Dashrath krit shani stotra in hindi

  1. शनि देव के मुख से जानें, उन्हें खुश करने का उपाय
  2. दशरथ कृत शनि स्तोत्र । Dashrath Krit Shani Stotra Hindi
  3. राजा दशरथ कृत Shani Stotra
  4. शनिवार को करें शनि स्तोत्र का पाठ अवश्‍य मिलेगी शनि के कोप से मुक्‍ति


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शनि देव के मुख से जानें, उन्हें खुश करने का उपाय

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ Story of Shani dev and King Dashrath: प्राचीनकाल की बात है जब ज्योतिषियों ने गणना की तो पाया कि शनैश्चर कृतिका के अंत में जा पहुंचे हैं। अत: उन्होंने महाराज दशरथ को सूचित किया ‘‘राजन इस समय शनि रोहिणी का भेदन करके आगे बढ़ेंगे, यह उग्र शाटक नामक योग है जो सभी के लिए भयंकर है, इससे भयानक दुर्भिक्ष फैलेगा।’’ यह सुनकर राजा दशरथ ने मंत्रिपरिषद की बैठक की। उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा, ‘‘इस संकट को रोकने के लिए क्या उपाय किया जाए?’’ वशिष्ठ जी बोले, ‘‘राजन, यह रोहिणी प्रजापति ब्रह्मा जी का नक्षत्र है, इसका भेद हो जाने पर प्रजा कैसे रह सकती है? ब्रह्मा और इंद्र आदि के लिए भी यह योग असाध्य है।’’ वशिष्ठ जी की बात सुनकर दशरथ असमंजस की स्थिति में पहुंच गए। अंत में उन्होंने मन में साहस किया तथा दिव्य धनुष लेकर रथ में सवार हो वे अत्यंत वेग से नक्षत्रमंडल में पहुंच गए। रोहिणी पृष्ठ सूर्य से सवा लाख योजन ऊपर है। वहां पहुंच कर दशरथ ने धनुष को खींचा और उस पर संहारास्त्र का संधान कर दिया। वह अस्त्र अति भयंकर था। उसे देख कर शनि भयभीत हो गए फिर उन्होंने हंसते हुए महाराज दशरथ से कहा, ‘‘राजन, आपका महान पुरुषार्थ शत्रु को भय पहुंचाने वाला है। मेरी दृष्टि में आकर देवता, असुर, मनुष्य सबके सब भस्म हो जाते हैं लेकिन आप बच गए। अत: राजन आपके तेज, पौरुष और वीरता से मैं प्रसन्न हूं। आप वर मांगिए, आप जो कुछ मांगेंगे, मैं अवश्य दूंगा।’’ Dasharatha Kruta Shani Stotram: तब दशरथ ने कहा, ‘‘शनिदेव, जब तक नदियां और समुद्र हैं जब तक सूर्य और चंद्रमा सहित पृथ्वी स्थित है तब तक आप रोहिणी का भेदन करके आगे न बढ़ें, साथ ही कभी दुर्भिक्ष न करें।’’ शनि ने वरदान देते हुए कहा, ‘‘एवमस्...

दशरथ कृत शनि स्तोत्र । Dashrath Krit Shani Stotra Hindi

Table of Contents • • • • • • Dashrath Krit Shani Stotra Hindi प्राचीन काल में एक प्रसिद्ध चक्रवती राजा थे जिनका नाम दशरथ था। राजा के कार्य से राज्य की प्रजा सुखी जीवन यापन कर रही थी हर तरफ सुख और शांति का माहौल था। एक समय की बात है की एक दिन ज्योतिषियों ने शनि को कृत्तिका नक्षत्र के अन्तिम चरण में देखकर कहा कि अब अब शनि रोहिणी नक्षत्र का भेदन कर जायेगा। जिसे रोहिणी-शकट-भेदन भी कहा जाता हैं। शनि का रोहणी में जाना देवता और असुर दोनों ही के लिये बहोत ही कष्टकारी और भय प्रदान करनेवाला है तथा कहा जाता है की रोहिणी-शकट-भेदन से बारह वर्ष तक अत्यंत दुःखदायी अकाल पड़ता है। जब राजा ने ज्योतिषियों की यह बात सुनी, तथा इस बात से अपने प्रजा को व्याकुल देखा तब राजा दशरथ वशिष्ठ ऋषि तथा प्रमुख ब्राह्मणों से कहने लगे: हे ब्राह्मणों! इस समस्या का कोई तो समाधान शीघ्र ही मुझे बताइए। इस पर ऋषि वशिष्ठ जी कहने लगे: शनि के रोहिणी नक्षत्र में भेदन होने से प्रजाजन सुखी कैसे रह सकते हें। इसके योग के दुष्प्रभाव से तो ब्रह्मा एवं इन्द्रादिक देवता भी रक्षा करने में असमर्थ हैं। वशिष्ठ जी के यह वचन सुनकर राजा सोचने लगे कि यदि वे इस संकट की घड़ी को न टाला गया तो उन्हें कायर कहा जाएगा। अतः राजा विचार करके और साहस बटोरकर दिव्य धनुष तथा दिव्य आयुधों से युक्त होकर अपने रथ को वेग की गति से चलाते हुए चन्द्रमा से भी 3 लाख योजन ऊपर नक्षत्र मण्डल में ले गए। रत्नों तथा मणियों से सुशोभित स्वर्ण-निर्मित रथ में बैठे हुए महाबली राजा ने रोहिणी के पीछे आकर रथ को थाम लिया। श्वेत अश्वो से युक्त और ऊँची-ऊँची ध्वजाओं से सुशोभित मुकुट में जड़े हुए बहुमुल्य रत्नों से प्रकाशमान राजा दशरथ उस समय आकाश में दूसरे सूर्य की के समान च...

राजा दशरथ कृत Shani Stotra

Dashrath Shani Stotra in Hindi शनिदेव को प्रसन्न करने का एक आसान उपाय है. लोग शनिदेव को मनाने के लिए Snahi Beej Mantra का जाप करते हैं और कुछ लोग Snahi Dev Chalisa का भी जाप करते हैं. हम अपने पाठकों को बताना चाहेंगे की इनमें से Dashrath Shani Stotra एक परम शक्तिशाली स्तोत्र है. इसीलिए हम आपको दशरथ कृत शनि स्तोत्र हिंदी में पीडीएफ डाउनलोड के लिए भी प्रदान कर रहे हैं आइये इसका स्मरण करें- नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च । नमो विशालनेत्रय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥ नम: पुष्कलगात्रय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥3॥ नमस्ते कोटराक्षाय दुख्रर्नरीक्ष्याय वै नम: । नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥ नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥ देवासुरमनुष्याश्च सि विद्याधरोरगा: । त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:॥9॥ प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत । एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥ इति श्री दशरथकृतं शनि स्तोत्रं SHANI STOTRAM IN HINDI हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण् वाले। कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले॥ स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे। सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे॥ स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥ हे दाढी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले। हे दीर्घ नेत्रवाले, शुष्कोदरा निराले॥ भय आकृतितुम्हारी, सब पापियों को मारे। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥ हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले। कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले॥ तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥ हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा। हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ॥ हे भक्तों क...

शनिवार को करें शनि स्तोत्र का पाठ अवश्‍य मिलेगी शनि के कोप से मुक्‍ति

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2 नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3 नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4 नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5 अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते। नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6 तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च। नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:। 7 ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे। तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8 देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:। त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9 प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे। एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।10 इस स्तोत्र का अर्थ जिनके शरीर का रंग भगवान् शंकर के समान कृष्ण तथा नीला है उन शनि देव को मेरा नमस्कार है, इस जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप शनैश्चर को पुनः पुनः नमस्कार है। जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस-हीन तथा जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को नमस्कार है, जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट तथा भयानक आकार वाले शनि देव को नमस्कार है। जिनके शरीर दीर्घ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु जर्जर शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार नमस्कार है। हे शनि देव ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन, भास्कर-पुत्र, अभय देने वाले देवता, वलीमूख आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, ऐसे शनिदेव को प्रणाम है। आपकी दृष्टि अधोम...