डेविस का अपरदन चक्र सिद्धांत

  1. अपरदन चक्र
  2. डेविस का त्रिकुट क्या है? – ElegantAnswer.com
  3. डेविस तथा पेंक के अपरदन चक्र में अंतर
  4. डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धांत क्या है ? अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया davis theory of landform development in hindi
  5. क्या डेविस का अपरदन चक्र सिद्धांत गुत्थियों को सुलझा पाने में सफल नहीं रहा?
  6. पेंक का अपरदन चक्र सिद्धांत
  7. पेंक का अपरदन चक्र सिद्धांत
  8. अपरदन चक्र का विकास


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अपरदन चक्र

अपरदन चक्र क्या है धरातल पर अंतर्जात बल ( Endogenetic Forces) तथा बर्हिजात बल (Exogenetic force) निरंतर क्रियाशील होते हैं । धरातल पर जैसे ही अंतर्जात बलों द्वारा विषमताओं का निर्माण किया जाता है बर्हिजात बल इन विषमताओं को दूर करने के लिए प्रयत्नशील हो जाते हैं और अंततः उस भाग को समतल प्रायः मैदान में परिवर्तित कर देते हैं। इस प्रकार इस कार्य में लगने वाली अवधि तथा विभिन्न अवस्थाओं (तरुण, प्रौढ़ तथा जीर्ण) के सम्मिलित रूप को अपरदन चक्र कहा जाता है। इस अवधि में बर्हिजात बल द्वारा ऊपर उठाया गया भाग अपक्षय तथा अपरदन द्वारा समप्राय मैदान में बदल जाता है। इस अपरदन चक्र को डेविस महोदय द्वारा भौगोलिक चक्र (Geographical Cycle) कहा गया है। डेविस का भौगोलिक चक्र 1899 में डेविस महोदय ने भौगोलिक चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किया तथा बताया कि भौगोलिक चक्र या अपरदन चक्र समय की वह अवधि है जिसके अंतर्गत उत्थित भूखंड अपरदन के प्रक्रम द्वारा अपरदित होकर एक आकृतविहीन समतलप्राय मैदान में बदल जाता है। इस प्रकार डेविस ने बताया कि स्थलरूपों के निर्माण तथा विकास पर संरचना , प्रक्रम (अपरदन के कारण) तथा अवस्था (समय) का प्रभाव होता है और स्थलरूप संरचना, प्रक्रम तथा अवस्था का प्रतिफल है । इन तीन कारकों को डेविस के त्रिकूट (Trio of Davis) के नाम से जाना जाता है। संरचना ( Structure) • डेविस द्वारा प्रयुक्त शब्द संरचना में शैल की स्थिति तथा प्रकृति दोनों शामिल है । शैलों की स्थिति में शैलों का अभिनत कोण , वलन(Fold) या भ्रंश (Faults) को शमिल किया जाता है जबकि शैलों की प्रकृति में शैलों के प्रकार, कठोरता तथा पारगम्यता को शामिल किया जाता है । • संरचना का निर्माण पटलविरूपण द्वारा लंबी अवधि में होता है तथा ...

डेविस का त्रिकुट क्या है? – ElegantAnswer.com

डेविस का त्रिकुट क्या है? इसे सुनेंरोकेंडेविस ने 1899 में भौगोलिक चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किया तथा बताया कि भौगोलिक चक्र अपरदन की वह अवधि है, जिसके अंतर्गत उत्थित भूखंड अपरदन के प्रक्रम द्वारा प्रभावित होकर एक आकृतिविहीन समतल मैदान में बदल जाता है। इन तीनों कारकों को डेविस के त्रिकूट के नाम से जाना जाता है। डेविस कप कौन जीता? इसे सुनेंरोकेंजोकोविच ने दो मैच जीते, सर्बिया डेविस कप सेमीफाइनल में – djokovic wins two matches in serbia davis cup semi-final. डेविस कप जीतने वाली पहली टीम कौन सी है? इसे सुनेंरोकें1892 से, इंग्लैंड और आयरलैंड एक वार्षिक राष्ट्रीय-टीम-आधारित प्रतियोगिता में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, जो एकल का मिश्रण करते हुए मानक डेविस कप प्रारूप बन जाएगा। युगल मैच, और 1895 में इंग्लैंड ने एक राष्ट्रीय टीम प्रतियोगिता में फ्रांस के खिलाफ खेला। डेविस के अपरदन चक्र सिद्धांत की तीन अवस्थाएं कौन कौन सी है? डेविस का अपरदन चक्र सिद्धांत भौगोलिक चक्र • 1 ) तरुणावस्था : स्थलखण्ड के उत्थान की समाप्ति के बाद अपरदन प्रारंभ होता है. • 2 ) प्रौढ़ावस्था : प्रौढ़ावस्था के प्रारंभ में होते ही पार्श्विकअपरदन प्रारंभ हो जाता है अर्थात घाटियों की चौड़ाई बढ़ने लगती है. • 3 ) जीर्णावस्था : सामान्य अपरदन चक्र के जनक कौन हैं? इसे सुनेंरोकेंसंभवतः विंची प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि अपरदन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप नदी अपनी घाटी का निर्माण स्वयं करती है। स्कॉटलैंड निवासी जेम्स हट्टन आधुनिक भू-आकृति विज्ञान के जन्मदाता कहे जाते हैं। पृथ्वी के इतिहास में चक्रीय व्यवस्था का सिद्धान्त हट्टन ने ही प्रतिपादित किया था। डेविस के अपरदन चक्र सिद्धांत की तीन अवस्थाएँ कौन कौन सी हैं? डेविस ने अ...

डेविस तथा पेंक के अपरदन चक्र में अंतर

3. धरातल पर उत्थान काफी तीव्र गति से होता है। 4. चक्र की प्रथम अवस्था की विभिन्न गतियाँ संरचना के आधार पर होती हैं। 5. अपरदन चक्र तीन अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, तथा जीर्णावस्था) में पूर्ण हो जाता है। 6. डेविस के अपरदन चक्र में ढालों को कोई विशेष महत्वपूर्ण नहीं बतलाया गया है। 7. डेविस के मत में दृश्यभूमि संरचना, प्रक्रम तथा अवस्थाओं का प्रतिफल है। 8. डेविस ने अपने चक्र में तीन अवस्थाएँ मानी हैं। पहली और दूसरी अवस्था में उच्चवच अधिक होती है। अतः सम्पूर्ण चक्र में उच्चावच क्रियाशील रहता है। 9. डेविस के अपरदन चक्र के अन्त में समतल प्राय मैदान बनते हैं। 1. पेंक के अनुसार, उत्थान तथा अपरदन साथ-साथ क्रियाशील होते हैं। इसमें पहले उत्थान अधिक, बाद में कम तथा बाद में अपरदन अधिक होता है। 2. उत्थान अधिक समय तक भी चल सकता है। लेकिन समय की अवधि में अन्तर होता है। 3. धरातल पर उत्थान की गति एक समान दर से नहीं होती है। 4. चक्र का प्रारम्भ एक-सी संरचना वाले फैले हुए गुम्बदों से होता है। 5. पेंक ने अपरदन चक्र में कोई अवस्थाएँ नहीं मानीं। इन्होंने डेविस के विपरीत स्थल खण्ड के उत्थान की तीन दिशाएँ- · आफस्ती जिण्डे बढ़ती गति, · ग्लोखफार्मिंग (समान गति), · अनबत्सी जिण्डे (घटती गति से उत्थान) मानी है। 6. पेंक ने ढालों के विकास को महत्वपूर्ण बतलाया है। साथ ही बतलाया है कि ढालों का विकास क्रमशः समय के अनुसार होता है। 7. पेंक के मतों के दृश्यभूमि उत्थान की दर तथा निम्नीकरण की दर के आपसी सम्बन्ध का ही मूल परिणाम है। 8. पेंक ने अपने चक्र में पाँच अवस्थाएँ मानी हैं। प्रथम अवस्था में उच्चावचं बढ़ता जाता है तथा दूसरी, चतुर्थ अवस्थाओं में स्थिर और अन्तिम पाँचवी अवस्था में कम हो जाता है। अतः उच्चावच...

डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धांत क्या है ? अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया davis theory of landform development in hindi

• Home • geography • indian • डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धांत क्या है ? अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया davis theory of landform development in hindi • Home • geography • world • डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धांत क्या है ? अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया davis theory of landform development in hindi davis theory of landform development in hindi डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धांत क्या है ? अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया ? डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धान्त गिलवर्ट की भाँति डेविस महोदय भी अन्वेषक थे। इन्होने क्षेत्र पर्यवेक्षण के आधार पर शुष्क अपरदन चक्र, हिमानी अपरदन चक्र, सागरीय चक्र, कार्ट अपरदन चक्र, ढाल विकास आदि सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। डेविस महोदय ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। डेविस महोदय ने अपने सिद्धान्त का प्रणयन स्थलरूपों के विकास की समस्याओं के समाधान हेतु किया था। समय के साथ स्थलरूपों का विकास विशिष्ट प्रक्रमों के कार्यरत होने पर क्रमिकरूप में होता है। डेविस महोदय ने स्थलरूपों के विकास के विश्लेषण हेतु भोगोलिक-चक के सिद्धान्त का प्रणयन किया। इन्होंने कल्पना की किसी भी स्थलखण्ड का उत्थान सागर से त्वरित होता है। इस पानी विभिन्न प्रक्रम कार्यरत होते हैं तथा दीर्घकाल तक वह स्थलखण्ड तरुणा, प्रौढ़ा एवं जीर्णा अब गुजर कर सम्प्राय मैदान के रूप में परिवर्तित हो जाता है। अर्थात् स्थलरूपों में समय के साथ क्रमिक परिवर्तन होता है तथा यह परिवर्तन एक निश्चित दिशा में निश्चित लक्ष्य की ओर उन्मुख होता है। सिद्धान्त 6 मान्यताओं पर आधारित है – (क) किसी भी स्थलखण्ड पर यदि बाह्य एवं आन्तरिक कारक क्रियाशील रहते हैं, तो कालान्तर एक विशिष्ट स्थलरूप का...

क्या डेविस का अपरदन चक्र सिद्धांत गुत्थियों को सुलझा पाने में सफल नहीं रहा?

यह भी पढ़ें: आर्द्र प्रदेशों में नदियाँ अपरदन का कार्य समुद्र तल के संदर्भ में करती है| इस प्रक्रिया में विभिन्न स्थलाकृतियाँ विकसित होती है| जैसे ही नदी अपरदन तल को प्राप्त कर लेती है अपरदन चक्र समाप्त हो जाता है और दूसरा अपरदन चक्र तब तक प्रारम्भ नहीं होता है जब तक नदियों के आधार तल या क्षेत्र की संरचना में परिवर्तन न आ जाये. नदियों के द्वारा आधार तल की प्राप्ति के साथ सम्पूर्ण प्रदेश लगभग आकृति विहीन समतलप्राय मैदान में परिवर्तित हो जाता है. इसे डेविस ने अपने सिद्धांत में समतलप्राय मैदान या पेनीप्लेन कहा. इसमें कही-कही कठोर चट्टानें या टीले अवशेष के रूप में रह जाते है, जिसे डेविस ने मोनेडनॉक कहा. ये नदी के आधार तल की प्राप्ति और अपरदन चक्र की समाप्ति का प्रतीक है. डेविस का अपरदन चक्र सिद्धांत – Cycle of Erosion by Davis in hindi. अपरदन चक्र सिद्धांत की व्याख्या के क्रम में डेविस ने कुछ मान्यताओं का सहारा लिया जो निम्नलिखित है. • उन्होंने यह माना की किसी भी प्रदेश में सर्वप्रथम उत्थान की क्रिया होती है, उत्थान से ही ढाल बनती है, जिसके सहारे जल प्रवाहित होती है. • उत्थान की क्रिया की समाप्ति के बाद अपरदन का कार्य प्रारम्भ होता है और अपरदन तब तक होता रहता है जब तक पुरा प्रदेश अपरदित होकर लगभग समतलप्राय मैदान न बन जाये. • अपरदन की क्रिया उत्थान की अवधि की तुलना में अधिक लम्बे समय तक घटित होती है और केवल अपरदन की अवधि लम्बी होती है. उपरोक्त मान्यताओं के आधार पर डेविस ने अपरदन चक्र सिद्धांत के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रतिपादन किया: अपरदन चक्र = अवस्था + संरचना + प्रकम संरचना, प्रक्रम और अवस्था को डेविस का त्रिकट कहा जाता है| 1. डेविस का अपरदन चक्र सिद्धांत में संरचना संरचना क...

पेंक का अपरदन चक्र सिद्धांत

पेंक प्रमुख भूआकृतिक वैज्ञानिक थे. उन्होंने डेविस के अपरदन चक्र सिद्धांत के आलोचना के क्रम में अपरदन चक्र का वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत किया जो पेंक का अपरदन चक्र सिद्धांत के रूप में जाना जाता है. यह डेविस के सिद्धांत की तुलना में अधिक वैज्ञानिकता पर आधारित था. इसमें भुआकृतिक प्रकम की वैज्ञानिक संकल्पना का उपयोग किया गया था. Cycle of erosion by Walther Penck in hindi. हम इस पोस्ट में पेंक का अपरदन चक्र सिद्धांत को समझने का प्रयास करेंगें. यह भी पढ़ें:- पेंक का अपरदन चक्र सिद्धांत पेंक ने डेविस की तरह ही आर्द्र प्रदेशो में प्रवाहित जल या नदियों को अपरदन का प्रमुख कारक मानते हुए अपरदन चक्र का सिद्धांत दिया. इसके अनुसार किसी भी प्रदेश में उत्थान की प्रकिया प्रारम्भ होने के साथ ही अपरदन के कारक सक्रिय हो जाते है. अपरदन का कार्य तब तक घटित होता है, जब तक आधार तल की प्राप्ति न हो जाए. आर्द्र प्रदेशो में मुख्य नदी के साथ ही जब सहायक नदियाँ भी आधारतल प्राप्त कर लेती है तब एक अपरदन चक्र पूर्ण होता है और अंतिम रूप से लगभग समतलप्राय मैदान इनड्रम्प का विकास होता है. यहाँ जल विभाजक के अवशेष इन्सेलबर्ग के रूप में रह जाते है. यह भी पढ़ें:- पेंक ने उत्थान व अपरदन की सम्मिलित अवधि को अपेक्षाकृत अधिक लम्बे समय तक घटित होने वाली क्रिया माना जबकि केवल अपरदन के समय को अपेक्षाकृत छोटा माना. पेंक ने निम् सूत्र का प्रतिपादन किया. स्थलरुप – उत्थान की प्रावस्था , दर और निम्नीकरन का प्रतिफल होता है. इस सूत्र के अनुसार अपरदन की प्रकिया विभिन्न प्रावस्था में घटित होती है और प्रत्येक प्रावस्था में उत्थान और अपरदन का विशिष्ट दर होता है. इसी अनुरूप ऊचाई एवं ऊच्चावच विषमता में कमी आती है अर्थात निम्नीकरण होता ...

पेंक का अपरदन चक्र सिद्धांत

वाल्टर पेंक एक जर्मन भूगोलवेत्ता थे, उन्होंने डेविस अपरदन चक्र मॉडल का अध्ययन किया जो आद्र क्षेत्र पर आधारित हैं।डेविस के अधिकांश विचारों पर पेंक सहमत थे और डेविस की तिकड़ी/ ट्रिओस - संरचना, प्रक्रिया और चरण है में से अपरदन की प्रक्रिया और चरणों के घटकों पर वे असहमत थे। वाल्टर पेंक ने भू-आकृतियों के विकास पर दो अवधारणाएँ दीं: • ढाल प्रतिस्थापन मॉडल • अपरदन चक्र ढाल प्रतिस्थापन मॉडल के लिए, पेंक के ढाल प्रतिस्थापन मॉडलजाए। वाल्टर पेंकने 1924 में एक भू-आकृति विज्ञान प्रणाली मॉडल दिया, जिसे अपरदन चक्र के रूप में भी जाना जाता है। पेंक के अनुसार, • भू-आकृतियों का अपरदन उत्थान प्रक्रिया की शुरुआत के साथ शुरू होता है। उत्थान और अपरदन प्रक्रियाएं एक साथ चलती हैं। • भू-आकृतियों का विकास उत्थान की दर की तीव्रता (अर्थात् अंतर्जात बल) और अपरदन की दर की तीव्रता (अर्थात बहिर्जात बल) के बीच के अनुपात का परिणाम है। • अपरदन प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक यह आधार स्तर तक नहीं पहुंच जाती। • पेंक ने डेविस के अपरदन चक्र के अनुक्रमिक चरण को खारिज कर दिया। पेंक के अनुसार, अपरदन प्रक्रिया पॉलीसाइक्लिक है क्योंकि आधार स्तर पर पहुंचने के बाद भू-आकृति के कायाकल्प के बाद फिर से अपरदन चक्र शुरू होता है। भू-आकृतियों का कायाकल्प या तो आधार स्तर को कम करने या भू-आकृतियों के उत्थान से होता है। • मुख्य रूप से अंतर्जात बल कायाकल्प के माध्यम से क्षरण के चक्र में हस्तक्षेप करते हैं। • डेविस के अनुसार, अपरदन चक्र समय पर निर्भर है लेकिन पेंक मानते है कि यह समय पर निर्भर नहीं है, यह कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है। वाल्टर पेंक के अनुसार: अपरदन चक्र में पाँच चरण होते हैं, तीन चरण नहीं, जैसा कि डेविस ने प्रस...

अपरदन

समुद्रतल के ऊपर उठने के उपरांत धरातल के किसी भाग पर होने वाली भूम्याकृतियों के क्रमिक परिवर्तन को ही अपरदन-चक्र य 'क्षयचक्र' या 'अपक्षयचक्र' (Cycle of Erosion) अथवा भूम्याकृतिचक्र (जियोमार्फिल साइकिल) कहते हैं। परिचय [ ] भू-भागों की आकृति सदा एक सी नहीं रहती। कालांतर में उनका रूपांतर होता रहता है। उनका क्रमिक विकास नियमबद्ध रहता है। उसमें जीवन चक्र भी चलता रहता है। प्रारंभिक अवस्था के बाद उसके जीवन की किशोरावस्था, प्रोढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था पहचानी जाती सकती है। उनका कायाकल्प भी होता है। उनकी आकृतियों में हो रहे इस परिवर्तन का मुख्य कारण क्षयक्रिया ही है, जिससे किसी न किसी में वे सर्वदा प्रभावित होती रहती हैं। इनका व्यापक अध्ययन आज के युग में एक स्वतंत्र विषय भूम्याकृति में होने वाले परिवर्तनों की परंपरा तथा परिमाण मुख्यत: तीन बातों पर निर्भर है: भूभाग की संरचना, क्षयक्रिया की रीति एवं उस विशेष भूभाग के जीवनचक्र की अवस्था। विभिन्न भूभागों पर क्षयक्रिया की जो रीतियाँ कार्यरत है उनका उदाहरण लेकर भूम्याकृति में अवस्थानुसार होने वाले क्रमिक परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकता है। आर्द्र जलवायु वाले भूभाग पर क्षयकार्य मुख्यत: नदियों (जलप्रवाहों) के द्वारा होता है, अत ऐसे प्रांत में क्षयचक्र को नदीकृत (fluvian) क्षयचक्र कहते हैं। धरातल के अधिकांश भाग पर मुख्यत: नदीकृत क्षयचक्र होने के कारण इसे सामान्य क्षयचक्र (Normal cycle of erosion) भी कहते हैं। किसी नवीन धरातल के समुद्रतल से ऊपर उठते ही उसपर ऋतुक्षरण (weathering) का प्रहार आरंभ होता है। वर्षा का जल उसकी ढाल पर प्रवाहित होने लगता है। प्रारंभिक अवस्था में अपेक्षाकृत अधिक जलप्रवाह वाले स्थान पर प्राकृतिक नालियों (gullies) का विक...

अपरदन चक्र का विकास

अपरदन चक्र का विकास यह स्पष्ट है, भू-गर्भिक बलें धरातल को ऊँचा-नीचा करने तथा उसमें कुरूपता उत्पन्न करने में सतत रत रहती हैं और बहिर्जात बलें उसको समतल बनाने एवं संवारने को निरन्तर प्रयास करती हैं। सागरतल से ऊँचा उठते ही भू-भाग पर बहिर्जात बलों का अपरदन प्रारम्भ हो जाता है और कटे-पिटे पदार्थों को निक्षेपण समुद्र तल पर होने लगता है। इस प्रकार दोनों वर्ग के बलों में पारस्परिक संघर्ष और प्रतिद्वन्दिता के फलस्वरूप धरातल के उन्नयन एवं अवतलन का क्रम चलता रहता है। इस प्रकार प्रत्येक स्थलाकृति का एक जीवन क्रम होता है, जिसमें वह अपनी विभिन्न अवस्थाओं को पार करती है। पृथ्वी की उत्पत्ति से आदि पर्यन्त का यह अखण्ड क्रम विकास-चक्र कहलाता है। यह नामकरण अमरीकी भू-वैज्ञानिक डब्ल्यू. एम. डेविस ने किया है। वास्तव में यह स्थल का जीवन इतिहास है जिस पर अनेक नदियाँ बनती हैं। वारसेस्टर महोदय ने इसको एक अपेक्षित अवधि माना है जिसमें नदियाँ किसी नवनिर्मित स्थलखण्ड को चरम स्तर पर पहुँचा देती हैं। विकास-चक्र सम्बन्धी तथ्यों का क्रमबद्ध विवेचन डेविस महोदय ने प्रस्तुत किया। डेविस का अपरदन चक्र सन् 1899 में डेविस महोदय ने अपरदन चक्र के सम्बन्ध में पूर्ण वास्तविकता प्रकट की तथा स्वयं यह बताने की कोशिश की कि “अपरदन चक्र या भौगोलिक चक्र समय की वह अवधि है जिसके द्वारा एक उत्थति भू-खण्ड अपरदन के प्रक्रम द्वारा अपरदित होकर एक आकृतिविहीन समतल मैदान में परिवर्तित हो जाता है।” इस तरह डेविस महोदय ने ऐतिहासिक परिवेश के आधार पर स्थल रूपों के विकास की चक्रीय पद्धति का निर्माण किया, साथ में यह भी पुष्टि की कि स्थल स्वरूपों के निर्माण तथा विकास पर प्रक्रम-संरचना तथा अवस्था का पूर्ण प्रभाव होता है। उपर्युक्त तीनों कारक ...