Bhrantiman alankar

  1. अर्थालंकार
  2. भ्रांतिमान अलंकार Bhrantiman Alankar In Hindi
  3. संदेह और भ्रांतिमान अलंकार युग्म में अंतर
  4. भ्रांतिमान अलंकार
  5. अलंकार
  6. Bhrantiman Alankar Ki Paribhasha, भ्रांतिमान अलंकार की परिभाषा हिंदी में.


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अर्थालंकार

mukhy lekh: jahaan ek vastu ya prani ki tulana atyant sadrishy ke karan prasiddh vastu ya prani se ki jae, vahaan upama alankar hota hai. upama alankar ke char upamey - jisaki upama di jae arthath jisaka varnan ho raha hai. upaman - jisase upama di jae. sadharan dharm - upamey tatha upaman mean paya jane vala parampar saman gun. vachak shabd - upamey aur upaman mean samanata prakat karane vala shabd jaise- jyoan, sam, sa, si, tuly, naee. udaharan sukh-dukh ke madhur milan se yah jivan ho paripooran. phir ghan mean ojhal ho shashi, phir shashi mean ojhal ho ghan. • yahaan sukh-dukh aur shashi tatha ghan mean bimb-pratibimb bhav hai. alankar lakshan\pahachan chihn udaharan\ tippani upama bhinn padarthoan ka sadrishy pratipadan upama ke char aang- upamey\ prastut- jisaki upama di jay. upaman\aprastut- jisase upama di jay. saman dharm (gun)- upamey v upaman mean paya janevala ubhayanishth gun sadrishy vachak shabd- upamey v upaman ki samata batane vala shabd (sa, aisa, jaisa, jyoan, sadrish, saman). mukh mano chandr hai. (mano bodhak shabd) roopak upamey mean upaman ka arop (nishedharahit) mukh chandr hai. apahnuti upamey mean upaman ka arop (nishedhasahit) yah mukh nahian, chandr hai. atishayokti upamey ko nigalakar upaman ke sath abhinnata pradarshit karana (jahaan bahut badha-chadhakar lok sima se bahar ki bat kahi jay) yah chandr hai. ullekh vishay bhed se ek vastu ka anek prakar se varnan (ullekh). (1) usake mukh ko koee kamal, koee chandr kahata hai. (2) jaki rahi bhavan...

भ्रांतिमान अलंकार Bhrantiman Alankar In Hindi

1 • • • • जैसे नाच अचानक ही उथे मिनु पावस बन मोर । जानत हो नन्दित कारी यह दिसि नन्द किसोर ।। जैसे – अँधेरे में किसी ’रस्सी’ को देखकर उसे ’साँप’ समझ लेना भ्रांतिमान अलंकार है। भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण ओस बिन्दु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान। नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से। देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है। वृन्दावन विहरत फिरैं राधा नन्द किशोर। नीरद यामिनी जानि सँग डोलैं बोलैं मोर।। अधरों पर अलि मंडराते, केशों पर मुग्ध पपीहा। री सखि मोहि बचाय, या मतवारे भ्रमर सों। डस्यो चहत मुख आय, भरम भरी बारिज गुनै।। नाच अचानक ही उठे, बिनु पावस वन मोर। जानत ही नंदित करी, यह दिसि नंद किशोर।। अन्य अलंकार पढ़े Related Posts: • 150+ Kabir Ke Dohe In Hindi | कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ • Best 101+ Tulsidas Ke Dohe | तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित • 7 महाद्वीप के नाम और उनकी विशेषताएं Continents in Hindi • अलंकार किसे कहते हैं परिभाषा और उदाहरण सहित | Alankar kise… • छन्द की परिभाषा, भेद और उदाहरण Chhand in Hindi • मधुमेह (डायबिटीज) का इलाज होमियोपैथी आयुर्वेदिक

संदेह और भ्रांतिमान अलंकार युग्म में अंतर

कैघों व्योम बीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु वीर रस वीर तरवारि सी उघारी है। हनुमान की जलती हुई पूंछ को देखकर ऐसा लगता है था मानो आकाश मार्ग में अनेक धूमकेतु हैं या ऐसा लगता था मानो वीररस रूपी वीर ने अपनी तलवार म्यान से बाहर निकाली है जो चारों और चमक रही है। भ्रान्तिमान अलंकार में समानता के कारण एक वस्तु में दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है यथा- नाक का मोती अधर की कान्ति से बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से। देखकर सहसा हुआ शुक मौन है। सोचता है अन्य शुक यह कौन है? उर्मिला की नासिका की नथ का मोती अधरों की लालिमा से अनारदाने की भांति लग रहा है। उसे अनार का बीज समझकर यह तोता यह सोच रहा है कि यह नासिका रूपी तोते की चोंच में अनार का दाना है। इसीलिए यह पिंजरे का तोता सोच रहा है कि यह दूसरा तोता कौन सा है। अन्य अलंकार-युग्म में अंतर • • • • • सम्पूर्ण हिन्दी और संस्कृत व्याकरण • संस्कृत व्याकरण पढ़ने के लिए • हिन्दी व्याकरण पढ़ने के लिए • • • • •

भ्रांतिमान अलंकार

Table of Contents • • • • • • भ्रांतिमान अलंकार किसे कहते हैं ? परिभाषा – जब किसी पद में किसी सादृश्य विशेष के कारण उपमेय ( जिसकी तुलना की जाए) में उपमान ( जिससे तुलना की जाए) का भ्रम उत्पन्न हो जाता है तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार माना जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब किसी पदार्थ को देखकर हम उसे उसके समान गुणों या विशेषताओं वाले किसी अन्य पदार्थ (उपमान) के रूप में मान लेते हैं तो वहाँ भ्रांतिमान भूल से उपमान समझ लिया जाए। जैसे – अँधेरे में किसी ’रस्सी’ को देखकर उसे ’साँप’ समझ लेना भ्रांतिमान अलंकार है। भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण – 1.’’ओस बिन्दु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान।’’ प्रस्तुत पद में हंसिनी को ओस बिन्दुओं ( मोती ( भ्रांतिमान अलंकार है। 2.’’भ्रमर परत शुक तुण्ड पर, जानत फूल पलास। शुक ताको पकरन चहत, जम्बु फल की आस।।’’ 3.’’नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से। देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है।।’’ यहाँ नाक के आभूषण के मोती में अनार (दाडिम) के बीज का भ्रम उत्पन्न हो रहा है, अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है। 4.’’कपि करि हृदय विचारि, दीन्हि मुद्रिका डारि तब। जानि अशोक अंगार, सीय हरषि उठि कर गहेउ।।’’ यहाँ सीता को मुद्रिका में अशोक पुष्प (अंगार) का भ्रम उत्पन्न हो रहा है, अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है। 5. विधु वदनिहि लखि बाग में, चहकन लगे चकोर। वारिज वास विलास लहि, अलिकुल विपुल विभोर।।’’ प्रस्तुत पद में किसी चन्द्रमुखी नायिका को देखकर चकोरी की उसके मुख में चन्द्रमा का भ्रम हो रहा है तथा उसके वदन में कमल की सुगंध पाकर (समझकर) भ्रमर आनंद विभोर हो गया है। अतः यहाँ उपमेयों (मुख व सुवास) में उपमानों (चन्द्रमा व कमल-गंध) का भ्रम उत्पन...

अलंकार

अलंकार किसे किसे कहते हैं? अलंकार की परिभाषा क्या है? अलंकार कितने प्रकार के होते हैं? अलंकार के भेद एवं उदाहरण। शब्दालंकार एवं अर्थालंकार। अलंकार - Alankar in Hindi अलंकार– अलंकार शब्द का अर्थ है गहना, आभूषण या जेवर । परिभाषा - जिस प्रकार नारी आभूषणों को धारण कर के अपने आप को और ज्यादा सुन्दर बनाती हैं । उसी तरह कविगण अलंकार का उपयोग कर के अपने काव्य अथवा भाषा को भी सुन्दर बनाते हैं इसे ही अलंकार कहते हैं । नीचे उदाहरण के लिए कुछ काव्य पंक्तियाँ दी गयी हैं– १) कोमल कलाप कोकिल कमनीय कूकती थी । २) तीन बेर खाती थी, वे तीन बेर खाती हैं । इन पंक्तियों में शब्दों के चमत्कार का पूर्ण प्रयोग करके अभिव्यक्ति को सुन्दर बनाया गया हैं । पहले काव्य पंक्ति में‘ क ’ वर्ण अनेक बार आया हैं जिससे भाषा में चमत्कार उत्पन्न हुआ हैं । दूसरे काव्य पंक्ति में‘ तीन बेर ’ शब्द का दो बार प्रयोग किया हैं परन्तु दोनों का अर्थ अलग अलग हैं । पहले‘ तीन बेर ’ का अर्थ हैं–‘ तीन बार ’ (three times) जबकि दूसरे‘ तीन बेर ’ का अर्थ हैं–‘ तीन बेरों ( फल)’ के लिए किया गया हैं । एक ही शब्द को दो बार लिख कर पंक्ति कि और सुन्दरता बढाई गयी हैं । अलंकार के भेद - Kinds of Alankar / Types of Alankar काव्य के शब्द एवं अर्थ के आधार पर अलंकार के 2 प्रमुख भेद होते है। 1. शब्दालंकार (Shabd A lankar) जब किसी काव्य में शब्दों के प्रयोग से कविता में एक प्रकार का विशेष सौंदर्य और चमत्कार उत्पन्न हो , तो वहां शब्दालंकार होता है। जैसे- माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर। कर का मनका डारि दे , मन का मनका फेर। स्पष्टीकरण: यहाँ इस उदाहरण में मनका को ( मनका– माला का दाना , मनका– हृदय का) के लिए प्रयोग किया गया है। इस प्रकार मनका के ...

Bhrantiman Alankar Ki Paribhasha, भ्रांतिमान अलंकार की परिभाषा हिंदी में.

Table of Contents • • • Bhrantiman Alankar Ki Paribhasha, भ्रांतिमान अलंकार की परिभाषा- भ्रांतिमान अलंकार वह है जो अलंकार में उपमेय में उपमान के होने का भ्रम अथवा सम्भावना होती है वहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार होता है यानि की जब एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु से सम्बंधित भ्रम उत्पन्न हो जाता है वह भ्रांतिमान अलंकार कहलाता है। अर्तार्थ जब किसी पदार्थ को देखकर हम उसे उसके समान गुणों या विशेषताओं वाले किसी अन्य पदार्थ (उपमान) के रूप में मान लेते हैं तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार माना जाता है। Bhrantiman Alankar – भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण – बेसर-मोती-दुति झलक परी अघर पर अनि। पट पोंछति चुनो समुझि नारी निपट अयानि॥ अर्थ– नायिका अधरों पर पङी मोतियों की उज्ज्वल झलक को पान का चूना समझ लेती है और उसे पट से पोंछने का प्रयत्न करती है। ’’नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से। देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है।।’’ अर्थ– नाक के आभूषण के मोती में अनार (दाडिम) के बीज का भ्रम उत्पन्न हो रहा है, किंशुका कलिका जानकर, अलि गिरता शुक चोंच पर। शुक मुख में धरता उसे, जामुन का फल समझकर।।’’ अर्थ– भ्रमर को तोते की लाल चोंच में पलास के पुष्प का तथा तोते को भ्रमर में जामुन के फल का भ्रम उत्पन्न हो रहा है. बिल विचार कर नागशुण्ड में घुसने लगा विषैला साँप । काली ईख समझ विषधर को, उठा लिया तब गज ने आप॥ अर्थ– साँप को हाथी की सुँड में बिल का और हाथी को सांप में काले गन्ने का भ्रम दिखाया गया है. पाप महावर देन को नाइन बैठी आय। पुनि-पुनि जान महावरी एड़ी मोड़ित जाय।। अर्थ– यहाँ पर नाइन एड़ी की लालिमा को महावर समझकर भ्रम में पड़ जाती है, और सुन्दरी की एड़ी को मोड़ती जाती है. ...