ढूंढाड़ क्षेत्र के जिले

  1. जयपुर जिले की सम्पूर्ण जानकारी
  2. राजस्थान में 5 क्षेत्र; 66 सीटें सिर्फ ढूंढाड़ में, इसे जो जीतता है, उसी की सरकार बनती है
  3. कछवाहा वंश के संस्थापक कौन थे? प्रथम राजधानी कहाँ थी, और कब बसाया गया था?
  4. ढढोर यादव (Dadhor) का इतिहास, ये राजस्थान से उत्तर प्रदेश
  5. उत्तराखंड में कुल कितने जिले है? Uttarakhand District Name
  6. Rajasthan Ki Bhasha Boliyan राजस्थान कीप्रमुख भाषा एवं बोलियां
  7. dhunedhaad sentences in Hindi
  8. राज्य के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के स्थानीय नाम
  9. Bhashiki: राजस्थान के बोली
  10. राजस्थान की विभिन्न इकाइयों के प्राचीन नाम


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जयपुर जिले की सम्पूर्ण जानकारी

भारत का पेरिस, गुलाबी नगर, दूसरा वृंदावन, पूर्व का पेरिस, वैभव नगरी आदि के उपनाम से प्रसिद्ध राजस्थान केजयपुर नगर का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 18 नवंबर 1727 को विख्यात बंगाली वास्तुशिल्पी विद्याधर भट्टाचार्य के निर्देशन में90 डिग्री कोणसिद्धांत पर करवाया गया था। जयपुर शहर का पूर्व नाम जयनगर था। जयपुर के नरेश सवाई रामसिंह द्वितीय ने 1863 में जयपुर की सभी इमारतों को प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड के जयपुर आगमन पर गुलाबी रंग से रंगवायाथा। इसी कारण जयपुर को गुलाबी नगर कहा जाने लगा। बिशप हैबरनेभी इस नगर के बारे में कहा है कि नगर का परकोटा मास्को के क्रेमलिन नगर के समान है। Jaipur GK : Jaipur Jila Darshan • गणगौर मेला - गणगौर मेला जयपुर में चैत्र शुक्ला तीज व चौथ को भरता है। • तीज की सवारी एवं मेला - यह जयपुर में श्रावण शुक्ला तृतीया को आयोजित होता है। • बाणगंगा मेला - यह विराटनगर, जयपुर में वैशाख पूर्णिमा को भरता है। • शीतलामाता का मेला - यह मेला चाकसू, जयपुर में चैत्र कृष्ण अष्टमी को भरताहै। • गधों का मेला - आश्विन कृष्ण सप्तमी से आश्विन कृष्ण एकदशी तक लुनियावास (सांगानेर) गांव में भरता है। ' जयपुर के बनारस' के नाम से प्रसिद्ध गालवनामक ऋषि का तपस्या स्थल गलताजी तीर्थ एक प्राचीन प्रसिद्ध पवित्र कुंड है। यहां गालव ऋषि का आश्रम था। वर्तमान में इस क्षेत्र में बंदरों की अधिकता के कारण इसे मंकी वैली के नाम से भी जाना जाता है। गलता जी को उत्तर तोताद्रिमाना जाता है। यहां पर रामानंदी संप्रदाय की पीठ की स्थापना संत कृष्णदास पयहारीने की थी। यहां पर मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा को गलता स्नान का विशेष महात्म्यहै। पर्वत की सर्वाधिक ऊंचाई पर सूर्य मंदिर गलता जी, जयपुर में है। इसे राजस्थ...

राजस्थान में 5 क्षेत्र; 66 सीटें सिर्फ ढूंढाड़ में, इसे जो जीतता है, उसी की सरकार बनती है

राजस्थान में 5 चुनावी क्षेत्र हैं। ये क्षेत्र शेखावाटी-कमांड एरिया, मारवाड़, मेवाड़, हाड़ौती और ढूंढाड़-मत्स्य-मेरवाड़ा हैं। सबसे ज्यादा 66सीटें ढूंढाड़ और इससे सटे इलाकों में हैं। जयपुर इसी क्षेत्र में है। जहां सबसे ज्यादा 19 विधानसभा सीटें हैं। सबसे कम सीटें हाड़ौती में 17 हैं। भाजपा ने 2013 में राज्य के 33 में से 13 जिलों में क्लीनस्वीप किया था। यहां 59 विधानसभा सीटंे हैं। 2013 में भाजपा ने अजमेर-8, बारां-4, चित्तौड़गढ़-6, डूंगरपुर-4, हनुमानगढ़-5, जैसलमेर-2, झालावाड़-4, कोटा-6, पाली-6, राजसमन्द-4, सवाई माधोपुर-4, सिरोही-3, टोंक-4 की सभी सीटें जीत ली थीं। 2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का राज्य के 33 में से 17 जिलों में खाता तक नहीं खुला। मारवाड़ में सबसे ज्यादा 52% वोट भाजपा को मिले हैं, मेवाड़ में सबसे ज्यादा 51% कांग्रेस को मारवाड़ 1998 2003 2008 2013 सीटें वोट% सीटें वोट% सीटें वोट% सीटें वोट% भाजपा 09 33% 32 42% 20 36% 39 52% कांग्रेस 32 45% 09 37% 20 37% 03 36% बसपा 00 01% 00 3.0% 00 6% 00 2.5% अन्य 01 21% 01 18% 03 21% 01 9.5% पूर्व सीएम अशोक गहलोत की सरदारपुरा सीट इसी क्षेत्र में आती है। पिछले चार चुनाव उन्होंने यहीं से जीते हैं। 4 चुनावों में भाजपा ने मारवाड़ में सबसे ज्यादा 2013 में 90% सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 1998 में 76% सीटें जीती थीं। सबसे बड़े क्षेत्र ढूंढाड़ में भाजपा के वोट 20 साल में 13% बढ़े, कांग्रेस के वोट 10% घटे हाड़ौती 1998 2003 2008 2013 सीटें वोट% सीटें वोट% सीटें वोट% सीटें वोट% भाजपा 04 39% 12 44% 07 41% 16 52% कांग्रेस 14 50% 04 40% 10 44% 01 34% बसपा 00 .16% 00 01% 00 4% 00 1.2% अन्य 00 10.8% 02 15% 00 11% 00 13% भाजपा, कांग्रेस हाड़ौती में दो-दो बार 20 से ...

कछवाहा वंश के संस्थापक कौन थे? प्रथम राजधानी कहाँ थी, और कब बसाया गया था?

Jankaritoday.com अब Google News पर। अपनेे जाति के ताजा अपडेट के लिए Last Updated on 03/06/2022 by कछवाहा वंश का इतिहास अत्यंत ही गौरवशाली है. भारत में इस सूर्यवंशी क्षत्रिय राजपूत वंश के शासकों ने जयपुर, अलवर, मैहर, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और तालचर जैसे कई राज्यों और रियासतों पर शासन किया है. इनका सबसे बड़ा राज्य जयपुर था. लेकिन क्या आप जानते हैं इस ऐतिहासिक वंश के संस्थापक कौन थे? तो आइए जानते हैं, कछवाहा वंश के संस्थापक के बारे मे पूरी जानकारी. कछवाहा वंश के संस्थापक कछवाहा वंश के संस्थापक दुल्हे राय (Dulhe Rai) थे. इनका वास्तविक नाम तेजकरण (Tej Karan) था. कछवाहा वंश की स्थापना को समझने से पहले आपको ढूंढाड़ के बारे में जानना जरूरी है. ढूंढाड़ ढूंढाड़ (Dhundhar) उत्तर भारत का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है. राजस्थान की सबसे प्राचीन नदियां में एक ढूंढ़ नदी (Dhondh River) थी, जो रियासकाल में ही लुप्त हो गई. लेकिन नदी का बहाव क्षेत्र, मार्ग आज भी सुरक्षित है. जहां-जहां से ढूंढ़ नदी बहती थी, उस क्षेत्र को ढूंढाड़ के नाम से जाना जाता है. ढूंढाड़ को जयपुर क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है. इसे कछावा राज्य, आंबेर राज्य और जयपुर राज्य भी कहा गया है. यह क्षेत्र पूर्व-मध्य राजस्थान में स्थित है, और उत्तर-पश्चिम में अरावली रेंज, पश्चिम में अजमेर, दक्षिण-पश्चिम में मेवाड़ क्षेत्र, दक्षिण में हाड़ौती क्षेत्र और पूर्व में अलवर, भरतपुर और करौली जिलों से घिरा है. इसमें जयपुर के जिले, अरावली रेंज के पूर्व में स्थित सीकर जिले के कुछ हिस्से, दौसा, सवाई माधोपुर और टोंक और करौली जिले का उत्तरी भाग शामिल हैं. यहीं पर 1137 में दूल्हे राय ने कछवाहा वंश की स्थापना की थी. दुल्हे राय‌ ने बड़गुर्...

ढढोर यादव (Dadhor) का इतिहास, ये राजस्थान से उत्तर प्रदेश

Jankaritoday.com अब Google News पर। अपनेे जाति के ताजा अपडेट के लिए Last Updated on 07/06/2022 by ढढोर यादव या ढढोर अहीर या ढढोर यदुवंशी यादवों का एक प्रसिद्ध गोत्र, खाप या उपजाति है. यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र और ढढोर यादव का इतिहास ढढोर यादवों की उत्पत्ति के बारे में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, ढढोर यादवों की उत्पत्ति भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र वज्र (वज्रनाभ) से हुई है. भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न हुये. प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध हुये. अनिरुद्ध के पुत्र वज्र (वज्रनाभ) हुये. मथुरा के युद्धोपरांत जब द्वारिका नष्ट हो गई, तब भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ मथुरा के राजा हुए. इन्हें के नाम पर मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है. कहा जाता है कि ढढोर यादव वज्रनाभ के ही वंशज हैं.एक दूसरी मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण की पीढ़ी में 135 वें राजा विजयपाल हुए. उन्हीं के अनेक पुत्रों में से एक से “ढढोर” वंश चला.ढढोर यादवों की उत्पत्ति के बारे में एक तीसरी मान्यता भी है. रचनाकार ‘नल्ह सिह भाट’ की पुस्तक “विजयपाल रासो” में उल्लेख किया गया है कि राजा विजयपाल के समय राजस्थान और बृज में यदुवंशी क्षत्रियों के 1444 गोत्र थे. इसी 1444 गोत्रों में से एक गोत्र “ढढोर” था, ढढोर यादव उसी के वंशज हैं. ढढोर यादव राजस्थान से उत्तर प्रदेश- बिहार कैसे आए? ढढोर यादव मूल रूप से राजस्थान के ढूंढाड़ क्षेत्र के रहने वाले हैं. ढूंढाड़ राजस्थान राज्य का एक ऐतिहासिक क्षेत्र रहा है. यह पश्चिम राजस्थान में स्थित है. ढढोर यादव की कुलदेवी इनकी आराध्य देवी या कुलदेवी कैलादेवी (कंकाली माता) हैं, जिन्हें योगमाया विंध्यावासिनी माँ भी कहा जाता है. रियासत और जमींदा...

उत्तराखंड में कुल कितने जिले है? Uttarakhand District Name

अल्मोड़ा का इतिहास कत्युरी राजवंश क्षेत्र ने पहले राज्य की स्थापना की । उनके वंशज, राजा बैचाल्देव ने, भूमि का एक प्रमुख हिस्सा श्री चंद तिवारी, एक गुजराती ब्राह्मण को दान किया। सोलहवीं शताब्दी के मध्य में , चंद वंश इस क्षेत्र पर शासन कर रहा था। उन्होंने अपनी राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा तक स्थानांतरित कर दी और इसे ‘ आलम नगर ’ या ‘ राजपुर ’ नाम दिया | बागेश्वर जिला बागेश्वर जिला , उत्तराखंडके कुमाऊं मण्डल का एक जिला है | जिसका निर्माण 1997में हुआ था | इससे पहले यह जिला अल्मोड़ा जिला का भाग था | बागेश्वर जिले में 3 तहसीलें है और 1 विधान सभा सीट है एवम् बागेश्वर जिले का मुख्यालय बागेश्वर नगर में ही है। बागेश्वर जिले के पडोसी जिले कुछ इस प्रकार से है, पूर्व में , दक्षिण से पश्चिम तक अल्मोड़ा और पश्चिम से उत्तर तक चमोली जिला है। बागेश्वर जिले का इतिहास बड़ा ही रोचक है | सर्वप्रथम बागेश्वर , अल्मोड़ा जिले का तहसील था लेकिन 15 सितम्बर 1990 को यह अल्मोड़ा से अलग हो गया और एक स्वतंत्र जिला बन गया | हिन्दू पौराणिक कथाओ के अनुसार इस स्थान पर साधू और अन्य देवी देवता भगवान शिव के लिए ध्यान लगाने के लिए आया करते थे | भगवान शिव इस स्थान में शेर का रूप धारण कर विराजे थे इसलिए इस स्थान का नाम “ व्याघ्रेश्वर तथा बागेश्वर ” बन गया | बाद में 1450 ईसवी में चंद राजवंश के राजा लक्ष्मी चंद ने बागेश्वर में एक मंदिर स्थापित किया | बागेश्वर को प्राचीन काल से भगवान शिव और माता पार्वती की पवित्र भूमि माना जाता है एवम् पडोसी क्षेत्रो में भी बागेश्वर की भूमि विश्वास का प्रतीक है | पुराणों के अनुसार बागेश्वर “ देवो का देवता ” है | चम्पावत चम्पावत में प्राकर्तिक सौंदर्य के साथ धार्मिक पर्यटन की सौगात भी मिलती है...

Rajasthan Ki Bhasha Boliyan राजस्थान कीप्रमुख भाषा एवं बोलियां

राजस्थान की प्रमुख भाषा एवं बोलियां Rajasthan Ki Pramukh Bhasha Boliyan राजस्थान की रंगीन भूमि, ग्रामीण भारत का वास्तविक सार है दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लोग राजस्थान (Rajasthan)की विभिन्न भाषाओं के स्थानीय स्वाद का आनंद लेते हैं। क्षेत्र में परिवर्तन के साथ, भाषा बदलती है और समय के साथ, उनकी भाषा उनकी पहचान बन जाती है हिंदी राज्य की आधिकारिक भाषा है। मुख्य रूप से, राज्य भर में बोली जाने वाली पांच मुख्य बोलियाँ हैं – मेवाती, मारवाड़ी, ढुंढारी, हरौटी, और मेवाड़ी। हालांकि, क्षेत्रीय क्षेत्रों में कई अन्य बोलियों का उपयोग किया जाता है जबकि मारवाड़ी राजस्थान (Rajasthan) की सबसे अधिक बोली जाने वाली बोली में से एक है और इन बोलियों का राजस्थान के इतिहास में बहुत महत्व था तभी आज कोई भी एग्जाम हो बोलियों से सबंधित प्रश्न जरुर पूछे जाते है तो हम इस artical में सभी भाषा बोलियों के बारे में विस्तार से जानते है | (Rajasthan) राजस्थान भाषा एवं बोलियां के क्षेत्र (Rajasthan Ki Bhasha Boliyan) राजस्थान के अन्दर अलग अलग इलाको के हिसाब से बोलिया बोली जाती है जैसे :- पश्चिमी राजस्थानी :- मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढारकी, बीकानेरी, बागड़ी, शेखावटी, देवड़ावाटी, खैराडी, गोडवाडी आदि बोलियां उत्तरी पूर्वी राजस्थानी :- अहीरवाटी और मेवाती बोलियां मध्य पूर्वी राजस्थानी :- ढूंढाड़ी, तोरावाटी खड़ी, जयपुरी दक्षिणी पूर्वी राजस्थानी :- रांगड़ी मालवी, सेथंवाडी दक्षिणी राजस्थानी :- नीमाडी, भीली, आदि बोलीयाँ मारवाड़ी,(Marwadi) राजस्थान कीप्रमुख भाषा एवं बोलियां Rajasthan Ki Pramukh Bhasha Boliyan • मारवाड़ी, पश्चिमी राजस्थान (Rajasthan)की प्रधान बोली है | • यह बोली राजस्थान (Rajasthan) में सबसे ज्यादा ब...

dhunedhaad sentences in Hindi

• आमेर ढूंढाड़ क्षेत्र के सब मीणा राज्यों के संघ • ढूंढाड़ की सियासी जमीन कई मायनों में महत्वपूर्ण है। • ढूंढाड़ के मीणा राज्य कछावाओं को विजय स्वरूप न मिलकर समझौते • इस बार ढूंढाड़ की जमीन पर कई नए दल भी उतरे हैं। • पिण्डारियों के कारण मारवाड़, मेवाड़, ढूंढाड़ तथा हाड़ौती जैसे समृद्ध क्षेत्र उजड़ने लगे। • कोहरे के कारण गोडवाड़, मेवाड़ और ढूंढाड़ के ज्यादातर इलाकों में कफ्यरू के हालात रहे। • इस प्रकार ढूंढाड़ के मीणा राज्य कछावाओं को विजय स्वरूप न मिलकर समझौते के रूप में मिले थे। • आमेर ढूंढाड़ क्षेत्र के सब मीणा राज्यों के संघ का प्रधान स्थान और भानोराव उस संघ का प्रमुख था। • ढूंढाड़ और शेखावाटी में चौमू की वही महत्ता है जो एटा-मैनपुरी में भोगांव की और पंजाब-हरियाणा में भटिंडा की है. • अधिकांश उद्योगपति जिन्हें मारवाड़ी कहा जाता है राजस्थान के शेखावाटी ( ढूंढाड़) अंचल से आते हैं, मारवाड़ से नहीं. • जल एवं पर्यावरण संरक्षण केक्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान पर राजस्थान पत्रिका को “ ढूंढाड़ रत्न ” अवार्ड के लिए चयनित किया गया है। • जयपुर के मानसरोवर में हुई रैली मे राज्य भर से लोग आए, लेकिन ज्यादा मेवात, ढूंढाड़, हाड़ौती और वागड़ की थी। • जयपुर के मानसरोवर में हुई रैली में राज्यभर से लोग आए, लेकिन ज्यादा संख्या मेवात, ढूंढाड़, हाड़ौती और वागड़ की थी। • यह ऐतिहासिक तथ्य है कि प्राचीन काल में मीणा आदिवासियों का शासन वर्तमान राजस्थान के कई क्षत्रों में था जिनमें वर्तमान जयपुर का तत्कालीन ढूंढाड़ राज्य। • यह मानना ही होगा कि शेखावाटी, मत्स्य, ढूंढाड़ क्षेत्र या अन्य क्षेत्रों के लिए मारवाड़ के सुदूरवर्ती इलाके अन्य प्रदेश की तरह ही हैं। • यह ऐतिहासिक तथ्य है कि प्राचीन काल में मीणा...

राज्य के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के स्थानीय नाम

राज्य के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के स्थानीय नाम 1.छप्पन का मैदान- क्षेत्र में Dungarpur बांसवाड़ा जिले का दक्षिणावर्ती समप्राय क्षेत्र आता है इस मैदान पर सोम कागदर माही कमला जाखम सावरमती आदि नदियों का या उनकी ऊपरी शाखाओ अथवा नालो का अथार्थ 56 नदी नालों का जल प्रभावित होने के कारण इसे 56 या छप्पनिया का मैदान कहा जाता है 2.बांगड़/वाग्वरांचल- अरावली पर्वतीय श्रंखलाओं में स्थित डूंगरपुर और बांसवाडा को बांगड़ कहा जाता है इस क्षेत्र में आदिवासी निवास करते हैं सघन वन अच्छी वर्षा समशीतोष्ण जलवायु( Temperate climate) वाला यह प्रदेश खनिज संपदा और सांस्कृतिक दृष्टि से संपन्न है बांगड़ क्षेत्र राजस्थानी और गुजराती का मिश्रण रूप और डिंगल भाषा का प्रचलन होने के कारण इसे बांगड़ी अथवा बांगड़ भाषा का क्षेत्र भी कहते हैं प्रोफेसर आर एल सिह ने- मरुस्थलीय के पूर्व में और अरावली श्रृंखला के पश्चिम में स्थित विभाग जो उत्तर में गंगा नगर से लेकर दक्षिण में सिरोही के पश्चिमी भाग तक फैला है भानगढ़ का नाम दिया है 3.विंध्यन बेसिन- राज्य के दक्षिणी पूर्वी भाग में 50000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस बेसिन में कोटा झालावाड़ बॉरा बूंदी के साथ ही Sawai madhopur धोलपुर और भीलवाड़ा जिले का कुछ क्षेत्र आता है 4.मेवाड-़ उदयपुर पूर्वी राजसमंद चित्तौड़ और पश्चिमी भीलवाड़ा जिलों के मुख्यत: पहाड़ी और उच्च भाग मेवाड़ क्षेत्र के तहत सम्मिलित है मेवाड़ रियासत का इस भूभाग पर नियंत्रण होने से इसे मेवाड़ के नाम से पुकारा जाने लगा 5.मेरवाड़ा- क्षेत्र अजमेर जिले के अधिकांश भाग और दिवेर राजसमंद व टाटगढ पर विस्तृत है 6.भोमठ क्षेत्र- के अंतर्गत डूंगरपुर पूर्वी सिरोही उदयपुर जिलो का अरावली पर्वतीय क्षेत्र सम्मिलित है 7...

Bhashiki: राजस्थान के बोली

राजस्थानी संपूर्ण राजस्थान तथा वर्तमान मध्य-प्रदेश के अंतर्गत स्थित सांस्कृतिक इकाई मालवा की भाषा मानी जाती है। इसके बोलने वालों की संख्या लगभग ग्यारह करोड़ है। भाषाविदों ने राजस्थानी को हिंदी से पृथक भाषा स्वीकार किया है , किंतु इतिहासकारों एवं साहित्यकारों के मध्य वह हिंदी की ही एक उपभाषा मानी जाती है। राजस्थानी किसी एक स्थान-विशेष में बोली जाने वाली भाषा नहीं है, अपितु राजस्थान और मालवा में प्रचलित बोलियों (यथा- मारवाड़ी, ढूँढाड़ी, हाड़ोती, मेवाती, निमाड़ी, मालवी आदि) का सामूहिकता सूचक नाम है। उक्त बोलियों के सर्व-समावेशी ( Over-all-form ) के रूप में साहित्य में प्रतिष्ठित है जिसका विकास एक सुदीर्घ एवं सुस्पष्ट साहित्यिक परम्परा पर आधारित है। इस साहित्यिक स्वरूप में क्षेत्रीय विशेषताएँ भी अनायास ही समाहित हो गयी हैं। यह सर्व-समावेशी रूप समस्त राजस्थान और मालवा में पारस्परिक विचार-विनिमयता की दृष्टि से बोधगम्य है और इसीलिए आधुनिक साहित्य (साहित्यिक विधाओं एवं पत्र-पत्रिकाओं) में इसका व्यवहार होता है। राजस्थान में जितनी भी क्षेत्रीय बोलियाँ हैं , उनमें भाषातात्विक दृष्टि से इतना कम अंतर है कि किसी भी बोली-विशेष का वक्ता बिना किसी कठिनाई के राजस्थान में कहीं भी परस्पर विचार-विनिमय कर सकता है। जब कोई क्षेत्रीय प्रभाव साहित्यिक अभिव्यक्ति में उभर आता है तो वह राजस्थानी की अपनी विशेषता या पूँजी बन जाता है। कहने का अभिप्राय है कि राजस्थानी वह सरिता है जिसमें क्षेत्रीय बोलियाँ रूपी छोटे-छोटे नाले और जलधाराएँ समाविष्ट होकर उसके अभिन्न अंग बन गये हैं। अंत में, निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि सर्वसमावेशी अभिरचना ( Over-all-pattern ) की दृष्टि से राजस्थानी एक ऐसी सशक्त , समृद्ध तथ...

राजस्थान की विभिन्न इकाइयों के प्राचीन नाम

राजस्थान की विभिन्न इकाइयों के प्राचीन नाम,Ancient Names of Rajasthan Units- राजस्थान की विभिन्न इकाइयों के प्राचीन नाम , Download Notes of Rajasthan Units Old Names in Hindi PDF, जांगल प्रदेश – बीकानेर और जोधपुर का उत्तरी भाग, यौध्देय – हनुमानगढ़ और गंगानगर के आस-पास का क्षेत्र, शूरसेन – भरतपुर धौलपुर करौली एवं अन्य क्षेत्रों के प्राचीन नाम यहां देखे राजस्थान की विभिन्न इकाइयों (क्षेत्रों) (Ancient Names of Rajasthan Units) के प्राचीन नाम से संबंधित प्रश्न भी लगभग हर बार RPSC, RSMSSB, Rajasthan police Constable एवं अन्य Banks, Clerks की परीक्षाओं में आते है। राजस्थान में ऐसे कई प्राचीन क्षेत्र है जिनके प्राचीन नाम आदि से जुड़े प्रश्न परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते है। आइए इस पोस्ट के जरिये हम आपको राजस्थान के प्रमुख क्षेत्रों के प्राचीन नाम के बारे में जानकारी दे। यह जानकारी आप नीचे दी गई PDF के जरिये डाउनलोड करके अपने कंप्यूटर, लैपटॉप अथवा मोबाइल में संग्रहित भी कर सकते है। राजस्थान की विभिन्न इकाइयों के प्राचीन नाम (Ancient Names of Rajasthan Units)- राजस्थान के कई ऐसे प्रमुख क्षेत्र रहे है जिनके प्राचीन नाम आज भी लोगो से सुने जा (Ancient names of Rajasthan Units)सकते है। बीकानेर और जोधपुर, हनुमानगढ़ और गंगानगर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, उदयपुर व अन्य ऐसे किसी प्रदेश है जिनके प्राचीन समय में अलग नाम थे। इस आर्टिकल में हमने ऐसे सभी क्षेत्रो के सूचीवर नाम दिए हुए है। • जांगल प्रदेश – बीकानेर और जोधपुर का उत्तरी भाग • यौध्देय – हनुमानगढ़ और गंगानगर के आस-पास का क्षेत्र • शूरसेन – भरतपुर धौलपुर करौली • गिरवा – उदयपुर व आस पास की पहाड़ियों से घिरा हुआ क्षेत्र • गोडवाड़ – दक्षिणी...