दिनकर जी का निधन कहाँ और किन परिस्थितियों में हुआ था ?

  1. Ramdhari Singh Dinkar Death Anniversary Know Interesting Things About Dinkar
  2. दिनकर की रचनाएं हमारे जातीय साहित्य की अमूल्य धरोहर


Download: दिनकर जी का निधन कहाँ और किन परिस्थितियों में हुआ था ?
Size: 28.30 MB

Ramdhari Singh Dinkar Death Anniversary Know Interesting Things About Dinkar

वे लिखते हैं- "अच्छे लगते मार्क्स, किंतु है अधिक प्रेम गांधी से. प्रिय है शीतल पवन, प्रेरणा लेता हूं आंधी से." अपनी प्रारंभिक कविताओं में क्रांति का उद्घोष करके युवकों में राष्ट्रीयता व देशप्रेम की भावनाओं का ज्वार उठाने वाले दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) आगे चलकर राष्ट्रीयता का विसर्जन कर अंतरराष्ट्रीयता की भावना के विकास पर बल देते हैं. सत्ता के करीब होने के बावजूद भी दिनकर कभी जनता से दूर नहीं हुए. जनता के बीच उनकी लोकप्रियता हमेशा बनी रही. हरिवंश राय बच्चन का कहना था, ‘दिनकर जी को एक नहीं बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिंदी के सेवा के लिए अलग-अलग चार ज्ञानपीठ मिलने चाहिए थे' राजनीति हो या देशभक्ति हर जगह लिया जाता है रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविताओं का सहारा कुछ ऐसा था रामधारी सिंह दिनकर का जीवन रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था. रामधारी सिंह दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे. दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनके पिता का देहावसान हो गया था. दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी माता ने किया. साल 1928 में मैट्रिक के बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया. उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था. वह मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया. उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने. जब रामधारी सिंह दिनकर ने इस कवि से कहा, तुमने अभी ‘आत्मजयी' लिख डाली है तो बुढ़ापे में क्या लिखोगे!' Listen to the उनकी पहली रचना 'रेणुका' 1935 से प्रकाशित हुई. तीन...

दिनकर की रचनाएं हमारे जातीय साहित्य की अमूल्य धरोहर

मैं सोचता हूँ कि दिनकर की कविता में ऐसा क्या है जो हमें बार-बार आकर्षित करता है। वह है उनका खरापन, उनकी साफ़गोई और दिल खोल अंदाज़। उनकी कविता में गूँज और अनुगूँज बहुत है। दिनकर की कविताओं की सादगी बहुत प्रभावित करती है और कहन का तो कहना ही क्या? उनकी कविताओं में जनजागरण की विशेष खूबी है। ये कवितायें अनपढ़ों, किसानों, मज़दूरों और छोटे-छोटे लोगों को भी पसंद आती है। उनका एक प्रिय कविता का नारा सभी को बहुत पसंद आता है और आकर्षित भी करता है। वह है- सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। इसमें कोई राजनैतिक पैटर्न नहीं है। एक सादगी है कि जो सरकार जनता के विश्वासों पर खरी नहीं उतरेगी। उसे सिंहासन खाली करना पड़ेगा। दिनकर जी से आप सहमत-असहमत हो सकते हैं लेकिन उनकी राष्ट्रीयता, उनका जनता के प्रति प्रेम और अगाध विश्वास दोनों लाजबाव हैं। मुझे उनकी एक कविता बार-बार याद आती है वह हमारे समय के द्वन्द्वों को निरन्तर आलोकित भी करती है। दिनकर हमें बार-बार आगाह करने वाले और निरन्तर टेरने वाले रचनाकार हैं। उनकी कविता की पदचापें हमें हमेशा जागृत करती हैं। वह कविता है ‘आग की भीख’- बेचैन है हवायें, सब ओर बेकली है कोई नहीं बताता किश्ती किधर चली है। मजधार है, भंवर है या पास किनारा? यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा? मेरी दृष्टि में काव्यालोचन का क्षेत्र वीर पूजा का क्षेत्र नहीं होता। किसी भी रचनाकार का परीक्षण उसकी कृतियों, उसके समय की तमाम चुनौतियों, उसकी मान्यताओं और प्रतिक्रियाओं तथा विभिन्न विभीषिकाओं और विसंगतियों के आधार पर होता है। हिन्दी साहित्यालोचन की एक विकट समस्या यह भी रही है कि उसमें या तो स्नेह, पूजा, श्रद्धा का घनत्व रहा है या घृणा और तिरस्कार का। श्रद्धा, पूजा अथवा घृणा के अतिरेक में न जान...