यह शुभ मुहूर्त 30 अगस्त की रात 9 बजकर 1 मिनट से 9 बजकर 5 मिनट तक है. क्या है भद्रा धार्मिक मान्यतानुसार भद्राकाल (Bhadrakaal) को अशुभ समय माना जाता है. भद्रा का साया होने पर राखी का उत्सव नहीं मनाया जाता है...

राखी पर सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनिदेव की बहन भद्रा का साया : जानिए क्यों माना जाता है इसे अशुभ ?

धार्मिक एवं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी शुभ तथा मांगलिक कार्यों में भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि भद्रा योग में किसी भी मंगल उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। अत: भद्रा काल के अशुभता के बार में विचार करके कोई भी आस्थावान व्यक्ति इस समयावधि में शुभ कार्य नहीं करता है। हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। उनमें तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण आते हैं। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है। जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है। Success in politics astrology : ऐसे भी कई लोग हैं जो सेना या पुलिस में नौकरी करना चाहते हैं। कई लोग हैं जो शासन-प्रशासन में काम करना चाहते हैं। हालांकि बहुत से लोग राजनीति में अपना भविष्य चमकाना चाहते हैं परंतु वे सफल नहीं हो पाते हैं। यदि आप भी राजनीति में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं तो आपने मन में सवाल होगा कि ऐसा क्या करूं कि इस क्षेत्र में सफलता मिले तो जानिए कि कौन से वार को व्रत रखने से यह मनो...

आखिर क्या होती है भद्रा, शुभ कार्यों में क्यों माना जाता है अशुभ

रक्षाबंधन का त्योहार 11 अगस्त 2022 को है और राखी के इस त्योहार पर लोग भद्रा के साए को लेकर बहुत कन्फ्यूज़ हैं. ज्योतिषियों का कहना है कि इस साल भद्रा का साया पाताल लोक में है. इसलिए पृथ्वी पर होने वाले शुभ और मांगलिक कार्यों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. दरअसल, रक्षाबंधन पर भद्रा के साए में भाई की कलाई पर राखी बांधना अपशकुन समझा जाता है. आइए इसी कड़ी में आज आपको बताते हैं कि आखिर भद्रा कौन है और इसके साए में राखी बांधने से बहनें क्यों डरती हैं. Information About Bhadra ज्योतिष शास्त्र में तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण के स्पष्ट मान आदि को पंचांग कहा जाता है। कोई भी मंगल कार्य करने से पहले पंचांग का अध्ययन करके शुभ मुहूर्त निकाला जाता है, परंतु पंचांग में कुछ समय या अवधि ऐसी भी होती है जिसमें कोई भी मंगल कार्य करना निषिद्ध माना जाता है अन्यथा इसके करने से अनिष्ट होने की संभावना रहती है। ऐसा ही निषिद्ध समय है “भद्रा”। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया से उत्पन्न भद्रा शनि देव की सगी बहिन हैं। विश्वकर्मा के पुत्र विश्वस्वरूप भद्रा के पति हैं। येभीपढ़िए: हिंदू धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य से पहले भद्रा की समय अवधि के बारे में जाना जाता है, उसके बाद ही निर्णय लिया जाता है कि कार्य को करना या स्थगित करना है। इसलिए सभी जातक किसी भी कार्य को करने या वस्तु को खरीदने से पहले ज्योतिष शास्त्र के विद्वान द्वारा मुहूर्त जानते हैं। इस भद्रा के समय को ही ध्यान में रखकर मुहूर्त का समय निर्धारित किया जाता है। यदि भद्राकाल किसी उत्सव या पर्व के समय होता है तो उस समय उस पर्व से संबंधित कुछ शुभ कार्य भी नहीं किए जा सकते हैं। उस समय में भद्राकाल को ध्यान में रखकर ही सभी म...

जून में भाद्र विचार की तिथि

महत्वपूर्ण जानकारी • भद्रा विचार तिथि जून 2023 में • भद्रा प्रारंभ : 16 जून 2023 शुक्रवार को सुबह 08 बजकर 39 मिनट से • भद्रा समाप्त : 16 जून 2023 शुक्रवार को रात 08 बजकर 52 मिनट पर भद्रा विचार या भद्रा काल वह समय अवधि होती है जिस समय में कोई भी शुभ व मंगलिक कार्य नहीं किये जाते है। समय अवधि को अशुभ माना जाता है। भद्रा का वास्तविक अर्थ ‘कल्याण करने वाला’ होता है परन्तु इसके अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य करने के लिए निषेध माना गया है। हिंदू पंचाग में भार विचार का महत्व हिन्दू पंचाग में 5 प्रमुख अंग होते हैं जिनका नाम तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण है। इनमें से करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे जाते हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनि देव की बहन है। भद्रा स्वभाव बहुत ही कड़क होता है। भगवान ब्रह्मा ने भद्रा को कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया ताकि भद्रा के स्वभाव को नियंत्रित किया जा सके। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं। जून में भाद्र विचार तिथियां भद्रा प्रारंभ : 03 जून 2023 दिन शनिवार, 11 बजकर 16 मिनट से भद्रा समाप्त : 03 जून 2023 ...

Bhadra kal Timing

FILE किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है। क्योंकि भद्रा काल में मंगल-उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। अत: भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी आस्थावान व्यक्ति शुभ कार्य नहीं करता। इसलिए जानते हैं कि आखिर क्या होती है भद्रा और क्यों इसे अशुभ माना जाता है? पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और राजा शनि की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया। किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्यों सुफल देने वाले माने गए हैं। पंचांग में भद्रा का महत्व :- FILE हिन्दू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं। यह है - तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। यह चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में सातवें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचाग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। यूं तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ है कल्याण करने वाली लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टी करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या य...