Dasha mata ki kahani

  1. Dasha Mata katha 2021 : दशा माता व्रत आज, पढ़ें पौराणिक कथा
  2. दशा माता की कथा। दशा माता की कहानी । Dasha Mata Ki Kahani In Hindi – दशा माता की कथा। दशा माता की कहानी । Dasha Mata Ki Kahani In Hindi
  3. दशा माता की कहानी व व्रत कथा पढ़ें
  4. दशामाता पर्व : पढ़ें पौराणिक व्रत कथा
  5. पांच दशा माता की कहानियां
  6. Dasha Mata Vrata 2023
  7. दशा माता व्रत की कहानी 202
  8. दशा माता व्रत की कहानी नल दमयंती वाली


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Dasha Mata katha 2021 : दशा माता व्रत आज, पढ़ें पौराणिक कथा

दशा माता व्रत की प्रामाणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में राजा नल और दमयंती रानी सुखपूर्वक राज्य करते थे। उनके दो पु‍त्र थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी। एक दिन की बात है कि उस दिन होली दसा थी। एक ब्राह्मणी राजमहल में आई और रानी से कहा- दशा का डोरा ले लो। बीच में दासी बोली- हां रानी साहिबा, आज के दिन सभी सुहागिन महिलाएं दशा माता की पूजन और व्रत करती हैं तथा इस डोरे की पूजा करके गले में बांधती हैं जिससे अपने घर में सुख-समृद्धि आती है। अत: रानी ने ब्राह्मणी से डोरा ले लिया और विधि अनुसार पूजन करके गले में बांध दिया।

दशा माता की कथा। दशा माता की कहानी । Dasha Mata Ki Kahani In Hindi – दशा माता की कथा। दशा माता की कहानी । Dasha Mata Ki Kahani In Hindi

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का पूजन एवं व्रत किया जाता है और दशा माता की कथा( दशा माता की कहानी) सुनी जाती हैं। होली के अगले दिन से ही इसका पूजन प्रारंभ हो जाता है, जो दसवें दिन समाप्त होता है। प्रतिदिन प्रातः स्त्रियां स्नानादि करके पूजन की सामग्री लेकर पूजा करती है l सर्वप्रथम दीवार पर साथिया (स्वत्विक) बनाते हैं । फिर मेहंदी और कुमकुम से दस दस बिंदिया दीवार पर ही लगाते हैं l।फिर पहले स्वास्तिक के रूप में गणपति जी का फिर दस बिंदिओं के रूप में दशा माता की रोली, मोली, चावल, सुपारी,धूप ,दीप, अगरबत्ती व नैवेद्य से पूजन कर हैं।पूजन के पश्चात प्रतिदिन दशा माता की कथा कहने व सुनने का विधान है।इस दिन एक समय भोजन करके व्रत रखने का विधान है। दशा माता का पूजन प्रत्येक स्त्री सुहागिन या विधवा सबको करना चाहिए ,क्योंकि यह पूजन एवं व्रत घर की दशा स्थिति को सुखी समृद्ध रखने हेतु किया जाता है । पूजन में एक विशेष बात होती है की एक हल्दी में रंगा दस गांठे में लगा हुआ धागा होता है। जिसको दशा माता की बेल कहते हैं इस बेल को पूजन के समय दशा माता को चढ़ा कर पुनः ले लेते हैं। इसको गले में धारण करने का विधान है।इस वर्ष धारण किया गया धागा अगले वर्ष उतार कर पूजा करके पुनः नई बेल धारण करते हैं। दशा माता की कथा। दशा माता की कहानी दशा माता की कथा: दशा माता का व्रत चेत्र कृष्ण दशमी को किया जाता है । यह व्रत घर की दशा के लिए किया जाता है। सुहागन औरतें इस दिन डोरा लेती हैं।सफेद कच्चे सूत की कोकड़ी को रंग लेती हैं। 10 तार का डोरा लेकर उसमें 10 गाठें लगा देते हैं। डोरी को जलती हुई होली दिखाकर पहन लेते हैं। दस गेंहू के आखे लेकर कहानी सुनते हैं। एक कहानी सुनकर एक आखा नीचे रख देती हैं।इस प्रका...

दशा माता की कहानी व व्रत कथा पढ़ें

यह भी पढ़ें – दशा माता की व्रत विधि दशा माता का व्रत एवं पूजन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। व्रत और पूजन के साथ-साथ दशा माता की कहानी पढ़ने और सुनने का भी अत्यधिक महत्व है। इस व्रत में होली के दूसरे दिन से पूजन प्रारंभ करके दसवे दिन समापन किया जाता है। व्रत करने वाली स्त्री प्रातः स्नानादि करके पूजन सामग्री एकत्रित करके पूजा करती है और दशा माता की कथा पढ़ती है। पूजन विधि कुछ इस प्रकार है: सबसे पहले घर की कोई स्वच्छ दीवार चुनकर उस पर स्वास्तिक बनाएं। तत्पश्चात स्वस्तिक के पास मेहँदी एवं कुमकुम से १०-१० बिंदियां बनाएं। स्वस्तिक की जानें दशा माता की कहानी दशा माता की कहानी में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, परन्तु राजा नल और रानी दमयंती की कहानी मुख्य्तः पढ़ी जाती है। यहाँ हम राजा नल और दमयंती की प्रचलित कहानी का विवेचन करेंगे। दशा माता की कथा कुछ इस प्रकार है: एक समय की बात है, नरवलकोट नामक राज्य में राजा नल और रानी दमयंती अपने २ पुत्रों, पुत्रवधुओं और पौत्रों के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनके राज्य में प्रजा भी धन धान्य से संपन्न और सुखी थी। एक दिन राजमहल में एक ब्राह्मणी आई और रानी से बोली- हे रानी! दशा का डोरा ले लो, इसकी पूजा करके अपने गले में बाँध लेना जिससे आपके घर में सुख समृद्धि बनी रहेगी। ऐसा सुनकर रानी ने डोरा ले लिया और विधि अनुसार पूजन करके अपने गले में बांध लिया। एक दिन राजा का ध्यान रानी के गले में बंधे उस डोरे पर गया और उन्होंने आश्चर्य से पूछा- रानी आपने इतने हीरे जवाहरात के बीच में ये मामूली सा धागा क्यों पहन रखा है। और रानी के कुछ बोलने से पहले ही राजा ने धागे को तोड़कर ज़मीन पर फेंक दिया। रानी ने दौड़कर धागे को उठाया और उसे पा...

दशामाता पर्व : पढ़ें पौराणिक व्रत कथा

दशामाता व्रत की प्रामाणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में राजा नल और दमयंती रानी सुखपूर्वक राज्य करते थे। उनके दो पु‍त्र थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी। एक दिन की बात है कि उस दिन होली दसा थी। एक ब्राह्मणी राजमहल में आई और रानी से कहा- दशा का डोरा ले लो। बीच में दासी बोली- हां रानी साहिबा, आज के दिन सभी सुहागिन महिलाएं दशा माता की पूजन और व्रत करती हैं तथा इस डोरे की पूजा करके गले में बांधती हैं जिससे अपने घर में सुख-समृद्धि आती है। अत: रानी ने ब्राह्मणी से डोरा ले लिया और विधि अनुसार पूजन करके गले में बांध दिया। कुछ दिनों के बाद राजा नल ने दमयंती के गले में डोरा बंधा हुआ देखा। राजा ने पूछा- इतने सोने के गहने पहनने के बाद भी आपने यह डोरा क्यों पहना? रानी कुछ कहती, इसके पहले ही राजा ने डोरे को तोड़कर जमीन पर फेंक दिया। रानी ने उस डोरे को जमीन से उठा लिया और राजा से कहा- यह तो दशामाता का डोरा था, आपने उनका अपमान करके अच्‍छा नहीं किया। अब जैसे-तैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे कुछ ही दिनों में राजा के ठाठ-बाट, हाथी-घोड़े, लाव-लश्कर, धन-धान्य, सुख-शांति सब कुछ नष्ट होने लगे। अब तो भूखे मरने का समय तक आ गया। एक दिन राजा ने दमयंती से कहा- तुम अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाओ। रानी ने कहा- मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। जिस प्रकार आप रहेंगे, उसी प्रकार मैं भी आपके साथ रहूंगी। तब राजा ने कहा- अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में चलें। वहां जो भी काम मिल जाएगा, वही काम कर लेंगे। इस प्रकार नल-दमयंती अपने देश को छोड़कर चल दिए। चलते-चलते रास्ते में भील राजा का महल दिखाई दिया। वहां राजा ने अपने दोनों बच्चों को अमानत के तौर पर छोड़ दिया। आगे चले तो रास्ते में राजा के मित...

पांच दशा माता की कहानियां

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Dasha Mata Vrata 2023

R E L A T E D • • • The last and important day in Dashamata Vrat is the tenth day of Krishna Paksha in Dashamata Vrat is observed in the honor of Dasha Maa and other folk deities like Nagbai Maa and Momai Maa. The images of the Goddesses worshipped for ten days and immersed on the tenth day with utmost gaiety. The women worship the Goddess to improve their condition in terms of health, wealth, social status, children, etc.. In Gujarat and some other Western parts of India, Dasha Mata Vrat is also worshipped in Panchang, 17 March 2023 Suryodayam (Sunrise) : 06:18 AM Suryastama (Sunset) : 06:20 PM Chandrodayam (Moonrise) : 03:47 AM, Mar 18 Chandrastama (Moonset) : 01:41 PM Today’s Panchangam: Tithi : Dashami upto 02:06 PMEkadashi Nakshatra : Uttara Ashadha upto 02:46 AM, Mar 18Shravana Yoga : Vishti upto 02:06 PM Bava upto 12:42 AM, Mar 18 Balava Karana : Variyana upto 06:59 AM Parigha upto 03:33 AM, Mar 18 Shiva Weekday : Shukrawara Paksha : Krishna Paksha Samvat: Shaka Samvat : 1944 Shubhakruth Chandramasa : Chaitra – Purnimanta Phalguna – Amanta Vikram Samvat : 2080 Nala Gujarati Samvat : 2079 Aananda Shubh Muhurat: Abhijit Muhurat : 11:55 AM to 12:43 PM Amrit Kalam : 08:54 PM to 10:22 PM Time to avoid: Rahu Kalam : 10:48 AM to 12:19 PM Yamaganda : 03:19 PM to 04:50 PM Gulikai Kalam : 07:48 AM to 09:18 AM Dur Muhurtam : 08:42 AM to 09:30 AM 12:43 PM to 01:31 PM Varjyam : 12:07 PM to 01:35 PM

दशा माता व्रत की कहानी 202

दशा माता व्रत की कहानी दशा माता चैत्र के महीने में कृष्ण पक्ष की रात में ब्राह्मण नगरी में सूत की कुकडी से बने डोरे दे रहा था | रानी महल के झरोखे में बैठी थी | रानी ने दासी से कहा ब्राह्मण को बुलाकर पूछो की वह नगरी में काहे का डोरा दे रहा हैं | दासी ने पूछा तो ब्राह्मण बोला चेत्र कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशामाता व्रत हैं इसलिए दशामाता व्रत के डोरा नगरी में दे रहा हूँ | रानी ने भी ब्राह्मण से पूछा इस व्रत को करने से क्या होता हैं | तब ब्राह्मण ने कहा -इस व्रत को करने से अन्न , धन , सुख – सम्पति आती हैं | प्रतिदिन प्रात: स्त्रियाँ स्नानादि से निवर्त हो पूजन सामग्री ले कर दशामाता का पूजन करती हैं | एक पाटे [ चोकी ] पर पिली मिट्टी से एक दस कंगूरे वाला गोला बनाती हैं | फिर उन दस कगुरों पर रोली ,काजल , मेहँदी से टिकी [ बिन्दी ] लगा कर , उन पर दस गेहूं के आँखे रख कर , सुपारी के मोली लपेट कर गणेशजी बना कर रोली , मोली , मेहँदी , चावल से गणेश जी का पूजन कर दशामाता की कहानी सुनती हैं ऐसा प्रतिदिन दस दिन तक करती हैं | जों सूत की कुकडी हल्दी की गांठ होलिका दहन में दिखाती हैं उसी कुकडी को दस दिन कहानी सुनाकर पूजन कर दस तार का डोरा बनाकर उस पर दस गांठ लगाकर कहानी सुनने के बाद गले में पहन लेती हैं , अगली दशामाता व्रत तक पहने रहते हैं ,फिर नया डोरा बनाकर पूजन कर दूसरा सूत का डोरा पहन लेती हैं | इस दिन व्रत रखा जाता हैं एक ही समय भोजन करते हैं | फिर रानी ने ब्राह्मण से डोरा ले लिया दशामाता की पूजा कर डोरा अपने गले में धारण कर लिया | | राजाजी नगर भ्रमण से आये रानी के गले में कच्चे सूत का डोरा पहने देखा पूछा ये गले में सूत का डोरा क्यों पहना हैं ? अपने तो शाही ठाठ हैं | राजा ने रानी से डोरा...

दशा माता व्रत की कहानी नल दमयंती वाली

दशा माता की कहानी Dasha mata vrat ki katha kahani व्रत के समय कही सुनी जाती है। इससे व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। दशा माता के व्रत करने और कच्चे सूत का डोरा पहनने की विधि जानने के लिए इस वर्ष दशा माता का व्रत मंगलवार , 6 अप्रैल 2021 को किया जायेगा। दशा माता के व्रत में नल दमयंती की कहानी विशेष रूप से कही जाती है जो बहुत लोकप्रिय है। यहाँ नल दमयंती की सम्पूर्ण कहानी लिखी गई है जिसे पढ़कर दशा माता के व्रत का लाभ उठायें। दशा माता या सांपदा की कहानी इस प्रकार है – दशा माता की कहानी – Dasha Mata ki kahani नल नाम का एक राजा था। वह प्रजा का पूरा ध्यान रखता था और प्रजा भी उसे बहुत मान देती थी। उसकी रानी का नाम दमयंती था और वह बहुत धार्मिक प्रवृति की थी। उनके दो पुत्र थे। यह कहानी यू ट्यूब पर सुनने के लिए क्लिक करें – एक बार रानी ने दशा माता का व्रत किया और दस गांठों वाला कच्चे सूत का डोरा गले में पहना। राजा की नजर उस डोरे पर पड़ी तो उसे अच्छा नहीं लगा और उसने डोरे को तोड़ कर फेंक दिया। इससे दशा माता क्रुद्ध हो गई। कुछ ही समय बाद शत्रु राजा ने आक्रमण करके राजा नल को परास्त कर दिया और उनकी सारी धन संपत्ति पर अधिकार कर लिया ( dasha mata ki kahani ….) नल दमयंती और उनके पुत्र बेघर हो गये। पूरा परिवार इधर उधर भटकने लगा। कुछ ही समय में उनके वस्त्र मैले कुचैले हो गये और कई जगह से फट गये। भूख से बच्चे व्याकुल होने लगे। चलते चलते उन्हें एक बंजारों की टोली मिली। बंजारों ने दया करके बच्चों को खाना कपड़े वगैरह दिए। राजा ने निवेदन करके बच्चों को बंजारों के साथ छोड़ दिया ताकि वे सुरक्षित रहें। राजा नल ने उन्हें अपना परिचय नहीं दिया। राजा रानी आगे बढ़े। रास्ते में राजा की बहन का ससुराल वाला गां...

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