Dhyan by swami vivekananda in hindi

  1. [PDF] All Swami Vivekananda Books PDF in Hindi (Download Free)
  2. दयानन्द सरस्वती
  3. Dhyan in Hindi
  4. ध्यान कैसे करें
  5. [PDF] All Swami Vivekananda Books PDF in Hindi (Download Free)
  6. Dhyan in Hindi
  7. दयानन्द सरस्वती
  8. ध्यान कैसे करें
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  10. Dhyan in Hindi


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ज्योतिपुंज विवेकानंद जी द्वारा हिंदू धर्म, योग, एवं अध्यात्म पर लिखी गई सभी पुस्तकों को नीचे दिए गए पुस्तकों के नाम पर क्लिक कर डाउनलोड करें। • • • • • • • • • • • • • • • • • अपनी कहै मेरी सुनै : व्यावहारिक तथा आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में समन्वय की अत्यंत आवश्यकता है। समन्वय कहते हैं सारी बातों को लेकर एकता स्थापित करना। समन्वय के बिना सर्वत्र अहं-हीनत्व एवं विद्वेष की भावना व्याप्त है। व्यावहारिक समन्वय पिता-पुत्र, पति-पत्नी, गुरू-शिष्य, सास-बहू, भाई-बहन, पड़ोसी-पड़ोसी में जो कलह है, इसका कारण है - आपस में समन्वय न करना। समन्वय करने के लिए सबकी अच्छाइयों को देखना पड़ेगा। परन्तु हम तो ऐसे अधम हैं कि हर समय सबकी बुराइयों को देखते हैं। एक दूसरे को न समझना ही कलह का कारण है। जितने मनुष्य हैं सबके स्वभावों, संस्कारों, गुण-कर्मों, शारीरिक-मानसिक स्थितियों में विभिन्नता है। इस विभिन्नता को मिटा पाना असम्भव है। ऐसी अवस्था में सबकी सारी बातें मिलाने तथा एक करने का हठ अज्ञान है और अपने ही समान दूसरे के सारे व्यवहार न देखकर भड़क जाना अत्यन्त नासमझी है। इस स्वाभाविक विभिन्नता भरे संसार में सारी बातों को एक करने का दुराग्रह असमीक्षित बुद्धी कर परिणाम है। More : दो व्यक्ति दो वातावरण एवं संस्कारों में जन्में होते हैं, फिर दोनों के सारे विचार और व्यवहार सर्वथा एक कैसे हो सकते हैं! ऐसी स्थिति में दोनों की केवल सार बातों को लेकर समन्वय कर लेने के अतिरिक्त एकता के लिए अन्य क्या चारा है! एक बंगाली, एक पंजाबी, एक उत्तरप्रदेशी तथा एक मद्रासी के विचारों-अचारों-व्यवहारों में अन्तर निश्चित है, क्योंकि देश की विभिन्नता होने के नाते विभिन्न संस्कार हैं। आज आपके लड़के अपनी पत्नी को लेकर बाजार घूमना ...

दयानन्द सरस्वती

अनुक्रम • 1 प्रारम्भिक जीवन • 1.1 महाशिवरात्रि को बोध • 1.2 गृह त्याग • 2 ज्ञान की खोज • 2.1 ज्ञान प्राप्ति के पश्चात • 3 आर्य समाज की स्थापना • 4 वैचारिक आन्दोलन, शास्त्रार्थ एवं व्याख्यान • 5 समाज सुधार के कार्य • 6 हत्या के षड्यन्त्र • 6.1 अंतिम प्रयास • 6.2 अंतिम शब्द • 7 जीवनचरित का लेखन • 8 स्वामी दयानन्द के योगदान के बारे में महापुरुषों के विचार • 9 लेखन व साहित्य • 9.1 सत्यार्थप्रकाश • 9.2 आर्योद्देश्यरत्नमाला • 9.3 गोकरुणानिधि • 9.4 व्यवहारभानु • 9.5 स्वीकारपत्र • 9.6 संस्कृतवाक्यप्रबोधः • 10 सन्दर्भ • 11 इन्हें भी देखें • 12 बाहरी कड़ियाँ प्रारम्भिक जीवन [ ] दयानन्द सरस्वती का जन्म १२ फरवरी महाशिवरात्रि को बोध [ ] शिव के पक्के भक्त बालक मूलशंकर को उनके पिता ने महाशिवरात्रि के अवसर पर व्रत रखने को कहा। शिव मंदिर में रात्रि में बालक ने चूहों को शिव लिंग पर उत्पात मचाते देखा तो उसको बोध हुआ कि यह वह शंकर नहीं है जिसकी कथा उसे सुनाई गई थी। इस के बाद मूलशंकर मन्दिर से घर चला गया और उसके मन में सच्चे शिव के प्रति जिज्ञासाउठी। गृह त्याग [ ] अपनी छोटी बहन और चाचा की ज्ञान की खोज [ ] फाल्गुन कृष्ण संवत् १८९५ में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात [ ] महर्षि दयानन्द ने वैचारिक आन्दोलन, शास्त्रार्थ एवं व्याख्यान [ ] वेदों को छोड़ कर कोई अन्य धर्मग्रन्थ प्रमाण नहीं है - इस सत्य का प्रचार करने के लिए स्वामी जी ने सारे देश का दौरा करना प्रारम्भ किया और जहां-जहां वे गये प्राचीन परम्परा के पण्डित और विद्वान उनसे हार मानते गये। संस्कृत भाषा का उन्हें अगाध ज्ञान था। संस्कृत में वे धाराप्रवाह बोलते थे। साथ ही वे प्रचण्ड तार्किक थे। उन्होंने समाज सुधार के कार्य [ ] महर्षि दयानन्द का समाज सुधा...

Dhyan in Hindi

प्रश्न : सद्‌गुरु, मैं अपनी एकाग्रता को लेकर बहुत परेशान रहता हूं। मेरा ध्यान आसानी से भटक जाता है। मैं अपना ध्यान एक दिशा में कैसे केंद्रित करूं? सद्‌गुरु : किसी खास दिशा में ध्यान स्थिर रखने के लिए सबसे पहले उन सभी गलत और मिथ्या धारणाओं को खत्म करना होगा, जो हमारे भीतर बनी हुई हैं। इसका मतलब हुआ कि अपने हर विश्वास को उठाकर एक तरफ रख दीजिए। आप कहेंगे कि आपके विश्वास सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी हैं। ठीक है। एक आत्म-ज्ञानी और एक मूर्ख में बस इतना ही अंतर होता है कि ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह मूर्ख है, जबकि मूर्ख यह नहीं जानता कि वह मूर्ख है। लोगों के बीच रहने के लिए कुछ लेन-देन करना पड़ता है, उसके लिए आपको कुछ चीजों पर विश्वास करना होता है, यहां तक तो ठीक है। लेकिन इसके अलावा अपनी हर धारणा को कम कीजिए। जब आप अपने विश्वास व धारणाओं को अलग रख देते हैं तो आपको ऐसा लगेगा कि आप भोंदू या निपट मूर्ख हैं। अगर आपको ऐसा लगता है तो बहुत अच्छा है। यह जानना बहुत अच्छा है कि आप एक निपट मूर्ख हैं। एक आत्म-ज्ञानी और एक मूर्ख में बस इतना ही अंतर होता है कि ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह मूर्ख है, जबकि मूर्ख यह नहीं जानता कि वह मूर्ख है। बस यही एक बड़ा अंतर है और यह जमीन आसमान का अंतर है। लोगों की समस्या सिर्फ इतनी है कि उनको पता ही नहीं होता कि वे किस जाल में फंसे हैं। अगर उन्हें पता होता तो क्या वे उसमें फं से रहना चाहते? वे बिल्कुल वहां नहीं रहना चाहते। सरल ध्यान साधना और ध्यान योग प्रक्रिया सिर्फ इतना कीजिए कि आज रात जब आप सोने जाइए तो उससे पहले आप बिस्तर पर बैठ कर मानसिक तौर पर हर वो चीज उठाकर एक तरफ रख दीजिए, जो आप नहीं हैं। अपने से जुड़ी हर चीज, जैसे अपनी जाति, अपना धर्म, अपनी राष्ट्...

ध्यान कैसे करें

ध्यान के लिए एक ऐसा नीरव एवं शांत स्थान ढूँढे जहाँ आप अलग से बैठकर निर्बाधित रूप से ध्यान कर सकें। अपने लिए एक ऐसा पवित्र स्थान बनाएं जो मात्र आपके ध्यान के अभ्यास के लिए ही हो। बिना हत्थे की एक कुर्सी पर बैठें या ज़मीन पर — ऊनी कम्बल या सिल्क का आसन बिछा कर पालथी मारकर बैठें। यह आपकी चेतना के प्रवाह को नीचे की ओर खींचने वाले धरती के सूक्षम प्रवाहों को अवरुद्ध करता है। वे लोग जिनके पैरों में दर्द नहीं होता उनके लिए सपाट पलंग पर या ज़मीन पर गद्दी लगाकर पालथी मारकर बैठना बेहतर है। हालाँकि यदि आसन सही है तो शरीर स्थिर फिर भी तनाव रहित रहेगा, और एक भी मांसपेशी को हिलाये बिना इसे पूर्ण रूप से निश्चल अवस्था में रखना संभव हो सकेगा। अब, अपने नेत्र बंद करें और अपनी दृष्टि को धीरे से, बिना तनाव, ऊपर की ओर भ्रूमध्य में स्थित करें — एकाग्रता के केंद्र बिंदु, और ईश्वरीय बोध के दिव्य चक्षु पर। “जब नया अभ्यासी कठोर ज़मीन पर ध्यान के लिए बैठता है तो, मांसपेशियों और रक्त नलिकाओं के दबने के कारण पैर सो जाते हैं। परन्तु यदि वह ज़मीन पर या सपाट पलंग पर गद्दा तथा उस पर कम्बल बिछा कर बैठता है तो उसके पैरों में दर्द नहीं होगा। पाश्चात्य देशों के लोग, जो कुर्सी पर अपने धड़ से टांगों के समकोण पर बैठने के आदी होते हैं, कुर्सी पर कम्बल या सिल्क का कपड़ा बिछा कर, उसे अपने पैरों तले ज़मीन तक फैलाकर, उस पर बैठ कर ध्यान करने में सुविधा अनुभव करते हैं। पाश्चात्य योग साधक, विशेष रुप से युवा लोग, जो पौर्वात्य लोगों की भांति पालथी मारकर ज़मीन पर बैठ सकते हैं, वे पाते हैं कि क्योंकि उनके पैर न्यून कोण पर मुड़ पाते हैं, उनके घुटने लचीले हैं। वे लोग पद्मासन में या साधारण रूप से पालथी मारकर ध्यान कर सकते हैं। “यदि ...

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ज्योतिपुंज विवेकानंद जी द्वारा हिंदू धर्म, योग, एवं अध्यात्म पर लिखी गई सभी पुस्तकों को नीचे दिए गए पुस्तकों के नाम पर क्लिक कर डाउनलोड करें। • • • • • • • • • • • • • • • • • अपनी कहै मेरी सुनै : व्यावहारिक तथा आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में समन्वय की अत्यंत आवश्यकता है। समन्वय कहते हैं सारी बातों को लेकर एकता स्थापित करना। समन्वय के बिना सर्वत्र अहं-हीनत्व एवं विद्वेष की भावना व्याप्त है। व्यावहारिक समन्वय पिता-पुत्र, पति-पत्नी, गुरू-शिष्य, सास-बहू, भाई-बहन, पड़ोसी-पड़ोसी में जो कलह है, इसका कारण है - आपस में समन्वय न करना। समन्वय करने के लिए सबकी अच्छाइयों को देखना पड़ेगा। परन्तु हम तो ऐसे अधम हैं कि हर समय सबकी बुराइयों को देखते हैं। एक दूसरे को न समझना ही कलह का कारण है। जितने मनुष्य हैं सबके स्वभावों, संस्कारों, गुण-कर्मों, शारीरिक-मानसिक स्थितियों में विभिन्नता है। इस विभिन्नता को मिटा पाना असम्भव है। ऐसी अवस्था में सबकी सारी बातें मिलाने तथा एक करने का हठ अज्ञान है और अपने ही समान दूसरे के सारे व्यवहार न देखकर भड़क जाना अत्यन्त नासमझी है। इस स्वाभाविक विभिन्नता भरे संसार में सारी बातों को एक करने का दुराग्रह असमीक्षित बुद्धी कर परिणाम है। More : दो व्यक्ति दो वातावरण एवं संस्कारों में जन्में होते हैं, फिर दोनों के सारे विचार और व्यवहार सर्वथा एक कैसे हो सकते हैं! ऐसी स्थिति में दोनों की केवल सार बातों को लेकर समन्वय कर लेने के अतिरिक्त एकता के लिए अन्य क्या चारा है! एक बंगाली, एक पंजाबी, एक उत्तरप्रदेशी तथा एक मद्रासी के विचारों-अचारों-व्यवहारों में अन्तर निश्चित है, क्योंकि देश की विभिन्नता होने के नाते विभिन्न संस्कार हैं। आज आपके लड़के अपनी पत्नी को लेकर बाजार घूमना ...

Dhyan in Hindi

प्रश्न : सद्‌गुरु, मैं अपनी एकाग्रता को लेकर बहुत परेशान रहता हूं। मेरा ध्यान आसानी से भटक जाता है। मैं अपना ध्यान एक दिशा में कैसे केंद्रित करूं? सद्‌गुरु : किसी खास दिशा में ध्यान स्थिर रखने के लिए सबसे पहले उन सभी गलत और मिथ्या धारणाओं को खत्म करना होगा, जो हमारे भीतर बनी हुई हैं। इसका मतलब हुआ कि अपने हर विश्वास को उठाकर एक तरफ रख दीजिए। आप कहेंगे कि आपके विश्वास सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी हैं। ठीक है। एक आत्म-ज्ञानी और एक मूर्ख में बस इतना ही अंतर होता है कि ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह मूर्ख है, जबकि मूर्ख यह नहीं जानता कि वह मूर्ख है। लोगों के बीच रहने के लिए कुछ लेन-देन करना पड़ता है, उसके लिए आपको कुछ चीजों पर विश्वास करना होता है, यहां तक तो ठीक है। लेकिन इसके अलावा अपनी हर धारणा को कम कीजिए। जब आप अपने विश्वास व धारणाओं को अलग रख देते हैं तो आपको ऐसा लगेगा कि आप भोंदू या निपट मूर्ख हैं। अगर आपको ऐसा लगता है तो बहुत अच्छा है। यह जानना बहुत अच्छा है कि आप एक निपट मूर्ख हैं। एक आत्म-ज्ञानी और एक मूर्ख में बस इतना ही अंतर होता है कि ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह मूर्ख है, जबकि मूर्ख यह नहीं जानता कि वह मूर्ख है। बस यही एक बड़ा अंतर है और यह जमीन आसमान का अंतर है। लोगों की समस्या सिर्फ इतनी है कि उनको पता ही नहीं होता कि वे किस जाल में फंसे हैं। अगर उन्हें पता होता तो क्या वे उसमें फं से रहना चाहते? वे बिल्कुल वहां नहीं रहना चाहते। सरल ध्यान साधना और ध्यान योग प्रक्रिया सिर्फ इतना कीजिए कि आज रात जब आप सोने जाइए तो उससे पहले आप बिस्तर पर बैठ कर मानसिक तौर पर हर वो चीज उठाकर एक तरफ रख दीजिए, जो आप नहीं हैं। अपने से जुड़ी हर चीज, जैसे अपनी जाति, अपना धर्म, अपनी राष्ट्...

दयानन्द सरस्वती

अनुक्रम • 1 प्रारम्भिक जीवन • 1.1 महाशिवरात्रि को बोध • 1.2 गृह त्याग • 2 ज्ञान की खोज • 2.1 ज्ञान प्राप्ति के पश्चात • 3 आर्य समाज की स्थापना • 4 वैचारिक आन्दोलन, शास्त्रार्थ एवं व्याख्यान • 5 समाज सुधार के कार्य • 6 हत्या के षड्यन्त्र • 6.1 अंतिम प्रयास • 6.2 अंतिम शब्द • 7 जीवनचरित का लेखन • 8 स्वामी दयानन्द के योगदान के बारे में महापुरुषों के विचार • 9 लेखन व साहित्य • 9.1 सत्यार्थप्रकाश • 9.2 आर्योद्देश्यरत्नमाला • 9.3 गोकरुणानिधि • 9.4 व्यवहारभानु • 9.5 स्वीकारपत्र • 9.6 संस्कृतवाक्यप्रबोधः • 10 सन्दर्भ • 11 इन्हें भी देखें • 12 बाहरी कड़ियाँ प्रारम्भिक जीवन [ ] दयानन्द सरस्वती का जन्म १२ फरवरी महाशिवरात्रि को बोध [ ] शिव के पक्के भक्त बालक मूलशंकर को उनके पिता ने महाशिवरात्रि के अवसर पर व्रत रखने को कहा। शिव मंदिर में रात्रि में बालक ने चूहों को शिव लिंग पर उत्पात मचाते देखा तो उसको बोध हुआ कि यह वह शंकर नहीं है जिसकी कथा उसे सुनाई गई थी। इस के बाद मूलशंकर मन्दिर से घर चला गया और उसके मन में सच्चे शिव के प्रति जिज्ञासाउठी। गृह त्याग [ ] अपनी छोटी बहन और चाचा की ज्ञान की खोज [ ] फाल्गुन कृष्ण संवत् १८९५ में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात [ ] महर्षि दयानन्द ने वैचारिक आन्दोलन, शास्त्रार्थ एवं व्याख्यान [ ] वेदों को छोड़ कर कोई अन्य धर्मग्रन्थ प्रमाण नहीं है - इस सत्य का प्रचार करने के लिए स्वामी जी ने सारे देश का दौरा करना प्रारम्भ किया और जहां-जहां वे गये प्राचीन परम्परा के पण्डित और विद्वान उनसे हार मानते गये। संस्कृत भाषा का उन्हें अगाध ज्ञान था। संस्कृत में वे धाराप्रवाह बोलते थे। साथ ही वे प्रचण्ड तार्किक थे। उन्होंने समाज सुधार के कार्य [ ] महर्षि दयानन्द का समाज सुधा...

ध्यान कैसे करें

ध्यान के लिए एक ऐसा नीरव एवं शांत स्थान ढूँढे जहाँ आप अलग से बैठकर निर्बाधित रूप से ध्यान कर सकें। अपने लिए एक ऐसा पवित्र स्थान बनाएं जो मात्र आपके ध्यान के अभ्यास के लिए ही हो। बिना हत्थे की एक कुर्सी पर बैठें या ज़मीन पर — ऊनी कम्बल या सिल्क का आसन बिछा कर पालथी मारकर बैठें। यह आपकी चेतना के प्रवाह को नीचे की ओर खींचने वाले धरती के सूक्षम प्रवाहों को अवरुद्ध करता है। वे लोग जिनके पैरों में दर्द नहीं होता उनके लिए सपाट पलंग पर या ज़मीन पर गद्दी लगाकर पालथी मारकर बैठना बेहतर है। हालाँकि यदि आसन सही है तो शरीर स्थिर फिर भी तनाव रहित रहेगा, और एक भी मांसपेशी को हिलाये बिना इसे पूर्ण रूप से निश्चल अवस्था में रखना संभव हो सकेगा। अब, अपने नेत्र बंद करें और अपनी दृष्टि को धीरे से, बिना तनाव, ऊपर की ओर भ्रूमध्य में स्थित करें — एकाग्रता के केंद्र बिंदु, और ईश्वरीय बोध के दिव्य चक्षु पर। “जब नया अभ्यासी कठोर ज़मीन पर ध्यान के लिए बैठता है तो, मांसपेशियों और रक्त नलिकाओं के दबने के कारण पैर सो जाते हैं। परन्तु यदि वह ज़मीन पर या सपाट पलंग पर गद्दा तथा उस पर कम्बल बिछा कर बैठता है तो उसके पैरों में दर्द नहीं होगा। पाश्चात्य देशों के लोग, जो कुर्सी पर अपने धड़ से टांगों के समकोण पर बैठने के आदी होते हैं, कुर्सी पर कम्बल या सिल्क का कपड़ा बिछा कर, उसे अपने पैरों तले ज़मीन तक फैलाकर, उस पर बैठ कर ध्यान करने में सुविधा अनुभव करते हैं। पाश्चात्य योग साधक, विशेष रुप से युवा लोग, जो पौर्वात्य लोगों की भांति पालथी मारकर ज़मीन पर बैठ सकते हैं, वे पाते हैं कि क्योंकि उनके पैर न्यून कोण पर मुड़ पाते हैं, उनके घुटने लचीले हैं। वे लोग पद्मासन में या साधारण रूप से पालथी मारकर ध्यान कर सकते हैं। “यदि ...

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ज्योतिपुंज विवेकानंद जी द्वारा हिंदू धर्म, योग, एवं अध्यात्म पर लिखी गई सभी पुस्तकों को नीचे दिए गए पुस्तकों के नाम पर क्लिक कर डाउनलोड करें। • • • • • • • • • • • • • • • • • अपनी कहै मेरी सुनै : व्यावहारिक तथा आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में समन्वय की अत्यंत आवश्यकता है। समन्वय कहते हैं सारी बातों को लेकर एकता स्थापित करना। समन्वय के बिना सर्वत्र अहं-हीनत्व एवं विद्वेष की भावना व्याप्त है। व्यावहारिक समन्वय पिता-पुत्र, पति-पत्नी, गुरू-शिष्य, सास-बहू, भाई-बहन, पड़ोसी-पड़ोसी में जो कलह है, इसका कारण है - आपस में समन्वय न करना। समन्वय करने के लिए सबकी अच्छाइयों को देखना पड़ेगा। परन्तु हम तो ऐसे अधम हैं कि हर समय सबकी बुराइयों को देखते हैं। एक दूसरे को न समझना ही कलह का कारण है। जितने मनुष्य हैं सबके स्वभावों, संस्कारों, गुण-कर्मों, शारीरिक-मानसिक स्थितियों में विभिन्नता है। इस विभिन्नता को मिटा पाना असम्भव है। ऐसी अवस्था में सबकी सारी बातें मिलाने तथा एक करने का हठ अज्ञान है और अपने ही समान दूसरे के सारे व्यवहार न देखकर भड़क जाना अत्यन्त नासमझी है। इस स्वाभाविक विभिन्नता भरे संसार में सारी बातों को एक करने का दुराग्रह असमीक्षित बुद्धी कर परिणाम है। More : दो व्यक्ति दो वातावरण एवं संस्कारों में जन्में होते हैं, फिर दोनों के सारे विचार और व्यवहार सर्वथा एक कैसे हो सकते हैं! ऐसी स्थिति में दोनों की केवल सार बातों को लेकर समन्वय कर लेने के अतिरिक्त एकता के लिए अन्य क्या चारा है! एक बंगाली, एक पंजाबी, एक उत्तरप्रदेशी तथा एक मद्रासी के विचारों-अचारों-व्यवहारों में अन्तर निश्चित है, क्योंकि देश की विभिन्नता होने के नाते विभिन्न संस्कार हैं। आज आपके लड़के अपनी पत्नी को लेकर बाजार घूमना ...

Dhyan in Hindi

प्रश्न : सद्‌गुरु, मैं अपनी एकाग्रता को लेकर बहुत परेशान रहता हूं। मेरा ध्यान आसानी से भटक जाता है। मैं अपना ध्यान एक दिशा में कैसे केंद्रित करूं? सद्‌गुरु : किसी खास दिशा में ध्यान स्थिर रखने के लिए सबसे पहले उन सभी गलत और मिथ्या धारणाओं को खत्म करना होगा, जो हमारे भीतर बनी हुई हैं। इसका मतलब हुआ कि अपने हर विश्वास को उठाकर एक तरफ रख दीजिए। आप कहेंगे कि आपके विश्वास सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी हैं। ठीक है। एक आत्म-ज्ञानी और एक मूर्ख में बस इतना ही अंतर होता है कि ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह मूर्ख है, जबकि मूर्ख यह नहीं जानता कि वह मूर्ख है। लोगों के बीच रहने के लिए कुछ लेन-देन करना पड़ता है, उसके लिए आपको कुछ चीजों पर विश्वास करना होता है, यहां तक तो ठीक है। लेकिन इसके अलावा अपनी हर धारणा को कम कीजिए। जब आप अपने विश्वास व धारणाओं को अलग रख देते हैं तो आपको ऐसा लगेगा कि आप भोंदू या निपट मूर्ख हैं। अगर आपको ऐसा लगता है तो बहुत अच्छा है। यह जानना बहुत अच्छा है कि आप एक निपट मूर्ख हैं। एक आत्म-ज्ञानी और एक मूर्ख में बस इतना ही अंतर होता है कि ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह मूर्ख है, जबकि मूर्ख यह नहीं जानता कि वह मूर्ख है। बस यही एक बड़ा अंतर है और यह जमीन आसमान का अंतर है। लोगों की समस्या सिर्फ इतनी है कि उनको पता ही नहीं होता कि वे किस जाल में फंसे हैं। अगर उन्हें पता होता तो क्या वे उसमें फं से रहना चाहते? वे बिल्कुल वहां नहीं रहना चाहते। सरल ध्यान साधना और ध्यान योग प्रक्रिया सिर्फ इतना कीजिए कि आज रात जब आप सोने जाइए तो उससे पहले आप बिस्तर पर बैठ कर मानसिक तौर पर हर वो चीज उठाकर एक तरफ रख दीजिए, जो आप नहीं हैं। अपने से जुड़ी हर चीज, जैसे अपनी जाति, अपना धर्म, अपनी राष्ट्...

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