Dirgh swar sandhi ke udaharan

  1. यण् संधि (Yan Sandhi)
  2. दीर्घ संधि की परिभाषा, अर्थ, एवं उदाहरण सहित पूरी जानकारी
  3. दीर्घ संधि
  4. YAN SANDHI (यण संधि)
  5. दीर्घ संधि किसे कहते हैं व दीर्घ संधि के 50 उदाहरण
  6. YAN SANDHI (यण संधि)
  7. दीर्घ संधि
  8. दीर्घ संधि की परिभाषा, अर्थ, एवं उदाहरण सहित पूरी जानकारी
  9. यण् संधि (Yan Sandhi)
  10. दीर्घ संधि किसे कहते हैं व दीर्घ संधि के 50 उदाहरण


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यण् संधि (Yan Sandhi)

यण् संधि – Yan Sandhi Sanskrit Yan Sandhi in Sanskrit:‘इको यणचि’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अच् ( यण् संधि के चार नियम होते हैं! यण संधि के उदाहरण – (Yan Sandhi Sanskrit Examples) (अ) इ/ई + अच् = य् + अच् अति + उत्तमः = अत्युत्तमः इति + अत्र = इत्यत्र इति + आदि = इत्यादि इति + अलम् = इत्यलम् यदि + अपि = यद्यपि प्रति + एकम् = प्रत्येकम् नदी + उदकम् = नधुदकम् स्त्री + उत्सवः = स्त्र्युत्सवः सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः (आ) उ/ऊ + अच् – व + अच् अनु + अयः = अन्वयः सु + आगतम् = स्वागतम् मधु + अरिः = मध्वरिः गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः साधु + इति = साध्विति वधू + आगमः = वध्वागमः अनु + आगच्छति = अन्वागच्छति (इ) ऋ/ऋ + अच् = अच् पितृ + ए = पित्रे मातृ + आदेशः = मात्रादेशः धातृ + अंशः = धात्रंशः मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा भ्रातृ + उपदेशः = भ्रात्रुपदेशः मातृ + अनुमतिः = मात्रनुमतिः सवितृ + उदयः = सवित्रुदयः पितृ + आकृतिः = पित्राकृतिः (ई) लु+अच् – लु+अच्। लृ + आकृतिः = लाकृतिः ल + अनुबन्धः = लनुबन्धः लृ + आकारः = लाकारः लृ + आदेशः = लादेशः सम्बंधित संधि: • • • • • • Filed Under:

दीर्घ संधि की परिभाषा, अर्थ, एवं उदाहरण सहित पूरी जानकारी

संधि तीन प्रकार की मानी गई है स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि । दीर्घ संधि स्वर संधि का एक भेद है। इसके अंतर्गत छोटे स्वर का परिवर्तन बड़े स्वर या मात्रा में हो जाता है। इस मात्रा या स्वर की वृद्धि को दीर्घ स्वर संधि कहा जाता है। आज के लेख में आप दीर्घ संधि का विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे। इसे सरल बनाने के लिए हमने विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर को ध्यान में रखा है। दीर्घ संधि की संपूर्ण जानकारी परिभाषा:- दो सजातीय स्वर और मिलकर दीर्घ स्वर के रूप में परिवर्तित होते हैं, ऐसी संधि को दीर्घ स्वर संधि कहते हैं। अ + अ = आ वेद + अंत वेदांत स्व + अर्थ स्वार्थ परम + अर्थ परमार्थ धर्म + अधर्म धर्माधर्म सत्य + अर्थ सत्यार्थ धर्म + अर्थ धर्मार्थ अन्न + अभाव अन्नाभाव अ + आ = आ गज + आनन गजानन हिम + आलय हिमालय सत्य + आनंद सत्यानंद शिव + आलय शिवालय परम + आनंद परमानन्द धर्म + आत्मा धर्मात्मा रत्न + आकर रत्नाकर आ + अ = आ शिक्षा + अर्थी शिक्षार्थी विद्या + अर्थी विद्यार्थी सीमा + अंत सीमान्त दीक्षा + अंत दीक्षांत यथा + अर्थ यथार्थ रेखा + अंकित रेखांकित सेवा + अर्थ सेवार्थ आ + आ = आ कारा + आवास कारावास दया + आनंद दयानन्द दया + आलु दयालु श्रद्धा + आनद श्रद्धानन्द महा + आत्मा महात्मा वार्ता + आलाप वार्तालाप विद्या + आलय विद्यालय इ + इ = ई कवि + इंद्र कवीन्द्र रवि + इंद्र रविंद्र कपि + इंद्र कपीन्द्र अति + इव अतीव गिरि + इंद्र गिरीन्द्र अभि + इष्ट अभीष्ट मुनि + इंद्र मुनींद्र इ +ई = ई प्रति + ईक्षा प्रतीक्षा मुनि + ईश्वर मुनीश्वर कवि + ईश्वर कवीश्वर कवि + ईश कवीश परि + ईक्षा परीक्षा हरि + ईश हरीश रवि + ईश रवीश ई + इ = ई योगी + इंद्र योगीन्द्र पत्नी + इच्छा पत्नीच्छा मही + इंद्र महीन्द्र नारी ...

दीर्घ संधि

सूत्र- अक: सवर्णे दीर्घ: अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ, ॠ हो जाते हैं। जैसे – नियम 1. अ/आ + अ/आ = आ • अ + अ = आ –> धर्म + अर्थ = धर्मार्थ • अ + आ = आ –> हिम + आलय = हिमालय • अ + आ =आ–> पुस्तक + आलय = पुस्तकालय • आ + अ = आ –> विद्या + अर्थी = विद्यार्थी • आ + आ = आ –> विद्या + आलय = विद्यालय नियम 2. इ और ई की संधि • इ + इ = ई –> रवि + इंद्र = रवींद्र ; मुनि + इंद्र = मुनींद्र • इ + ई = ई –> गिरि + ईश = गिरीश ; मुनि + ईश = मुनीश • ई + इ = ई –> मही + इंद्र = महींद्र ; नारी + इंदु = नारींदु • ई + ई = ई –> नदी + ईश = नदीश ; मही + ईश = महीश . नियम 3. उ और ऊ की संधि • उ + उ = ऊ –> भानु + उदय = भानूदय ; विधु + उदय = विधूदय • उ + ऊ = ऊ –> लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ; सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि • ऊ + उ = ऊ –> वधू + उत्सव = वधूत्सव ; वधू + उल्लेख = वधूल्लेख • ऊ + ऊ = ऊ –> भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ; वधू + ऊर्जा = वधूर्जा नियम 4. ऋ और ॠ की संधि • ऋ + ऋ = ॠ –> पितृ + ऋणम् = पित्रणम्

YAN SANDHI (यण संधि)

(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है। (ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है। (ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं । उदाहरण : इति + आदि = इत्यादि । पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा । यण संधि बनाने के नियम : Yan Sandhi Rules (इ + अ = य् + अ) यदि + अपि = यद्यपि । (ई + आ = य् + आ) इति + आदि = इत्यादि । (ई + अ = य् + अ) नदी + अर्पण = नद्यर्पण । (ई + आ = य् + आ) देवी + आगमन = देव्यागमन । (उ + अ = व् + अ) अनु + अय = अन्वय । (उ + आ = व् + आ) सु + आगत = स्वागत । (उ + ए = व् + ए) अनु + एषण = अन्वेषण । (ऋ + अ = र् + आ) पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा ।

दीर्घ संधि किसे कहते हैं व दीर्घ संधि के 50 उदाहरण

क्षोभमंडल ( छोभमंडल )- छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) के बारे में प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं- 1) छोभमंडल ( क्षोभमंडल ) को इंग्लिश में Tropo-Sphere ( ट्रोपोस्फीयर ) कहते हैं। 2) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) हमारे वायुमंडल की सबसे निचली परत होती है। 3) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) की ऊंचाई ध्रुवों पर 8 किलोमीटर तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 किलोमीटर होती है। 4) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) में 165 मीटर की ऊंचाई बढ़ने पर तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की कमी आती है तथा 1 Km ऊंचाई बढ़ने पर 6.4°C की कमी होती है। 5) सभी मुख्य वायुमंडलीय घटनाएं जैसे बादल बनना, आंधी आना एवं वर्षा होना इसी मंडल में होती है। 6) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) को ही संवहन मंडल भी कहते हैं, क्योंकि संवहन धाराएं केवल इसी मंडल की सीमाओं तक सीमित होती है। 7) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) को अधो मंडल भी कहते हैं। छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न- प्रश्न- छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) की ऊंचाई कितनी है? प्रश्न- वायुमंडल की सबसे निचली परत कौन सी होती है? प्रश्न- छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) को इंग्लिश में क्या कहते हैं? प्रश्न- छोभ मंडल ( क्षोभमंड इस आर्टिकल में आग्नेय चट्टान तथा आग्नेय चट्टान से संबंधित प्रश्नों के बारे में जानेंगे- आग्नेय चट्टान से संबंधित प्रश्न उत्तर- प्रश्न- आग्नेय चट्टान ( Igneous Rock ) किसे कहते हैं? उत्तर- वे चट्टानें जो मैग्मा या लावा के जमने से बनती हैं, आग्नेय चट्टान कहलाती है। प्रश्न- आग्नेय चट्टान को इंग्लिश में क्या कहते हैं? उत्तर- आग्नेय चट्टान को इंग्लिश में Igneous Rock ( इगनीयस राक ) कहते हैं। प्रश्न- आग्नेय चट्टान के उदाहरण कौन-कौन से हैं? उत्तर- आग्नेय चट्टान के उदाहरण निम्नलिखित हैं- ग्रेनाइट, बेसाल्ट, पेग्म...

YAN SANDHI (यण संधि)

(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है। (ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है। (ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं । उदाहरण : इति + आदि = इत्यादि । पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा । यण संधि बनाने के नियम : Yan Sandhi Rules (इ + अ = य् + अ) यदि + अपि = यद्यपि । (ई + आ = य् + आ) इति + आदि = इत्यादि । (ई + अ = य् + अ) नदी + अर्पण = नद्यर्पण । (ई + आ = य् + आ) देवी + आगमन = देव्यागमन । (उ + अ = व् + अ) अनु + अय = अन्वय । (उ + आ = व् + आ) सु + आगत = स्वागत । (उ + ए = व् + ए) अनु + एषण = अन्वेषण । (ऋ + अ = र् + आ) पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा ।

दीर्घ संधि

सूत्र- अक: सवर्णे दीर्घ: अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ, ॠ हो जाते हैं। जैसे – नियम 1. अ/आ + अ/आ = आ • अ + अ = आ –> धर्म + अर्थ = धर्मार्थ • अ + आ = आ –> हिम + आलय = हिमालय • अ + आ =आ–> पुस्तक + आलय = पुस्तकालय • आ + अ = आ –> विद्या + अर्थी = विद्यार्थी • आ + आ = आ –> विद्या + आलय = विद्यालय नियम 2. इ और ई की संधि • इ + इ = ई –> रवि + इंद्र = रवींद्र ; मुनि + इंद्र = मुनींद्र • इ + ई = ई –> गिरि + ईश = गिरीश ; मुनि + ईश = मुनीश • ई + इ = ई –> मही + इंद्र = महींद्र ; नारी + इंदु = नारींदु • ई + ई = ई –> नदी + ईश = नदीश ; मही + ईश = महीश . नियम 3. उ और ऊ की संधि • उ + उ = ऊ –> भानु + उदय = भानूदय ; विधु + उदय = विधूदय • उ + ऊ = ऊ –> लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ; सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि • ऊ + उ = ऊ –> वधू + उत्सव = वधूत्सव ; वधू + उल्लेख = वधूल्लेख • ऊ + ऊ = ऊ –> भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ; वधू + ऊर्जा = वधूर्जा नियम 4. ऋ और ॠ की संधि • ऋ + ऋ = ॠ –> पितृ + ऋणम् = पित्रणम्

दीर्घ संधि की परिभाषा, अर्थ, एवं उदाहरण सहित पूरी जानकारी

संधि तीन प्रकार की मानी गई है स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि । दीर्घ संधि स्वर संधि का एक भेद है। इसके अंतर्गत छोटे स्वर का परिवर्तन बड़े स्वर या मात्रा में हो जाता है। इस मात्रा या स्वर की वृद्धि को दीर्घ स्वर संधि कहा जाता है। आज के लेख में आप दीर्घ संधि का विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे। इसे सरल बनाने के लिए हमने विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर को ध्यान में रखा है। दीर्घ संधि की संपूर्ण जानकारी परिभाषा:- दो सजातीय स्वर और मिलकर दीर्घ स्वर के रूप में परिवर्तित होते हैं, ऐसी संधि को दीर्घ स्वर संधि कहते हैं। अ + अ = आ वेद + अंत वेदांत स्व + अर्थ स्वार्थ परम + अर्थ परमार्थ धर्म + अधर्म धर्माधर्म सत्य + अर्थ सत्यार्थ धर्म + अर्थ धर्मार्थ अन्न + अभाव अन्नाभाव अ + आ = आ गज + आनन गजानन हिम + आलय हिमालय सत्य + आनंद सत्यानंद शिव + आलय शिवालय परम + आनंद परमानन्द धर्म + आत्मा धर्मात्मा रत्न + आकर रत्नाकर आ + अ = आ शिक्षा + अर्थी शिक्षार्थी विद्या + अर्थी विद्यार्थी सीमा + अंत सीमान्त दीक्षा + अंत दीक्षांत यथा + अर्थ यथार्थ रेखा + अंकित रेखांकित सेवा + अर्थ सेवार्थ आ + आ = आ कारा + आवास कारावास दया + आनंद दयानन्द दया + आलु दयालु श्रद्धा + आनद श्रद्धानन्द महा + आत्मा महात्मा वार्ता + आलाप वार्तालाप विद्या + आलय विद्यालय इ + इ = ई कवि + इंद्र कवीन्द्र रवि + इंद्र रविंद्र कपि + इंद्र कपीन्द्र अति + इव अतीव गिरि + इंद्र गिरीन्द्र अभि + इष्ट अभीष्ट मुनि + इंद्र मुनींद्र इ +ई = ई प्रति + ईक्षा प्रतीक्षा मुनि + ईश्वर मुनीश्वर कवि + ईश्वर कवीश्वर कवि + ईश कवीश परि + ईक्षा परीक्षा हरि + ईश हरीश रवि + ईश रवीश ई + इ = ई योगी + इंद्र योगीन्द्र पत्नी + इच्छा पत्नीच्छा मही + इंद्र महीन्द्र नारी ...

यण् संधि (Yan Sandhi)

यण् संधि – Yan Sandhi Sanskrit Yan Sandhi in Sanskrit:‘इको यणचि’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अच् ( यण् संधि के चार नियम होते हैं! यण संधि के उदाहरण – (Yan Sandhi Sanskrit Examples) (अ) इ/ई + अच् = य् + अच् अति + उत्तमः = अत्युत्तमः इति + अत्र = इत्यत्र इति + आदि = इत्यादि इति + अलम् = इत्यलम् यदि + अपि = यद्यपि प्रति + एकम् = प्रत्येकम् नदी + उदकम् = नधुदकम् स्त्री + उत्सवः = स्त्र्युत्सवः सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः (आ) उ/ऊ + अच् – व + अच् अनु + अयः = अन्वयः सु + आगतम् = स्वागतम् मधु + अरिः = मध्वरिः गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः साधु + इति = साध्विति वधू + आगमः = वध्वागमः अनु + आगच्छति = अन्वागच्छति (इ) ऋ/ऋ + अच् = अच् पितृ + ए = पित्रे मातृ + आदेशः = मात्रादेशः धातृ + अंशः = धात्रंशः मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा भ्रातृ + उपदेशः = भ्रात्रुपदेशः मातृ + अनुमतिः = मात्रनुमतिः सवितृ + उदयः = सवित्रुदयः पितृ + आकृतिः = पित्राकृतिः (ई) लु+अच् – लु+अच्। लृ + आकृतिः = लाकृतिः ल + अनुबन्धः = लनुबन्धः लृ + आकारः = लाकारः लृ + आदेशः = लादेशः सम्बंधित संधि: • • • • • • Filed Under:

दीर्घ संधि किसे कहते हैं व दीर्घ संधि के 50 उदाहरण

क्षोभमंडल ( छोभमंडल )- छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) के बारे में प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं- 1) छोभमंडल ( क्षोभमंडल ) को इंग्लिश में Tropo-Sphere ( ट्रोपोस्फीयर ) कहते हैं। 2) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) हमारे वायुमंडल की सबसे निचली परत होती है। 3) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) की ऊंचाई ध्रुवों पर 8 किलोमीटर तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 किलोमीटर होती है। 4) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) में 165 मीटर की ऊंचाई बढ़ने पर तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की कमी आती है तथा 1 Km ऊंचाई बढ़ने पर 6.4°C की कमी होती है। 5) सभी मुख्य वायुमंडलीय घटनाएं जैसे बादल बनना, आंधी आना एवं वर्षा होना इसी मंडल में होती है। 6) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) को ही संवहन मंडल भी कहते हैं, क्योंकि संवहन धाराएं केवल इसी मंडल की सीमाओं तक सीमित होती है। 7) छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) को अधो मंडल भी कहते हैं। छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न- प्रश्न- छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) की ऊंचाई कितनी है? प्रश्न- वायुमंडल की सबसे निचली परत कौन सी होती है? प्रश्न- छोभ मंडल ( क्षोभमंडल ) को इंग्लिश में क्या कहते हैं? प्रश्न- छोभ मंडल ( क्षोभमंड इस आर्टिकल में आग्नेय चट्टान तथा आग्नेय चट्टान से संबंधित प्रश्नों के बारे में जानेंगे- आग्नेय चट्टान से संबंधित प्रश्न उत्तर- प्रश्न- आग्नेय चट्टान ( Igneous Rock ) किसे कहते हैं? उत्तर- वे चट्टानें जो मैग्मा या लावा के जमने से बनती हैं, आग्नेय चट्टान कहलाती है। प्रश्न- आग्नेय चट्टान को इंग्लिश में क्या कहते हैं? उत्तर- आग्नेय चट्टान को इंग्लिश में Igneous Rock ( इगनीयस राक ) कहते हैं। प्रश्न- आग्नेय चट्टान के उदाहरण कौन-कौन से हैं? उत्तर- आग्नेय चट्टान के उदाहरण निम्नलिखित हैं- ग्रेनाइट, बेसाल्ट, पेग्म...