द्विराष्ट्र सिद्धांत क्या था

  1. प्लेटो का न्याय का सिद्धांत
  2. द्विराष्ट्र सिद्धांत क्या है? » Dwirashtra Siddhant Kya Hai
  3. सप्तांग सिद्धांत क्या था


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प्लेटो का न्याय का सिद्धांत

Image Source- https://rb.gy/g0gxvi यह लेख ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी, देहरादून से बी.ए एल.एल.बी कर रहे छात्र Monesh Mehndiratta द्वारा लिखा गया है। यह लेख प्लेटो द्वारा दिए गए न्याय के सिद्धांत की व्याख्या करता है। यह लेख आगे प्लेटो के सिद्धांत की आलोचना और सुकरात (सोक्रेटिक) के प्रभाव पर प्रकाश डालता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है। Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • परिचय प्लेटो, कुलीन (नोबेल) माता-पिता के पुत्र थे और 427 ईसा पूर्व में पैदा हुए थे। वह सुकरात से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने अपनी शिक्षा अपने गुरु सुकरात से प्राप्त की थी, और बाद में लोगों के जीवन के तरीकों और सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं (स्ट्रक्चर) का निरीक्षण (ऑब्जर्व) करने के लिए एक यात्रा पर चले गए थे। उनके द्वारा अकादमी या जिमनैजियम नामक संस्था की भी स्थापना की गई थी। उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण विषयों पर विभिन्न सिद्धांत दिए और प्रसिद्ध “गणतंत्र” भी लिखा। न्याय की प्रकृति की व्याख्या करते हुए उन्होंने द्वंद्वात्मक पद्धति (डायलेक्टिक मैथड) का पालन किया था। इस पद्धति में, एक व्यक्ति एक विशेषज्ञ के साथ बात करता है और फिर उसके विचारों, धारणाओं और अवधारणाओं को समझने की कोशिश करता है ताकि वह किसी निष्कर्ष पर पहुंच सके और अपनी अवधारणाओं या सिद्धांतों को अपने तरीके से बना सके। प्लेटो लोगों से बातचीत करके और उनके विचारों को समझकर उनके जीवन के तौर-तरीकों को समझने के लिए एक यात्रा पर निकल पड़े थे। प्लेटो द्वारा दिए गए सिद्धांत को सामाजिक न्याय (सोशल जस्टिस) का सिद्धांत भी कहा जाता है क्योंकि प्लेटो ने बताया था कि राज्य पूरे समाज ...

द्विराष्ट्र सिद्धांत क्या है? » Dwirashtra Siddhant Kya Hai

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सप्तांग सिद्धांत क्या था

• स्वामी • अमात्य • भू-प्रदेश(जनपद) • दुर्ग • कोष • सेना • मित्र विष्णु धर्मोत्तर पुराण में स्वामी तथा अमात्य के स्थान पर क्रमशः साम तथा दान का उल्लेख हुआ है। किन्तु कौटिल्य द्वारा निर्धारित अंग ही इतिहास में प्रमाणिक माने जाते हैं। राज्य के अंगों का जो कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित हैं, का विस्तार से विवरण इस प्रकार है- स्वामी स्वामी से तात्पर्य राजा से है। इसे सम्राट भी कहा जाता था। यह राज्य का प्रथम अंग होता था। कौटिल्य राजा के गुणों की जानकारी प्रदान करता है-उसके अनुसार राजा इन गुणों से परिपूर्ण होना चाहिये- उच्चकुल में उत्पन्न, विनयशील,सत्यनिष्ठ, स्थूललक्ष, क्रतज्ञ, सत्यप्रतिज्ञ, धर्मात्मा, वृद्धदर्शी, सुख एवं दुःख में धैर्यशाली, बुद्धिमान, दैवसम्पन्न, आलस्यरहित, महान उत्साह युक्त, दृढ निश्चयी, बङी मंत्रिपरिषद वाला, सामंतों को आसानी से वश में करने वाला। अमात्य अर्थाशास्र में अमात्य शब्द का प्रयोग सभी उच्च श्रेणी के पदाधिकारियों के लिये किया गया है। इन मंत्रियों में से योग्यतानुसार सम्राट अपने मंत्रियों तथा अन्य सलाहकारों की नियुक्ति करता था। कौटिल्य कहता है, कि जनपद संबंधी सभी कार्य अमात्य के ऊपर ही निर्भर करते हैं। कृषि संबंधी कार्य,दुर्ग निर्माण, जनपद का कल्याण, विपत्तियों से रक्षा, अपराधियों को दंड देना, राजकीय करों को एकत्रित करना आदि सभी कार्य अमात्यों द्वारा ही किये जाने चाहिये। मौर्योत्तर युग में अमात्य को सचिव कहा जाने लगा था। कौटिल्य ने जनपद के लिये कहा है, कि जनपद की जलवायु अच्छी होनी चाहिये, उसमें पशुओं के लिये चारागाह हो, जहाँ कम परिश्रम में अधिक अन्न उत्पन्न हो सके, जहाँ उद्यमी कृषक रहते हों, जहाँ योग्य पुरुषों का निवास हो, जहाँ निम्न वर्ग के लोग विशेष रूप से...