एक जर्मन राजनीतिक दल

  1. भारत के राजनीतिक दल कौन कौन से हैं? भारत के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल
  2. हिटलर के उदय की पृष्ठभूमि
  3. 43 साल में हर दल के साथ रह चुके हैं जीतनराम मांझी, जानिए कब किसके सगे और कब किसके हुए पराए
  4. Germany:जर्मनी में राजनीतिक दल के राज्य प्रेसिडियम में चुने गए गुरदीप रंधावा, यह पद पाने वाले पहले भारतीय
  5. जर्मनों को कितना देशभक्त होना चाहिए?
  6. भारत में कितने राजनीतिक दल है


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भारत के राजनीतिक दल कौन कौन से हैं? भारत के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल

भारत के राजनीतिक दल भारत में बहुदलीय प्रणाली व्यवस्था है जिसमें छोटे क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। राष्ट्रीय पार्टियां वे हैं जो चार या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त हैं। उन्हें यह अधिकार भारत के चुनाव आयोग द्वारा दिया जाता है, जो विभिन्न राज्यों में समय समय पर चुनाव परिणामों की समीक्षा करता है। निर्वाचन आयोग निश्चित मानदंडों पर राष्ट्रिय या प्रांतीय दल के रूप में मान्यता देता हैं। इस पोस्ट के माध्यम से आइये जानते हैं कि भारत के राजनीतिक दल कौन कौन से हैं? राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल कौन कौन से हैं? • इसे भी पढ़े – राष्ट्रीय दल किसे कहते है ? राष्ट्रीय दल क्या हैं ? इस आर्टिकल की प्रमुख बातें • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • अगर कोई दल पिछले लोगसभा या विधानसभा आम चुनाव में कम से कम चार राज्यों में पड़े कुल वैध मतों का 6% हासिल करता हैं साथ ही लोकसभा आम चुनाव में कम से कम 4 सीटों पर जीत दर्ज करता हैं। या यदि किसी दल ने लोकसभा या विधान सभा आम चुनाव में कुल पड़े वैध मतों का 6% या अधिक मत अर्जित किया हैं। साथ ही वह किसी राज्य या राज्यों से लोकसभा में 4 सीट प्राप्त करता हैं। या कोई दल कम से कम 4 राज्यों में प्रांतीय दल की मान्यता रखता हैं। तो भारत के ऐसे राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल कहते हैं। • इसे भी पढ़ें – क्षेत्रीय दल कसे कहते है ? क्षेत्रीय दल क्या है ? किसी दल ने यदि। विधानसभा आम चुनाव में कुल पड़े वैध मतों का 6% या अधिक मत उस राज्य में अर्जित किया हैं साथ ही उस राज्य में 2 स्थान प्राप्त किया हैं। या यदि किसी दल ने राज्य विधान सभा आम चुनाव में 3 विधानसभा सीट या राज्य की कुल सीटों का 3 % सीट जो ज्यादा हो वह प्राप्त किया हो। या किसी दल ने यदि लोकसभा आम चुनाव में र...

हिटलर के उदय की पृष्ठभूमि

और उसके सहयोगी राष्ट्रों की पराजय हुई। इसके बाद जर्मनी में घटनाक्रम तेजी से बदला। युद्ध में पराजित होने पर जर्मन सम्राट कैजर विलियम द्वितीय ने गही त्याग दी और वह हॉलैंड चला गया। समाजवादी प्रजातांत्रिक दल ने सत्ता अपने हाथों में लेकर फ्रेडरिक एवंट को चांसलर नियुक्त किया। || नवंबर 1918 को नई सरकार ने युद्धविराम संधि पर हस्ताक्षर किया। जर्मनी में वेमर नामक स्थान पर राष्ट्रीय सभा की बैठक हुई। इस सभा ने वेगर गणतंत्र (Weimar Republic) की स्थापना की तथा वेमर संविधान ।। अगस्त 1919 को लागू किया। इसके अनुसार, जर्मनी में संघीय शासन-व्यवस्था लागू की गई तथा राष्ट्रपति को आपातकालीन शक्तियाँ दी गई। इस गणतंत्रात्मक सरकार के समर्थक मुख्यतः समाजवादी, कैथोलिक और डेमोक्रेटस (जनतंत्रवादी) थे। नई सरकार ने ही वर्साय (28 जून 1919) की अपमानजनक संधि की। इसकी जर्मनी में काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई। जिस समय ये घटनाएँ घट रही थीं उस समय हिटलर अस्पताल में भरती था। वर्साय की संधि की खबर सुनकर उसे अत्यधिक रोष हुआ। जर्मन अपमान के लिए उसने नेताओं को दोषी ठहराया। उसने राजनीति में प्रवेश करने का निश्चय किया। जर्मनी में स्थिति असंतोषजनक थी। गणतंत्र के समर्थक और इसके नेता नवंबर क्रिमिनल्स (November Criminals) के नाम से पुकारे गए। हिटलर ने इस असंतोष को बढ़ावा देना आरंभ किया। अस्पताल से स्वस्थ होकर उसने युवकों के साथ संपर्क स्थापित किया। 1919 में उसने जर्मन वर्कर्स पार्टी (German Workers’ Party) की सदस्यता ग्रहण की। उसने इसका पुनर्गठन किया और इसपर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया। अब उसने इसका नाम बदलकर नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (National Socialist German Workers’ Party) रखा। यही पार्टी बाद में नाजी पार्टी (Na...

43 साल में हर दल के साथ रह चुके हैं जीतनराम मांझी, जानिए कब किसके सगे और कब किसके हुए पराए

43 साल का करियर, 6-7 राजनीतिक वफादारियां... गया के मुसहर समाज से निकलकर पाटलिपुत्र की धरती पर अपनी सियासी पहचान कायम करने वाले जीतनराम मांझी की कहानी हमारी सियासत की खासियत बताती है. यहां समाज के बेहद निचले तबके से निकलकर सामने की कतार में खड़े होने की गुंजाइश तो है, लेकिन इसके लिए समझौते भी करने पड़ते हैं. कभी विचारधारा से तो कभी जन कल्याण की थ्योरी से. राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. कई राजनेता इस बयान को अपनी सुविधा के अनुसार दोहराते आए हैं. लेकिन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने इस बयान को भरपूर जीया है. अपने 43 साल के सियासी सफर में बिहार के छोटे मौसम वैज्ञानिक जीतनराम मांझी ने कांग्रेस के साथ अपनी राजनीति शुरू की और फिर जनता दल, आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी के साथ सत्ता में रहे. 1980 से सियासत शुरू करने वाले जीतनराम मांझी अपने 43 साल के राजनीतिक सफर में 8 बार पाला बदल चुके हैं. अब नौवीं की वे तैयारी कर रहे हैं. दरअसल राजनीति में जीतनराम मांझी किसी के नहीं हैं और सभी के हैं. जीतनराम मांझी एक बार फिर से सौगंध तोड़ने की तैयारी कर रहे हैं. ज्यादा दिन हुए इसी साल 27 फरवरी को जीतनराम मांझी ने कहा था कि कसम खाकर कहता हूं नीतीश का साथ छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा. लेकिन राजनीति का अपना मिजाज है, वो भी बिहार की राजनीति. मात्र 107 दिन हुए; नीतीश के साथ मांझी की नैया डांवाडोल है. मांझी अपने अगले कदम की रुपरेखा निर्धारित करने के लिए अपनी पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा की 18 जून राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है. जीतनराम मांझी के वर्तमान को समझने के लिए उनके अतीत, उनके सफर को जानना जरूरी है. बात लगभग 70 साल पहले की है. बिहार के गया जिले के महकार गांव म...

Germany:जर्मनी में राजनीतिक दल के राज्य प्रेसिडियम में चुने गए गुरदीप रंधावा, यह पद पाने वाले पहले भारतीय

Germany: जर्मनी में राजनीतिक दल के राज्य प्रेसिडियम में चुने गए गुरदीप रंधावा, यह पद पाने वाले पहले भारतीय विस्तार भारतीय मूल के जर्मन नागरिक गुरदीप सिंह रंधावा जर्मनी में एक राजनीतिक दल की राज्य इकाई (पार्टी प्रेसिडियम) में चुने गए हैं। उन्हें थुरिंगिया स्टेट क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU) पार्टी प्रेसिडियम में नियुक्त किया गया है। यह पहला मौका है जब किसी भारतीय मूल के जर्मन नागरिक को सीडीयू द्वारा जर्मनी में राज्य प्रेसिडियम में नियुक्त किया गया है। अगस्त में चुने गए थे भारतीय समुदाय के प्रतिनिधि इससे पहले अगस्त में गुरदीप सिंह रंधावा को जर्मनी में भारतीय समुदाय का पहला प्रतिनिधि चुना गया था। भारतीय समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में, रंधावा का काम भारतीय समुदाय की समस्याओं व चिंताओं से अवगत कराना था। रंधावा का काम भारतीयों को राजनीतिक रूप से सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित करना भी था। 62 वर्षीय उद्यमी रंधावा जर्मनी के वाचसेनबर्ग जिले में स्थानीय सीडीयू संघ के सदस्य प्रतिनिधि हैं। जहां वे स्थानीय परिषद के सदस्य भी हैं। वह अभी भी अपने मूल देश भारत के साथ न केवल व्यापारिक संबंध बनाए हुए हैं बल्कि वहां मानवीय कार्यों (खासकर सिखों और पंजाब के लोगों के अधिकारों) में भी शामिल रहे हैं। जर्मनी में भारतीयों की कई पीढ़ियां रह रहीं अगस्त में अपनी नई भूमिका को लेकर रंधावा ने कहा था कि मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि समाज में वास्तविक एकजुटता हो। यह विभिन्न संस्कृतियों पर भी लागू होता है जो हमारे देश को एकजुट करती हैं। जर्मनी में भारतीयों की कई पीढ़ियां हैं। मैं जर्मन और भारतीय संस्कृति के साथ रहा हूं। मैं उनके समर्थन से राजनीतिक स्तर पर नए विचारों को लाना चाहता हूं। जर्मनी में भारतीय ...

जर्मनों को कितना देशभक्त होना चाहिए?

जर्मनी के रूढ़िवादी विपक्षी दल मानते हैं कि देश को ज्यादा देशभक्ति की जरूरत है, ताकि राजनीतिक ध्रुवीकरण से निपटा जा सके और पूर्वी जर्मन ज्यादा सम्मिलित महसूस कर पाएं. लेकिन जर्मनी में देशभक्ति का मतलब आखिर है क्या?सेंटर-राइट रुझान वाली क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) पार्टी ने पिछले हफ्ते जर्मन संसद में एक प्रस्ताव रखा. यह प्रस्ताव उस नब्ज को छूता है, जो दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद से ही देश को परेशान करती आ रही है. यह सवाल है, जर्मन लोग खुद पर फिर से कब गर्व कर सकेंगे? सीडीयू का कहना है कि 1949 में अंगीकृत किए गए जर्मन संविधान या बुनियादी कानून (बेसिक लॉ) के उपलक्ष्य में 23 मई को राष्ट्रीय स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए. इसके साथ ही "देशभक्ति का संघीय कार्यक्रम" भी लागू करना चाहिए. इसके तहत निम्न योजनाएं रखी गई हैं- - सार्वजनिक स्थानों पर राष्ट्रीय प्रतीकों की झांकियां साल में और ज्यादा दिखाई जाएं- खासतौर पर राष्ट्रीय झंडा. - सार्वजनिक अवसरों पर राष्ट्रीय गान ज्यादा से ज्यादा गाया जाए. - जर्मन सेना ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक समारोह आयोजित करे, ताकि "सशस्त्र बलों और नागरिक समाज के बीच संबंध और प्रगाढ़ हो और इस संपर्क में देशभक्ति की संभावना को मजबूत बनाया जाए." सीडीयू ने समावेशी संदर्भों में उपरोक्त विचारों को पेश करने की अपनी ओर से भरपूर कोशिश की. पार्टी के मुताबिक, इस आधुनिक देशप्रेम को बेसिक लॉ में निर्धारित मूल्यों से जुड़े रहने के लिए प्रवासी समुदायों को आमंत्रित करना चाहिए. जिसे पार्टी देशभक्ति की "संभावना" करार देती है, उसे राजनीतिक हाशियों के लिए नहीं छोड़ा जा सकता. इसका मतलब सीडीयू अपनी चुनावी प्रतिद्वंद्वी धुर दक्षिणपंथी अल्टरनेटिव फॉर ज...

भारत में कितने राजनीतिक दल है

इसलिए, भारत में राष्ट्रीय व राज्य (क्षेत्रीय), राजनीतिक दलों का वर्गीकरण उनके क्षेत्र में उनके प्रभाव के मुताबिक़ ही किया जाता है | यदि आप भी भारत के रकाजनीतिक दलों के विषय में जानना चाहते हैं, तो यहाँ पर आपको भारत में कितने राजनीतिक दल है और राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टी की सूची (पीडीऍफ़) | इसकी विस्तृत जानकारी प्रदान की जा रही है | बीजेपी (BJP) का फुल फॉर्म क्या है भारत में राजनीतिक दल 2023 Table of Contents • • • भारत चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों केआंकड़ों के मुताबिक़, भारत में कुल 2293 राजनीतिक दल हैं | ये सभी पार्टियां चुनाव आयोग में पंजीकृत कर दी जा चुकी हैं, जिनमे से सात मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और 59 मान्यता प्राप्त राज्य पार्टियां शामिल है | इसके साथ ही फरवरी और मार्च के बीच 149 राजनीतिक दलों ने आयोग में अपनी पंजीकरण प्रक्रिया संपन्न की थी। भारत की सभी राष्ट्रीय पार्टियों की सूची (National Party in India) राजनीतिक दल का नाम गठन/स्थापना कब हुई 1980 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) 1885 मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) 1964 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) 1925 बहुजन समाज पार्टी (BSP) 1984 राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) 1999 आम आदमी पार्टी (AAP) 2012 विधानसभा चुनाव में नामांकन कैसे होता है भारत में क्षेत्रीय पार्टियों की सूची (Regional Parties of India) राजनीतिक दल का नाम गठन राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) 1972 पुदुचेरी, तमिलनाडु ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (AIFB) 1939 पश्चिम बंगाल ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) 1927 तेलंगाना ऑल इंडिया एन. आर. कांग्रेस (AINRC) 2011 पुदुचेरी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रं...