एक घड़ी आधी घड़ी श्लोक

  1. sun sun re satsang ri baata bhajan lyrics
  2. ANG 1377, Guru Granth Sahib ji (hindi punjabi english)
  3. आपका ब्लॉग: एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी से पुनि आध , तुलसी संगत साध की ,काटे कोटि अपराध। जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज
  4. सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध
  5. हिन्दू काल गणना
  6. Salok Bhagat Kabir Ji in Hindi सलोक/श्लोक भक्त कबीर जी
  7. एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध
  8. कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय : जीवन में संगति सुंदर रखें
  9. मो सम दीन


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sun sun re satsang ri baata bhajan lyrics

एक घड़ी आधी घड़ी और आधी में पूनी आध, तुलसी सत्संगत संत की मिटे करोड़ अपराध, तपस्या बरस हजार की सतसंग की घड़ी एक, तो भी बराबर ना तुले मुनि सुखदेव की विवेक सुन सुन रै सुन सुन रै, सुन सुन रै सतसंग री बातां, जनम सफल हो जावेला, राम सुमिर सुख पावेला सत री संगत में नित रो आणों, सत शब्दा को ध्यान लगाणों, सुणियाँ पाप कट जावेला, राम सुमर सुख पावेला, सुन सुन रै सुन सुन रै, सुन सुन रै सतसंग री बातां, जनम सफल हो जावेला, राम सुमिर सुख पावेला सत री संगत में सतगुरु आसी, प्रेम भाव रस प्याला प्यासी, पिया अमर हो जावेला, राम सुमर सुख पावेला, सुन सुन रै सुन सुन रै, सुन सुन रै सतसंग री बातां, जनम सफल हो जावेला, राम सुमिर सुख पावेला चेत चेत नर चेतो कर ले, राम नाम की बाळद भर ले, खर्च बिना काई खावे ला, राम सुमर सुख पावेला, सुन सुन रै सुन सुन रै, सुन सुन रै सतसंग री बातां, जनम सफल हो जावेला, राम सुमिर सुख पावेला दास भगत थाने दे रहा हेला, अबके बिछड्या फेर ना मिलाला, फेर पछे पछतावोला, राम सुमर सुख पावेला, सुन सुन रै सुन सुन रै, सुन सुन रै सतसंग री बातां, जनम सफल हो जावेला, राम सुमिर सुख पावेला

ANG 1377, Guru Granth Sahib ji (hindi punjabi english)

ਮੁਕਤਿ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਈਐ ਠਾਕ ਨ ਅਵਘਟ ਘਾਟ ॥੨੩੧॥ मुकति पदारथु पाईऐ ठाक न अवघट घाट ॥२३१॥ Mukati padaarathu paaeeai thaak na avaghat ghaat ||231|| ਉਸ ਦੀ ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਫਲ ਇਹ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਦੁਨੀਆ ਦੇ "ਬਾਦ ਬਿਬਾਦ" ਤੋਂ ਖ਼ਲਾਸੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਕੋਈ ਭੀ ਵਿਕਾਰ ਇਸ ਔਖੇ ਸਫ਼ਰ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿਚ ਰੋਕ ਨਹੀਂ ਪਾਂਦਾ ॥੨੩੧॥ उनकी संगत में ही मुक्ति प्राप्त होती है और कठिन रास्ते में रुकावट पैदा नहीं होती ॥ २३१ ॥ He obtains the treasure of liberation, and the difficult road to the Lord is not blocked. ||231|| Bhagat Kabir ji / / Slok (Bhagat Kabir ji) / Ang 1377 ਕਬੀਰ ਏਕ ਘੜੀ ਆਧੀ ਘਰੀ ਆਧੀ ਹੂੰ ਤੇ ਆਧ ॥ कबीर एक घड़ी आधी घरी आधी हूं ते आध ॥ Kabeer ek gha(rr)ee aadhee gharee aadhee hoonn te aadh || ਹੇ ਕਬੀਰ! (ਚੂੰਕਿ ਦੁਨੀਆ ਦੇ "ਬਾਦ ਬਿਬਾਦ" ਤੋਂ ਖ਼ਲਾਸੀ ਸਾਧੂ ਦੀ ਸੰਗਤ ਕੀਤਿਆਂ ਹੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ, ਇਸ ਵਾਸਤੇ) ਇੱਕ ਘੜੀ, ਅੱਧੀ ਘੜੀ, ਘੜੀ ਦਾ ਚੌਥਾ ਹਿੱਸਾ- कबीर जी उपदेश देते हैं कि बेशक एक घड़ी या आधी घड़ी, आधी से भी आधी। Kabeer, whether is for an hour, half an hour, or half of that, Bhagat Kabir ji / / Slok (Bhagat Kabir ji) / Ang 1377 ਭਗਤਨ ਸੇਤੀ ਗੋਸਟੇ ਜੋ ਕੀਨੇ ਸੋ ਲਾਭ ॥੨੩੨॥ भगतन सेती गोसटे जो कीने सो लाभ ॥२३२॥ Bhagatan setee gosate jo keene so laabh ||232|| ਜਿਤਨਾ ਚਿਰ ਭੀ ਗੁਰਮੁਖਾਂ ਦੀ ਸੰਗਤ ਕੀਤੀ ਜਾਏ, ਇਸ ਤੋਂ (ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਵਿਚ) ਨਫ਼ਾ ਹੀ ਨਫ਼ਾ ਹੈ ॥੨੩੨॥ जितने समय भक्तों से ज्ञान-गोष्ठी की जाए, लाभ ही लाभ प्राप्त होता है।॥२३२ ॥ Whatever it is, it is worthwhile to speak with the Holy. ||232|| Bhagat Kabir ji / / Slok (Bhagat Kabir ji) / Ang 1377 ਕਬੀਰ ਭਾਂਗ ਮਾਛੁਲੀ ਸੁਰਾ ਪਾਨਿ ਜੋ ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਖਾਂਹਿ ॥ कबीर भांग माछुली सुरा पानि जो जो प्रानी खांहि ॥ Kabeer bhaang maachhulee suraa paani jo jo praanee ...

आपका ब्लॉग: एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी से पुनि आध , तुलसी संगत साध की ,काटे कोटि अपराध। जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज

मित्रों! आप सबके लिए तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल पर एक मेल करना होगा। मैं आपको पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। कई कई दिनों तक आप "महाभाव "में भाव समाधि लगाते रहते थे। स्वयं कृष्ण की आराध्य राधारानी में प्राकट्य होता है इस "महाभाव "का। पांच सौ बरस पहले इस महाभावमें चैतन्य महाप्रभु ने भी गोते लगाए थे। दो बरस की साधना के बाद आप राधा कृष्ण के प्रति अपने दिव्यप्रेम को प्रसाद के रूप में बाँटने निकल पड़े जंगल छोड़ इस जगत की ओर जन कल्याण हेतु। जनवरी १९५७ में काशी विद्वत परिषत (Kashi Vidvat Parishat )ने आपको संभाषण के लिए आमंत्रितकिया था।इस संस्था से शीर्ष५००अध्येयता ,वैदिक साहित्य केजुड़े हुए रहे हैं।सभी ने मुक्त कंठ से माना आप सबसे अग्रणी हैं आध्यात्मिकज्ञान और वैदिक साहित्यके अंतिम आगार हैं। इसी संभाषण श्रृंखला के दौर विद्वत परिषत ने आपको जगद्गुरु के ओहदे से विभूषित किया। • ► (13) • ► (3) • ► (8) • ► (2) • ► (92) • ► (8) • ► (5) • ► (6) • ► (8) • ► (6) • ► (8) • ► (9) • ► (11) • ► (7) • ► (5) • ► (11) • ► (8) • ► (108) • ► (12) • ► (14) • ► (9) • ► (7) • ► (8) • ► (5) • ► (9) • ► (7) • ► (10) • ► (12) • ► (7) • ► (8) • ► (66) • ► (9) • ► (4) • ► (3) • ► (11) • ► (6) • ► (3) • ► (4) • ► (5) • ► (10) • ► (5) • ► (3) • ► (3) • ► (84) • ► (4) • ► (6) • ► (5) • ► (7) • ► (3) • ► (2) • ► (8) • ► (8) • ► (4)...

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध | सठ सुधरहिं सतसंगति पाई Satsangati Ka Mahatva Nibandh: आज का हिंदी Essay एक कहावत पर आधारित है सठ सुधरहिं सतसंगति पाई अच्छी संगत पर निबंध पेश कर रहे हैं. रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि, दूध कलारिन हाथ लखि, मद समुझहि सब ताहि. अर्थात यदि मनुष्य कुसंगति में पड़ जाए तो उसका सर्वनाश सुनिश्चित है. दूध जैसा पवित्र पदार्थ भी कलारिन के हाथ में मदिरा ही समझी जाती है. अतः बुरे मनुष्यों को संगति कभी नहीं करनी चाहिए, एक लैटिन लोकोक्ति है कि यदि तुम सभी लंगड़ों के साथ रहोगे तो तुम स्वयं भी लंगडाना सीख जाओगे. वास्तव में संसगर्जा दोष गुणा भवन्ति अर्थात संसर्ग से ही दोष गुण आते है. संगति का प्रभाव इतना अधिक होता है कि सुसंगति में अधम व्यक्ति भी सुधर जाता है. सत्संगति व्यक्ति को उच्च सामाजिक स्तर प्रदान करती है, विकास के लिए सुमार्ग की ओर प्रेरित करती है. बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और सबसे बढ़कर व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है. सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर कहानी सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है. पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की. Telegram Group इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है. सत्संगति एक प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का प...

हिन्दू काल गणना

प्राचीन समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान हैं। प्राचीन भारतीय मापन पद्धतियां, अभी भी प्रयोग में हैं (मुख्यतः मूल सनातन हिन्दू धर्म के धार्मिक उद्देश्यों में)। इसके साथ साथ ही हिन्दू वैदिक ग्रन्थों मॆं लम्बाई-क्षेत्र-भार मापन की भी इकाइयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं।यह सभी हिन्दू समय चक्र (श्लोक 11) वह जो कि श्वास (प्राण) से आरम्भ होता है, यथार्थ कहलाता है; और वह जो त्रुटि से आरम्भ होता है, अवास्तविक कहलाता है। छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है। साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है। (12) और साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं। तीस दिवसों से एक मास (महीना) बनता है। एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है। (13) एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से बनता है। एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है। बारह मास एक वर्ष बनाते हैं। एक वर्ष को देवताओं का एक दिवस कहते हैं। (14) देवताओं और दैत्यों के दिन और रात्रि पारस्परिक उलटे होते हैं। उनके छः गुणा साठ देवताओं के (दिव्य) वर्ष होते हैं। ऐसे ही दैत्यों के भी होते हैं। (15) बारह सहस्र (हज़ार) दिव्य वर्षों को एक (16) चतुर्युगी की उषा और संध्या काल होते हैं। अनुक्रम • 1 समय • 1.1 नाक्षत्रीय मापन • 1.1.1 छोटी वैदिक समय इकाइयाँ • 1.2 चाँद्र मापन • 1.3 ऊष्ण कटिबन्धीय मापन • 1.4 अन्य अस्तित्वों के सन्दर्भ में काल-गणना • 1.5 पाल्या • 2 वर्तमान तिथि • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ • 5 बाहरी कड़ियां (17) एक चतुर्युगी का दशांश को क्रमशः चार, तीन, दो और एक से गुणा करने पर कॄतयुग और अन्य युगों की अवधि मिलती है। इन सभी का छठा भाग इनकी उषा और संध्या होता है। (18) इकहत्तर चतुर्युगी एक (19) एक (20) एक कल्प में, एक...

Salok Bhagat Kabir Ji in Hindi सलोक/श्लोक भक्त कबीर जी

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एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध

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कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय : जीवन में संगति सुंदर रखें

तब से ही ये बात दिमाग में घर कर गई थी कि संगति का बड़ा गहरा असर पड़ता होगा जीवन में। तभी तो बड़े हमेशा संगति पर नजर रखते हैं। आज इसी संगति का असर, पूरी दुनिया में अपना असर दिखा रहा है। और कोरोना में तो और भी ज्यादा। अब तो साथ रह कर भी दूर -दूर रहने को मजबूर हम आज इस संगति विषय पर ही बात करते हैं क्योंकि मनुष्य जीवन की उन्नति संगति से ही होती है। संगति से उसका स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। संगति ही उसे नया जन्म देता है। जैसे, कचरे में चल रही चींटी यदि गुलाब के फूल तक पहुंच जाए तो वह देवताओं के मुकुट तक भी पहुंच जाती है। ऐसे ही महापुरुषों के संग से नीच व्यक्ति भी उत्तम गति को पा लेता है। हमारा देश, इसका ज्ञानकोष, संस्कृति, शास्त्र, पुराण, वेद, काव्य-महाकाव्य और इतिहास ऐसी ही कितनी शिक्षाप्रद हीरे-मोती सी बातों को अपने गर्भ में छुपा कर बैठा हुआ है।ये एक महासागर, महा समुद्र है इसमें जितने गहरे गोते लगाओगे उतने रत्न हमारे हाथ लगेंगे। ये वो रत्न हैं जो आपके जीवन को अपने अनुभव की कहासुनी से आसन,सरल और सहज बना देंगे।

मो सम दीन

सर्व-कार्य-सिद्धि जञ्जीरा मन्त्र “या उस्ताद बैठो पास, काम आवै रास। ला इलाही लिल्ला हजरत वीर कौशल्या वीर, आज मज रे जालिम शुभ करम दिन करै जञ्जीर। जञ्जीर से कौन-कौन चले? बावन वीर चलें, छप्पन कलवा चलें। चौंसठ योगिनी चलें, नब्बे नारसिंह चलें। देव चलें, दानव चलें। पाँचों त्रिशेम चलें, लांगुरिया सलार चलें। भीम की गदा चले, हनुमान की हाँक चले। नाहर की धाक चलै, नहीं चलै, तो हजरत सुलेमान के तखत की दुहाई है। एक लाख अस्सी हजार पीर व पैगम्बरों की दुहाई है। चलो मन्त्र, ईश्वर वाचा। गुरु का शब्द साँचा।” विधि- उक्त मन्त्र का जप शुक्ल-पक्ष के सोमवार या मङ्गलवार से प्रारम्भ करे। कम-से-कम ५ बार नित्य करे। अथवा २१, ४१ या १०८ बार नित्य जप करे। ऐसा ४० दिन तक करे। ४० दिन के अनुष्ठान में मांस-मछली का प्रयोग न करे। जब ‘ग्रहण’ आए, तब मन्त्र का जप करे। यह मन्त्र सभी कार्यों में काम आता है। भूत-प्रेत-बाधा हो अथवा शारीरिक-मानसिक कष्ट हो, तो उक्त मन्त्र ३ बार पढ़कर रोगी को पिलाए। मुकदमे में, यात्रा में-सभी कार्यों में इसके द्वारा सफलता मिलती है। _______________________________________ अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र ब्रह्मसंहिता संस्कृत व अंग्रेजी अर्थ सहित । 5.01 ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणम् īśvaraḥ paramaḥ kṛṣṇaḥ sac-cid-ānanda-vigrahaḥ anādir ādir govindaḥ sarva-kāraṇa-kāraṇam Translation: Kṛṣṇa who is known as Govinda is the Supreme Godhead. He has an eternal blissful spiritual body. He is the origin of all. He has no other origin and He is the prime cause of all causes. 5.29 चिन्तामणिप्रकरसद्मसु कल्पवृक्ष लक्षावृतेषु सुरभिरभिपालयन्तम् लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमा...