भोपाल गैस त्रासदी इन हिंदी

  1. दर्द के 36 बरस : मैं भोपाल हूं...गैस त्रासदी का भुक्तभोगी...अब झेल रहा महामारी
  2. भोपाल में गैस त्रासदी की फिर से आहट, अमोनिया गैस लीक होने से मचा हड़कंप bhopal ammonia gas leak from factory causes panic administration evacuated village
  3. भोपाल गैस त्रासदी: 3 दशक बाद भी शहर के भूजल में मौजूद है रासायनिक ज़हर
  4. Bhopal gas tragedy क्या पीड़ितों का मुआवजा बढ़ेगा, SC में सरकार ने क्या कहा? Bhopal Gas Tragedy: Will the compensation of the victims increase, what did the government say in SC?
  5. भोपाल गैस त्रासदी क्या थी? जाने सभी महत्वपूर्ण तथ्य (Bhopal Gas Tragedy)
  6. दर्द के 36 बरस : मैं भोपाल हूं...गैस त्रासदी का भुक्तभोगी...अब झेल रहा महामारी
  7. भोपाल में गैस त्रासदी की फिर से आहट, अमोनिया गैस लीक होने से मचा हड़कंप bhopal ammonia gas leak from factory causes panic administration evacuated village
  8. भोपाल गैस त्रासदी क्या थी? जाने सभी महत्वपूर्ण तथ्य (Bhopal Gas Tragedy)
  9. भोपाल गैस त्रासदी: 3 दशक बाद भी शहर के भूजल में मौजूद है रासायनिक ज़हर
  10. Bhopal gas tragedy क्या पीड़ितों का मुआवजा बढ़ेगा, SC में सरकार ने क्या कहा? Bhopal Gas Tragedy: Will the compensation of the victims increase, what did the government say in SC?


Download: भोपाल गैस त्रासदी इन हिंदी
Size: 50.34 MB

दर्द के 36 बरस : मैं भोपाल हूं...गैस त्रासदी का भुक्तभोगी...अब झेल रहा महामारी

Bhopal Gas Tragedy: 36 बरस में न पीड़ितों के प्रति सिस्टम जागा, न पीड़ितों की जिंदगी बदली. गैस त्रासदी की 36वीं बरसी पर इस हादसे में मृत लोगों को यही सबसे सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि सिस्टम आरोप-प्रत्यारोपों की सियासत की बजाय जिंदा बचे पीड़ितों को सही इलाज और उनके पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था करे और उन्हें इंसाफ दिलाए. मैं भोपाल हूं... 36 साल पहले आज ही के दिन यानी 2-3 दिसंबर 1984 की काली अंधियारी रात को हुई विश्व की भीषणतम औद्योगिक गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) का भुक्तभोगी, चश्मदीद. इन 36 साल में मैंने देखी हैं कंधों पर सवार 25 हजार से ज्यादा गैस पीड़ितों (Gas victims) की अर्थियां. मैं देख रहा हूं 6 लाख से ज्यादा आंखों, किडनी, लिवर, कैंसर, मस्तिष्क, दिल के रोगों समेत सैकड़ों बीमारियों के शिकार हुए अस्पतालों के चक्कर काटते मेरे अपने लोगों की तीन पीढ़ियां. मैं गवाह हूं उन औरतों के दर्द का, जिन्होंने त्रासदी में अपने पति, बच्चे खो दिए, या कभी मां बनने के लायक ही नहीं रहीं. मैंने देखे हैं इंसाफ के लिए दशकों की लड़ाई लड़ते, कभी जीतते, कभी हार से मायूस होते चेहरे, बेशर्म सियासत, तंगदिल तंत्र के रूप. मैं भोपाल... पिछले 36 सालों से इन गैस पीड़ितों की जिंदगी में एक ही नगमा सुन रहा हूं, जो खुद से सवाल कर रहा है, “सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है." दुनिया भर में फैली कोरोना की महामारी से मैं भी जूझ रहा हूं. मुझे अफसोस है यह इत्तला करते हुए, कि मेरे शहर के वो तमाम वाशिंदे जो उस वक्त जहरीले मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस के कहर से बच निकले थे, वो कोरोना से हार रहे हैं, क्योंकि बीमारियों से लड़ता उनका कमजोर जिस्म, दिल, फेफड़े, Covid-19 संक्र...

भोपाल में गैस त्रासदी की फिर से आहट, अमोनिया गैस लीक होने से मचा हड़कंप bhopal ammonia gas leak from factory causes panic administration evacuated village

भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मंगलवार की देर रात अचानक लोगों में अफरा तफ़री मच गयी. शहर के लोगों को अचानक गैस त्रासदी की यादें ताजा हो गयी. भोपाल के अचारपुरा इलाके में सालभर से बंद पड़ी एक फैक्ट्री से अचानक अमोनिया गैस लीक होने की खबर फ़ैल गयी, जिसके बाद लोगों में हड़कंप मच गया. अमोनिया गैस लीक होने के बाद फैक्ट्री के करीब परेवाखेड़ा गांव में रहने वाले लोगों को अचानक घुटन और आंखों में जलन होने लगी. फैक्ट्री से गैस लीक होने की जानकारी जैसे ही सामने आई, आसपास के इलाकों में भी दहशत फैल गई. फौरन प्रशासन को सूचना दी गई. गैस लीक की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन और नगर निगम का दस्ता हरकत में आया. कलेक्टर समेत तमाम आला अफसर आनन-फानन में पहुंचे और गांव को खाली कराया गया. गैस लीक की सूचना के बाद मौके पर पहुंचे भोपाल के कलेक्टर अविनाश लवानिया ने प्रशासनिक अधिकारियों को राहत एवं बचाव के निर्देश दिए. साथ ही 4 पटवारियों की ड्यूटी भी लगा दी. पटवारियों को रातभर बंद फैक्ट्री के आसपास रहने को कहा गया. प्रशासन के मुताबिक गैस लीक होने से परेवाखेड़ा गांव के 20 लोगों को आंखों में जलन की शिकायत हुई. प्रशासन ने एहतियातन फैक्ट्री के आसपास के मकानों को खाली करा उनमें रहने वालों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया. इन घरों में रहने वालों को पास के आंगनबाड़ी केंद्र या परिजनों के यहां जाने को कहा गया है. घटना के कई घंटों बाद जाकर स्थिति नियंत्रण में आ सकी. प्रशासन के अधिकारियों के मुताबिक साल भर से बंद पड़ी इस फैक्ट्री में एक वॉल्व खुल गया था, जिसके चलते गैस का रिसाव हुआ. फायर फाईटर्स की मदद से इस वॉल्व को तत्काल बंद करवाया गया, जिसके बाद स्थिति नियंत्रण में लाई जा सकी. अधिकारियों ने बताया कि BHEL के...

भोपाल गैस त्रासदी: 3 दशक बाद भी शहर के भूजल में मौजूद है रासायनिक ज़हर

यूनियन कार्बाइड को औपचारिक रूप से तो ख़त्म मान लिया गया, लेकिन जो ज़हर इस कारखाने ने भोपाल की ज़मीन में बोया, वो अब इस शहर की अगली नस्ल को अपनी चपेट में ले रहा है. फाइल फोटो: पीटीआई पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता हर सरकार दिखाती है. बड़े-बड़े मंत्रालय चलाती है, करोड़ों के बजट ले आती है. केंद्र में जहां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) काम करता है तो हर राज्य में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड काम कर रहे हैं. सार्वजनिक मंचों से देश के प्रधानसेवक स्वच्छ भारत अभियान का नारा दे रहे हैं. इस सारी कवायद के मूल में जो मुख्य बातें हैं वो यह कि स्वच्छ हवा में हम सांस ले सकें और स्वच्छ जल पी सकें. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 भी हर भारतीय को स्वस्थ वातावरण में रहने का अधिकार देता है. इसी अनुच्छेद 21 के तहत ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ऑफ इंडिया (एनजीटी) का भी गठन हुआ है. इन सभी सांस्थानिक कवायदों के बीच समय-समय पर सरकार और उसके विभिन्न विभाग पर्यावरण बचाओ का संदेश देने आयोजन करते ही रहते हैं. बावजूद इसके बीते तीन दशकों से से मध्यप्रदेश का भोपाल शहर धीरे-धीरे पर्यावरण के भीषणतम प्रकोप की ओर बढ़ रहा है. सरकारों के बयान इस पर कम ही आते हैं, लेकिन कम से कम वहां कार्यरत एनजीओ और कार्यकर्ताओं का तो यही मानना है और इसका कारण वही यूनियन कार्बाइड (यूका) कारखाना है, जिससे रिसी गैस ने भोपाल की हवा को इतना जहरीला कर दिया था कि हजारों लोग काल के गाल में समा गये थे. 1984 के उस हादसे के बाद कारखाना तो बंद हो गया, जिम्मेदार भी देश छोड़कर भाग गये. लेकिन उस कारखाने के अंदर रखे अन्य जहरीले रसायन और ठोस अवशिष्ट वहीं के वहीं रहे. आज तीन दशक बाद भी 340 मीट्रिक टन कचरा उस कारखाने के अंदर रखा हुआ है, जिसक...

Bhopal gas tragedy क्या पीड़ितों का मुआवजा बढ़ेगा, SC में सरकार ने क्या कहा? Bhopal Gas Tragedy: Will the compensation of the victims increase, what did the government say in SC?

2010 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव पिटीशन डाली थी, जिसमें मांग की गई थी कि, भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड सर्वाइवर परिवारों को 7844 करोड़ का अतिरिक्त मुआवजा दे. इस पर सुप्रीम कोर्ट में 20 सितंबर को सरकार के वकील ने सुनवाई के दौरान कहा कि, वो सरकार से राय लेकर बताएंगे. अब सरकार ने अपना रुख सुप्रीम कोर्ट को बता दिया है कि वो चाहते हैं कि कंपनी सर्वाइवर परिवारों को अतिरिक्त मुआवजा दे. जिसका मतलब है कि अब सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर आगे सुनवाई करेगा और कंपनी को तलब करेगा. इसके बाद तय होगा कि क्या मुआवजा बढ़ाया जाएगा, अगर हां तो कितना? इन परिवारों के लिए पहले मुआवजा तय किया गया था. दरअसल 14 फरवरी 1989 को अदालत ने 470 मिलियन डॉलर(750 करोड़ रुपये) का मुआवजा तय किया गया था. लेकिन सर्वाइवर परिवार इसे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं और केंद्र सरकार का कहना है कि, पहले का समझौता मृत्यु, चोटों और नुकसान की संख्या की गलत धारणाओं पर आधारित था. उसमें बाद के पर्यावरणीय नुकसान को ध्यान में नहीं रखा गया. भोपाल गैस सर्वाइवर्स के साथ काम करने वाले एक्टिविस्ट रचना ढींगरा ने द क्विंट के साथ बातचीत में सोमवार को कहा था कि, इस त्रासदी के सर्वाइवर परिवारों में कई लोग ऐसे हैं जिन्हें मुआवजे के तौर पर एक बार 25 हजार रुपये मिले हैं. उनके पास आय का कोई साधन नहीं बचा है, वो केवल मुआवजे पर निर्भर हैं. एक और भोपाल गैस त्रासदी की सर्वाइर शजिदा बी से द क्विंट ने बात की. जो भोपाल गैस कांड के वक्त वो 12 साल की थीं. अब उनके 4 बच्चे हैं. उन्होंने कहा कि, मेरे बेटे छोटे-मोटे काम करते हैं, लेकिन ज्यादा कमा नहीं पाते क्योंकि उनकी सांस फूल जाती है. हमारे फेफड़े कमजो...

भोपाल गैस त्रासदी क्या थी? जाने सभी महत्वपूर्ण तथ्य (Bhopal Gas Tragedy)

2 दिसंबर 1984की रात मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के निवासियों के लिए काली रात साबित हुयी। रात को अपने घरो में सोने की तैयारी कर रहे हजारों लोगो को यह अंदाजा भी नहीं था की यह रात उनकी आखिरी रात होने वाली है। 2-3 दिसंबर, 1984 को भोपाल की हवा में यूनियन कार्बाईड इंडिया लिमिटेड कंपनी की फैक्ट्री से घुली जहरीली गैस मिथाईल आइसोसाइनेट ने प्रदेश के हजारों निर्दोष लोगों की जान ले ली थी। दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के रूप में प्रचलित भोपाल गैस त्रासदी ने प्रदेश के कई मासूमों की साँसे छीन ली थी। यहाँ भी देखें -->> • भोपाल गैस त्रासदी क्या थी ? भोपाल गैस त्रासदी को देश ही नहीं अपितु दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के रूप में गिना जाता है जिसके कारण हजारो लोगो को काल-कलवित होना पड़ा था। 2 दिसंबर 1984की रात को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाईड इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी की कीटनाशक फैक्ट्री से जानलेवा मिथाईल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। इस हादसे के कारण भोपाल में मध्य रात्रि में ही हजारो लोगों की जान चली गयी थी। इस हादसे का सबसे दुखद पहलू यह था की इसके कारण सबसे अधिक मासूम बच्चों को मृत्यु हुयी थी। इस हादसे ने 2-3 दिसंबर, 1984 को मात्र दो दिनों में ही प्रदेश में हजारो जिन्दगियां लील ली गयी। बाद के वर्षो में जहरीली गैस के असर के कारण हजारों लोगो को विकलांगो की भांति जीवन यापन करना पड़ा था जिनमे अनेक लोग गंभीर शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से ग्रस्त हो गए थे। भोपाल गैस त्रासदी कब हुयी ? भोपाल गैस त्रासदी 2 दिसंबर 1984की रात को मध्यप्रदेश के भोपाल में घटित हुयी थी। इसका घटना के कारण भोपाल में हजारों लोगो की जान गयी थी। इस घटना में अनेक लोगों को अपनी जान गवाँनी पड़ी थ...

दर्द के 36 बरस : मैं भोपाल हूं...गैस त्रासदी का भुक्तभोगी...अब झेल रहा महामारी

Bhopal Gas Tragedy: 36 बरस में न पीड़ितों के प्रति सिस्टम जागा, न पीड़ितों की जिंदगी बदली. गैस त्रासदी की 36वीं बरसी पर इस हादसे में मृत लोगों को यही सबसे सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि सिस्टम आरोप-प्रत्यारोपों की सियासत की बजाय जिंदा बचे पीड़ितों को सही इलाज और उनके पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था करे और उन्हें इंसाफ दिलाए. मैं भोपाल हूं... 36 साल पहले आज ही के दिन यानी 2-3 दिसंबर 1984 की काली अंधियारी रात को हुई विश्व की भीषणतम औद्योगिक गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) का भुक्तभोगी, चश्मदीद. इन 36 साल में मैंने देखी हैं कंधों पर सवार 25 हजार से ज्यादा गैस पीड़ितों (Gas victims) की अर्थियां. मैं देख रहा हूं 6 लाख से ज्यादा आंखों, किडनी, लिवर, कैंसर, मस्तिष्क, दिल के रोगों समेत सैकड़ों बीमारियों के शिकार हुए अस्पतालों के चक्कर काटते मेरे अपने लोगों की तीन पीढ़ियां. मैं गवाह हूं उन औरतों के दर्द का, जिन्होंने त्रासदी में अपने पति, बच्चे खो दिए, या कभी मां बनने के लायक ही नहीं रहीं. मैंने देखे हैं इंसाफ के लिए दशकों की लड़ाई लड़ते, कभी जीतते, कभी हार से मायूस होते चेहरे, बेशर्म सियासत, तंगदिल तंत्र के रूप. मैं भोपाल... पिछले 36 सालों से इन गैस पीड़ितों की जिंदगी में एक ही नगमा सुन रहा हूं, जो खुद से सवाल कर रहा है, “सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है." दुनिया भर में फैली कोरोना की महामारी से मैं भी जूझ रहा हूं. मुझे अफसोस है यह इत्तला करते हुए, कि मेरे शहर के वो तमाम वाशिंदे जो उस वक्त जहरीले मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस के कहर से बच निकले थे, वो कोरोना से हार रहे हैं, क्योंकि बीमारियों से लड़ता उनका कमजोर जिस्म, दिल, फेफड़े, Covid-19 संक्र...

भोपाल में गैस त्रासदी की फिर से आहट, अमोनिया गैस लीक होने से मचा हड़कंप bhopal ammonia gas leak from factory causes panic administration evacuated village

भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मंगलवार की देर रात अचानक लोगों में अफरा तफ़री मच गयी. शहर के लोगों को अचानक गैस त्रासदी की यादें ताजा हो गयी. भोपाल के अचारपुरा इलाके में सालभर से बंद पड़ी एक फैक्ट्री से अचानक अमोनिया गैस लीक होने की खबर फ़ैल गयी, जिसके बाद लोगों में हड़कंप मच गया. अमोनिया गैस लीक होने के बाद फैक्ट्री के करीब परेवाखेड़ा गांव में रहने वाले लोगों को अचानक घुटन और आंखों में जलन होने लगी. फैक्ट्री से गैस लीक होने की जानकारी जैसे ही सामने आई, आसपास के इलाकों में भी दहशत फैल गई. फौरन प्रशासन को सूचना दी गई. गैस लीक की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन और नगर निगम का दस्ता हरकत में आया. कलेक्टर समेत तमाम आला अफसर आनन-फानन में पहुंचे और गांव को खाली कराया गया. गैस लीक की सूचना के बाद मौके पर पहुंचे भोपाल के कलेक्टर अविनाश लवानिया ने प्रशासनिक अधिकारियों को राहत एवं बचाव के निर्देश दिए. साथ ही 4 पटवारियों की ड्यूटी भी लगा दी. पटवारियों को रातभर बंद फैक्ट्री के आसपास रहने को कहा गया. प्रशासन के मुताबिक गैस लीक होने से परेवाखेड़ा गांव के 20 लोगों को आंखों में जलन की शिकायत हुई. प्रशासन ने एहतियातन फैक्ट्री के आसपास के मकानों को खाली करा उनमें रहने वालों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया. इन घरों में रहने वालों को पास के आंगनबाड़ी केंद्र या परिजनों के यहां जाने को कहा गया है. घटना के कई घंटों बाद जाकर स्थिति नियंत्रण में आ सकी. प्रशासन के अधिकारियों के मुताबिक साल भर से बंद पड़ी इस फैक्ट्री में एक वॉल्व खुल गया था, जिसके चलते गैस का रिसाव हुआ. फायर फाईटर्स की मदद से इस वॉल्व को तत्काल बंद करवाया गया, जिसके बाद स्थिति नियंत्रण में लाई जा सकी. अधिकारियों ने बताया कि BHEL के...

भोपाल गैस त्रासदी क्या थी? जाने सभी महत्वपूर्ण तथ्य (Bhopal Gas Tragedy)

2 दिसंबर 1984की रात मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के निवासियों के लिए काली रात साबित हुयी। रात को अपने घरो में सोने की तैयारी कर रहे हजारों लोगो को यह अंदाजा भी नहीं था की यह रात उनकी आखिरी रात होने वाली है। 2-3 दिसंबर, 1984 को भोपाल की हवा में यूनियन कार्बाईड इंडिया लिमिटेड कंपनी की फैक्ट्री से घुली जहरीली गैस मिथाईल आइसोसाइनेट ने प्रदेश के हजारों निर्दोष लोगों की जान ले ली थी। दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के रूप में प्रचलित भोपाल गैस त्रासदी ने प्रदेश के कई मासूमों की साँसे छीन ली थी। यहाँ भी देखें -->> • भोपाल गैस त्रासदी क्या थी ? भोपाल गैस त्रासदी को देश ही नहीं अपितु दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के रूप में गिना जाता है जिसके कारण हजारो लोगो को काल-कलवित होना पड़ा था। 2 दिसंबर 1984की रात को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाईड इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी की कीटनाशक फैक्ट्री से जानलेवा मिथाईल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। इस हादसे के कारण भोपाल में मध्य रात्रि में ही हजारो लोगों की जान चली गयी थी। इस हादसे का सबसे दुखद पहलू यह था की इसके कारण सबसे अधिक मासूम बच्चों को मृत्यु हुयी थी। इस हादसे ने 2-3 दिसंबर, 1984 को मात्र दो दिनों में ही प्रदेश में हजारो जिन्दगियां लील ली गयी। बाद के वर्षो में जहरीली गैस के असर के कारण हजारों लोगो को विकलांगो की भांति जीवन यापन करना पड़ा था जिनमे अनेक लोग गंभीर शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से ग्रस्त हो गए थे। भोपाल गैस त्रासदी कब हुयी ? भोपाल गैस त्रासदी 2 दिसंबर 1984की रात को मध्यप्रदेश के भोपाल में घटित हुयी थी। इसका घटना के कारण भोपाल में हजारों लोगो की जान गयी थी। इस घटना में अनेक लोगों को अपनी जान गवाँनी पड़ी थ...

भोपाल गैस त्रासदी: 3 दशक बाद भी शहर के भूजल में मौजूद है रासायनिक ज़हर

यूनियन कार्बाइड को औपचारिक रूप से तो ख़त्म मान लिया गया, लेकिन जो ज़हर इस कारखाने ने भोपाल की ज़मीन में बोया, वो अब इस शहर की अगली नस्ल को अपनी चपेट में ले रहा है. फाइल फोटो: पीटीआई पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता हर सरकार दिखाती है. बड़े-बड़े मंत्रालय चलाती है, करोड़ों के बजट ले आती है. केंद्र में जहां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) काम करता है तो हर राज्य में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड काम कर रहे हैं. सार्वजनिक मंचों से देश के प्रधानसेवक स्वच्छ भारत अभियान का नारा दे रहे हैं. इस सारी कवायद के मूल में जो मुख्य बातें हैं वो यह कि स्वच्छ हवा में हम सांस ले सकें और स्वच्छ जल पी सकें. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 भी हर भारतीय को स्वस्थ वातावरण में रहने का अधिकार देता है. इसी अनुच्छेद 21 के तहत ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ऑफ इंडिया (एनजीटी) का भी गठन हुआ है. इन सभी सांस्थानिक कवायदों के बीच समय-समय पर सरकार और उसके विभिन्न विभाग पर्यावरण बचाओ का संदेश देने आयोजन करते ही रहते हैं. बावजूद इसके बीते तीन दशकों से से मध्यप्रदेश का भोपाल शहर धीरे-धीरे पर्यावरण के भीषणतम प्रकोप की ओर बढ़ रहा है. सरकारों के बयान इस पर कम ही आते हैं, लेकिन कम से कम वहां कार्यरत एनजीओ और कार्यकर्ताओं का तो यही मानना है और इसका कारण वही यूनियन कार्बाइड (यूका) कारखाना है, जिससे रिसी गैस ने भोपाल की हवा को इतना जहरीला कर दिया था कि हजारों लोग काल के गाल में समा गये थे. 1984 के उस हादसे के बाद कारखाना तो बंद हो गया, जिम्मेदार भी देश छोड़कर भाग गये. लेकिन उस कारखाने के अंदर रखे अन्य जहरीले रसायन और ठोस अवशिष्ट वहीं के वहीं रहे. आज तीन दशक बाद भी 340 मीट्रिक टन कचरा उस कारखाने के अंदर रखा हुआ है, जिसक...

Bhopal gas tragedy क्या पीड़ितों का मुआवजा बढ़ेगा, SC में सरकार ने क्या कहा? Bhopal Gas Tragedy: Will the compensation of the victims increase, what did the government say in SC?

2010 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव पिटीशन डाली थी, जिसमें मांग की गई थी कि, भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड सर्वाइवर परिवारों को 7844 करोड़ का अतिरिक्त मुआवजा दे. इस पर सुप्रीम कोर्ट में 20 सितंबर को सरकार के वकील ने सुनवाई के दौरान कहा कि, वो सरकार से राय लेकर बताएंगे. अब सरकार ने अपना रुख सुप्रीम कोर्ट को बता दिया है कि वो चाहते हैं कि कंपनी सर्वाइवर परिवारों को अतिरिक्त मुआवजा दे. जिसका मतलब है कि अब सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर आगे सुनवाई करेगा और कंपनी को तलब करेगा. इसके बाद तय होगा कि क्या मुआवजा बढ़ाया जाएगा, अगर हां तो कितना? इन परिवारों के लिए पहले मुआवजा तय किया गया था. दरअसल 14 फरवरी 1989 को अदालत ने 470 मिलियन डॉलर(750 करोड़ रुपये) का मुआवजा तय किया गया था. लेकिन सर्वाइवर परिवार इसे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं और केंद्र सरकार का कहना है कि, पहले का समझौता मृत्यु, चोटों और नुकसान की संख्या की गलत धारणाओं पर आधारित था. उसमें बाद के पर्यावरणीय नुकसान को ध्यान में नहीं रखा गया. भोपाल गैस सर्वाइवर्स के साथ काम करने वाले एक्टिविस्ट रचना ढींगरा ने द क्विंट के साथ बातचीत में सोमवार को कहा था कि, इस त्रासदी के सर्वाइवर परिवारों में कई लोग ऐसे हैं जिन्हें मुआवजे के तौर पर एक बार 25 हजार रुपये मिले हैं. उनके पास आय का कोई साधन नहीं बचा है, वो केवल मुआवजे पर निर्भर हैं. एक और भोपाल गैस त्रासदी की सर्वाइर शजिदा बी से द क्विंट ने बात की. जो भोपाल गैस कांड के वक्त वो 12 साल की थीं. अब उनके 4 बच्चे हैं. उन्होंने कहा कि, मेरे बेटे छोटे-मोटे काम करते हैं, लेकिन ज्यादा कमा नहीं पाते क्योंकि उनकी सांस फूल जाती है. हमारे फेफड़े कमजो...