Chol vansh history in hindi

  1. [PDF] चोल वंश का इतिहास
  2. मध्यकालीन भारत का इतिहास PDF Download in Hindi
  3. चोल वंश का इतिहास
  4. चोल साम्राज्य का इतिहास और जानकारी
  5. Chol Vansh Ka Itihas
  6. लार्ड विलियम बेंटिक का इतिहास
  7. आखिर कैसा था चोल वंश का इतिहास, किन


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[PDF] चोल वंश का इतिहास

History of Chol Vansh PDF: आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आप सभी के साथ चोल वंश का इतिहास पीडीऍफ़ को शेयर किया है, जिसे आप डाउनलोड करके अपने फोन या कंप्यूटर में पढ़ सकते है| History of Chol Vansh PDF PDF Name History of Chol Vansh PDF Language Hindi No. of Pages 8 Pages Size 4 MB Category Quality Excellent चोल वंश का इतिहास: चोल का अर्थ न्याय का देश होता है। जिसकी प्रथम जानकारी पाणिनी की रचना अष्टध्यायी से मिलती है। चोल पहले तमिलनाडु के पूर्वी भाग में था जिसकी राजधानी उरई-ऊर में है ऊरई-ऊर सूती वस्त्र के लिए प्रसिद्ध है। चोल वंश का राजकीय चिन्ह बाघ है। उस समय का सूती वस्त्र सांप की केचुली (पोआ) से भी पतले होते थे| चोल साम्राज्य कावेरी नदी के उपजाऊ मैदान पर बसा हुआ था कहा जाता है की कावेरी नदी का मैदान इतना उपजाऊ था की जितने में एक हाथी सोता है उतने में एक वर्ष का अनाज उपज जाता था जिसमे सात लोग आराम से बैठकर खा सकते थे।। इस वंश का पहला शासक उरवहप्परे था इस वंश का सबसे प्रति शासक कारकाल था जो श्रीलंका को जीत लिया था और श्रीलंका से 12,000 द्वार साथ में लाया और गंगा जल भी लाया कारकाल ने कावेरी नदी पर 160 km ए बांध बनवाया। कारीकाल ने पूहर बंदरगाह भी बनवाया। जिसे कावेरी पटनम कहते है। एलारा तथा पेरूनरक्किली अन्य शासक थे। 5 वी सदी आते-आते यह वंश कमजोर हो गया और बाद में सामंती जीवन जीने लगा। भारत का पहला बांध GRAND बांध था कारकाल पुहार नामक बंदरगाह (कावेरी पटनम) बनवाया। 8 वी सदी में पुनः चोलो का उदय हुआ। चोल वंश 9 वी सदी (तंजौर): प्रारंभ में पल्लवो के सामंत जीवन जीने लगे। पल्लवो के ध्वंशावेश में चोल वंश की नीव रखी 9 वी सदी के आरंभ में संगमकालीन चोल शाखा थीं। इसकी संस्थापक विजयालय था ज...

मध्यकालीन भारत का इतिहास PDF Download in Hindi

1.2 मध्यकालीन भारत का इतिहास Pdf Madhyakalin Bharat ka Itihas in Hindi PDF हम आपको इस टाँपिक से सम्बन्धित कुछ जानकारी प्रदान कर रहे तो आप लोग इस जानकारी को जरुर पढे तो हमने कुछ Example दिये है। तो आप लोगो को एक बार फिर से बता दे की यह नोट्स काफी महत्वपूर्ण है। यह महत्वपूर्ण इसलिए है। क्योकि ये बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाओ मे इससे Questions पुछे जाते है। और बहुत सी मात्रा मे इस टाँपिक से Questions पुछे जाते है। • मुगल शब्द की लेटिन भाषा के MONG शब्द से हुआ है जिसका अर्थ बहादुर होता है • मुगल वंश के शासक तुर्की नस्ल के चगताई शाखा से सम्बन्ध रखते थे, भारत में मुगल वंश की नींव 1526 ई, में जहीरुद्दीन बाबर के द्वारा डाली गई . • बाजौर और भेरा पर आक्रमण (1519 ई०) • पेशावर पर आक्रमण (1519 ईश्वर) • स्थालकोट पर आक्रमण (1520 ईसवी) • लाहौर और दीपालपुर पर आक्रमण (1524 ईसवी) • पानीपत की प्रथम लडाई • चौसा का युध्द • सूर वंश • मारवाड विजय • कलिंजर का युध्द • न्याय व्यवस्था • पानीपुत का द्वितीय लडाई • दीन ए इलाही धर्म • साम्राज्य विस्तार • हल्दी घाटी का युध्द • दक्षिण भारत की विजय • हिन्दी भाषा के कवि • अकबर के नवरत्न • नुरजहाँ • शाहजहाँ मध्यकालीन भारत का इतिहास (Madhyakaleen Bharat GK in Hindi) प्रश्न – भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम मुस्लिम शासक कौन था ? उत्तर – मुहम्मदउत्तर – बिनउत्तर – कासिम प्रश्न – मुहम्मदउत्तर – बिनउत्तर – कासिम के आक्रमण के समय सिंध का शासक कौन था ? उत्तर – दाहिर प्रश्न – मुहम्मद बिन कासिम ने कौनउत्तर – से क्षेत्र जीते ? उत्तर – सिन्ध एवं मुल्तान प्रश्न – भारत पर पहला तुर्की आक्रमण किसने किया ? उत्तर – 986 ईं में गजनी के सुबुक्तगीन ने प्रश्न – महमूद गजनवी किसका पुत्र ...

चोल वंश का इतिहास

चोल वंश का परिचय चोल वंश की स्थापना बहुत प्राचीन समय में हो गई थी क्योंकि सम्राट अशोक के अभिलेखों में इस वंश का उल्लेख किया गया है | ' चोल वंश का प्राचीन इतिहास' उपलब्ध न होने के कारण इतिहासकारों ने 9वी शताब्दी से चोल वंश के इतिहास को प्रारम्भ किया है| ' चोल वंश की स्थापना' 9वी शताब्दी में विजयालय के द्वारा की गई थी परन्तु विजयालय से पहले भी चोल वंश में कई राजा हुए जिसमें कारिकाल का नाम उल्लेखनीय है| ' चोल वंश की प्रारम्भिक राजधानी' पुहर में थी जिसे आज पुम्पुहर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के मयीलाडूतुरै जिले में है| पुहर के बाद उरैयुर को राजधानी बनाया गया जिसे आज वौरेयुर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले के पास है | उरैयुर के बाद तंजौर को राजधानी बनाया गया जिसे आज तंजाबुर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के पूर्वी तट पर स्थित है| तंजौर के बाद गंगेकोण्डचोलपुरम को राजधानी बनाया गया जो तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले में है| ' चोल वंश का राजकीय चिन्ह बाघ' है जो उनके ध्वज पर आज भी देखा जा सकता है| ' चोल वंश की राजकीय भाषा' तमिल और संस्कृत थी परन्तु' चोल राजाओं के अभिलेख' तमिल, तेलगु और संस्कृत भाषा में प्राप्त हुए हैं| चोल वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत अभिलेख 1. सम्राट अशोक का दूसरा और सातवा अभिलेख - 2. तंजौर मंदिर लेख – यह लेख राजराज प्रथम का है और इसमें उनके शासनकाल की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया गया है| 3. तिरुवेंदिपुरम अभिलेख – यह अभिलेख राजराज तृतीय का है और इसमें चोल वंश के उत्कर्ष का उल्लेख किया गया है| 4. मणिमंगलम् अभिलेख – यह अभिलेख राजाधिराज प्रथम का है और इसमें श्रीलंका पर विजय पाने का उल्लेख किया गया है| साहित्य 1. पेरियपुराणम्– इस ग्रन्थ की ...

चोल साम्राज्य का इतिहास और जानकारी

Chol Rajvansh in hindi/चोल प्राचीन भारत का एक राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। चोल शासकों ने श्रीलंका पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और मालदीव द्वीपों पर भी इनका अधिकार था। इनका साम्राज्य 36 लाख वर्गकिलोमीटर तक फैला हुआ था। चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की थी। चोल साम्राज्य का इतिहास – Chola Dynasty History in Hindi चोल साम्राज्य का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। चोल शासकों ने श्रीलंका पर विजय प्राप्त कर ली थी और मालदीव द्वीपों पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव कलिंग और तुंगभद्र दोआब पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली नौसेना थी और ये दक्षिण पूर्वी एशिया में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके। चोल साम्राज्य दक्षिण भारत का निःसन्देह सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। अपनी प्रारम्भिक कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के बाद क़रीब दो शताब्दियों तक अर्थात बारहवीं ईस्वी के मध्य तक चोल शासकों ने न केवल एक स्थिर प्रशासन दिया, वरन कला और साहित्य को बहुत प्रोत्साहन दिया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि चोल काल दक्षिण भारत का ‘स्वर्ण युग’ था। चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की, जो आरम्भ में पल्लवों का एक सामंती सरदार था। उसने 850 ई. में तंजौर को अपने अधिकार में कर लिया और पाण्ड्य राज्य पर चढ़ाई कर दी। चोल 897 तक इतने शक्तिशाली हो गए थे कि, उन्होंने पल्लव शासक को हराकर उसकी हत्या कर दी और सारे टौंड मंडल पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद पल्लव, इतिहास के पन्नों से विलीन हो गए, पर चोल शासकों को रा...

Chol Vansh Ka Itihas

Table of Contents • • • • • चोल वंश (Chol Vansh)- • भारत में स्थानीय स्वशासन का प्रारम्भिक उपयोग चोल प्रशासन में दिखायी देता है। • शक्तिशाली नौ सेना का गठन करने वाला प्रथम राजवंश चोल राजवंश कहलाता है। • प्रारम्भिक रूप से चोल पल्लवों के सामन्त थे तथा इनके स्थान पर नये राजवंश की स्थापना की। चोलों का स्थानीय स्वशासन- • परान्तक-I के उत्तरमेरूर अभिलेखों से चोल स्थानीय स्वशासन की जानकारी प्राप्त होती है। स्थानीय स्वशासन की ईकाईयाँ- • राज्य- देश • मण्डलम्- प्रान्त • कोट्टम (वलनाडु)- जिला • नाडु- तहसील • कुर्रम- ग्राम समूह • ग्राम- गाँव प्रमुख शासक- • विजयालय (850 ई.-871 ई.)- चोल वंश का संस्थापक (Chol Vansh Ka Sansthapak) जो पल्लवों का सामन्त था। • आदित्य-I (871 ई.-907 ई.)- इसने पल्लवों को पूर्णतया पराजित करके स्वतंत्र साम्राज्य की स्थापना की। इसे चोल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। • परान्तक-I (907 ई.-953 ई.)- परान्तक-I के उत्तरमेरूय अभिलेखों से चोल स्थानीय स्वशासन की जानकारी प्राप्त होती है। • परान्तक-I ने वेल्लूर के युद्ध में पाण्डेय शासक को पराजित करके मदुरैकोण्ड की उपाधि धारण की। नोट- पाण्ड्य राज्य की राजधानी मुदरै थी। • उत्तमचोल- चोल साम्राज्य में सोने के सिक्के चलाने वाला प्रथम शासक उत्तमचोल था। • राजराजा- (985 ई.-1014ई.)- राजराजा-प् ने तंजौर में (तंजावुर) प्रसिद्ध राजराजेश्वर या वृहदेश्वर मन्दिर बनवाया। • यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा मन्दिर है। • राजराजा-I ने मण्डलूर के युद्ध में चेर शासक को पराजित किया। तथा माण्डलूरशालैकमरूत की उपाधि धारण की। • राजराजा-I ने श्रीलंका के शासक को हराकर उत्तरी श्रीलंका को छीन लिया तथा उसे चोल साम्राज्य का एक प्रान्त बनाया। इसका नाम...

लार्ड विलियम बेंटिक का इतिहास

लार्ड विलियम बेंटिक का इतिहास *लार्ड विलियम बेंटिक के कार्यकाल को शांति और सुधारों का कार्यकाल कहा जाता है | *1806 में हुए वेल्लोर विद्रोह के समय लार्ड विलियम बेंटिक मद्रास के गवर्नर थे | *लार्ड विलियम बेंटिक के ही कार्यकाल में राजा राम मोहन राय के सहयोग से 14 दिसंबर 1829 को एक कानून बनाकर सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया था क्योंकि उस वक्त की वार्षिक रिपोर्टों में प्रत्येक वर्ष 700 से ज्यादा महिलाओं को सती प्रथा के नाम पर जिन्दा जला दिया जाता था | *लार्ड विलियम बेंटिक के द्वारा शुरुआत में यह कानून सिर्फ बंगाल की महिलाओं के लिए ही लागू किया गया था | *लार्ड विलियम बेंटिक के ही कार्यकाल में ठगी प्रथा का अंत किया गया था, ठगी प्रथा ज्यादातर मध्यप्रदेश के क्षेत्रों में ही होती थी इसीलिए लार्ड विलियम बेंटिक ने जबलपुर में एक औधोगिक विद्यालय की स्थापना की, जहाँ पर ठगों को (ऐसे व्यक्ति जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम हो) शिक्षित करके उन्हें सभ्य व्यक्ति बनाने का काम किया जाता था | *लार्ड विलियम बेंटिक के द्वारा 1830 तक ठगी प्रथा का अन्त पूरी तरह से कर दिया गया था | *1831 में लार्ड विलियम बेंटिक ने मैसूर को अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बना लिया था | *लार्ड कार्नवालिस के कार्यकाल में भारतीय व्यक्तियों को सरकारी पदों पर नियुक्त करना बंद कर दिया गया था परन्तु 1833 में लार्ड विलियम बेंटिक ने भारतीय व्यक्तियों को फिर से सरकारी पदों पर नियुक्त करना शुरू कर दिया था | 1833 का चार्टर एक्ट 1.इसी एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया था और इस तरह से भारत का पहला गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक को माना जाता है | 2.इस एक्ट के द्वारा ईस्ट इण्डिया कंपनी के सभी व्यापारिक अ...

आखिर कैसा था चोल वंश का इतिहास, किन

भारत का इतिहास काफ़ी पुराना है। हमारे देश में एक नहीं बल्कि कई वंशों और उनके शासकों ने कई वर्षों तक शासन किया, उन्हीं में से एक वंश था चोल राजवंश। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में, तमिल चोल शासकों ने ९वीं शताब्दी से १३वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। चोल साम्राज्य के २० राजाओं ने दक्षिण एशिया के एक बड़े हिस्से पर लगभग ४०० साल तक शासन किया। मेगस्थनीज की इंडिका और अशोक के अभिलेख में भी, चोलों का उल्लेख किया गया है। तो चलिए ज़रा विस्तार से जानते हैं चोल वंश के बारे में। चोल वंश के संस्थापक और उनका इतिहास चोल पल्लव के सामंत हुआ करते थे। चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय चोल ने की, जो पल्लवों के एक सामंती सरदार थे। विजयालय ने ९वीं शताब्दी (८५० – ८७१ ईस्वी) में चोल वंश की स्थापना की थी। उसने ८५० ईस्वी में तंजौर को अपने अधिकार में कर लिया और पाण्ड्य राज्य पर चढ़ाई कर दी। ८९७ में विजयालय चोल ने पल्लव शासक को हराकर उसकी हत्या कर दी और सारे टौंड मंडल पर अपना अधिकार कर लिया। नौवीं शताब्दी के अंत तक चोलों ने पूरे पल्लव साम्राज्य को हराकर, पूरी तरह से तमिल राज्य पर अपना कब्जा कर लिया। ९८५ ईस्वी में शक्तिशाली चोल राजा अरुमोलीवर्मन ने अपने आपको राजराजा प्रथम घोषित किया, जो आगे चलकर चोल शक्ति को चरमोत्कर्ष पर ले गया। चोल वंश के पहले प्रतापी राजा राजराजा ने अपने ३० साल के शासन में चोल साम्राज्य को काफी विस्तृत कर लिया था। लेकिन चोल शासकों को राष्ट्रकूटों के विरुद्ध भयानक संघर्ष करना पड़ा। राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने ९४९ ईस्वी में चोल सम्राट परान्तक प्रथम को पराजित किया और चोल साम्राज्य के उत्तरी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। इससे चोल वंश को धक्क...